Powered By Blogger

Tuesday 13 October 2015

हमें अपने देवी - देवताओं की पूजा के साथ -साथ उनके सिद्धांतों को अपनाने से परहेज क्यों ?

सभी देशवासिओं को नवरात्रि के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं। हम इन दिनों में माँ दुर्गा के 9 स्वरूपों की आराधना करते हैं और अन्न का त्याग करके उपवास भी रखते हैं। इन उपवासों का धार्मिक महत्व तो है ही लेकिन वैज्ञानिक महत्व भी कम नहीं है, क्योंकि यह चिकित्सा विज्ञानं भी कहता है कि जब मौसम बदल रहा हो तब हमें कम खाना चाहिए, इससे हम स्वस्थ बने रहते हैं।वर्ष में 2 बार नवरात्रि का पर्व आता है - एक बार जब ग्रीष्म ऋतु जा रही होती है और शरद ऋतू का आगमनहो रहा होता है अर्थात अक्टूबर में औरदूसरी बार जब शीत ऋतू जाने और ग्रीष्म ऋतू आगमन यानि अप्रैल माह में-इस तरह मौसम परिवर्तन के दौरान ही उपवास रखने और कम खाने की परम्परा हमारे धर्म की मान्यता है। धार्मिक आधार से भी  इस पर्व को आदिकाल से मनाने की परम्परा चलती आ रही है क्योंकि इन दिनों में की गई तपस्या और उपवास रखने से हमें नई ऊर्जा और विपरीत परिस्थितियों से लड़ने की प्रेरणा भी मिलती हैनवरात्रों में हम भवानी की आराधना करके अपने लिए सुखद और समृद्ध जीवन का वरदान मांगते हैं और अनिष्टकारी ताकतों के खात्मे की प्रार्थना करने मात्र से ही नवरात्रि को मनाने की इतिश्री कर लेते हैं। हम जानते हैं की दुर्गा माँ आदिशक्ति स्वरूप है और उसने एक से बढ़कर  एक बलशाली राक्षस का वध किया और  मायावी  आततायी - अधर्मी और अन्यायकारी आसुरी ताकतों का नरसंहार किया।भवानी की आराधना से हमें शक्ति प्राप्त होती है और हम इस शक्ति से धर्म का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।माँ दुर्गे शेर की सवारी करती है और अपने हाथों में शस्त्र भी रखती है जिनसे हमे अपने धर्म और राष्ट्र की रक्षा की प्रेरणा मिलती है,परन्तु हम सिर्फ माँ की पूजा करके अपनी मनोकामनाओं को पूरा करने की अभिलाषा रखते हैं। अपनी रक्षा स्वयं करने की बजाय अपने देवी -देवताओं से मदद की गुहार लगाने की मानसिक बीमारी से ग्रस्त रहने के कारण हम एक हज़ार वर्ष तक विदेशी आसुरी ताकतों के गुलाम बने रहे। हमारे देवी -देवताओं ने अपने समय में आततायियों और अधर्मियों के विरुद्ध अपने शस्त्रों को उठाया और उनका इस धरती से समूल नाश किया। हमने अपने देवी - देवताओं की पूजा करनी तो सीख ली परन्तु उनके द्वारा स्थापित किये गए सिद्धांतों को अपने जीवन में उतारने से परेहज किया। देवी -देवताओं के दिखाए रास्तों पर न चलकर हमने अपने धर्म और राष्ट्र को गुलाम बना डाला। आज भी हालात ऐसे ही बने हुए हैं जिनमें मानवता को आतंकवादी और अन्यायकारी ताकतें चुनौती दे रही हैं। आज पूरे विश्व में आतंकवाद की आग लगी हुयी है और हम इस आग में कई दशकों से झुलस रहे हैं।हमने आदिकाल से ही अपने सामने आनेवाली चुनौतियों से लड़ने और उसके विरुद्ध उठ खड़े होने की बजाय सिर्फ अपने अवतारों की पूजा -आराधना करने में ही अपने को सुरक्षित होने का भ्रम पाले रखा और राष्ट्र और धर्म को गुलाम बना बैठे। साथ ही जिन माँ भारती के पुत्रों ने अपनी मातृभूमि और धर्म की रक्षा के लिए विदेशी आक्रान्ताओं के विरुद्ध आवज़ बुलंद की अधिकांश जन -समुदाय ने उनका साथ नहीं दिया। आज समय आ चुका है कि हमें अपने देवी - देवताओं की पूजा करने के साथ -साथ  उनके सिद्धांतों को अपने जीवन में आत्मसात करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने में ही हमारे इष्ट प्रसन्न हो सकते हैं। हमें अपने भगवानों से चमत्कार करने की गुहार की बजाय अपने राष्ट्र -धर्म  की रक्षा स्वयं करने का प्रण लेना चाहिए। ऐसा करने में ही हमारी और हमारी आनेवाली नस्लों की भलाई है।भारत की सुरक्षा में ही हमारे धर्म और हमारी सुरक्षा निहित है।यही माँ दुर्गे और माँ भवानी की आराधना है और इसी प्रण से ही हमारा जीवन सुखद और समृद्ध हो सकता है ,इसी में ही मानवता की रक्षा है और विश्व  का कल्याण है। जय माँ भवानी। जय माँ दुर्गे।हमें