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Saturday 9 August 2014

रक्षाबंधन की सार्थकता तभी है जब हम अपनी बहन -बेटियों की आबरू और सम्मान की रक्षा करने के वचन को पूरा कर पाएं।

रक्षा बंधन हर वर्ष आता है और हम अपनी बहनों से रक्षा सूत्र अपने हाथ में बंधवाकर उसकी रक्षा करने का वचन उसको देते हैं। हमारे इस वचन से हमारी बहन को भी यह विश्वास हो जाता है कि समाज में कोई ऐसा है जो उसको मुसीबत के समय में उसकी पुकार को सुनकर अवश्य उसकी मदद को दौड़ा - २ आ जायेगा। इसी विश्वास को कायम रखने का संकट आज उठ खड़ा हुआ है। आज हमारी बहन -बेटियों की आबरू खतरे में है और हम सिर्फ रक्षाबंधन की औपचारिकता को पूरा करने में लगे हुए हैं। क्या हमें इस पवित्र त्यौहार की मूल भावना को समझते हुए अपनी बहन -बेटियों को दिए वचन को पूरा करने के लिए नहीं सोचना चाहिय ? अगर  ऐसा कर पते हैं तो इस त्यौहार और हाथ में बहन से बँधवानेवाले रक्षा - सूत्र की महत्ता है अन्यथा यह एक औपचारिकता मात्र है। 

Thursday 7 August 2014

लोगों में सपा सरकार के एकपक्षीय रवैये को लेकर तो गुस्सा है ही साथ ही केंद्र की मोदी सरकार की ख़ामोशी से भी लोगों को निराशा उत्पन्न हो रही है।

 नरेंदर मोदी को देश की जनता ने अपना अपार समर्थन देकर उनको देश की बागडौर इसलिए सौंपी थी कि उनकी सरकार के रहते लोगों की बहन  -बेटियों और उनकी जान -माल को खतरा नहीं रहेगा।उत्तरप्रदेश के हालात ऐसे हो गए हैं कि देश में साम्प्रदायिक असंतोष फ़ैल रहा है जो किसी बड़ी अशांति और दंगे का कारण बन सकता ,लेकिन केंद्र में स्थापित मोदी सरकार की चुप्पी से लोगों में  घोर निराशा का भाव भी पैदा होता जा रहा है जोकि न तो बीजेपी और न ही समाज और देश के हित में होगा।सिर्फ  कानून -व्यवस्था को राज्य सरकार की जिम्मेदारी बताकर मोदी सरकार देश की जनता को चुनाव के समय 'अच्छे दिन लाने ' के वायदे को पूरा करने और लोगों को सुरक्षा देने की अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकती।आदरणीय मोदी जी देश की जनता को सबसे पहले अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा की दरकार आपकी सरकार से है और विकास के सपने बाद की बात है।बहुत ही अफ़सोस है कि उत्तरप्रदेश की सपा सरकार की एकपक्षीय नीति और मुस्लिमतुष्टीकरण की दूषित मानसिकता के कारण प्रदेश में कानून का राज समाप्त हो गया लगता है और जनता देश के प्रधानमंत्री मोदी की तरफ टकटकी लगाये देख रही है कि वे उनके लिए कुछ करेंगे, परन्तु मोदी जी हैं कि कुछ बोलने को ही तैयार नहीं हैं क्यों ?पहले कश्मीर में अमरनाथ यात्रा के लंगरों को वहां के मुस्लिम कट्टरपंथियों और अलगाववादियों ने सरेआम लूट लिया और तम्बुओं को आग के हवाले करके हिन्दुओं की पवित्र यात्रा को बाधित कर दिया, लेकिन केंद्र सरकार सिर्फ वहां की सरकार से रिपोर्ट मांगकर ही अपने कर्तव्यश्री की पूर्ति मानकर बैठ गयी, क्यों ?उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में रमजान के दिनों में मंदिर से जबरन लाउडस्पीकर हटवाने की घटना के कारण वहां हिन्दू समुदाय में जब रोष पैदा हुआ तो भी सपा सरकार ने तो उनका दर्द नहीं सुना और केंद्र ने भी हिन्दुओं की कोई पुकार नहीं सुनी, क्यों ?इसके बाद सहारनपुर में गुरद्वारे के निर्माण को रुकवाकर मुस्लिमकट्टरपंथीओं ने जो लूटपाट ,आगजनी और मारकाट की उस घटना परभी सपा सरकार का रवैया तो एकतरफा रहा ही ,लेकिन मोदी सरकार भी लोगों को सुरक्षा का अहसास करवाने में कोई ठोस कदम नहीं उठा पाई ,क्यों ?अब मेरठ के खरखौदा के एक गॉव की एक  युवती का अपहरण करके मदरसे में गैंगरेप करके और उसका जबरन धर्म परिवर्तन करवाने की गंभीर घटना घटित होने से वहां भी साम्प्रदायिक तनाव फ़ैल गया है। स्थानीय पुलिस - प्रशासन ने फिर पीड़ित लोगों की पीड़ा को न समझते हुए अपने आकाओं की चिर -परिचित नीति' एक समुदाय की तुष्टि' के अनुरूप अपना रवैया ही अपनाया। लोगों को धर्म के आधार पर बांटकर समाजवादी लबादा ओढ़े मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सरकार किसी भी तरह से जनता के साथ एक जैसा व्यवहार नहीं कर रही।लोग इस नाकारा ,लकवाग्रस्त सरकार से मुक्ति चाहते हैं और लोगों की भावनाओं को केंद्र की मोदी सरकार को समझना ही होगा। इसी सरकार के मुख्यमंत्री के चाचा और सपा के बड़े  नेता रामगोपाल यादव की बेशर्मी तो हद से भी आगे निकल गयी है ,वह कहते हैं कि कुछ नहीं हुआ। महिलाओं और लड़कियों की इज्जत को सुरक्षित रखने में सपा सरकार बिलकुल नाकाम साबित हुयी है। सपा सरकार ने मुज्जफर नगर के दंगों के बावजूद अभी तक यह नहीं समझा कि अगर किसी समुदाय की बहन -बेटियों की लाज को दूसरा समुदाय तार -२ करेगा और पुलिस प्रशासन हाथ पर हाथ धर कर बैठा रहेगा तो परिणाम कभी अच्छे नहीं होंगे। समाज में दंगे और हिंसा ही फैलेगी और लोगों में सरकार के प्रति अविश्वास और गुस्सा भी रौद्र रूप धारण कर लेगा। लोगों में सपा सरकार के एकपक्षीय रवैये को लेकर तो गुस्सा है ही साथ ही केंद्र की मोदी सरकार की ख़ामोशी से भी लोगों को निराशा उत्पन्न हो रही है। जनता के दर्द को अगर मोदी सरकार नहीं समझेगी तो उसके प्रति लोगों का मोहभंग होना स्वाभाविक है जो कि निकट भविष्य में  कुछ राज्यों की विधानसभा चुनावों में भी बीजेपी को भुगतना पड़ सकता है क्योंकि विकास से भी अधिक आवश्यकता लोगों को अपने परिवार की सुरक्षा ,बहन -बेटियों की इज्जत और अपने धर्म- संस्कृति की रक्षा की है ,इस बात को प्रधानमंत्री नरेंदर मोदी बेहतर जानते होंगे। मोदी जी देश की जनता को विकास से पहले अपनी बहन -बेटियों की इज्जत की सुरक्षा चाहिए 

Thursday 31 July 2014

देश में खुलेआम I S I S के झंडे लहरनेवालों के विरुद्ध मीडिया और सेकुलवादी मौन क्यों हैं ? क्या उन्हें इन ताकतों से डर लगता है या उन्हें राष्ट्र की चिंता नहीं है ?

