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Monday 22 February 2016

हरियाणा में जाटों ने आरक्षण को पाने की लालसा में विश्वास की पूंजी खो दी

हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन के नाम पर हिंसा लूटपाट और आगजनी का जो नंगा नाच हुआ उसकी आग बेशक अभी तो शांत हो जाए लेकिन इसकी चिंगारी समाज के दूसरे समुदायों के दिलों में काफी लम्बे समय तक नहीं बुझ पायेगी। आंदोलन की आढ़ में जाटों ने  दूसरे समुदाय के लोगों के व्यावसायिक  प्रतिष्ठानो को जमकर लूटा और बाद में आग के हवाले करके अपनी वहशीपन  को  शांत किया । इस हिंसा लूटपाट और आगजनी को पुलिसवाले ने   भी यह सोचकर रोकना उचित  नहीं समझा क्योंकि एक तो वह लुटरे उनके जातिभाई हैं और इसकी सफलता में उनकी वर्तमान और भावी संतानों की सम्पन्नता और  उद्धार का मार्ग भी प्रशस्त होना है।  अब  आंदोलनकारी जाटों का यह कहना कि यह लूटपाट और आगजनी उन्होंने नहीं की बल्कि यह सब बाहर से आये लोगों ने किया है।जबकि उन लोगों ने  सारे  रास्ते अपने कब्ज़े में कर रखे थे और आर्मी तक को जाने के लिए हवाई मार्ग चुनना पड़ा  तो यह हिंसा करनेवाले लुटेरे कहां से और कैसे वहां पहुँच गए ? दुकानों को  लुटकर जलानेवाले और हिंसा करनेवाले जाट नहीं थे तो क्या उन्हें इस बात की जानकारी थी कि कौनसी दुकानें गैरजाटों की हैं और सिर्फ उन्हें ही आग के हवाले करना है ? तो क्या यह लुटरे और वहशी दरिन्दे तालिबानी थे ? क्या वो तालिबान या पाकिस्तान  या इराक या सीरिया से आकर यह तबाही का मंजर बना गए ? केंद्र सरकार लाख दावे करती रहे कि आर्मी को हरियाणा में तैनात करने में कोई देरी नहीं की गई लेकिन इसका लाभ क्या हुआ क्योंकि आर्मी के हाथ बांधकर हां  भेजा गया था।उसका भी एक सीधा सा राजनैतिक कारण यह दिखता है कि अगले साल  उत्तरप्रदेश के होनेवाले विधानसभा चुनावों में पश्चिमी  पट्टी के जाटों के वोट प्राप्त करने की लालसा। इस सारे घटनाक्रम के पीछे एक कारण  यह है कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का पंजाबी समुदाय से होना।हरियाणा के गठन 1966 से ही जाटों के दिमाग में यह बात बैठा दी गई है  कि हरियाणा सिर्फ उनका है और यहां पर राज करने का एकमात्र अधिकारभी  उन्हीं को प्राप्त है।और इसी सोच को कांग्रेस ने जाट नेता को सीएम की कुर्सी पर बार -बार बैठाकर हमेशा -हमेशा के लिए पुख्ता कर दिया। इसीलिए जाटों की इस सबसे बड़ी दिमागी फितरत और टीस ने विशेषतौर से पंजाबी समुदाय को ही अपना मुख्य निशाना बनाया। इस काम में हरियाणा की सभी राजनैतिक दलों की  जाट लॉबी ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से एकजुट होकर  सहयोग दिया और स्थानीय प्रशासन ने भी अपना कर्तव्य भूलकर संकुचित सोच के साथ आंदोलनकारियों का साथ दिया । इस हिंसात्मक आंदोलन के कारण भारी मात्रा में जानमाल का नुकसान झेलनेवालों की क्षतिपूर्ति अब कौन करेगा ?मेहनत --मजदूरी से कमाई जीवनभर की  पूंजी को अपनी आँखों से लुटता  देखनेवाली आँखों में क्या आरक्षण का लाभ लेनेवाले समुदाय  ने अपनी विश्वास की पूंजी को  नहीं लुटा दिया  ?