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Tuesday 16 February 2016

राष्ट्र से ऊपर नहीं कथित बड़े पत्रकार। विदेशी एजेंडे और पैरोल पर काम करनेवाले की भी हो जाँच।

आज देश में मीडिया से जुड़े जो लोग और चैनल देशद्रोहियों के सुर में सुर मिला रहे हैं उनको यह बताना चाहिए कि वो देश के साथ हैं या देशद्रोहियों और आतंकवादियों के साथ ? क्या पत्रकारों का अपने राष्ट्र के प्रति भी कोई कर्तव्य है या वो सिर्फ और सिर्फ पत्रकार ही हैं जिनका काम मात्र सनसनीखेज खबरें परोसना और अपनी टी आर पी को बढ़ाना है? क्या पत्रकार राष्ट्र से भी ऊपर का कोई दूसरी दुनिया का विलक्षण प्राणी हैं जो खुद को सबसे अलग होने के भ्रम में रहकर जीने का आदी हो गया है और वो इस भ्रमजाल से बाहर देखना ही नहीं चाहता? अगर कोई देशद्रोही या आतंकवादी हमारे देश के विरुद्ध भौंकता है तो उसका विरोध करनेवाले राष्ट्र भक्तों को यह बिकाऊ भांड, गुंडे कहकर प्रस्तुत करते हैं और देशद्रोहियों को महिमामंडित करने में ऐड़ी -चोटी का जोर लगाने से भी नहीं चूकते


क्या  इस देश के सविंधान में नागरिकों को मिले अधिकारों पर सिर्फ देशद्रोहियों और अलगाववादियों का ही कब्ज़ा है और उनकी राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को उनकी अभिव्यक्ति की आज़ादी की संज्ञा कथित बड़े पत्रकारों द्वारा दिया जाना उचित है ? हमेशा सभी को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले इन  कथित प्रगतिशील पत्रकारों ने क्या कभी अपने गिरेबां में भी झांकने की आवश्यकता महसूस की है कि उनमें कितनी नैतिकता शेष है या बची ही नहीं है ? कभी यह लोग आतंवादियों का महिमामंडन करने को अपना अधिकार समझते हैं और कभी अलगाववादियों को अपने चैनलों में बुलाकर उन्हें अपना राष्ट्रविरोधी एजेंडा फ़ैलाने का अवसर प्रदान करते हैं। क्यों ? जे एन यू कांड पर जिस तरह की रिपोर्टिंग कुछ चैनलों और बड़े पत्रकारों द्वारा प्रस्तुत की जा रही है वो किसी भी तरह से राष्ट्रहित में नहीं कही जा सकती। भारत की अस्मिता और अखंडता से खिलवाड़ करने का अधिकार किसी को भी नहीं दिया जा सकता चाहे वह कोई भी क्यों न हो और कितने भी बड़े पद पर आसीन क्यों न हो ? जे एन यू परिसर में भारत के टुकड़े -२ करने और आतंकवादियों के पक्ष में में जमकर हंगामा करनेवाले हरामियों के विरुद्ध क़ानूनी कार्रवाई पर ऊँगली उठाकर  कुछ मिडिया चैनल किस विदेशी ताकत के एजेंडे पर काम कर रहे हैं ? क्या इसकी जाँच नहीं होनी चाहिए कि देशद्रोहियों के विरुद्ध सरकार द्वारा की जा रही कार्रवाई को जायज़ ठहरने कि बजाय उन हरामियों की बगावत की आवाज़ को सविंधान में  अभिव्यक्ति की आज़ादी की संज्ञा दी जा रही है। क्या इस  संज्ञा को देनेवाले पत्रकारों का गिरोह भी देशद्रोहियों के ही दायरे में नहीं आता ? एक बात तो सभी को भलीभांति समझ ही लेनी चाहिए कि  आज देश की एकता और स्वाभिमान की रक्षा करने का कर्तव्य हर नागरिक के पास हैऔर यह अधिकार उसको उसकी मातृभूमि ने दिया है जिस पर वो पैदा हुआ है। देशद्रोहियों के विरुद्ध सरकार कुछ करे या न करे , लेकिन हर देशभक्त और स्वाभिमानी नागरिक का यह पहला कर्तव्य है और अधिकार भी है कि वो अपने राष्ट्र के विरुद्ध उठनेवाली हर आवाज़ को आगे बढ़कर पूरी ताकत के साथ हमेशा के लिए शांत कर दे। और चाहे वो आवाज़ किसी देशद्रोही की हो देश के अंदर से उठी हो या अभिवक्ति की आज़ादी की आढ़ में उठाई गई हो। इस पुण्य कार्य के लिए बेशक  भारत माँ के पुत्रों को गुंडा फासीवादी निकरधारी या हिन्दुत्ववादी ही क्यों न कहा जाये सब स्वीकार है लेकिन अपनी मातृभूमि और राष्ट्र के विरुद्ध उठी कोई भी आवाज़ सहन नहीं होगी। इस बात को बिकाऊ और विदेशी एजेंडे के तहत भारत को विखंडित और अपमानित करनेवाले स्वयं को दूसरी दुनिया का प्राणी समझनेवाले वो पत्रकार भी समझ लें जो खुद की राष्ट्र से बड़ा होने के भ्रम में जी रहे हैं। जय भारत। जय हिन्द। 

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