कश्मीर के श्रीनगर में 29 जुलाई को ईद के मुबारक मौके पर नमाज अता करने के बाद  नमाजियों ने इजराइल द्वारा गाज़ा में हमास के खिलाफ की जा रही सैनिक करवाई के विरुद्ध हिंसक प्रदर्शन किया और भारतीय सुरक्षा बलों पर पथराव करके शांति का अनूठा  पैगाम दिया। यही नहीं इन प्रदर्शनकारियों ने पुलिस - अर्धसैनिक बलों और मीडिया के सामने इराक के आतंकवादी संघठन आई एस आई एस और अलकायदा के झंडे भी लहराए। अब जरा देखो सेकुलरता का राग अलापने वाले राजनैतिक दल और संगठनों को  जिन्हें मानो सांप सूंघ गया हो ,इनमें किसी ने भी इस घटना पर कोई बयान न देकर क्या  साबित किया है ?क्या भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के एक हिस्से कश्मीर में दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकी संगठन आई एस आई एस का खुलेआम  समर्थन करनेवाले लोग शांति प्रिय कैसे हो सकते हैं ? क्या भारत का मीडिया देश की शांति के लिए इस घटना को खतरा नहीं मानता या फिर उसे सिर्फ ' भगवा आंतकवाद ' का राग आलापना ही आता है ?क्या  देश में इन खतरनाक इरादेवाले लोगों को' शांति दूत 'और ' प्रेम का पैगाम देनेवाला  ' माना जाए ? भविष्य में आनेवाली संभावित आफत को भांपते हुए भी मीडिया और सेकुलरता का राग अलापनेवाले खामोश होकर इन देश और मानवता विरोधी ताकतों को क्या अपना मूक समर्थन नहीं दे रहे हैं ?इस खतरे की घंटी को भारत सरकार भी सुन रही है लेकिन उसकी चुप्पी भी
राष्ट्रवादियों के लिए चिंता का विषय बनी  हुयी है। देश की संसद में गाज़ा में मरनेवालों पर हल्ला मचानेवाले इराक में आई एस आई एस के जल्लादों द्वारा की जा रही मासूमों की हत्याओं पर मौन रखें ,अमरनाथ यात्रा पर हमला और लंगर शिविरों को  आग लगाने वालों के विरुद्ध मौन ,मीडिया एक रोज़ेदार के मुंह में रोटी देने की घटना पर शोर मचाये और बाकि घटनाओं पर उसे सांप सूंघ जाये तो इसे क्या समझा जाये कि या तो मीडिया हिन्दू विरोधी है या आंतक के आगे झुकता है ?यह सब देश और शांतिप्रिय लोगों के लिए खतरे की घंटी है जिसको सुनकर भी अनसुना करनेवाले देश और मानवता के हितैषी नहीं सकते। 

Saturday 26 July 2014

कारगिल - विजय दिवस पर भारत माँ की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति देनेवाले सैनिकों को हमारा शत - २ नमन।क्या हमने इस युद्ध से कोई सबक लिया है ?

द्रास स्थित  कारगिल युद्ध स्मृति 

कारगिल युद्ध के विजय -दिवस [26 जुलाई ,1999 ]  पर भारत माँ के वीर सपूतों के चरणों में हमारा शत -2 नमन। यह युद्ध पाकिस्तान की नापाक घुंसपैठ के परिणामस्वरूप मई -जुलाई ,1999 के बीच लड़ा गया जिसमें भारतीय सेना के 527  से अधिक जवान जिनमें से अधिकांश 30 वर्ष से भी कम आयु के थे लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए और लगभग  1300 से अधिक जवान घायल हो गए।लगभग 30 हज़ार सैनिकों ने इसमें हिस्सा लिया था। यह युद्ध पाकिस्तान के  5 हज़ार घुसपैंठिओं के भारत  जम्मू - कश्मीर के कारगिल जिले की सीमा में घुसकर कारगिल -द्रास की पहाड़ियों पर कब्ज़ा कर लेने के कारण भारत - पाकिस्तान के बीच हुआ था।इन घुसपैंठिओं को खदेड़ने के लिए भारतीय सेना ने अपने पराक्रम और साहस का अदम्य उदाहरण विश्व के सामने प्रस्तुत किया।26 जुलाई को भारत की सेना ने अपनी भूमि को दुश्मनों से मुक्त करवाकर विजय प्राप्त कर ली। इस लड़ाई को  'आपरेशन -विजय " का नाम दिया गया। बेशक भारत - पाकिस्तान इस युद्ध के समय भी परमाणु अस्त्रों से सम्पन राष्ट्रों के श्रेणी में शामिल हो चुके थे , परन्तु कोई भी युद्ध सिर्फ हथियारों के दम पर ही नहीं जीता जा सकता जीत के लिए सैनिकों के साहस और पराक्रम के साथ -2 कुशल रणनीति और नेतृत्व की सूझ- भुझ की भी परम आवश्यकता होती है। इस बात को हमारे सत्ता के लोलुप स्वार्थी नेताओं को भली - भांति समझ लेना चाहिय। क्या हमने कारगिल युद्ध से कोई सबक सीखा है ,शायद नहीं। भारत की सीमाओं पर अभी भी पाकिस्तान की तरफ से रह -रहकर घुसपैंठ होती रहती है और उसकी तरफ से फायरिंग होना तो आम बात हो गयी है।जहाँ हमारे सैनिक विपरीत प्राकृतिक परिस्थितिओं में भी अपने जीवन की परवाह न करते हुए देश की सीमाओं की निगरानी दिन -रात बड़ी सतर्कता के साथ कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर हमारे वोटों के लोभी नेता अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए उनकी कुर्बानी को भी नजरअंदाज करके अपनी कुत्सित मानसिकता का परिचय देते हैं, क्यों?शायद इसलिए तो नहीं कि सीमा पर शहीद होनेवालों में उनके अपने परिवार का कोई नहीं होता। 



Saturday 19 July 2014

हिन्दू रोजा इफ्तार की दावतें दें और बदले में ईमानवाले हिन्दुओं की सबसे पवित्र अमरनाथ यात्रा पर हमले करें तो यह कौनसी उदारता है ?

कश्मीर में अमरनाथ यात्रा के यात्रिओं के लिए बालटाल पर लगाये गए लंगर शिविरों पर ईमानवालों ने हमला करके एक बार फिर साबित कर दिया है कि वह किसी दूसरे धर्म के लोगों को कतई सहन नहीं कर सकते, क्योंकि उनका मजहब उन्हें ऐसी ही शिक्षा देता है। लंगर लगाने वाले सभी लोग हिन्दू हैं और देश के कोने -२ से अमरनाथ यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्रीओं के रहने और खाने का प्रबंध करते हैं। एक तो हिन्दुओं को अपने तीर्थ पर जाने के लिए जम्मू -कश्मीर की सरकार कोई सुविधा नहीं देती दूसरे  जब लोग अपना प्रबंध खुद करते हैं तो उनकी सुरक्षा में  कौताही बरत कर उनकी यात्रा को बाधित करने की छूट अलगाववादी मुस्लिम संगठनों को देती है। इसका सीधा - २ यही सन्देश है कि किसी भी तरह से हिन्दुओं की अमरनाथ यात्रा को न होने दिया जाये। 18 जुलाई को जो उत्पात ,हिंसा और आगजनी हिन्दुओं के लंगर शिविरों में की गई ,उससे यह बात तो पूरी तरह से साबित हो रही है कि मुस्लिम कटटरपंथी अब कानून को कुछ भी नहीं समझते हैं। अफ़सोस की बात है की भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में जहां हिन्दू बहुसंख्यक होने के बावजूद अलपसंख्यक मुसलमानों की दादागिरी का शिकार है और अधिकांश राजनैतिक दल भी इस आतंक को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं। गाज़ा में इजराइल के साथ फलस्तीन के युद्ध में मारे जानेवाले लोगों की कांग्रेस और अन्य कई राजनैतिक दलों के लोगों  द्वारा  को अधिक चिंता है परन्तु अपने ही देश में हिन्दुओं की तीर्थयात्रिओं पर होनेवाले हमलों से उनका दूर - २ तक वास्ता नहीं है ,क्यों ?

