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Monday 5 January 2015

राजस्थान में वसुंधरा सरकार के प्रशासनिक अधिकारी निकाल रहे हैं पी एम मोदी के सुशासन के दावों की हवा। फाष्ट ट्रैक कोर्ट हुई डैड ट्रैक कोर्ट में तब्दील

राजस्थान सरकार का ऑनलाइन शिकायत पोर्टल संपर्क  भी हो रहा है  नाकारा साबित। जनता को मिलेगा कैसे न्याय ?कौन सुनेगा पीड़ित जनता की पुकार ?

अलवर [अश्विनी भाटिया ]। अलवर  राजस्थान में बीजेपी की वसुंधरा सरकार के राज्य  की  जनता को सुलभ,त्वरित  और स्वच्छ शासन देने के सभी दावों को ताक पर रखकर प्रशासन में बैठे अधिकारी अपनी मनमानी कर रहे हैं  ऐसा लगता है कि कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार के बिगड़ैल अधिकारीयों को , जिनके कारण उस सरकार का पतन हो गया था, सरकार बदलने के बावजूद  अभी तक  अपनी पूर्व की भ्रष्ट और मनमानी करनेवाली कार्यशैली को बदलने की कोई जरुरत महसूस नहीं हुई है।राज्य के प्रशासनिक अधिकारियों की अकर्मण्यता ही वसुंधरा सरकार का ग्राफ जनता की नज़रों में गिराने में कारगर साबित हो रही है।अलवर जिले की अधिकांश तहसीलों और उपखण्डों में बड़े पैमाने पर रेवेन्यू मामले जिनमें राजस्थान भूमि  काश्तकारी अधिनियम के वर्षों से लंबित पड़े मामलों का निस्तारण करने के उद्देश्य से fasht track court  का गठन किया गया था जिनमें अधिकांश  न्यायालयों में न तो पीठासीन अधिकारी हैं और ना ही दूसरा स्टाफ ही लगाया गया है। इस तरह से यह फाष्ट ट्रैक कोर्ट एक तरह से डैड ट्रैक कोर्ट में तब्दील हो चुकी हैं।इसी तरह से रामगढ उपखण्ड में फाष्ट ट्रैक कोर्ट का गठन गत फ़रवरी, 2013 में किया गया था जो मात्र 3 माह काम करने के बाद अपना दम तोड़ गयी, अर्थात मई 2013 से यह कोर्ट मृत प्राय पड़ी है। ना तो इस कोर्ट में कोई पीठासीन अधिकारी है ना ही कोई अन्य स्टाफ ही मौजूद है।

   रामगढ तहसील में आज भी कर्मचारियों और अधिकारीयों की कार्यशैली को लेकर जनता क्षुब्द है और गरीब व् अनपढ़ जनता की पुकार कोई सुनने को तैयार नहीं है। कई ग्रामीणों की शिकायत मिलने के  बाद इस सवांददाता ने इस सम्बद्ध में कई बार रामगढ उपखण्ड अधिकारी श्री अखिलेश कुमार पीपल से मिलने का प्रयास किया , लेकिन उनके कार्यालय से बताया गया कि  साहब नहीं हैं फिल्ड में गए हुए हैं। इसी उपखण्ड में रेवन्यू के मामलों में सभी नियमों -कानूनों को ताक पर रखकर गरीब और असहाय लोगों को दर्द के अलावा यहां से  कोई न्याय नहीं मिल रहा। केसों में लोगों को सिर्फ तारीखें ही दी जाती हैं और लोग हर तारीख पर अपना सा मुंह लेकर सरकार को कोसते हुए अपने घरों को लौट जाते हैं। इस संबंध में सुचना के अधिकार अधिनियम,2005  के तहत एक प्रतिवेदन  गत 28 नवम्बर,2014  को उपखण्ड ऑफिस में स्पीड -पोस्ट द्वारा भेजा गया था जोकि  1 दिसम्बर को  पत्र कार्यालय में डिलीवर होने के बावजूद यह रिपोर्ट लिखे जाने तक कोई सुचना आवेदक को नहीं दी गई है।  

इसी तरह से इस उपखण्ड में चल रही पेंशन धांधली का मामला प्रकाश में आया है जिसमें कई  लोग वृद्धा पेंशन को गलत तरीके से प्राप्त कर रहे हैं। इस पेंशन घोटाले की शिकायत राजस्थान सरकार द्वारा जनशिकायत पोर्टल राजस्थान 'संपर्क' पर गत 14 नवम्बर, 2014 को की गई थी, जिसपर आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। आश्चर्यजनक बात यह है कि शिकायत की वस्तुस्थिति देखने पर ज्ञात होता है कि  शिकायत पर कार्रवाई को विचाराधीन दिखाया जा रहा है और यह एसडीएम रामगढ के कार्यालय में पिछले 18 नवम्बर से पड़ी हुई है। राजस्थान में राज्य की बागडोर बीजेपी की वसुंधरा राजे के हाथों में आये 1 वर्ष बीत जाने के बाद भी जनता को कोई  राहत मिलती दिखाई नहीं दे रही , जो कि प्रधानमंत्री नरेंदर मोदी के जनता को सुशासन देने  की कवायद को ठेंगा दिखाने  जैसा प्रतीत हो रहा है ।

