
आज भी लक्षमी नगर में पिछले कई वर्षो से विनोद नामका एक निगमकर्मी अवैध निर्माण से ऊगाही करके उच्च अधिकारियों और अपने राजनैतिक आकायों तक पहुँचाने में लगा हुआ है। बताया जाता है कि त्यागी ना होते हुएे भी खुद को विनोद त्यागी कहने वाले इस निगमकर्मी के आगे पूरा निगम प्रशासन नत मस्तक है .इस कर्मी की ड्यूटी किसी दुसरे स्थान पर है लेकिन किसी की भी बड़े अधिकारी में इतनी हिम्मत नहीं जोकि इस चतुर्थ श्रेणी के कर्मी के विरुध कोई कदम उठा सकें। बताया जाता है कि इसने पश्चिमी यू पी स्थित अपने गांव और उसके आस -पास अन्य क्षेत्रों में करोडों रूपये की चल -अचल सम्पति के एकत्र कर रखी है जिसमे बेनामी सम्प्पति भी शामिल है। करोड़ों की सम्पति के मालिक बन चुके इस निम्न् श्रेणी के कर्मचारी के विरुध कौनसा उच्च श्रेणी का अधिकारी कार्यवाही करेगा देखने की बात है।
इसी तरह से गीता कालोनी में महेश कुमार ,कृष्णा नगर में सचिन और अशोक कुमार ,शाहदरा में सुरेंद्र कुमार भी इसी काम में बेखोंफ लगें हैँ और निगम प्रशासन इनके सामने पंगु बना हुआ हैँ। अवैध उगाही से करोड़ों की सम्पति की नामी - बेनामी की सम्पति के स्वामी इन बेलदारों की उच्च स्तरीय जाँच हो तो यहां भी जमे कई यादव सिंह बेनकाब हो सकते हैं। मजेदार बात यह है कि कुछ माह पहले सम्पन्न हुए दिल्ली की तीनों नगर निगमों के चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा हाईकमान ने पिछली बार के लगभग सभी निगम पार्षदों को चुनाव में खड़ा नहीं किया था और निगम को स्वच्छ और भ्रष्टाचार रहित बनाने की सोच से नए लोगों को चुनाव लड़वाया। अच्छी बात यह हुयी कि दिल्ली की जनता ने भी पार्टी के इस निर्णय पर अपनी मोहर लगा दी और तीनो निगमों में भाजपा को सत्ता सौंप दी। अफ़सोस इस बात का है कि कुछ महीनों में ही निगमों में जीत कर आये नए पार्षदों ने भी अपने पूर्वर्ती पार्षदों की राह पर चलना ही अच्छा समझा और न तो निगमों से भ्रष्टाचार समाप्त हो पाया और न ही भ्रष्टतंत्र पर कोई लगाम कसी जा सकी।