         कांग्रेस की तरह केंद्र में नरेंदर मोदी की सरकार भी हिन्दुओं को अगर सुरक्षा देने में नाकारा साबित हुयी तो देश के आंतरिक हालत काफी विस्फोटक स्थिति में पहुंच सकते हैं।  उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद में रमजान के दौरान मंदिरों से लाउडस्पीकरों को उतरवाने के लिए तो मुस्लमान मरने -मारने पर आमादा हो जाते है और बिकाऊ मीडिया भी इस दादागिरी को मामूली बात बताकर हिन्दुओं के सर ही सारा दोष मढ़ देता है ,उसी समुदाय के लोग हिन्दुओं की सबसे पवित्र अमरनाथ यात्रा को रोकने के लिए जब हिंसा और आगजनी करते हैं तो  यही मीडिया चुप्पी साध लेता है क्यों ?यह  धर्मनिरपेक्षता का कौनसा रूप है ,इसका जवाब कौन देगा ? क्या मीडिया के लोगों को अमरनाथ यात्रा के दौरान की जानेवाली दादागिरी भी उसी तरह जायज लग रही है जैसे मंदिरों से जबरन लाउडस्पीकरों को उतारा  जाना ?क्या भारत में हिन्दू अपने धार्मिक आयोजनों को नहीं कर सकता ?जिस देश की सरकार मुसलमानों को हज यात्रा के लिए आर्थिक मदद करती हो और हिन्दूओं से तीर्थयात्राओं के लिए टैक्स वसूलती हो यह कैसी धर्मनिरपेक्षता है ?हिन्दू रमजान के महीने में राजदारों को रोजा इफ्तार की दावतें दें और बदले में ईमानवाले हिन्दुओं की सबसे पवित्र अमरनाथ यात्रा पर हमले करें तो यह कौनसी उदारता है ? क्या इसका जवाब हिन्दुओं के मठाधीशों के पास है ?क्या देश में शांति और सदभाव को बनाने की सारी जिम्मेदारी सिर्फ हिन्दुओं की ही है और उसको बिगाड़ने का काम ईमान वालों का है ?इस बात का जवाब कथित धर्मनिरपेक्षता के झंडाबरदारों ,राजनैतिक पार्टिओं ,भाईचारे और प्रेम का सन्देश देनेवाले दीनदारों और भारत की सरकार से हिन्दुओं को चाहिय। मोदी सरकार भी अगर स्थानीय सरकार से सिर्फ रिपोर्ट ही मांगती रहेगी और सुरक्षा का भरोसा ही देती रहेगी और कोई ठोस कदम नहीं उठायेगी तो यह सरकार की सेहत के लिए अच्छा नहीं होगा और हताश  हिन्दू यूँही आतंकित होकर गुहार लगाता  रहेगा तो इसका परिणाम अच्छा नहीं निकलेगा। blogpost,tusharapat .com

Friday 7 February 2014

भारत भी तभी तक धर्मनिरपेक्ष रह पायेगा जब तक हिन्दू बहुसंख्यक है जिस दिन भी हिन्दू अल्पसंख्यक हो गया उस दिन न तो यहाँ लोकतंत्र होगा और न धरमनिर्पेक्षता न बचेंगे उसके झंडाबरदार

बांग्लादेश में हिंदुओं पर मुसलमानों की दरिंदगी 

सभी मित्रों का हार्दिक अभिनन्दन और आपकी कुशलता और उन्नति की कामना के साथ आपका शुभचिंतक। आप सभी इस बात से भली -भांति परिचित हैं कि वर्त्तमान दौर में देश  एक अजीब सी स्थिति से गुजर रहा है। चारो ऒर समाज में सिर्फ अपनी -२ पड़ी हुयी है और अधिकांश नेता किसी भी हद तक जाकर सत्ता प्राप्ति के कुचक्र में लगे हैं , इन सभी का एक ही मिशन है कैसे भी हो देश के प्रधानमंत्री पद पर नरेंदर मोदी को न आसीन होने दिया जाये। क्या कारण है कि सभी का एक ही दुश्मन मोदी है और तो और कई विदेशी ताकतें भी इसी मिशन को खाद -पानी देने में जुटी हुयी हैं ?किसी भी छोटे -बड़े राजनैतिक दल के पास चाहे वो नया है या पुराना देश को ताकतवर और खुशहाल बनाने का कोई एजेंडा नहीं है ,अगर कोई एजेंडा है तो एकमात्र यह कि मोदी को सत्ता से दूर कैसे रखा जाये।

हिंदुओं के खिलाफ बांग्लादेशी मुसलमानों की हिंसा 


     देश के सभी  दल अब फिर साम्प्रदायिकता का हौआ खड़ा करके मोदी को घेरने की कौशिश में जूट हुए हैं और उनके इस काम में कई कथित बुद्धिजीवी वर्ग के लोग और मीडिया संसथान भी बराबर की भूमिका निभा रहे हैं। यह सारी सेक्युलर मण्डली बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे हमलों से अनजान बनी हुयी है। वहाँ पिछले कुछ समय से हिंदुओं को मारा जा रहा है ,उनकी संपत्ति लुटी जा रही है , हिन्दू औरतों की अस्मत को लुटा जा रहा है ,लेकिन वहाँ की सरकार हिंदुओं की रक्षा करने में नाकाम है।बांग्लादेशी हिंदुओं के पास सिर्फ तीन ही रास्ते रह गए हैं कि - [1] मुसलमानों के हाथों मारे जाएँ [ 2 ] मुस्लमान बन जाएँ [3 ] या फिर सब कुछ छोड़कर वहाँ से पलायन कर जाएँ। यह बंगाली मुस्लमान वही हैं जिन्हें भारत ने पश्चिमी पाकिस्तान के पंजाबी मुसलमानों की दरिंदगी से बचाया और उनसे अलग करके 1971 में बांग्लादेश नामक राष्ट्र के रूप में दुनिया के मानचित्र में जनम दिया था। आज भी भारत में करोड़ों की संख्या में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिये मजे से रह रहे हैं और यहाँ रहकर सभी तरह के जघन्य अपराधों को अंजाम दे रहे हैं। देश का दुर्भाग्य है कि हमारे सेक्युलर कहे जानेवाले दलों के यह वोट बैंक बन चुके हैं और सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों को ताक पर रखकर यह कथित धरमनिरपेक्षता के झंडाबरदार इन अपराधियों को अपने दामाद सरीखी तवज्जो दे रहे हैं। यही है सेकुलरता का असली चेहरा कि हिन्दू होना सम्प्रदायिकता है और मुस्लमान होना सेकुलरता की गारंटी। भारत भी तभी तक धर्मनिरपेक्ष रह पायेगा जब तक हिन्दू बहुसंख्यक है जिस दिन भी हिन्दू अल्पसंख्यक हो गया उस दिन न तो यहाँ  लोकतंत्र होगा और न धरमनिर्पेक्षता न बचेंगे उसके झंडाबरदार । हमारे  आस - पास के  मुसलिम बहुसंख्यक देश इस का जीते - जागते प्रमाण हैं ,जिन्हें देखकर भी हम अपने आखों पर पट्टी बंधे हुए हैं ,क्यों ? क्या हम इस बारे में चिंतन -मनन करेंगे ?   अब समय आ चूका है कि इस भारत माँ की करुण पुकार को हम सुने और आगामी आम चुनावों में दृढ़ निश्चय और मजबूत इच्छाशक्ति वाले नेता नरेंदर मोदी को देश के प्रधानमंत्री पद पर पुरे बहुमत के साथ आसीन करने के यज्ञ में जुट जाएँ। यही हमारी पूजा है ,यही हमारा धर्म है और यही हमारा राष्ट्रिय कर्तव्य है। 

Thursday 6 February 2014

Kya Punjab Ke Aatankwad mein mare gaye begunah Hinduon ke pariwaron ko ensaf nahi milna chahiy ? Punjab aur Bharat ki sarkar jwab de ?

Danga khin bhi ho yh manvta ke virudh jaghany apradh hai .Dange kabhi bhi sahi nahi ho sakte . 1984 mein sikh virodhi dange galat the aur in dangon ki janch ke liye kai aayog bhi bane .En dango mein tatkalin  congress sarkar jimmedar thi .En dangon ki punh SIT janch hone ki sambhavna hai aur eska hum swagat karte han .Ek bat aur yh hai ki  Punjab aur desh ke any esthano par khalistani aatankwadiyon ne badhi sankhya mein begunah Hinduon ka katl -E -Aam kiya aur bomb blast karke masum logon ka lahu bhaya .Asankhy Hindu aatankwadiyon ki krurta aur hinsa ka shikar bnaye gaye ,unko loota gya aur maut ke ghat utar diya gya . kai ablaon ki ezzat ko bhi loota gya .Punjab mein hinsa ka kai sal tak nanga nach huya , afsos hai ki kisi bhi political party ne kbhi unnirdosh Hinduon ke kation ko sza dene , koi aayog bnane aur aatankwad ka shikar Hinduon ko insaf dilane ki mang ya aawaz nahi utthai kyon ? Kya es bat ka jwab Hindu Dharm ke kathit hiteaishi sangathan aur netaon ke pas hai ?