'संपर्क' पर दर्ज करवाई गई पेंशन घोटाले की शिकायत में बताया गया था कि  इस तहसील के नौगाँव कसबे और गढ़ी सहित कई अन्य गॉवों  में कुछ ऐसे लोग भी पेंशन ले रहे हैं जो सरकारी नौकरी में थे और अब सेवानिवृत हो चुके हैं। मजेदार बात यही है कि यह पेंशनधारी सेवानिवृति की  पेंशन व अन्य सरकारी लाभ भी प्राप्त कर रहे हैं।जानकारी में आया है कि इन रिटायर हो चुके लोगों में शिक्षक भी हैं और इनकी पत्नियां गरीबों की पंक्ति में शामिल होकर पेंशन प्राप्त करके अन्य गरीबों का हक़ मारने में लगे हुई  हैं। इसी तरह से वो लोग जिनके पास कृषि भूमि भी है , लेकिन खुद को भूमिहीन दर्शाकर पेंशन प्राप्त कर रहे हैं इनकीजाँच की जाए तो रेवन्यू रिकार्ड ममें ही इनके झूठ की पोल खुल सकती है। झूठे और फर्जी दस्तावेजों के आधार पर पेंशन प्राप्त करने में सफल हो चुके इन लोगों में कई लोग ऐसे भी हैं जिनकी आयु अभी 60 वर्ष से बहुत कम है, लेकिन वोटर पहचान पत्रों में कूट रचना करके अपनी आयु 60 वर्ष और इससे अधिक दिखा कर वृद्धा पेंशन ले रहे है। सूत्रों से ज्ञात यह भी हुआ है कि इस तरह से फर्जीवाड़ा करके पेंशन लेने वालों में गढ़ी-धनेटा ग्राम पंचायत की एक पूर्व महिला सरपंच भी शामिल है जिसका पति हरियाणा में शिक्षक था और अब सेवानिवृति के बाद सरकारी पेंशनभोगी है।

          शिकायत में   रामगढ़ तहसील के अंतर्गत आने वाले समस्त पेंशनभोगी जो फ़र्ज़ी दस्तावेज़ों और गलत तथ्यों के द्वारा गरीबों के हक़ पर डाका डालकर सरकारी पेंशन को डकारने में लगे हुए हैं,ऐसे लोगों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की मांग  गई है ,परन्तु अफसोसजनक पहलु यह कि वसुंधरा सरकार के अधिकारी सुशासन देने के दावों को हवाहवाई बनाकर जनता को स्वच्छ वातावरण उपलब्ध करवाने को तैयार नहीं हैं । साथ ही पेंशन वितरण  के काम में लगे संबंधित डाकिए भी अनपढ़ और गरीब पेंशनधारियों की आनेवाली पेंशन को डकारने में लगे हुए हैं। इन डाकियों  के विरुद्ध भी उच्च स्तरीय जाँच होनी चाहिए और इनके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई भी अवश्यम्भावी हो चुकी है।


Saturday 3 January 2015

शाहदरा विधानसभा क्षेत्र से शंटी को बहन प्रीति के चुनावी चुनौती देने से बिगड़ सकता है भाजपा का समीकरण और बाज़ी लग सकती है कांग्रेस के हाथ।

