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Sunday 21 February 2016

देशद्रोहियों को संरक्षण देने के दोषी जेएनयू प्रशासन के खिलाफ भी हो कार्रवाई


 दिल्ली। उमर खालिद जैसे देशद्रोहियों को संरक्षण देनेवाले जेएनयू प्रशासन के विरुद्ध क्यों कार्रवाई नहीं होनी चाहिए ? देश की एकता -अखंडता को चुनौती और आतंकवादियों का महिमामंडन करनेवालों से क्यों नरमी बरती जा रही है? देशद्रोह का आरोपी उमर खालिद व् अन्य छात्र 9 फ़रवरी की घटना के बाद 12 फरवरी के बाद से फरार चल रहे थे और पुलिस की कई टीमें भी उनको देश में उनके कई ठिकानों पर छापे मारने के बाद भी उन्हें नहीं पकड़ पाई। परन्तु देशद्रोह के आरोपी पांच छात्र अचानक 21 फरवरी की शाम जेएनयू में प्रकट हो गए और देर रात तक मुख्य आरोपी उमर खालिद ने पुनः छात्रों को सम्बोधित करता रहा।सब कुछ जानते हुए भी जेएनयू प्रशासन ने देशद्रोह के आरोपी पांचों फरार छात्रों  को यूनिवर्सिटी परिसर में कैसे पहुंच प्रवेश करने दिया और क्यों इनके वहां उपस्थित होने की सूचना उपकुलपति ने पुलिस को नहीं दी ?आश्चर्य की बात यह है कि अब जेएनयू का अध्यापक संघ सरकार को ही कठघरे में खड़ा कर रहा है और इन छात्रों से अपराधिक मामलों को हटाने के   साथ पुलिस को जेएनयू परिसर से दूर रहने की की मांग कर रहा है। अब जेएनयू प्रशासन इन देशद्रोह के आरोपी छात्रों को बचाने की नौटंकी करने में जुट गया है। यहां अब यह दिख रहा है कि जेएनयू देश के सवैंधानिक व्यवस्था को चुनौती देने पर आतुर हो चूका है।  इस प्रकरण से तो यही लगता है कि जेएनयू प्रशासन देशद्रोही छात्रों को संरक्षण देने का दोषी है औरउनको बचाने की तिकड़म में लगा हुआ है। इस तरह से देशद्रोह जैसे गंभीर आरोप में लिप्त आरोपियों को बचानेवाले जेएनयू के  जिम्मेदार लोगों के विरुद्ध भी क़ानूनी कार्रवाई होनी अनिवार्य है। अफ़सोस की बात यह है कि पुलिस जब रात को ही इन भगौड़े छात्रों को पकड़ने गई तो उसे खाली हाथों लौटा दिया गया। क्या किसी भी संस्थान के नियम इतने महत्वपूर्ण होते हैं कि उनके आगे राष्ट्र की संप्रभुता भी बौनी बना दी जाए ?अगर ऐसा नहीं है तो क्यों जेएनयू के उपकुलपति ने क्यों देशद्रोही छात्रों को संरक्षण देने का अपराध किया ? वैसे यह रिपोर्ट लिखे जाने तक पुलिस के लिखित अनुरोध के बाद भी जेएनयू प्रशासन ने न तो इन भगोड़ों को कानून के हवाले किया और न ही पुलिस को अंदर घुसने की अनुमति प्रदान की है।और तो और इन आरोपियों को  पहले उपकुलपति से मिलाने की तैयारी की जा रही है। केंद्र सरकार से अनुदान पर चलनेवाली जेएनयू यूनिवर्सिटी कहीं देशद्रोहियों को तैयार करने की कोई फैक्टरी तो नहीं बन चुकी है जो देश के स्वाभिमान सम्मान और संप्रभुता एकता -अखंडता को चुनौती देने का दुःसाहस कर रही है। आरोपियों को पकड़ने के लिए उनको संरक्षण देनेवालों की अनुमति का इंतज़ार उसके गेट के बाहर खड़ी होकर करती रहेगी ?सरकार अगर इतनी असहाय हो चुकी है तो कैसे देश के दुश्मनों से देश की रक्षा कर पायेगी ? देश से बड़ी न तो कोई यूनिवर्सिटी है और ना ही उसके नियम जो पुलिस को वहां प्रवेश के लिए उपकुलपति या किसी अन्य प्रशासनिक अधिकारी की इच्छा का मोहताज़ बनाते हों।कितने चिंता का विषय है कि वहां के अध्यापकों की एसोसिएशन अब इस गंभीर मामले में अपनी शर्तें रख कर देश के सविंधान को भी खुली चुनौती देते दिखाई दे रहे हैं।सोचने का विषय है कि क्या हमारा प्रशासन एक यूनिवर्सिटी में देशद्रोह के आरोपी भगौडे छात्रों को पकड़ने में असहाय हो चूका है ? या पुलिस इतनी कमजोर है कि वो देशद्रोह के आरोपियों को पकड़ने के लिए जेएनयू प्रशासन की कानून विरोधी शर्तों के आगे बौनी साबित हो रही है। क्यों सरकार एक ऐसे शिक्षण संस्थान के आगे हथियार डालता दिखाई देता दिख रहा है जहां पर राष्ट्र विरोधी छात्रों को संरक्षण दिया जाता है और उनको भारत के टुकड़े -टुकड़े करने के सपने सच करने की शिक्षा दी जाती हो ? देशद्रोहियों को संरक्षण देनेवाले जेएनयू प्रशासन के खिलाफ भी हो कार्रवाई 

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