    Kya  Punjab mein aatankwad ke dauran  mare gaye nirdosh Hunduon ke katilon ko sza nahi honi chahiy ? Kya es daur mein huye katl -E-Aam ki janchSIT se karwane ki mang koi party karegi ya koi bhi sarkar chahe vo Punjab ki Akali-Bjp sarkar ho ya kender ki Upa sarkar Hinduon ko insaf dilane ki aor koi kadam uthayegi? Kya Hinduon ke hit ki bat karnewale RSS ke log begunah Hinduon ko ensaf dilane ka abhiyan chalayenge ?  Kya Punjab Ke Aatankwad mein mare gaye begunah Hinduon ke pariwaron ko ensaf nahi milna chahiy ? Punjab aur Bharat ki sarkar jwab de ?Danga khin bhi ho yh manvta ke virudh jaghany apradh hai .Dange kabhi bhi sahi nahi ho sakte . 1984 mein sikh virodhi dange galat the aur in dangon ki janch ke liye kai aayog bhi bane .En dango mein tatkalin  congress sarkar jimmedar thi .En dangon ki punh SIT janch hone ki sambhavna hai aur eska hum swagat karte han .Ek bat aur yh hai ki  Punjab aur desh ke any esthano par khalistani aatankwadiyon ne badhi sankhya mein begunah Hinduon ka katl -E -Aam kiya aur bomb blast karke masum logon ka lahu bhaya .Asankhy Hindu aatankwadiyon ki krurta aur hinsa ka shikar bnaye gaye ,unko loota gya aur maut ke ghat utar diya gya . kai ablaon ki ezzat ko bhi loota gya .Punjab mein hinsa ka kai sal tak nanga nach huya , afsos hai ki kisi bhi political party ne kbhi unnirdosh Hinduon ke kation ko sza dene , koi aayog bnane aur aatankwad ka shikar Hinduon ko insaf dilane ki mang ya aawaz nahi utthai kyon ? Kya es bat ka jwab Hindu Dharm ke kathit hiteaishi sangathan aur netaon ke pas hai ?

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Monday 3 February 2014

विद्या और बुद्धि की देवी सरस्वती की जयंती बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं

वसंत पंचमी या श्रीपंचमी एक हिन्दू त्योहार है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेशनेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन स्त्रियाँ पीले वस्त्र धारण करती हैं।

प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों मे सरसों का सोना चमकने लगता, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती, यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है।सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-
प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।
अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से ख़ुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और यूँ भारत के कई हिस्सों में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो कि आज तक जारी है। पतंगबाज़ी का वसंत से कोई सीधा संबंध नहीं है। लेकिन पतंग उड़ाने का रिवाज़ हज़ारों साल पहले चीन में शुरू हुआ और फिर कोरिया और जापान के रास्ते होता हुआ भारत पहुँचा।

Wednesday 22 January 2014

स्वाधीनता संग्राम में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस एक ऐसा महानायक है जिसने अंग्रेजी शासकों के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध किया और ताकतवर माने जानेवाले अंग्रेजी साम्राज्य की जड़ों को हिला कर रख दिया

भारत की आज़ादी के लिए लाखों असंख्य लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी जिसके परिणाम स्वरुप हमें 15  अगस्त, 1947  को विदेशी शासन से मुक्ति मिली। स्वाधीनता संग्राम में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस एक ऐसा महानायक है जिसने अंग्रेजी शासकों के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध किया और विश्व की उस समय के सबसे ताकतवर माने जानेवाले अंग्रेजी साम्राज्य की जड़ों को हिला कर रख दिया। नेताजी ने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध लड़ रही  देशों की सेना के साथ अपनी आज़ाद हिन्द फ़ौज़ को भी युद्ध  के मैदान में उतार कर दुश्मनों के हौंसलें पस्त कर दिए। अफ़सोस जनक बात यह रही की देश की आज़ादी मिलते समय नेताजी न जाने कहाँ लोप हो गए।


                      नेता जी का जन्म आज के  दिन [23 जनवरी ,1897 ] को  उड़ीसा के कटक में एक बंगाली परिवार में हुआ। इनके पिता जानकीनाथ एक जाने -माने वकील थे और माता प्रभावती एक धर्मपरायण भारतीय संस्कारों से ओत -प्रोत महिला थी।नेताजी की शिक्षा -दीक्षा उच्च स्तर की हुयी और उन्होंने उच्च शिक्षा विदेश में हुयी। उन्होंने आई सी एस परीक्षा पास करके  अंग्रेजी शासन का प्रशासनिक अधिकारी का पद ठुकरा कर देश की आज़ादी की लड़ाई में कूदने का रास्ता चुना। वह कांग्रेस में शामिल हो गए ,लेकिन उनको अन्य कांग्रेसी नेतायों की गिड़गिड़ाने की नीति रास नहीं आई और उन्होंने शीघ्र ही अपना अलग रास्ता पकड़ा। 1938 में वह कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए। 1939 में नेताजी महात्मा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव जीत गए। अपने समर्थित उम्मीदवार पट्टाभि  सीतारमैय्या की पराजय को महात्मा गांधी ने अपनी निजी हार माना। इसके बाद नेताजी ने कांग्रेस को त्याग कर अपनी अलग राह पकड़ ली।   

            नेताजी महात्मा गांधी की उदारवादी नीति से सहमत नहीं थे ,वह आज़ादी को ताकत के बल पर हासिल करना चाहते थे और इसके लिए आज़ाद हिन्द फ़ौज़ उनकी कमांड में अंग्रेजों के विरुद्ध पूरी ताकत से लड़ी।नेताजी [1933 -1936 ] यूरोप में रहे और यह दौर था हिटलर के नाजीवाद और मुसोलिनी के फासीवाद का। नाजीवाद और फासीवाद का निशाना इंग्लैंड था, जिसने पहले विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी पर एकतरफा समझौते थोपे थे। वे उसका बदला इंग्लैंड से लेना चाहते थे। भारत पर भी अँग्रेज़ों का कब्जा था और इंग्लैंड के खिलाफ लड़ाई में नेताजी को हिटलर और मुसोलिनी में भविष्य का मित्र दिखाई पड़ रहा था। दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। उनका मानना था कि स्वतंत्रता हासिल करने के लिए राजनीतिक गतिविधियों के साथ-साथ कूटनीतिक और सैन्य सहयोग की भी जरूरत पड़ती है।सुभाष चंद्र बोस ने 1937 में अपनी सेक्रेटरी और ऑस्ट्रियन युवती एमिली से शादी की। उन दोनों की एक अनीता नाम की एक बेटी भी हुई जो वर्तमान में जर्मनी में सपरिवार रहती हैं। नेताजी हिटलर से मिले। उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत और देश की आजादी के लिए कई काम किए। उन्होंने 1943 में जर्मनी छोड़ दिया। वहां से वह जापान पहुंचे। जापान से वह सिंगापुर पहुंचे। जहां उन्होंने कैप्टन मोहन सिंह द्वारा स्थापित आज़ाद हिंद फ़ौज की कमान अपने हाथों में ले ली। उस वक्त रास बिहारी बोस आज़ाद हिंद फ़ौज के नेता थे। उन्होंने आज़ाद हिंद फ़ौज का पुनर्गठन किया। महिलाओं के लिए रानी झांसी रेजिमेंट का भी गठन किया जिसकी लक्ष्मी सहगल कैप्टन बनी। 


 'नेताजी' के नाम से प्रसिद्ध सुभाष चन्द्र ने सशक्त क्रान्ति द्वारा भारत को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से 21 अक्टूबर, 1943 को 'आज़ाद हिन्द सरकार' की स्थापना की तथा 'आज़ाद हिन्द फ़ौज' का गठन किया इस संगठन के प्रतीक चिह्न पर एक झंडे पर दहाड़ते हुए बाघ का चित्र बना होता था। नेताजी अपनी आजाद हिंद फौज के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा पहुँचे। यहीं पर उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा, "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा" दिया। 18 अगस्त 1945 को तोक्यो जाते समय ताइवान के पास नेताजी की मौत हवाई दुर्घटना में हो गई, लेकिन उनका शव नहीं मिल पाया। नेताजी की मौत के कारणों पर आज भी विवाद बना हुआ है।आज़ाद भारत कि सरकारों ने नेताजी के नाइंसाफी की है। उनके द्वारा भारत माँ की जो सेवा की गई है वह अतुलनीय है और उनकी आज़ादी की लड़ाई में योगदान को कांग्रेस ने जानबूझ कर वह महत्व नहीं दिया जिसके वो हक़दार है। अगर भारत को आज़ादी नेताजी के नेतृत्व में मिलती तो भारत आज दुनिया  के नक़्शे में दूसरी तस्वीर होती और दुनिया का नक्शा भी कुछ और ही होता।जो राष्ट्र अपने महानायकों को भूल जाता है न तो  दुनिया में उसको सम्मान मिलता है और न ही उसका अस्तित्व अधिक दिन तक बचा रह सकता है। हम आज अपने राष्ट्र के महानायक नेताजी की जयंती पर उनके चरणों में अपना शत -शत नमन करते और उनकी नीतियों पर चलकर अपने राष्ट्र की रक्षा और सेवा का संकल्प लेते हैं।- जय हिन्द।    


     