शाहदरा [अश्विनी भाटिया  ] दिल्ली विधानसभा के चुनावों का ऐलान बेशक अभी नहीं हुआ  है,लेकिन भाजपा सहित आप और कांग्रेस आदि दलों ने अपना अपना चुनावी बिगुल बजा दिया है। शाहदरा विधानसभा क्षेत्र से निवर्तमान विधायक जितेन्दर सिंह शंटी जो कि अभी एक वर्ष पहले विधानसभा चुनाव में अकाली -भाजपा गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीते थे।इस बार चुनावी भंवर में फंसते नज़र आ रहे हैं ,उनके फंसने का कारण उनकी बहन प्रीती है जिसने इस क्षेत्र से चुनावी अभियान शरू कर दिया है और अपने भाई के सामने कड़ी चुनौती के रूप में आ खड़ी हुई है । बहन प्रीती विवेक विहार वार्ड 239 से निगम पार्षद है और वह भी विधानसभा चुनाव के रण में   आ डटी है।सूत्रों का कहना है कि वह  निर्दलीय प्रत्याशी के रूप से चुनाव लड़ेंगी।प्रीति अपने क्षेत्र में अपना मज़बूत आधार रखती हैं और निर्दलीय चुनाव जीतकर अपनी ताकत का अहसास सबको करवा चुकी हैं। बताया जाता है कि इसीलिए अपनी  बहन की गंभीर चुनौती से शंटी घबराए हुए हैं। सूत्रों का कहना है कि भाजपा हाईकमान भी इस बात से चिंतित है और उसको लगता है कि बहन -भाई के इस आपसी विवाद के कारण कहीं उनकी यह सीट उनके हाथ से निकालकर कांग्रेस की झोली में न चली जाए। इसीलिए सम्भावना यह भी है कि भाजपा शाहदरा सीट पर शंटी की जगह किसी दूसरे चेहरे  अपना उम्मीदवार बनाकर अपनी जीत को सुनिश्चित कर सकती है। प्रीति ने इलाके में जनसभाओं और जनसम्पर्क के माध्यम से चुनावी रणभेरी बजाकर अपने भाई शंटी की घंटी बजा दी है। वैसे  भाजपा ने अभी तक अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है ,लेकिन शंटी अपने को अकाली -भाजपा का संयुक्त उम्मीदवार मानकर जोर -शोर से अपने आर्थिक संसाधनों के बल पर चुनावी महासमर में अपनी नाव को खेने में जुटे हुए हैं।  इस सीट पर पिछले लम्बे समय से विधायक होने का गौरव पानेवाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री डा. नरेंद्र नाथ को एक वर्ष पहले हुए विधानसभा चुनाव में पराजय का सामना करना पड़ा था। कांग्रेस ने उन्हें इस बार फिर अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है और वह दिन -रात इलाके में पसीना बहाकर अपनी खोई हुई सीट को पाने के लिए जूझ रहे हैं। लोगों का कहना है कि अगर शंटी भाजपा- अकाली उम्मीदवार हुए और प्रीती मैदान में डटी रही तो यह सीट इस बार कांग्रेस के खाते में जा सकती है। इस सीट पर आप पार्टी ने अपना  उम्मीदवार रामनिवास गोयल को बनाया है। ज्ञात हो कि गोयल पहले भाजपा में थे और 1993 में इसी क्षेत्र से विधायक चुने गए थे। विधायक रहते हुए गोयल का व्यवहार जनता तो जनता अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के प्रति भी अच्छा नहीं रहा। उन पर केस भी दर्ज़ हुए और अपने भाई के अनैतिक आचरण के कारण भी उनका दामन दागदार हो गया था। इसी कारण भाजपा ने उन्हें फिर कभी दोबारा   अपना  टिकट देना उचित नहीं समझा। लोगों में चर्चा है कि गोयल भले ही इस बार 'आप' उम्मीदवार हैं और अपनी  आर्थिक सम्पन्नता  के बल पर चुनाव में पैसा लगाएंगे, लेकिन उनका अतीत ही इस चुनाव में  उनकी हालत पतली करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा। आज की स्थिति में अगर इस क्षेत्र से भाजपा से शंटी ,कांग्रेस से नरेंद्र नाथ ,आप पार्टी से रामनिवास गोयल और निर्दलीय प्रीति के बीच मुकाबला होता है तो भाजपा के मुकाबले बाज़ी कांग्रेस के हाथ लग सकती है। 

Tuesday 30 December 2014

नव वर्ष 2015 आप सभी के लिए मंगलमय हो।यह वर्ष आपके और आपके परिवार के लिए विकासकारी और कल्याणकारी साबित हो।

आपके  व् आपके परिवार के लिए नव  वर्ष 2015 की हार्दिक शुभकामनाएं।          आप सभी  के लिए यह  वर्ष मंगलमय हो और  बहुत सारी खुशियां लेकर आए .आपकी दीर्घायु और उन्नति की कामना के साथ आपका शुभचिंतक  -अश्विनी भाटिया   

                                 


                                                                                                            
                                                                                                             

क्या हिन्दू धर्म की नरम सोच और सहनशीलता की प्रवृति ही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी मानी जा रही है ?

