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Tuesday 5 September 2017

पुदिननि में अवैध निर्माणों से चल रहा करोड़ों का गोरखधंधा। निगम पार्षद हुए मौन क्यों ?

दिल्ली [अश्विनी भाटिया ] पूर्वी दिल्ली नगर निगम में अधिकारियों की सांठगांठ से अवैध निर्माणों का धंधा पुरे जोर -शोर से चल रहा है और भ्रष्टाचार को मिटाने के संकल्प को लेकर जीतकर आये निगम पार्षद भी इस पर मौन धारण किये हुए हैं। कानून और भवन उपनियमोँ को ताक पर रखकर बिल्डर माफिया हर वार्ड में सक्रिय है और निगम के अधिकारी अपनी तिजौरियों को भरने में लगे हैं। बताया जाता है कि भवन विभाग सिर्फ उन्हीं अवैध बिल्डिंगों पर हथौड़ा चलाता है जिनसे उसको सुविधा शुल्क नहीँ मिलता या फिर जिसको गिराने के आदेश कोर्ट ने दिए हों। अफ़सोस की बात यह है कि एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश से कालेधन और भ्रष्टाचार को मिटाने का अभियान चलाये हुए हैं वहीं दिल्ली की नगर निगमों की सत्ता में आसीन उन्हीं की पार्टी भाजपा के लोग इस मुहिम की हवा निकालते नजर आ रहे हैं। 

अभी कुछ माह पहले ही निगम के चुनावों में भाजपा ने अपने लगभग सभी पार्षदों का टिकिट काटकर इस बार के चुनाव में नये चेहरों को उतारा था। शायद इसका कारण यह था कि पार्टी को उनका दामन पाक नहीं लगता था और पार्टी को उनके चुनाव मैदान में उतारने से हार जाने का अंदेशा भी था।जनता ने भी यह सोचकर भाजपा के लोगों को चुनावों में अपना समर्थन दे दिया कि इन नए लोगों को निगमों की कमान सौंपने से शायद भ्रष्टाचार में नाक तक डुबे इन स्थानीय निकायों को मुक्त किया जा सके ,परन्तु जनता और भाजपा हाईकमान की यह सोच अब साकार होती दिखाई नहीं दे रही। नगर निगमों में न तो भ्रष्टाचार खत्म हो पाया है और न ही भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों के विरुद्ध ही कोई ठोस कार्रवाई होती दिख रही है। पूर्वी दिल्ली नगर निगम के आधिकारियों की कार्यप्रणाली में नये पार्षदों के आने के बाद भी कोई भी परिवर्तन नहीं आया। इससे जनता को भी निराशा का सामना करना पड़ रहा है। 

नगर निगम के भवन विभाग में अभी तक अधिकारियों और अभियंताओं ने सभी वार्डों को   कुछ शातिर किस्म के निगमकर्मियों को अवैध निर्माणों से उगाही करने के लिए ठेके पर दे दिया लगता है। नगर निगम में बेलदारों और निम्न कर्मचारियों की भारी भरकम फौज होने के बावजूद भवन विभाग में स्थाई रूप से बेलदार नहीं रखे हुए। बताया जाता है कि यह नीति शातिर किस्म के अधिकारियों के दिमाग की उपज है। अब अधिकारियों ने बेलदारों को रखने का काम अभियंताओं के ऊपर छोड़ रखा है जिसके परिणाम स्वरूप दूसरे विभागों में तैनात कुछ निगमकर्मियों को अवैध रूप से वार्डों में उगाही के काम के लिए अभियंताओं ने रख लिया है। कुछ अभियंताओं ने अपने निजी लोगों को भी इस काम में लगा रखा है। अब इन लोगों के हौंसले इतने बढ़ चुके हैं कि इनमे से कइयों ने तो वार्ड का ठेका ले रखा है और इक निश्चित रकम अभियंता को चुकाकर अपनी जागीर समझ कर उगाही कर रहे हैं। चाहे वार्ड में अभियंता कोई भी आ जाये लेकिन यह लोग टस से मस नहीं हो सकते। सूत्रों का कहना यह है कि सबसे  विचित्र बात तो यह है कि एक ओर जहां आर्थिक तंगी का रोना रोनेवाली पूर्वी दिल्ली नगर निगम अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लिए पैसा न होने की दुहाई देती है वहीं अपने बेलदारों और लेबर की फौज को निठल्ला बैठाकर अवैध निर्माणों को तोड़ने के लिए बाहर के ठेकेदारों से लेबर लेकर करोड़ों की रकम चूका रही है। बाहर से लेबर लेने के गोरख धंधे में भी निगम के अधिकारी मोटी रकम का गोलमाल कर रहे हैं और निगम पार्षद सिर्फ गाल बजाने में लगे हुए हैं क्यों ?

मजेदार बात यह है कि उगाही के काम को करनेवाले इन अवैध कर्मियों में बेलदार ,मैट ,नाला बेलदार ,चपरासी और उपायुक्त कार्यालयों में तैनात पानी पिलाने और घंटी सुनने वाले चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी भी शामिल बताये जाते हैं। बताया यह भी जाता है कि यह सब कर्मचारी अपने मूल तैनाती की जगह से हाज़री लगा कर इलाकों में उगाही के काम पर निकल जाते हैं। सूत्रों का कहना है कि  उगाही करनेवाले इन लोगों में से कई तो ऐसे हैं जो पिछले कई वर्षों से इसी काम में लगे हुए हैं और यह चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी करोड़ों रूपये की नामी -बेनामी चल -अचल सम्पति के स्वामी बन चुके हैं। ज्ञात हुआ है कि इनमे से कई लोगों के पास  दिल्ली से बाहर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में  फार्महाउस ,पैट्रोल पम्प ,होटल और कृषि भूमि है जो इन्होने यहीं उगाही के धंधे से बनाई हैं। कुछ उगाही करनेवालों ने अपने निकट संबंधियों के नाम से दिल्ली के पॉश इलाकों में भी कई -कई फ़्लैट भी खरीदे हुए हैं। 

अब देखना यह है कि नगर निगमों में चल रहे करोड़ों की उगाही के इस धंधे की जाँच की जाती है या नहीं ? वैसे इसकी जानकारी निगम को चलनेवाले शासकों -प्रशासकों को भी भली भांति है।