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Thursday 31 July 2014

देश में खुलेआम I S I S के झंडे लहरनेवालों के विरुद्ध मीडिया और सेकुलवादी मौन क्यों हैं ? क्या उन्हें इन ताकतों से डर लगता है या उन्हें राष्ट्र की चिंता नहीं है ?

कश्मीर के श्रीनगर में 29 जुलाई को ईद के मुबारक मौके पर नमाज अता करने के बाद  नमाजियों ने इजराइल द्वारा गाज़ा में हमास के खिलाफ की जा रही सैनिक करवाई के विरुद्ध हिंसक प्रदर्शन किया और भारतीय सुरक्षा बलों पर पथराव करके शांति का अनूठा  पैगाम दिया। यही नहीं इन प्रदर्शनकारियों ने पुलिस - अर्धसैनिक बलों और मीडिया के सामने इराक के आतंकवादी संघठन आई एस आई एस और अलकायदा के झंडे भी लहराए। अब जरा देखो सेकुलरता का राग अलापने वाले राजनैतिक दल और संगठनों को  जिन्हें मानो सांप सूंघ गया हो ,इनमें किसी ने भी इस घटना पर कोई बयान न देकर क्या  साबित किया है ?क्या भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के एक हिस्से कश्मीर में दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकी संगठन आई एस आई एस का खुलेआम  समर्थन करनेवाले लोग शांति प्रिय कैसे हो सकते हैं ? क्या भारत का मीडिया देश की शांति के लिए इस घटना को खतरा नहीं मानता या फिर उसे सिर्फ ' भगवा आंतकवाद ' का राग आलापना ही आता है ?क्या  देश में इन खतरनाक इरादेवाले लोगों को' शांति दूत 'और ' प्रेम का पैगाम देनेवाला  ' माना जाए ? भविष्य में आनेवाली संभावित आफत को भांपते हुए भी मीडिया और सेकुलरता का राग अलापनेवाले खामोश होकर इन देश और मानवता विरोधी ताकतों को क्या अपना मूक समर्थन नहीं दे रहे हैं ?इस खतरे की घंटी को भारत सरकार भी सुन रही है लेकिन उसकी चुप्पी भी
राष्ट्रवादियों के लिए चिंता का विषय बनी  हुयी है। देश की संसद में गाज़ा में मरनेवालों पर हल्ला मचानेवाले इराक में आई एस आई एस के जल्लादों द्वारा की जा रही मासूमों की हत्याओं पर मौन रखें ,अमरनाथ यात्रा पर हमला और लंगर शिविरों को  आग लगाने वालों के विरुद्ध मौन ,मीडिया एक रोज़ेदार के मुंह में रोटी देने की घटना पर शोर मचाये और बाकि घटनाओं पर उसे सांप सूंघ जाये तो इसे क्या समझा जाये कि या तो मीडिया हिन्दू विरोधी है या आंतक के आगे झुकता है ?यह सब देश और शांतिप्रिय लोगों के लिए खतरे की घंटी है जिसको सुनकर भी अनसुना करनेवाले देश और मानवता के हितैषी नहीं सकते।