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Friday 26 February 2016

राहुल गांधी जी देशभक्ति के खून का दावा करके देशद्रोहियों का समर्थन क्यों ?

क्या किसी भी देशभक्त से यह उम्मीद की जा सकती है कि वो अपने देश के विरुद्ध नारे लगानेवाले ,देश की संसद पर हमले के दोषी आतंकवादी के जिंदाबाद करनेवाले और देश की बर्बादी तक जंग लड़ने की भावना दर्शाने वालों का समर्थन करे ?अगर कोई भी व्यक्ति या मिडिया संस्थान ऐसा करे तो उसको कैसे देशभक्त कहा जा सकता है ?इस बात का निर्णय कौन करेगा कि ऐसा कृत्य करनेवाला नागरिक देशभक्त नहीं है ?अपने देश के विरुद्ध ऐसी भावना रखनेवाले व्यक्ति को क्या खुद इस बात का निर्णय करने का अधिकार है कि वह इस दुर्भावना को प्रदर्शित करने के बावजूद भी देशभक्त है ?क्या कोई आरोपी खुद ही अपने को आरोप मुक्त कहकर देश के लोगों को गुमराह कर सकता है ? इस बात का निर्णय देश की न्यायपालिका ही कर सकती है और कर भी रही है। देश की बर्बादी और उसको खंड -खंड करने तक जंग लड़ने वाले छात्रों को या किसी अन्य के विरुद्ध प्रशासन की क़ानूनी कार्रवाई को अनुचित कैसे कहा जा सकता है ?देशद्रोह के  पाप को अभिव्यक्ति की आज़ादी का नाम देकर कैसे उचित ठहराया जा सकता है? लेकिन यह सब भारत के अंदर किया जा रहा है और इसको करने में देश के कई कथित बड़े राजनेता -राहुल गांधी -दिल्ली के सीएम अरविन्द केजरीवाल -वामपंथी दलों के नेताओं सहित कई विरोधी दल के नेता और खुद को बड़ा पत्रकार मानने वाले लोग भी करने में लगे हुए हैं।अफजल गुरु देश की संसद पर हुए हमले का दोषी था और उसको न्यायालय ने फांसी की सज़ा दी थी और उसको यूपीए सरकार के कार्यकाल में फांसी पर टांग भी दिया गया था। अब कांग्रेस के नेता उसकी फांसी पर सवाल उठाकर न्यायपालिका की निष्पक्षता पर भी संदेह पैदा करके कोर्ट की अवमानना कर रहे हैं। अफसोसजनक बात यह है कि सत्ता छिन जाने के बाद से ही कांग्रेस बुरी तरह से बौखलाई हुई है और ऐसी बौखलाहट में देश के विरुद्ध नारे   लगानेवाले देशद्रोहियों और आतंकवादियों की पैरवी करने की नीचता पर उतर आई है। एक ओर तो राहुल गांधी जेएनयू में भारत विरोधी नारे और भारत के टुकड़े -टुकड़े करनेवालों की हिमायत करने जेएनयू परिसर में पहुँच जाते हैं दूसरी ओर भारत की रक्षा में अपने प्राण न्यौछावर करनेवाले  जवानों के परिवारों के आंसू पोंछने की जरूरत नहीं समझते। राहुल गांधी की यह कौनसी देशभक्ति है ? वह कहते हैं कि देशभक्ति उनके खून में है लेकिन वो हिमायत देश से द्रोह करनेवालों की कर रहे क्यों ? अगर कोई देशद्रोहियों का समर्थन भी करे और खुद को देश के युवाओं के दिलों की धड़कन भी बताए तो उसे क्या समझा जाये ? उनका यह कृत्य किसी भी तरह से उनको देशभक्त साबित नहीं करता। ऐसा कौनसा खून है जो उनकी रगों में हिलोरे मारकर उन्हें देशद्रोहियों का समर्थन करने के लिए बेचैन किये हुए है ? उनका यह कहना कि उन्हें किसी से देशभक्ति के प्रमाणपत्र लेने की जरुरत नहीं है कितनी बचकाना बात है। क्या ऐसे ऐसे व्यक्ति को देशभक्ति का प्रमाणपत्र मिल सकता है जो देशद्रोह के आरोपियों का समर्थन करता हो और अपनी रगों में देशभक्ति के खून होने का दावा भी करता हो ?अपने  नापाक इरादे के साथ देशद्रोह के आरोपियों और आतंकवादी अफजल गुरु के समर्थन में पहले सड़क पर और अब देश की संसद में शोर -शराबा करनेवाले नेताओं के विरुद्ध भी कार्रवाई होनी चाहिए।देशद्रोहियों और आतंकवादियों के पक्ष में आवाज़ उठाने वाले इन नेताओं को संसद से निकालकर बाहर कर देना चाहिए बेशक वो किसी भी सदन के सदस्य हों या किसी भी पार्टी से संबंध रखते हों। यह लोग देश के साथ तो द्रोह कर ही रहे हैं साथ ही अफजल गुरु की फांसी पर भी सवाल उठाकर देश के सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना कर रहे हैं। देश की  संसद हो चाहे कोई भी अन्य स्थानीय निकाय का  सदन सभी इस देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था के मंदिर हैं उनमें बैठकर किसी भी सदस्य को भारत के स्वाभिमान पर चोट करने की छूट नहीं दी जा सकती। अगर कोई भी भारत के विरुद्ध जहर उगलने वालों की वकालत करता तो वो भी उसी दंड का भागी होना चाहिए जो एक देशद्रोही को मिलता है। कांग्रेस के लोग जिस तरह से जेएनयू कांड के देशद्रोह के आरोपियों को निर्दोष बताकर उनको बचाने का षड्यंत्र कर रहे हैं वो सीधे -सीधे देश के साथ गद्दारी है और कोई भी गद्दार सज़ा से बच नहीं सकता। [अश्विनी भाटिया ]भी करने में