एक वर्ष में ही दोबारा चुनावों का बोझ डालने के लिए अरविन्द केजरीवाल को जिम्मेदार मानती है दिल्ली की जनता
दिल्ली [अश्विनी भाटिया ] क्या लोकतंत्र का अर्थ यही है कि कोई भी व्यक्ति अपने सनकीपन के लिए किसी देश या प्रदेस की जनता को मात्र एक वर्ष में ही दोबारा चुनावों के खर्चीले बोझ से दाब दे और जनता से अपने किये कृत्य की क्षमा मांगकर पुनः सत्ता में आने की मांग करे ? दिल्ली की जनता को इस बात को सोचना चाहिए क्योंकि उसके साथ यही कुछ पिछले एक साल में हुआ है और उसे मात्र 14 माह में ही दोबारा महंगे चुनावों झंझावात में धकेल दिया गया है।ऐसा शायद इसलिए हुआ कि चूँकि या तो वह नेता जनता से किये वायदों को पूरा नहीं कर सकता था या फिर उसके पास प्रशासनिक अनुभव नहीं था।दिल्ली की जनता को पिछले एक वर्ष में यह सब कुछ आम आदमी की दुहाई देनेवाली पार्टी 'आप' के संयोजक और दिल्ली के पूर्व सीएम अरविन्द केजरीवाल की अति राजनैतिक महत्वाकांक्षा के कारण भुगतना पड़ा है।दिल्ली को बिना सरकार के एक साल तक राष्ट्रपति शासन के तहत नौकरशाहों के रहमोकरम पर रहना पड़ा ,जिस कारण सारी विकास योजनाओं की रफ़्तार मंदी पड़ गई और नई योजनाएं भी नहीं बन पाईं। अब दिल्ली को एक साल में ही दोबारा खर्चीले चुनावी बोझ तले दबने को मजबूर कर दिया गया है। अब यह फैसला जनता को करना है कि वह इन सब कृत्यों के लिए जिम्मेदार अरविन्द केजरीवाल और उनकी पार्टी को क्या आदेश सुनाती है ?
कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर अन्ना आंदोलन की कमान सम्भालने वाले अरविन्द केजरीवाल ने राजनैतिक पार्टी का गठन आम आदमी के नाम पर किया और जनता को लोकपाल सहित स्वच्छ शासन दिलाने के सैंकड़ों वायदे किये। दिसम्बर,2013 में दिल्ली विधानसभा चुनावों में इस नए राजनेता ने जनता से कई ऐसे वायदे किये जो वह सीएम बनने के बावजूद पूरे नहीं कर पाए और मात्र 49 दिन में ही अपनी जिम्मेदारी को छोड़ भागे। केजरीवाल के बारे में जनता यह जान चुकी है कि वह जो कहंगे, करेंगे बिलकुल उसके विपरीत। उन्होंने कांग्रेस को सबसे भ्रष्ट कहा और 28 सीटें जीतकर उसी कांग्रेस से समर्थन लेकर दिल्ली की सत्ता संभाल ली।केजरीवाल ने जनता से यह वायदा किया कि ना तो वह स्वयं और न ही उनके अन्य साथी चुनाव जीतने पर सरकारी बंगला ,कार और पुलिस सुरक्षा लेंगे। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वह भविष्य में भ्रष्ट कांग्रेस पार्टी को सरकार के लिए न तो समर्थन देंगे और न ही समर्थन लेंगे।समर्थन के मुद्दे पर तो उन्होंने अपने बच्चों तक की कसम खा ली थी,बाद में जिसे कुर्सी पाने के लिए खुद ही तोड़ दिया। भ्रष्ट कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली का सीएम बनकर खुद भी और उनके अन्य साथियों ने भी सभी सरकारी सुविधाओं को जिनमें कार ,बंगला और सुरक्षा प्रमुख थीं ,को लेने में तनिक भी संकोच नहीं किया।सत्ता में आसीन हो कर अपनी प्रशासनिक जिम्मेदारियों को निभाने और जनता को सुख -सुविधाओं को देने की बजाय मुख्य्मंत्री होते हुए भी धरना -प्रदर्शनों में जुट गए। लोगों को मुफ्त पानी देने और बिजली के बिल आधे करने के वायदे को पूरा नहीं कर पाये और 49 दिन में ही दिल्ली की जनता को भगवान भरोसे छोड़कर निकल भागे। शीला दीक्षित के विरुद्ध भ्रष्टाचार के ढेरों सबूतों का दावा करनेवाले केजरीवाल सीएम का पद पाकर कोई कार्रवाई करना तो दूर सब कुछ भूलकर नरेन्द्र मोदी को ललकारने वाराणसी तक पहुंच गए और वहां से लोकसभा चुनाव में मोदी के विरुद्ध चुनावी ताल ठोंकने लगे। जब आम चुनावों में देश की जनता ने केजरीवाल को बुरी तरह से नकार दिया तो उनके मन में एक बार फिर दिल्ली के सीएम की कुर्सी पाने की लालसा पैदा हो गयी और वह उसको पाने के लिए ऐसे तड़पने लगे जैसे कि मछली बिन पानी तड़पती है। अब वह जनता से पूरा बहुमत मांग रहे हैं और पूर्व में सीएम की कुर्सी छोड़ने को अपनी भूल बताकर भविष्य में ऐसी गलती को न दोहराने का वायदा कर रहे हैं। वैसे दिल्ली की जनता अब केजरीवाल से पूरी तरह से परिचित हो चुकी है और देखना यह है कि इस बार चुनाव में उनको[केजरीवाल ] अपनी जिम्मेदारियों से भाग जाने का क्या दंड देती है ? वैसे इस बार के दिल्ली विधानसभा के चुनावी रण में उनके कई योद्धा भी उनका साथ छोड़कर भाजपा का दामन थामकर उनके झूठों का पर्दाफाश करने की मुहिम में जुट चुके हैं।मानती
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