Saturday 18 January 2014

भारत माँ के वीर सपूत महाराणा प्रताप जिन्होंने अपनी मातृभूमि के स्वाभिमान के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया

भारत के इतिहास में ऐसी असंख्य वीर -वीरांगनायों के नाम अंकित हैं जिन्होंने अपनी मातृभूमि और धर्म की रक्षा के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। इन महान बलिदानियों में महाराणा प्रताप का नाम सबसे महतवपूर्ण है जिन्होंने अपनी मातृभूमि और धर्म की रक्षा के लिए राजसी ठाठ -बाट त्यागकर जंगलों की खाक छानकर भी हार नहीं मानी और अपनी पूरी ताकत विदेशी मुगलों की सत्ता को उखाड़ने में लगा दी। प्रताप ने मुग़ल बादशाह अकबर की अधीनता स्वीकार करने की बजाय रणभूमि में लड़ने का रास्ता स्वीकार किया। धन्य है ऐसी वीरांगना जिसने ऐसे वीर पुत्र को जना ,हम सदैव उसके आभारी रहेंगे। आज देश में ऐसे लोगों और नेतायों की कमी नहीं है जो सत्ता के लिए देश -धर्म के विरुद्ध जाकर भी अपने स्वाभिमान और अस्तित्व का सौदा करने से भी बाज नहीं आ रहे ,लानत है ऐसे लोगों पर। आज फिर ऐसा वातावरण बनता जा रहा है जिसमे भारत के स्वाभिमान को देश के अंदर और बाहर से गम्भीर चुनौती दी जा रही है और शासक वर्ग ऐसी ताकतों से निपटने की बजाय उनके आगे पुरे राष्ट्र के गौरव को धूमिल करने में तनिक भी शर्म महसूस नहीं कर रहा। अब फिर वो समय आ गया है जिसमें हमारी मातृभूमि अपने सम्मान और स्वाभिमान की रक्षा के लिए अपनी संतान को पुकार रही है। आओ आज हम महाराणा प्रताप जैसे वीर बलिदानी की पुण्य तिथि पर शपथ लें कि हम भारत माँ की पुकार को अनसुना नहीं करेंगे और उसके स्वाभिमान को रौंदने वाली राष्ट्र और धर्म विरोधी शक्तियों को आगामी लोकसभा चुनाव में समूल उखाड़ कर दम लेंगे। यही शहीदों के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।                                                                               
महाराणा प्रताप (९ मई, १५४०- १९ जनवरी, १५९७) उदयपुर, मेवाड में सिसोदिया दिया राजवंश के राजा थे। उनका नाम इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है। उन्होंने कई वर्षों तक मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया। इनका जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ में महाराणा उदयसिंह एवं माता राणी जीवत कँवर के घर हुआ था। १५७६ के हल्दीघाटी युद्ध में २०,००० राजपूतों को साथ लेकर राणा प्रताप ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के ८०,००० की सेना का सामना किया। शत्रुसेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को शक्ति सिंह ने बचाया। उनके प्रिय अश्व चेतक की भी मृत्यु हुई। यह युद्ध तो केवल एक दिन चला परन्तु इसमें १७,००० लोग मारे गएँ। मेवाड़ को जीतने के लिये अकबर ने सभी प्रयासकिये। महाराणा की हालत दिन-प्रतिदिनचिंतीत हुइ। २५,००० राजपूतों को १२ साल तक चले उतना अनुदान देकर भामाशाह भी अमर हुआ। 



Thursday 16 January 2014

गांधी परिवार शक्ति तो अपने पास रखना चाहता है लेकिन जिम्मेदारी से भाग रहा है। क्या आप इससे सहमत हैं ?

देश को भोगने की आदि हो चुकी कांग्रेस पार्टी के लोग सत्ता हाथ से निकलती देख बौखला रहे हैं। आश्चर्य की बात है गांधी परिवार के गुलाम कांग्रेसी अब राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की मांग कर रहे हैं , लेकिन यह परिवार अपने कंधो पर  जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है क्यों ? राहुल -सोनिया सत्ता का रिमोट तो अपने हाथों में रखना चाहते हैं , लेकिन जिम्मेदारी से बचना चाहते हैं। क्या इस परिवार को अपनी हार से डर लगता है या वह सिर्फ सत्ता की मलायी तो खाना चाहते हैं, लेकिन पराजय का ठीकरा अपने सर लेने से बचते हैं। 

    अभी पिछले दो दशक से देश की बागडौर प्रधानमंत्री के रूप में तो मनमोहन सिंह के पास है, परन्तु उनका रिमोट कंट्रोल सोनिया -राहुल गांधी के हाथ में। किसी चुनाव को जीत लिया जाये तो उसका श्रेय सोनिया -राहुल गांधी को और पराजय की जिम्मेदारी पार्टी के दूसरे नेतायों पर। सीधे -२ इसका अर्थ यह है कि प्रधानमंत्री मनमोहन के पास जिम्मेदारी तो है, लेकिन शक्ति गांधी परिवार अपने हाथों में रखे हुए है ,वह जब चाहे आगे आकर मनमोहन के निर्णय को वीटो कर सकने कि क्षमता रखते हैं। दूसरी और गांधी परिवार के पास शक्ति तो है, लेकिन कोई जिम्मेदारी नहीं है। गांधी परिवार की यही मानसिकता है।  इस परिवार की यही मानसिक दशा देखने को मिल रही है। क्या आप इस बात से सहमत हैं ?कृपया अपनी राय दें -

आप पार्टी के एम् एल ए बिन्नी ने केजरीवाल पर कांग्रेस से सांठ -गांठ करने का आरोप लगा पार्टी में बगावत का बिगुल बजाया

आप पार्टी के दिल्ली के लक्ष्मी नगर विधानसभा क्षेत्र से विधायक विनोद कुमार बिन्नी ने अपनी ही पार्टी के कथित ईमानदार नेतायों को बेनकाब कर दिया है। उनका आरोप है कि  पार्टी के नेता दिल्ली की जनता से किये वायदों को पूरा करने की बजाय लोकसभा के चुनाव में जुट गए हैं। बिन्नी ने  केजरीवाल को तानशाह बताते हुए  कहा कि आप पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री कांग्रेस से सांठ -गांठ करके दिल्ली की जनता से धोखा कर रहे हैं। बिन्नी का कहना है यह भी है कि पार्टी जनता को गुमराह कर रही है  और पार्टी के सारे फेंसले सिर्फ ४ लोगों की मण्डली कर रही है क्या आप का यही सवराज है ?

        बिन्नी के आरोपों से यह बात साबित हो रही है कि कांग्रेस आप पार्टी को आगे करके नरेंदर मोदी को सत्ता से दूर रखने की अपनी नापाक साजिश में जुटी हुयी है और दिल्ली में इस को अंजाम भी दे चुकी है अन्यथा ३२ सीटे जितने के बाद भी सत्ता से बाहर न बैठी होती।  और जनता द्वारा  सत्ता से बाहर खदेड़ दी गयी कांग्रेस मात्र ८ सीट जीतकर  भी २८ सीट जीतनेवाली आप पार्टी को समर्थन देकर सरकार कि नकेल अपने हाथों में रखकर जनादेश को ठेंगा दिखा रही है।

Tuesday 10 December 2013

देश से कांग्रेस और उसके साथी दलों की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है और मोदी के कदम तेजी से दिल्ली की सत्ता की ओर बढ़ते जा रहे हैं।

अभी हाल में संपन्न हुए दिल्ली ,राजस्थान ,मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की विधानसभा चुनावों में जनता ने कांग्रेस का सफाया कर दिया है। जनता द्वारा नकार दी गयी कांग्रेस की आनेवाले लोकसभा चुनाव में और भी बुरी गति होनेवाली है और अपने भविष्य को शायद कांग्रेस के नेता समझ भी रहे हैं और इसके लिए सीधे -२ सोनिया -राहुल गांधी को ही प्रमुख रूप से जिम्मेदार मानते हुए भी इसे कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे। यही कांग्रेस में कमी है कि वहाँ सच बोलने की आज़ादी किसी को नहीं है ,बस गांधी -नेहरू परिवार की स्तुति ही करनेवाले सच्चे और निष्ठावान कांग्रेसी होने का प्रमाण है।  

