आज़ाद भारत में किस अज्ञात भय और साजिश के कारण नेताजी के गायब होने की सच्चाई लोगों से छिपाई गई ? क्या जनता को यह जानने का अधिकार नहीं है ?
दिल्ली [अश्विनी भाटिया ] भारत की आज़ादी की लड़ाई में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की 118 वीं [जन्म 23 जनवरी ,1897 ] जयंती पर हम उनके चरणों में अपना शत -2 नमन करते हैं। नेताजी का भारत को अंग्रेजी साम्राज्य की अधीनता से मुक्त करवाने की लड़ाई में उल्लेखनीय योगदान है जिसका कोई दूसरा उदाहरण विश्व इतिहास में नहीं मिलता। नेताजी ने अंग्रेजों से देश को मुक्त करवाने के लिए किसी याचना या किसी तरह की प्रार्थना करने का मार्ग नहीं अपनाया, बल्कि उस समय के सबसे शक्तिशाली समझे जाने वाले अंगेजी साम्राज्य को सशत्र चुनौती देकर उनकी मजबूत चुलों को हिलाकर रख दिया। नेताजी ने 5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हाल के सामने 'सुप्रीम कमाण्डर' के रूप में सेना को सम्बोधित करते हुए "दिल्ली चलो!" का नारा दिया और जापानी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश व कामनवेल्थ सेना से बर्मा सहित इम्फाल और कोहिमा में एक साथ जमकर मोर्चा लिया।आज़ाद हिन्द फ़ौज़ के सुप्रीम कमांडर नेताजी ने द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध जंग के मैदान में खुलकर लोहा लिया। 21 अक्टूबर 1943 को सुभाष बोस ने आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतन्त्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी जिसे जर्मनी, जापान,फिलीपाइन, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता दी। जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप इस अस्थायी सरकार को दे दिये। सुभाष उन द्वीपों में गये और उनका नया नामकरण किया।उन्होंने देश के लोगों को 'तुम मुझे खून दो में तुम्हे आज़ादी दूंगा ' का उदघोष देकर पूरे देश को अंग्रेज़ों के विरुद्ध नए जोश और जनून के साथ लड़ने को प्रेरित किया जिसका परिणाम यह हुआ कि अंग्रेजों को 1947 में भारत से भागने को विवश होना पड़ा। अफ़सोस की बात यह है कि कांग्रेस के तत्कालीन नेताओं से बोस के विचार नहीं मिले और एक दिन वह गायब हो गए। आज़ाद भारत में एक राजनैतिक एजेंडे के तहत नेताजी की मौत के बारे में तरह -2 की मान्यताएं गढी गईं और सच को जनता के सामने नहीं आने दिया गया। न जाने किस साजिश या अज्ञात भय से ग्रस्त राजनैतिक ताकतें आज तक भी इस रहस्य पर पड़े पर्दे को हटाने से घबराती हैं ? गत 16 जनवरी, 2014 को कलकत्ता हाई कोर्ट ने नेताजी के लापता होने के रहस्य से जुड़े खुफिया दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की माँग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई के लिये स्पेशल बेंच के गठन का आदेश दिया। यह भारत का दुर्भाग्य है कि नेताजी के आज़ादी की लड़ाई के योगदान का श्रेय बाद में नेहरू -गांधी के सिर बांधकर कांग्रेस ने देश की आनेवाली नस्लों को गुमराह करने का कुकृत्य किया। नेताजी के सपनों और नीतिओं को आज़ाद भारत की सरकारों ने तिलांजलि दे दी। अगर नेताजी के सामने भारत को अंग्रेजों से आज़ादी मिलती और देश की कमान उनके हाथों में होती तो देश और दुनिया का नक्शा आज जैसा नहीं होता और पाकिस्तान जैसी बीमारी भी पैदा नहीं हो पाती।ऐसा लगता है कि आज़ाद भारत की सरकारों ने जानबूझ कर नेताजी सुभाष चन्द्र बॉस से नाइंसाफी करके उनके योगदान को कम करने की साज़िश की है। यह देश की जनता का उनके प्रति अगाध प्रेम ही है कि सरकारी स्तर पर नज़रअंदाज़ कर देने के बावजूद भारत के करोड़ों लोग आज भी नेताजी को अपने दिलों में बसाए हुए हैं और उनकी यह उपस्थिति सदा -सदा भारतीयों के दिलों में यूँही उनकी याद को सजीव बनाये रखेगी।
No comments:
Post a Comment