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Monday 18 August 2014

कृष्ण नीति से ही होगी राष्ट्र और मानवता की रक्षा। इसको अपनाने से मिलेगी आतंक से मुक्ति।

 विश्व के महान दार्शनिक , कुशल रणनीतिकार ,कुटनीतिज्ञ ,अन्याय के विरुद्ध महाभारत के शंखनाद करनेवाले और मानवजाति को अपने कल्याण की राह  बताने वाले पवित्र ग्रंथ गीता के रचियता भगवान  श्री कृष्ण के जन्मदिवस 'श्री कृष्ण जन्माष्टमी ' पर हमारी ओर से सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।आज इस अवसर पर हमें भगवन श्री कृष्ण की इस नीति को कि ''अन्याय और अधर्म पर चलनेवालों को समाप्त करने के लिए चाहे हमें साम  -दाम -दंड -भेद किसी भी नीति को अपनाना पड़े अपनाना ही धर्म है।'' इस अवसर पर इस बात पर विचार करना भी आवशयक समझता हूँ कि  क्या हमने विशेषतौर से हिन्दुओं ने कभी अपने अवतारों राम -कृषण की पूजा करने के अलावा उनकी दिखाई गई राह पर चलने और उनके द्वारा दिए गए सन्देश को अपने जीवन में उतारने की कौशिश की है ? विश्व की सबसे पुरातन सभ्यता और अपनी धर्म -संस्कृति की पूंजी की विरासत के स्वामी होने के बावजूद आज दुनिया में हमारी पहचान सबसे कायर और डरपोक धर्म के अनुयायिओं की क्यों बनी हुयी है ? इसका कारण यह है कि जबसे हमने अन्याय और अधर्म को सहने की आदत बना ली है और संकट के समय लड़ने की बजाय भगवान से चमत्कार की आस लगाने की प्रवृति को अपने मन -मस्तिष्क में बैठा लिया है तबसे हमारी हालत दयनीय और कमजोर धर्म अनुयायिओं की बन गई है। एक बात और,शायद हमारे भगवानों ने भी यह समझ लिया है कि उनके भक्त अब विपरीत परिस्थितियों से लड़ने की बजाय चमत्कारों की आस करने लगे हैं ,इसीलिए उन्होंने हमारी मदद करनी भी बंद कर दी है।यह बात हमें समझ में क्यों नहीं आ रही कि  'दुनिया में सिर्फ ताकतवर के कुत्तों की भी पूजा होती है और कायरों का देवता भी अपमानित होता है।' हमने अपने अवतारों की पूजा तो की परन्तु उन पर विश्वास नहीं किया। इसका प्रमाण हिन्दुओं का बड़ी संख्या में  कब्रों -मज़ारों पर माथा रगड़ना की होड़ और मुल्ला -मौलविओं ,पाखंडी बाबाओं और ज्योतिषों के चक्कर में पड़कर अपनी दुविधाओं से मुक्ति का मार्ग ढूंढ़ना। यही है हिन्दुओं की बिगड़ती और कमजोर होती स्थिति का असली कारण। हमने अपने अवतारों को पूजने में ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली और उनके बताये रास्तों पर चलने से तौबा कर ली क्यों ?क्या हमारे अवतारों ने अपने काल में  अधर्मियों और अत्याचारियों के विरुद्ध शस्त्र नहीं उठाये और उनका समूल नामोनिशान धरती से नहीं मिटा दिया। हमने अपने इन अवतारों को इसी कारण भगवान माना और उनकी मूर्तियां बनाकर मन्दिरों में स्थापित करके पूजना तो शुरू कर दिया और अपने सभी संकटों से बचने का भार उनपर डाल कर अपने को सुरक्षित मान लिया।जिस कारण हमने इन अवतारों को भगवान माना भूलवश उसी कारण को अनदेखा कर दिया और यहीं से हम अपनी  राह से ऐसे भटके  कि 1000 साल गुलाम रहने के उपरांत भी  आज भी सही राह नहीं ढूंढ सके। हमने विपरीत परिस्थितियों में अपने दुश्मनों से लड़ने की बजाय अपने देवताओं की मूर्तियों के आगे गिड़गिड़ाना सीख लिया और हमेशा ही हारते रहे।हमने भगवान से अपनी रक्षा की गुहार की और चमत्कार करने का आह्वान किया और खुद उठकर लड़ने की हिम्मत न करके अपने अवतारों के कर्म करने के सन्देश को भूल कर अपने को पराजय के हवाले कर दिया। हमें धार्मिक शिक्षा देनेवाले धर्माचार्यों ने भी हमें सिर्फ रासलीला और बंसी की तान सुनने तक सिमित कर दिया।हमारे धर्माचार्यों और कथावाचकों ने हमें कुरुक्षेत्र में महाभारत के दौरान निराश हताश हो चुके  अर्जुन को अधर्म -अन्याय के विरुद्ध हथियार उठाकर लड़ने का आह्वान करनेवाले श्री कृष्ण से मिलने ही नहीं दिया , इसी धार्मिक - शिक्षा की वजह से यह गौरवशाली और शक्तिशाली खुद को राम- कृष्ण की संतान माननेवाली हिन्दू जाति एक हज़ार साल तक मुट्ठी भर विदेशी और लुटेरे आक्रान्ताओं की  गुलाम बन कर अपमानित होकर,जीने को विवश हो गयी। हमने भी अपने अवतारों  के जीवन चरित्र से अन्याय और राक्षसी शक्तियों से लड़ने की प्रवृति को छोड़कर सिर्फ रासलीला और रामलीला देखने तक सिमित करके अपने भगवानों को भी शर्मशार ही किया है। हमने अहिंसा और उदारता का जो आवरण ओढ़ रखा है क्या वो हमारी कायरता और लड़ने से बचने की प्रवति को छुपाने की कौशिश मात्र नहीं है ? सिर्फ भगवान श्री कृष्ण की पूजा करके और उसके जन्मदिवस पर मंदिरों को सजाकर क्या हम उनके [श्री कृष्ण ]द्वारा अपने पवित्र गीता ग्रंथ के रूप में दिए गए कर्म के सन्देश को न मानकर अपने भगवान का अपमान नहीं कर रहे ? अपने अवतारों को पूजने की बजाय हमें उनके दिखाए रास्ते पर चलने से संकोच क्यों है ? आज हमारेराष्ट्र और संस्कृति के सामने जो भी समस्याएं मुंह बाये खड़ी हैं उन सब का एक ही उपाय है और वह यह है कि हम श्री कृष्ण की बताई राह को अपना लें। इसको अपनाने से ही मानवता और राष्ट्र -धर्म की रक्षा तो होगी ही साथ ही साथ आतंकवादी ताकतों का भी समूल नाश इस धरती से हो जायेगा। जन्माष्टमी के इस पावन पर्व पर हम अगर इस उपरोक्त उपाय को मैंने का प्रण कर लें तो इससे बढ़कर कोई कृष्ण -भक्ति नहीं हो सकती। जय श्री कृष्ण।