सेकुलरता के झंडाबरदार क्या इस बात का जवाब देंगे ? या सिर्फ हिन्दुओं को ही आसान शिकार बनाने की मानसिकता वालों को वोटों की राजनीती के तहत एकतरफा राग अलापने की ही बीमारी हो चुकी है ?कथित सेकुलर कीड़ों को अभिवक्ति की असली आज़ादी तो सिर्फ हिन्दुओं पर ही छींटाकशी करने की मिली हुयी है। आमिर खान हो या राजकुमार हिरानी और चाहे न्यूज़ चैनल पर अपना धंधा करनेवाले एंकर, सबके सब सिर्फ हिन्दुओं को ही सुधारने का ऐड़ी -चोटी का जोर  क्यों लगाये हुए हैं? ऐसा लगता है कि सारा अन्धविश्वास और पाखंड हिन्दू धर्म में ही समाया  हुआ है और मध्यकालीन बर्बरता का घिनौनी  हिंसक प्रवृति अपनाये हुए किताबी मजहब वाले बड़े पाक -साफ ईमानदार लोग हैं।हिन्दुओं की सहनशीलता और रहमदिली को आज उनकी कमजोरी माना जाने लगा है और दूसरे मजहब की निर्दयता व् हिंसक प्रवृति ही उनकी सबसे बड़ी  सुरक्षा की गारंटी बन चुकी है। इस बात पर हिन्दू समाज के झंडाबरदारों को भी सोचना पड़ेगा कि उनकी कमी कहां पर है और इसको कैसे सुधारा जाना चाहिए ?सिर्फ हिन्दुओं को धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ानेवाले सेकुलरवादी मुसलमानों को भी यह राग सुनाकर समझाएं तो पूरी मानवता का इससे बढ़कर और कोई भला नहीं हो सकता। क्या हिन्दू ही अंधविश्वासी हैं या हिन्दुओं पर कीचड़ उड़ेलना आसान है ?सेकुलरवादी इसका जवाब देंगे ?क्या हिन्दू धर्म की नरम सोच और सहनशीलता की प्रवृति ही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी मानी जा रही है ?

Saturday 27 December 2014

' निश्चय कर अपनी जीत करौं' गुरु गोबिंद सिंह ने जो बलिदान हिन्दूधर्म और संस्कृति की रक्षा हेतु दिया उसका ऋण हिन्दू समाज कभी नहीं उतार सकता।

 सवा लाख से एक लड़ाऊँ ,चिड़ियों से में बाज़ तड़ऊँ तबे गोबिंदसिंह नाम कहाऊँ. 

गुरु गोबिंद सिंह ने जो बलिदान हिन्दूधर्म और संस्कृति की रक्षा हेतु दिया उसका ऋण हिन्दू समाज कभी नहीं उतार सकता।हम इस महापुरुष ,महान संत ,कुशलयोद्धा और सर्ववंश बलिदानी गुरगोबिंद सिंह जी की जयंती पर उनके चरणों में अपना शत -२ नमन करते हैं।इनका जन्म पौष सुदी 7 वीं सन 1666 को पटना में माता गुजरी जी और पिता गुरु तेग बहादुर जी के घर हुआ।गुरुजी ने हिन्दू धर्म में व्याप्त कुरीतिओं, अन्धविश्वास ,पाखंड का भी जोरदार तरीके से खंडन किया और बैसाखी के दिन,1699आनंदपुर में खालसा पंथ की सर्जना करके लोगों को मानवता का सन्देश दिया। गुरूजी ने जहां एक ओर अपने पिता नौवें गुरु तेग बहादुर जी को कश्मीरी पंडितों की रक्षार्थ बलिदान देने को प्रेरित किया, वहीं अपने चारों पुत्र को भी धर्म की बलिवेदी पर कुर्बान कर दिया और वह खुद भी अपने जीवनपर्यन्त धर्म की स्थापना के लिए संघर्षरत रहे ।गुरु गोविंद सिंह जहां विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिंतक तथा कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की। वे विद्वानों के संरक्षक थे। उनके दरबार में ५२ कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता था। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय प्रतीक थे


      महाभारत काल में धर्म की स्थापना और अन्याय के विरुद्ध कुरुक्षेत्र के मैदान में युद्ध करने के लिए प्रेरित करते हुए भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को यह सन्देश दिया कि जब शांति के सारे द्वार बंद हो जाएँ तो और न्याय न मिले तो युद्ध करो।ठीक यही बात मुग़ल काल के दौरान जब इस्लामिक जनून की मानसिकता को पाले औरंगज़ेब जैसे आततायी शासक ने हिन्दुओं पर अत्याचार किए तो उसी समय गुरु गोबिंद ने धर्म के रक्षार्थ इस सन्देश को आत्मसात किया और इस आतंक व् अन्याय के विरुद्ध लड़ने का संकल्प लिया। औरंगज़ेब के बढ़ते जुल्मों और अत्याचारों से अपना मनोबल खो चुकी हिन्दू कौम में शेरों जैसे जोश का संचार किया और कहा कि सवा लाख से एक लड़ाऊँ चिड़ियों सों मैं बाज तड़ऊँ तबे गोबिंदसिंह नाम कहाऊँ।दसवें गुरु गोबिंदसिंह मूलतः धर्मगुरु थे। अस्त्र-शस्त्र या युद्ध से उनका कोई वास्ता नहीं था, लेकिन औरंगजेब को लिखे गए अपने 'अजफरनामा' में उन्होंने इसे स्पष्ट किया था- 'चूंकार अज हमा हीलते दर गुजशत, हलाले अस्त बुरदन ब समशीर ऐ दस्त।'