        आनेवाले दिनों में कुछ परिवर्तन कांग्रेस और सरकार में देखने को मिल सकते हैं। राहुल गांधी को जनता ने बुरी तरह से खदेड़ दिया है और उनकी किसी भी बात को मानना तो दूर सुनना भी आवश्यक नहीं समझा।यह उनकी चुनाव रैलियों के दौरान भी देखने को मिला परन्तु कांग्रेस इसे जानते हुए भी अनजान बने रहना चाहती है। महंगाई ,भ्रष्टाचार ,घोटालों की मार से जनता का दम निकल चुकी कांग्रेस सरकार को 4 राज्यो के चुनाव में जनता ने रसातल में पहुंचा दिया है। जनता के रोष को देखते हुए केंद्र सरकार को समर्थन देने वाले सहयोगी दलों को भी अपने भविष्य का मंजर दिखायी देने लगा है ,इसीलिए एनसीपी के शरद पवार ,सपा और बसपा भी कांग्रेस के नेतृत्व को कोसने पर उतर आयी है। कांग्रेस के अंदर भी नेतृत्व के विरुद्ध बगावत के स्वर सुनायी पड़ सकते हैं। हो सकता है कांग्रेस अपनी करतूतों और गांधी परिवार की  असफलता का ठीकरा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सिर फोड़ने का काम करे लेकिन यह तो साबित होता जा रहा है कि राहुल गांधी के दम पर कांग्रेस की नैया को डूबने से अब कोई नहीं बचा सकता। जनता अब नरेंदर मोदी को देश की कमान सौपने की ठान लगती है और इसकी आहट इन विधानसभा के चुनावों में जनता ने दे दी है ,लेकिन देश का मीडिया ,कांग्रेसी और तथाकथित धरमनिर्पेक्षता के झंडाबरदार इस आहट को सुनने के बावजूद खुद को और जनता को गुमराह करने की बेकार की कवायद में जुटे हुए हैं।देश से कांग्रेस और उसके साथी दलों की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है और मोदी के कदम तेजी से दिल्ली की सत्ता की ओर बढ़ते जा रहे हैं। 

Tuesday 3 December 2013

अपने सम्मान ,स्वाभिमान और राष्ट्र की रक्षा हेतु अपने धर्म का पालन करें ''अपने मत का प्रयोग अवश्य करें '

 

     हम हमेशा यह शिकायत करते हैं कि हमारी बात सरकार नहीं सुनती या हमारा प्रतिनिधि हमारी तरफ ध्यान नहींदेता , ऐसा क्यों है ?इस पर भी विचार करें कि क्या हम अपने वोट को डालते हैं या मतदान के दिन को पिकनिक मनाने और छुट्टी  की  मौज़ -मस्ती में गुज़ार देते हैं ?अगर हम यह चाहते हैं कि हमारी भी सरकार में भागीदारी हो और हमारी सुनवाई भी हो तो हमें अपने वोट को जरूर डालना चाहिए। अपने मान -सम्मान ,स्वाभिमान ,अस्तित्व और राष्ट्र कि रक्षा करने में सक्षम व्यक्ति /दल को अपना मत देकर  अपने धर्म का पालन करना चाहिए। 

Tuesday 26 November 2013

शाहदरा विधानसभा क्षेत्र से भाजपा -अकाली उम्मीदवार जितेंदर सिंह शंटी को है नरेंदर मोदी से परहेज क्यों ?

    आज भाजपा अपने स्टार प्रचारक और पीएम पद के उम्मीदवार नरेंदर मोदी के नाम पर पुरे देश में जनता से समर्थन मांग रही है और उसको काफी  जनसमर्थन मिल भी रहा है।आज पुरे देश में दूसरा कोई ऐसा नेता किसी भी दल के पास नहीं है जो मोदी के मुकाबले लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर सके। वहीँ दिल्ली के चुनावों में भाजपा-अकाली दल के शाहदरा से चुनाव लड़ने वाले जितेंदर सिंह शंटी अपने चुनाव प्रचार में मोदी से परहेज कर रहे हैं और उन्होंने  अपने हैंडबिल में भी मोदी के फ़ोटो को छापना उचित नहीं समझा। अपने नेता मोदी के प्रति शंटी द्वारा बरती जा रही इस बेरुखी से जहां भाजपा के लोगों में गुस्सा होना स्वाभाविक है वहीं आम जनता भी इससे खुश नहीं है। शायद विरोधी दलों की  तरह शंटी भी या तो मोदी के नाम से  मुस्लिम मतों के बिदकने से भयभीत हैं या वो अपने को मोदी  से भी बड़ा और प्रभावी  नेता मानकर चल रहे हैं? मोदी से परहेज का परिणाम क्या होगा यह तो आगे आने वाला समय ही बतायेगा, परन्तु यह बात मोदी के  चाहने वालों और विरोधियों  में चर्चा का विषय बन चुकी  है। 

Friday 13 September 2013

आखिर मोदी के नाम पर लग गई मोहर, आओ भारत को मजबूत हाथों में सौंपने का संकल्प लें

आखिर बीजेपी 2014 में होनेवाले लोकसभा चुनावों में नरेंदर मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने पर सहमत हो गई है और उसके दोनों सहयोगी दलों -शिवसेना -अकाली दल भी सहमत हो गए हैं। इस तरह से अब एनडीए के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होगें और इसका औपचारिक ऐलान शाम को कर दिया जायेगा। नरेंदर मोदी को लेकर पूरे देश में ऐसा माहौल बन चूका है कि अब उनको रोक पाना किसी भी के बस की बात नहीं रही। देश में बढती महंगाई ,साम्प्रदायिकता और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए आज जनता मोदी को सबसे सक्षम और योग्य नेता मानती है। मोदी के नेतृत्व भारत विश्व में अपनी साख और शक्ति का डंका बजाएगा ,ऐसी हमारी कामना ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है।  मोदी देश को विकास की राह पर ले लेकर चलने की  क्षमता रखते हैं।  देश में अलगाववादी और आतंकवादी ताकतों को कुचलने का पुन्य कार्य करके आम आदमी को शांति और सुरक्षित वातावरण भी मिल पायेगा। अब देश के उन लोगों को भी अधिक से अधिक बहुमत मोदी को देने की जिम्मेदारी निभानी होगी जो चुनाव के दिन वोट डालते नहीं हैं और बाद में सरकार को कोसते रहते हैं। आओ हम सब अपनी और अपनी आनेवाली नस्लों की सुरक्षा के लिए और  देश के उज्जवल भविष्य ,सुरक्षा ,एकता -अखंडता और मजबूती के लिए मोदी को अपनी किस्मत की बागडोर सौंपने का संकल्प लें। 

    

Tuesday 10 September 2013

क्या चाहता है इस्लामिक कट्टरवाद और क्यों बार -बार झुलसता है हिंदुस्तान ?

आज जिस तरह से यूपी के मुज्जफर नगर को साम्प्रदायिकता की आग ने घेर लिया है ,उसके लिए वहां कि समाजवादी सरकार की मुस्लिम तुष्टिकरण की घटिया नीति जिम्मेदार है। इस सरकार ने जिस तरह से मुस्लिम समाज को अपना संरक्षण दिया हुआ है उसीके चलते मुज्जफर नगर में हिंसा का खुला तांडव हुआ। वैसे तो पूरा हिंदुस्तान ही मुस्लिम कट्टरता के कारण ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठा हुआ है मगर यूपी और बिहार में कुछ ज्यादा ही साम्प्रदायिकता की ज्वाला धधकाने का काम वहां की सरकारों द्वारा किया जा रहा है। यह दोनों प्रदेश आबादी और लोकसभा की सीटों के कारण भी भारत की राजनीती में अहम् रोल  अदा करते हैं और वहां मुसलमानों की संख्या भी अच्छी -खासी है। इसीलिए दोनों राज्यों की सरकारें मुस्लिम मतों को पाने की लालसा में इनके गुनाहों पर पर्दा डालकर इन लोगों के होंसलें बढ़ा चुकी है और इसी कारण मुज्जफर नगर हिन्दू -मुस्लिम दंगों की आग में झुलस रहा है। अफ़सोस एस बात का है कि देश में साम्प्रदायिक -सौहार्द और सेकुलर वाद की दुहाई देनेवाले नेता व् राजनैतिक दल अपने बिलों में छुपे बैठे हैं क्योंकि उनको पूरा विश्वास है कि इस दंगे की आग में उनके वोटर हावी हैं।

क्या यह लोग शांति और प्रेम की भाषा को समझेंगे ?

