मेरी समझ मे यह नही आता कि हम बेजुबान ,निरिह और मासूम जानवरो के बेरहमी से किए गए कत्ल को मुबारक कैसे माने ?किसी को भी किसी की जान लेने की इजाजत नहीं है फिर भी किसी को खुश करने के लिए एक ही दिन में करोड़ों जानवरों को मौत के घाट उतार कर हम खुशी मनाते हें और इस काम को पुण्य कार्य सम्झते हें।
यह तो सार्वभौमिक सच्चाई है कि कुर्बानी हमेशा से कमजोरों की ही दी जाती रही है। क्या कभी शेर की कुर्बानी देने की हिमाकत कोई कर सकता है? तो इसका जवाब न में ही होगा। कुर्बानी के नाम पर किए गए कत्लों को आप कुछ भी कहें लेकिन हम तो इसे कमजोर बेजुबान जीवों के प्रति किया गया अपराध ही कहेंगे। जो लोग और संगठन जीवों पर किए जाने वाले अत्याचार पर हो हल्ला मचाते हें और मीडिया भी दिवाली पर की गई आतिश्बाज़ी को वायु प्रदुषण कह कर शोर मचाता है, उन्हें बेजुबान जानवरों को कत्ल किए जाने पर उनको साँप क्यों सूंघ जाता है ?