अर्थात जब सत्य और न्याय की रक्षा के लिए अन्य सभी साधन विफल हो जाएँ तो तलवार को धारण करना सर्वथा उचित है। धर्म, संस्कृति व राष्ट्र की शान के लिए गुरु गोबिंदसिंह ने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। इस अजफरनामा (विजय की चिट्ठी) में उन्होंने औरंगजेब को चेतावनी दी कि तेरा साम्राज्य नष्ट करने के लिए खालसा पंथ तैयार हो गया है।सिखों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा रचित देवी चण्डिका की एक स्तुति है। गुरु गोबिन्द सिंह एक महान योद्धा एवं भक्त थे। वे देवी के शक्ति रुप के उपासक थे।

यह स्तुति दशम ग्रंथ के "उक्ति बिलास" नामक विभाग का एक हिस्सा है। गुरुबाणी में हिन्दू देवी-देवताओं का अन्य जगह भी वर्णन आता है।'चण्डी' के अतिरिक्त 'शिवा' शब्द की व्याख्या ईश्वर के रुप में भी की जाती है। "महाकोश" नामक किताब में ‘शिवा’ की व्याख्या ‘ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ’ (परब्रह्म की शक्ति) के रुप में की गई है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भी 'शिवा' 'शिव' की अर्धांग्नी भवानी अर्थात  (ईश्वर) की शक्ति है।

देवी के रूप का व्याख्यान गुरु गोबिंद सिंह जी यूं करते हैं :
पवित्री पुनीता पुराणी परेयं ॥
प्रभी पूरणी पारब्रहमी अजेयं ॥॥
अरूपं अनूपं अनामं अठामं ॥॥
अभीतं अजीतं महां धरम धामं ॥३२॥२५१॥

  गुरूजी ने अकालपुरुष शिव जी की पत्नी शिवा अर्थात भवानी[शक्ति] से यह वर  माँगा कि 

देह शिवा बर मोहे ईहे, शुभ कर्मन ते कभुं न टरूं न डरौं अरि सौं जब जाय लड़ौं, निश्चय कर अपनी जीत करौं,अरु सिख हों आपने ही मन कौ इह लालच हउ गुन तउ उचरों,जब आव की अउध निदान बनै अति ही रन मै तब जूझ मरों ॥२३१॥ ਦੇਹ ਸਿਵਾ ਬਰੁ ਮੋਹਿ ਇਹੈ ਸੁਭ ਕਰਮਨ ਤੇ ਕਬਹੂੰ ਨ ਟਰੋਂ ॥

ਨ ਡਰੋਂ ਅਰਿ ਸੋ ਜਬ ਜਾਇ ਲਰੋਂ ਨਿਸਚੈ ਕਰਿ ਅਪੁਨੀ ਜੀਤ ਕਰੋਂ ॥ਅਰੁ ਸਿਖ ਹੋਂ ਆਪਨੇ ਹੀ ਮਨ ਕੌ ਇਹ ਲਾਲਚ ਹਉ ਗੁਨ ਤਉ ਉਚਰੋਂ ॥ਜਬ ਆਵ ਕੀ ਅਉਧ ਨਿਦਾਨ ਬਨੈ ਅਤਿ ਹੀ ਰਨ ਮੈ ਤਬ ਜੂਝ ਮਰੋਂ ॥੨੩੧॥ [

Thursday 25 December 2014

भारत की दो महान विभूतिओं - महामना मालवीय और अटलजी के योगदान को देश हमेशा याद रखेगा।इनके जन्मदिन पर शत -शत नमन।

दिल्ली [अश्विनी भाटिया ]  'भारत रत्न ' स्वर्गीय महामना मदन मोहन मालवीय  और पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेई  भारत के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान है।देश की सांस्कृतिक विरासत और राजनीती में विशेष योगदान है। इन दो महान विभूतियों का आज जन्मदिन है। हम समस्त देशवासी इनके देश के निर्माण और विकास में दी गई सेवायों के लिए हमेशा आभारी रहेंगें। इनके चरणों में हमारा शत -शत नमन। पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल जी के भारत के लोकतंत्र को मज़बूत करने और अपने नेतृत्व में भारत को विश्व का  एक परमाणु संपन्न शक्तिशाली राष्ट्र बनाने में महत्वपूर्ण योगदान है। 