               हिन्दू समाज पिछले १००० वर्षों से इस्लामिक कट्टरवाद का शिकार है, परन्तु इसके बावजूद वह अभी तक पूरी तरह से न तो मुस्लिम मानसिकता को पढ़ पाया है और न ही अपना सहिष्णु सवभाव ही बदल पाया है जिसका खामियाजा वह पूर्व में भी भुगत चूका है और आज भी भुगत रहा है। 1947 में जिस मुस्लिम आक्रान्ता ने देश को विभाजित कर दिया था और उसकी आग में भारत का पंजाब -सिंध और बंगाल बुरी तरह से जल गया परन्तु इस आग की तपिश को शेष भारत के लोगों ने महसूस किया होता तो आज भारत की स्थिति कुछ और ही होती। जिन मुसलमानों को यूपी -बिहार के लोगों ने अपना भाई मानते हुए पाकिस्तान नहीं जाने दिया आज वही लोग उनके खून के प्यासे बनकर उनकी शांति को समाप्त क्र रहे हैं। काश उस समय हिन्दू मुस्लिम मानसिकता को अच्छी तरह से पढ़ लेते तो आज न कश्मीर से हिन्दू पंडितों को अपने घरों से बाहर होना पड़ता और नाहि मुज्जफरनगर को आग में जलना पड़ता। क्या चाहता है इस्लामिक कट्टरवाद और क्यों बार -बार झुलसता है हिंदुस्तान  ? क्या इसपर इस देश के शुभचिंतकों को सोचना नहीं चाहिय कि कैसे इस देश को आतंक और कट्टरता से मुक्त करवाया जा सकता है ?

Friday 30 August 2013

मुसलमानों को आरक्षण की नहीं परिवार नियोजन की जरूरत है मुसलमानों के पिछड़ेपन का कारण उनकी जेहादी मानसिकता है ,जिसको बदलना जरूरी है

क्या देश और समाज की तरक्की की रफ़्तार को  नहीं रोक रहा आबादी का बढ़ता बोझ ? क्यों परिवार नियोजन अपनाने वालों को नहीं  मिलता सरकारी योजनाओ का लाभ ?

देश में मुसलमानों को वोटों की खातिर राजनैतिक दल उनको कभी आरक्षण का झुनझुना दिखाते हैं और कभी उनके पिछड़ेपन के लिए उनके साथ किया जानेवाला प्रशासनिक भेदभाव बताया जाता है।यह सारी कसरत और नौटंकी सिर्फ मुसलमानों का सबसे बड़ा हितैषी बनकर उनके वोट पाने की जुगत के तहत कथित सेकुलर नेता और राजनैतिक दलों द्वारा की जाती है।मुस्लमान भी इसमें खुश हैं क्योंकि इस आड़ में वह अपने जेहादी एजेंडे के तहत अपनी आबादी बढ़ाने की मुहीम में दिन -रात जुटे हुए हैं।मुसलमानों के पिछड़ेपन की असली वजह उनका परिवार नियोजन को न अपनाना है और आबादी के बढ़ने की वजह से भारत का विकास भी बाधित होता जा रहा है।  आज मुसलमानों के छोड़कर सभी अन्य धर्मों को मानने वाले लोगों में 2 या 3 बच्चों को ही पैदा करने की परम्परा चल रही है। इसके पीछे इन लोगों की सोच है कि महंगाई और बेरोजगारी के इस दौर में कम संतान होने से वह अपने परिवार का भरण -पोषण ठीक तरह से कर पाएंगे और अपने बच्चों को भी अच्छी शिक्षा देकर उनका भविष्य उज्जवल कर पाएंगे। इसके उलट मुसलमान अधिक संतान को पैदा करके अपनी और देश की तरक्की को रोकने के मिशन में लगे हुए हैं।इनके धार्मिक नेता भी इनको यही समझाने में कामयाब हो चुके हैं कि संतान अल्ला की देन है और इनको पैदा होने से रोकना अल्ला के आदेश की तोहीन है। इसके साथ ही आबादी बढ़ाने के पीछे यह मानसिकता भी काम कर रही है कि अगर उनकी संख्या अधिक होगी तो भारत पर उनका ही इस्लामिक राज कायम हो जायेगा।इसी कारण  मेवात के इलाके में आज भी कई मुसलमानों के 15 से 20 बच्चे भी पाए जा रहे हैं। अधिक संतान होने की वजह से न तो उनका भरण -पोषण ठीक तरह से होता है और न ही उनको शिक्षा भी मिल पाती है। यही अशिक्षा अधिकांश लोगों को अपराध और अन्य असमाजिक कार्यों की ओर धकेल रही है। परिवार -नियोजन को न अपनाकर मुसलमान अपने पिछड़ेपन को तो आमंत्रित कर ही रहे हैं साथ ही समाज और देश की तरक्की की रफ़्तार को भी रोकने में लगे हुए हैं। कुछ माह पहले ही राजस्थान के अलवर जिले के एक गाँव में एक मुसलमान मेरे पास अपनी ओल्ड ऐज पेंशन की समस्या को लेकर आया। इसकी हालत बिलकुल दरिद्र थी और उसकी आयु 70 वर्ष थी।उसने तीन विवाह किये और अब उसके 9 लड़के और 3 लड़कियां हैं। मजेदार बात यह है कि सबसे छोटा लड़का सिर्फ ढाई माह का है।जब मैंने उससे सवाल किया कि इतनी गरीबी में इतने बच्चे क्यों ?तो उसका जवाब था कि साहब यह अल्ला की देन है।मेरे यह कहने पर कि अब उसकी अगली संतान कब होगी ?तो वह बोला कि यह तो अल्ला ही बता सकता है। यह सोच ही है मुसलमानों के पिछड़ेपन का कारण जो न तो किसी सरकारी योजना के लाभ और न ही उनको आरक्षण देने से  समाप्त हो सकता है।  ऐसी सोचवालों को अधिक संतान को पैदा करके कई लाभ स्वत ही मिल जाते हैं जैसे -

 पहले आबादी बढ़ाना और फिर पिछड़ेपन का रोना 


सरकार से गरीबी का प्रमाण पत्र तो मिल ही जाता है और पेंशन के साथ -2 गरीबों को मिलनेवाली सारी लाभकारी योजनाओ का लाभ भी।क्या इस आबादी का बोझ उन लोगों पर नहीं पड़ रहा जो सरकार को टैक्स देते हैं, सरकारी योजनाओ के लाभ से वंचित रहते हैं और राजनैतिक दलों की उपेक्षा का शिकार भी उनको ही होना पड़ रहा है क्यों ?जवाब साफ है की वह लोग परिवार नियोजन को अपनाते हैं, उनकी संतान अल्ला की देन नहीं है और वह मुस्लमान भी नहीं है यह अभागे सरकार को टैक्स देकर और देश पर बोझ कम करके क्या कोई गुनाह करते हैं ?इसका जवाब गैर मुसलमानों यानि काफिरों को क्या यह सरकार ,सेकुलर नेता ,देश के संसाधनों पर मुसलमानों का पहला हक़ बताने वाले अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ,सोनिया -राहुल गाँधी और ईमानवाले मुसलमान देने का कष्ट करेंगे http;tusharapat.blogspot.com/?

 


  


Thursday 15 August 2013

आज देश को मोदी जैसी इच्छाशक्ति वाला नेता चाहिए नाकि रिमोट कंट्रोल से चलने वाला नेता


देश की जनता में सबसे अधिक असरदार नेता 
जनता में बे -असरदार नेता 
 प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के स्वाधीनता दिवस के अवसर पर लालकिले से पढ़े गए भाषण का विश्लेष्ण करके मोदी के संबोधन से कांग्रेस के साथ-साथ कई अन्य नेता तो तिलमिला ही रहे हैं, इसके साथ मीडिया की भांड मण्डली भी महाबहस चला रही है। जितनी तीखी प्रतिक्रिया मोदी की कही बातों की होती है उतनी तेजी से उनकी लोकप्रियता का ग्राफ जनता में बढ़ रहा है। जो भाषण पीएम ने दिया वो किसी थके -हारे और हताश -निराश व्यक्ति का हो सकता है नाकि भारत जैसे परमाणु शक्ति से सम्पन्न राष्ट्र प्रमुख का। दूसरी ओर मोदी का भाषण ऐसा है जो इच्छाशक्ति से भरपूर किसी राष्ट्र नायक का हो। इसकी तुलना देश की जनता कर रही है और उनके विरोधी इससे घबराई सी दिखने लगी है। मोदी की यही कला है कि वह कुछ कहते हैं तो उसपर बढ़ी तीखी प्रतिक्रिया उनके विरोधी तो करते ही हैं साथ ही पूरा मीडिया भी उसपर अपनी महाबहस शुरू करके उसको इतना चर्चित कर देता है की कई दिन तक पर उस पर नेताओं में नोक-झोंक चलती रहती है। वास्तव में मोदी की लोकप्रियता को बढ़ाने में सबसे ज्यादा हाथ उनके विरोधियों का ही है। 

