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Tuesday 1 September 2015

क्या उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी का आरोप संकीर्ण सोच से ग्रस्त है ? इससे भारत की छवि को ठेस नहीं पहुंचेगी ?



नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने मोदी सरकार से मुस्लिम समाज से भेदभाव की गलती सुधारने की मांग की है। उन्होंने कहा है कि भारतीय मुस्लिमों को अपनी पहचान, सुरक्षा, शिक्षा एवं सशक्तीकरण बरकरार रखने में समस्या आ रही है। और मुस्लिमों को आ रही समस्याओं पर सरकार को गंभीरता से लेना चाहिए और इसे दूर करने के लिए सकारात्मक कदम उठाने चाहिए। उप राष्ट्रपति हामिद ने मोदी सरकार के सबका साथ सबका विकास की तर्ज पर मुस्लिमों की पहचान एवं सुरक्षा को मजबूत करने की मांग की है।क्या अंसारी जी का मोदी सरकार पर यह आरोप सही है या किसी सोची -समझी रणनीति का हिस्सा है ? देश के उपराष्ट्रपति जैसे महत्वपूर्ण पद पर आसीन हामिद अंसारी का यह बयान किस सोच को प्रदर्शित करता है ? क्या इस बयान का यह अर्थ नहीं निकलता कि भारत में मुसलमानों के साथ भेदभाव हो रहा है और उनकी पहचान और सुरक्षा खतरे में है। यह कहना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि अंसारी जी की सोच संकीर्ण मानसिकता को प्रदर्शन करती प्रतीत होती है। ऐसा क्यों है कि कोई ऐसा व्यक्ति जो उपराष्ट्रपति हो और वह सरकार पर एक धर्म के अनुयायिओं के साथ भेदभाव करने का  गंभीर आरोप लगाए तो यह सोचना पड़ेगा ही कि या तो वास्तव में ऐसा हो रहा है या फिर जानबूझकर संकीर्ण मानसिकता के कारण साम्प्रदायिक सोच  को उजागर किया जा रहा है ? यहां एक बात तो सत्य है कि भारत के मुसलमान किसी भी अन्य इस्लामिक देश के मुसलमानों से अधिक भारत में अपनी पहचान को मजबूती से बनाए हुए हैं और बहुत अधिक सुरक्षित हैं। और तो और यहां यह भी कहना किसी भी तरह से असत्य नहीं है कि कांग्रेस ने अपनी मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के तहत ही हामिद अंसारी जी को उपराष्ट्रपति पद पर आसीन किया अन्यथा और बहुत से योग्य व बुद्धिजीवी विद्वान देश में उपस्थित थे जो इस पद पर आसीन हो सकते थे। क्या हामिद अंसारी ने ऐसा कहकर मुस्लिम तुष्टिकरण की उस नीति का उदाहरण पेश किया है जिसको कांग्रेस और अन्य दल मुस्लिम वोटों की खातिर अपनाकर देश की सत्ता पर काबिज़ रहे हैं। इसी मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति की प्रतिक्रिया में नरेंद्र मोदी  2014 के आम चुनाव में भारी बहुमत से जीतकर  देश की सत्ता पर काबिज़ हुए हैं और यह परिवर्तन बहुत से साम्प्रदायिक सोच वाले नेताओं ,संगठनों ,और कथित धर्मनिरपेक्षता के झंडाबरदारों के गले से अभी तक  नीचे नहीं उत्तर रहा है और शायद उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी जी भी उनमें से ही एक हैं। एक जिम्मेदार पद पर बैठे मुस्लिम महानुभाव की यह बहुत ही आपत्तिजनक बयानबाज़ी है जो विश्व में भारत की सर्वधर्म सदभाव की छवि को नुकसान पंहुचाने का काम कर सकती है। अच्छा होता कि महामहिम हामिद अंसारी मुसलमानों से यह अपील करते कि वह सब भारत की संस्कृति को आत्मसात करके अपनी अलग पहचान की कुत्सित मानसिकता का त्याग करके देश की मजबूती को कायम करने का काम करें। अफ़सोस की बात है कि कुछ लोग चाहे कितने भी बड़े क्यों न बन जाएं परन्तु उनकी छोटी सोच बड़ी नहीं बन पाती।