 श्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म२५ दिसंबर१९२४को ग्वालियर में हुआ था।  वे पहले १६ मई से १ जून १९९६ तथा फिर १९ मार्च १९९८ से २२ मई २००४ तक भारत के प्रधानमंत्री रहे।वे भारतीय जनसंघ की स्थापना करने वालों में से एक हैं और १९६८ से १९७३ तक उसके अध्यक्ष भी रहे। वे जीवन भर भारतीयराजनीति में सक्रिय रहे। उन्होंने लम्बे समय तक राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। उन्होंने अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर प्रारम्भ किया था और देश के सर्वोच्च पद पर पहुँचने तक उस संकल्प को पूरी निष्ठा से निभाया। वाजपेयी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के पहले प्रधानमन्त्री थे जिन्होंने गैर काँग्रेसी प्रधानमन्त्री पद के 5 साल बिना किसी समस्या के पूरे किए। उन्होंने 24 दलों के गठबंधन से सरकार बनाई थी जिसमें 81 मन्त्री थे। कभी किसी दल ने आनाकानी नहीं की। इससे उनकी नेतृत्व क्षमता का पता चलता है।

           उल्लेखनीय है कि महामना मालवीय ने वाराणसी में पहलाकाशी  हिन्दू विष्वविधालय की स्थापना  सन् १९१६ में वसंत पंचमी के पुनीत दिवस पर की गई थी।यह एशिया का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय है। महामना मदन मोहन मालवीय (25 दिसम्बर 1861 - 1946) काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रणेता तो थे ही इस युग के आदर्श पुरुष भी थे। वे भारत के पहले और अन्तिम व्यक्ति थे जिन्हें महामना की सम्मानजनक उपाधि से विभूषित किया गया। पत्रकारिता, वकालत, समाज सुधार, मातृ भाषा तथा भारतमाता की सेवा में अपना जीवन अर्पण करने वाले इस महामानव ने जिस विश्वविद्यालय की स्थापना की उसमें उनकी परिकल्पना ऐसे विद्यार्थियों को शिक्षित करके देश सेवा के लिये तैयार करने की थी जो देश का मस्तक गौरव से ऊँचा कर सकें। मालवीयजी सत्य, ब्रह्मचर्य, व्यायाम, देशभक्ति तथा आत्मत्याग में अद्वितीय थे। इन समस्त आचरणों पर वे केवल उपदेश ही नहीं दिया करते थे अपितु स्वयं उनका पालन भी किया करते थे। वे अपने व्यवहार में सदैव मृदुभाषी रहे।कांग्रेस के निर्माताओं में विख्यात मालवीयजी ने उसके द्वितीय अधिवेशन (कलकत्ता-1886) से लेकर अपनी अन्तिम साँस तक स्वराज्य के लिये कठोर तप किया। उसके प्रथम उत्थान में नरम और गरम दलों के बीच की कड़ी मालवीयजी ही थे जो गान्धी-युग की कांग्रेस में हिन्दू मुसलमानों एवं उसके विभिन्न मतों में सामंजस्य स्थापित करने में प्रयत्नशील रहे। एनी बेसेंट ने ठीक कहा था कि"मैं दावे के साथ कह सकती हूँ कि विभिन्न मतों के बीच, केवल मालवीयजी भारतीय एकता की मूर्ति बने खड़े हुए हैं।श्री मालवीय जी का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष का कार्यकाल 1909–10; 1918–19; 1932-1933 तक रहा।हिन्दी के उत्थान में मालवीय जी की भूमिका ऐतिहासिक है। हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रथम अधिवेशन (काशी-1910) के अध्यक्षीय अभिभाषण में हिन्दी के स्वरूप निरूपण में उन्होंने कहा कि "उसे फारसी अरबी के बड़े बड़े शब्दों से लादना जैसे बुरा है, वैसे ही अकारण संस्कृत शब्दों से गूँथना भी अच्छा नहीं और भविष्यवाणी की कि एक दिन यही भाषा राष्ट्रभाषा होगी। "सनातन धर्म व हिन्दू संस्कृति की रक्षा और संवर्धन में मालवीयजी का योगदान अनन्य है।" जनबल तथा मनोबल में नित्यश: क्षयशील हिन्दू जाति को विनाश से बचाने के लिये उन्होंने हिन्दू संगठन का शक्तिशाली आन्दोलन चलाया और स्वयं अनुदार सहधर्मियों के तीव्र प्रतिवाद झेलते हुए भी कलकत्ता, काशी, प्रयाग और नासिक में भंगियों को धर्मोपदेश और मन्त्रदीक्षा दी। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रनेता मालवीयजी ने, जैसा स्वयं पं0 जवाहरलाल नेहरू ने लिखा है, अपने नेतृत्वकाल में हिन्दू महासभा को राजनीतिक प्रतिक्रियावादिता से मुक्त रखा और अनेक बार धर्मो के सहअस्तित्व में अपनी आस्था को अभिव्यक्त किया।

