आज़ाद भारत की कमान अगर नेताजी के हाथ आती तो आज दुनिया की सिथति कुछ और ही होती ।
दिल्ली [वॉयस ऑफ़ भारत ] भारतीय स्वाधीनता संग्राम के महानायक और आज़ाद हिन्द सरकार के प्रथम प्रधानमंत्री नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्म दिवस पर उनके चरणों में हमारा शत -शत नमन। भारत की आज़ादी के लिए लाखों असंख्य लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी जिसके परिणाम स्वरुप हमें 15 अगस्त, 1947 को विदेशी शासन से मुक्ति मिली। स्वाधीनता संग्राम में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस एक ऐसे महानायक हैं जिन्होंने उस समय के सबसे शक्तिशाली अंग्रेजी शासकों के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध किया और अंग्रेजी साम्राज्य की जड़ों को हिला कर रख दिया। नेताजी ने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध लड़ रही देशों की संयुक्त सेना के साथ अपनी आज़ाद हिन्द फ़ौज़ को भी युद्ध के मैदान में उतार कर दुश्मनों के हौंसलें पस्त कर दिए। अफ़सोस जनक बात यह रही की देश की आज़ादी मिलते समय नेताजी न जाने कहाँ लोप हो गए।
नेता जी का जन्म 23 जनवरी ,1897 को उड़ीसा के कटक में एक बंगाली परिवार में हुआ। इनके पिता जानकीनाथ एक जाने -माने वकील थे और माता प्रभावती एक धर्मपरायण भारतीय संस्कारों से ओत -प्रोत महिला थी।नेताजी की शिक्षा -दीक्षा श्रेष्ठ स्तर की हुई और उन्होंने उच्च शिक्षा विदेश में जाकर प्राप्त की । उन्होंने आई सी एस परीक्षा पास करके अंग्रेजी शासन का प्रशासनिक अधिकारी का पद ठुकरा कर देश की आज़ादी की लड़ाई में कूदने का रास्ता चुना। वह कांग्रेस में शामिल हो गए ,लेकिन उनको अन्य कांग्रेसी नेतायों की गिड़गिड़ाने की नीति रास नहीं आई और उन्होंने शीघ्र ही अपना अलग रास्ता पकड़ा। 1938 में वह कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए। 1939 में नेताजी महात्मा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव जीत गए। अपने समर्थित उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैय्या की पराजय को महात्मा गांधी ने अपनी निजी हार माना। इसके बाद नेताजी ने कांग्रेस को त्याग कर अपनी अलग राह पकड़ ली। नेताजी महात्मा गांधी की उदारवादी नीति से सहमत नहीं थे ,वह आज़ादी को ताकत के बल पर हासिल करना चाहते थे और इसके लिए आज़ाद हिन्द फ़ौज़ उनकी कमांड में अंग्रेजों के विरुद्ध पूरी ताकत से लड़ी।नेताजी [1933 -1936 ] यूरोप में रहे और यह दौर था हिटलर के नाजीवाद और मुसोलिनी के फासीवाद का। नाजीवाद और फासीवाद का निशाना इंग्लैंड था, जिसने पहले विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी पर एकतरफा समझौते थोपे थे। वे उसका बदला इंग्लैंड से लेना चाहते थे। भारत पर भी अँग्रेज़ों का कब्जा था और इंग्लैंड के खिलाफ लड़ाई में नेताजी को हिटलर और मुसोलिनी में भविष्य का मित्र दिखाई पड़ रहा था। दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। उनका मानना था कि स्वतंत्रता हासिल करने के लिए राजनीतिक गतिविधियों के साथ-साथ कूटनीतिक और सैन्य सहयोग की भी जरूरत पड़ती है।
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