  आज जिन हालत से देश गुजर रहा है उनमें जनता एक ऐसे नेता की तलाश में थी जो किसी रिमोट कंट्रोल की बजाय अपनी सूझ-बुझ से चलना जानता हो और वह बिना रीढ़ का न हो। जनता को अपनी इसी इच्छा की पूर्ति मोदी के व्यक्तित्व में देखने को मिल रही है और यही बात उनके विरोधिओं की नींद हराम किये हुए है। 

Saturday 21 April 2012

CONGRESS KI LOOTIYA DOOB KR RAHEGI

DESH MEIN BADATI MHANGAI SE JANTA KI KAMAR TOOT GAI HEI OR DOOSARI OR UPA SARKAR DESH KO VIKAS KE PATH PR ANDHADHUNDH DORANE KI DUHAI DENE KE ALAWA KUCH NAHI KR RAHI /BADTA BHARSHTACHAR KI MAR NE TO LOGO KA KCHUMAR HI NIKALKR RAKH DIYA HEI /YAHI KARAN HEI KI JHAN BHI ELECTION HOTA HEI VANHI CONGRESS KI LUTIYA DUBTI JA RAHI HEI/DELHI MEI MCD KE CHUNAVO MEIN CONGRESS KO JANTA NE IK BAR PHIR NAKAR KR APNE DIL KA GUBAR NIKALNE KI OR JO KADAM BADANE KA ABHIYAN SHURU KAYA HEI VO PUNJAB,UP,DELHI SE HOTA HUA SANSAD KE 2014 MEIN HONE WALE ELECTION MEIN CONGRESS KO SATTA SE BAHAR KARKE HI ROOKNE WALA HEI /

Saturday 14 January 2012

KALE DHANWALON KI BOKHLAHT OR DIGVIJAY KI JUBAN SE PARERIT HO RAHE HEIN KAMRAN JAISE SIRFIRE LOG

BABA RAMDEV PR INK DALNE KI KARTOOT KE PICHHE IK TO ON LOGON KI BOKHLAHT KAM KAR RAHI HEA JINKA KALA DHAN SWIS BANK MEIN HEA OR DOOSARY AUR DIGVIJAY JAISE LOGON KI MUSLIM PRAST JUBAN HEA JO HAR CHIJ KO SIRF MUSLIM VOTON KO PANE KI NAZAR SE DEKHTE HEIN.KAMRAN TO IKMOHRA  HEA ASLI GONAHGAR     DIGVIJAY JAISE LOG HEIN JO DESH KA MAHOL APNI GANDI RAJNITI OR GANDI MANSIKTA  KE KARAN KHARAB KAR RAHE HEIN .

Wednesday 3 August 2011

HINUON KE MNAM PR KALANK HEIN NETA

Ashwani Bhatia Hinduon ke nam pr kalank hein ye neta inhen na to dharam se koi lena -dena hea na hi inhe is bat se koi sarokar he ki hinduon ka bhavishya ko khatra hea . Ye haramion ko  to bus kursi chahiye chahe iske liye inhen dharam hi kyon na badlna pade ya fir apni man -bahno ko bhi muslmano ko kyon na bhana pade .Agar inhe desh se pyar hota to ye kabhi bhi bharat ka vibhajan sawikar nahi karte.Ajadi ke bad bhi desh ke hinduon ko batne ke har parkar ke parpanch netaon ne kiye hein /Voton ki rajniti karne mein lage sare dal sirf kursi ki khatir desh ko batne mein lage huyen hein /Hinduon ke nam pr thekedari karnewale sangathan bhi sirf mal batone mein hi lage hein ,jitna nuksan hinduon ka jhuthe or pakhandi babaon ne kiya hea utana hi vote ke bhukhe netaon ne kiya hea /Hinduon ko bhi apni aankhe khol kr ye dekhna padega ki hamara nuksan kon kr raha hea or is se kaise bacha ja sakta hea /

Saturday 16 July 2011

नपुंसक और नकारा नेता नही कर सकते देश और देशवासीओ की सुरक्षा

मुंबई में बॉम्ब ब्लास्ट करके एक बार फिर आतंकवादियों ने ये साबित कर दिया है कि भारत की बागडोर नपुंसक ओर नाकारा लीडरो के हाथ में है. हर बार की तरह इस बार भी सरकार चलानेवालों ने लोगों से संयम बरतने की अपील की ओर कुछ राहत राशि की घोषणा करने की रस्म अदायगी कर दी. प्रधान मनती और उनकी नकेल संभालने वाली सोनिया गाँधी ने भी अस्पताल में जाकर पीड़ितो का हाल पूछ कर देश की जनता पर बहुत बड़ा उपकार कर दिया. दूसरी ओर से देश की बागडोर संभालने के पूर्व अभ्यास में लगे कॉंग्रेस के स्वघोषित युवराज राहुल गाँधी ने देश की जनता को समझा दिया कि सरकार उनकी सुरक्षा हर वक़्त नही कर सकती. उन्होने कहा कि १-२ धमाके तो होंगे ही उसे हम नही रोक सकते. एक तरह से उन्होने सच ही कहा है क्योंकि उनकी इस नकारा ओर नपुंसक सरकार से सुरक्षा की उम्मीद करना भी बेकार की बात है क्योंकि  सुरक्षा की ज़रूरत जनता को नही इन नकारा ओर नपुंसक लीडरो को है और उसको देश के सुरक्षा बल करने में लगे ही हुए हैं. रही बात जनता की, तो, उसे तो मरना ही है, फिर चाहे वो भूख से मरे, अस्पताल से इलाज़ ना होने के कारण मरे, रेल दुर्घटना मे मरे या फिर पुलिस के हाथों मारी जाए उसे तो मरना ही पड़ेगा. अगर वो आंतकवादी हमलो में मारी जाए तो इस से इन सत्ताभोगिओं को क्या फ़र्क पड़ता है?

Monday 4 July 2011

SAMAJIK ASAMANTA BADA RAHI HEA APRADHON KO

SAMAJIK ASAMANTA BADA RAHI HEA APRADHON KO _ASHWANI BHATIA

Aj samaj mein apradhon ki badh si aa gai hea.Samaj mein badti asamanta ke karan logon mein ek dusare ke perti badle or nafrat ki bhawna badti ja rahi hea.Ek taraf aise log hein jo apne pariwar ke liye 2 waqt ki roti bhi mushkil se juta pa rahe hein vanhi dusri or aise logon ki jmat bhi hea jo lakhon-kroron ek hi din mein aiyashi mein uda dete hein. Es samajik asamanta ke karan hi aaye din apradhon ki vardaten badti ja rahi hean .Jab tak sarkar es asamanta ko nahi mitati tab tak samaj mein shanti esthapit nahi ho sakti lekin sarkar ki nitiyan aisi hein ki asamanta ghatne ki bjay or badti ja rahi hea agar samay rahte es or sarkar ne dhiyan nahi diya to aage chalkr eske or bhi bhyank parinam dekhne ko mil sakte hein.Afsos ki bat hea ki dharam or samaj ke katit thekedar bhi es or se apni aankhen band kiye huye hein.

Saturday 2 July 2011

Lokpal-Nahi-Lokmal: JANTA KI JEB PER DAKA DAL RAHI HEA UPA SARKAR

Lokpal-Nahi-Lokmal: JANTA KI JEB PER DAKA DAL RAHI HEA UPA SARKAR: "Kender mein chal rahi UPA sarkar ne apna sara dhiyan logon kijeb ko khali karne per laga rakha hea /Patrolium padarthon or anye vastuon ke ..."

JANTA KI JEB PER DAKA DAL RAHI HEA UPA SARKAR

Kender mein chal rahi UPA sarkar ne apna sara dhiyan logon
kijeb ko khali karne per laga rakha hea /Patrolium padarthon
or anye vastuon ke damon ko aasman mein pahuncha chuki
  manmohan sarkar abhi bhi logon ko di janewali subsidi ka
rona rone mein lagi hea /Desh ko vikas ki rah per andhadhundh
dodane wale UPA sarkar ke karta- dharta yah bhi sochne ki
zaroort mahsoos nahi kar rahe ki vikas ki es andhi dod mein
aam admi to kab ka pichhe choot chuka hea /

Sunday 10 April 2011

Lokpal nahi lokmal

netaon ko lokpal nahi "lokmal chahiye
ye varg apne ko jansewak nahi dhan-
sewak mante hean esiliye sar desh ki
dhan -sampada ko apana samajhkar 
dono hathon se lootane mein lage 
huye hen."bharashtachar ki daldal 
men akanth duba bharat hi gandhi
ka"'ramraj"or nehru ke sapano ka
bharat hea?