Monday 22 December 2014

त्याग और तपस्या की प्रतिमूर्ति एडवोकेट चौधरी शिवराज सिंह ''चौधरी साहब '' की 9 वीं पुण्यतिथि पर उनके चरणों में हमारा शत - शत नमन

कुछ चलते हैं पदचिन्हों पर ,कुछ औरों को राह दिखाते हैं।
हैं सूरमा वही इस धरती पर, जो पदचिन्ह नए बनाते  हैं।।

सादगी ,गंभीरता और समाज के हित में सोच की प्रवृति से ओत -प्रोत मानवीय मूल्यों के लिए किसी से भी समझौता न करनेवाले तवस्वी स्वर्गीय चौधरी शिवराज सिंह [एडवोकेट ] जी, आज के दिन 23 दिसम्बर ,2005 को इस लोक से अपनी जीवनयात्रा को पूर्ण करके परलोक धाम को चले गए। मेरे पिता तुल्य पूजनीय चौ. साहब के सानिध्य में मुझे कई वर्षों तक रहने और इस दुनिया को समझने ,जीने का अवसर मिला है। वो आज बेशक भौतिक रूप से हमारे साथ नहीं हैं, लेकिन अदृश्य रूप से अपनी मधुर स्मृतियों के साथ  हमारे मन -मष्तिक में हमेशा बने रहेंगे। आज भी जीवन की राह में आनेवाली कठिन परिस्थितिओं की  तपिश में उनका आशीर्वाद मुझे हवा के शीतल झोंके का अहसास करवाता रहता है ,जो मेरे को हर विकट और प्रतिकूल  परिस्थिति का और भी अधिक हौंसले के साथ सामना करने का साहस प्रदान करता है। मैं  आज उनकी 9 वीं पुण्यतिथि पर उनको अपना शत -२ नमन करता हूँ।मैं  ईश्वर से और दिवंगत आत्मा से भी यह प्रार्थना करता हूँ कि वह अपना स्नेह और आशीर्वाद हम पर हमेशा बनाये रहेंगे। 

            चौ. साहब नाम से पहचाने जानेवाले शिवराज जी ने हमेशा समाज कल्याण की सोच और मानवीय दृष्टिकोण को अपने से अलग नहीं होने दिया।  चौ. साहब लम्बे समय तक किसान नेता चौधरी चरण सिंह के निकट सहयोगी रहे और आपात्तकाल [ 1975 -1977 ] के दौरान  कारागार में भी रहे,लेकिन उन्होंने अपने सिद्धांतों से कोई समझौता नहीं किया।  उन्होंने आपात्तकाल के बाद 1977 के आम चुनाव में  जनता पार्टी के टिकट पर  लोकसभा सीट पर लड़ने के चौधरी चरणसिंह के  प्रस्ताव को स्वीकार न करके अपने निस्वार्थ सेवा भाव का जो अनूठा उदाहरण समाज के सामने रखा वह अतुलनीय है। उनके व्यक्तित्व का यह पक्ष  उनके अंतरमन में आसीन एक ऐसे तपस्वी का दर्शन समाज को करवाता है जो सिर्फ इस जीवन में त्याग की भावना को लेकर अपने कर्म मार्ग पर चलने में विश्वास रखता है।उनके सानिध्य में रहकर उन्होंने असंख्य अधिवक्ताओं को  क़ानूनी दांवपेंच बेशक सिखाये हों, परन्तु इसके साथ -२ उन्होंने समाज के  कमजोर और असहाय लोगों की सहायता करने की सीख भी दी। उनके पुत्र प्रवीण चौधरी वर्तमान में एक सफल अधिवक्ता हैं और शाहदरा बार एसोसिएशन के सचिव के रूप में कार्यरत हैं। स्वर्गीय चौधरी साहब के श्री चरणों में हमारा पुनः  शत -२ नमन।

Saturday 20 December 2014

क्या भारत में सिर्फ मुस्लिम और ईसाई संगठनों को ही धर्मांतरण का अभियान चलाने का अधिकार है ? सेकुलरता के झंडाबरदार इस सवाल का जवाब देंगे ?

 देश से काटकर अलग कर दिए गए इलाके हमारे हैं और भारत इनको लेकर रहेंगे ,यह हर भारतीय का संकल्प ही नहीं धर्म भी है। यह बात बिलकुल सही है  जो भूमि भारत की है और जो हमारे नपुंसक लीडरों के कारण  अतीत में देश से काटकर  हमारे से अलग कर दी गयी उस पर हमारा हक़ है और हम इसको हर हाल में लेकर ही रहेंगे। यह हमारा संकल्प है और हर भारतीय का यह धर्म भी है .जो लोग आज देश में धर्मांतरण को लेकर हो हल्ला मचा रहे हैं उन्हें न तो भारत से प्रेम है और ना ही इस देश के लोगों की सुरक्षा का कोई लेना -देना  है। यह लोग और दल सिर्फ और सिर्फ सत्तालोलुप हैं और वोटों की खातिर अपने देश की अस्मिता ,लोकतंत्र ,एकता और सुरक्षा को भी नज़रअंदाज़ कर रहे हैं .हम आरएसएस के प्रमुख श्री मोहन भागवत जी की बात का पूर्ण समर्थन करते हैं। इस बात का सभी को भली -भांति समझ लेना चाहिए  कि भारत में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता तभी तक कायम है जब तक यहां हिन्दू बहुसंख्यक हैं जिस दिन भी मुसलिम बहुमत में आ गए वो दिन इस देश से लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के लिए अंतिम दिन होगा ,इस बात का प्रमाण अफगानिस्तान ,पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे दुनिया के अनेक देश हैं। जहां भी  इस्लाम बहुमत में आया और वहां से लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता का जनाज़ा उठ गया .सेकुलरता का राग अलापने वाले नेताओं को यह भलीभांति जानकारी है कि उनकी आवाज़ भी तभी तक निकल रही है जब तक भारत में हिन्दुबाहुलता है अन्यथा सीरिया ,इराक़ ,पाकिस्तान और साऊथ अफ्रीका के कई मुस्लिम ताकतों के आतंकी जेहादियों की चपेट में आने के बाद वहां किस तरह से मानवता का लहू बहाया जा रहा है।.आश्चर्य कि बात यह है कि यह सारा खून -खराबा अल्लाह के सन्देश को फ़ैलाने के नाम पर किया जा रहा है। अभी पेशावर में स्कुली बच्चों के नरसंहार की घटना इसका सबसे ताज़ा उदहारण है।यह भी सत्य है कि आदिकाल से भारत और हिन्दुओं पर ही हमला हुआ है और जबरन हिन्दुओं को ही मुस्लिम और ईसाई बनाया गया। अगर आज यह भूले -भटके हिन्दू अपने मूल धर्म में लोटना चाह रहे हैं तो हो -हल्ला क्यों ?क्या अपने धर्म और मजहब का विस्तार और फैलाव करने का एकआधिकार सिर्फ मुसलमानो और ईसाई मिशनरी को ही है ?वो भी लालच ,लोभ ,गुमराह और बलात करके जबकि हिन्दू संगठन ऐसी कोई मानसिकता नहीं रखते। इस पर भी अगर कथित सेक्युलर लोग शोर -शराबा करते हैं तो वह सिर्फ अपने वोटों को खोने के अज्ञात भय के कारण ऐसा कर रहे हैं। अगर वास्तव में ही यह सेक्युलर लोगों को भारत के  धर्मनिरपेक्ष स्वरूप  की चिंता होती तो यह कश्मीर में जबरन पंडितों को मुसलमान बनाने और केरल , उड़ीसा व् उत्तर पूर्वी भारत के आदिवासी इलाकों में ईसाई मिशनरी द्वारा बड़ी मात्र में गरीब लोगों को गुमराह और लोभ देकर हिन्दू धर्म से पलायन करने की करतूतों पर भी इसी तरह हो -हल्ला करते ,लेकिन उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया ?इसका जवाब इन कथित सेक्युलर लोगों और लीडरों से हिन्दू समाज को पूछने का पूरा अधिकार है।


Tuesday 25 November 2014

' हिन्द दी चादर ' नौवें गुरु तेगबहादुर जी दे बलिदान दिवस [24 नवम्बर ] ते उनके चरणों में शत -2 नमन । समस्त हिन्दू समाज सदा -सदा इस महान और पुण्य आत्मा का ऋणी रहेगा।

दाता गुरु तेगबहादर , कहंदे जिसनु  हिन्द दी चादर  दिल्ली जा सीस वारिया ,पंडितां दा वेख निरादर। ' हिन्द दी चादर ' नौवें गुरु तेगबहादुर जी दे  बलिदान दिवस [24 नवम्बर ,1675]पर उनके चरणों में हमारा शत -2 नमन। गुरूजी ने मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब की मुस्लिम कटटरता और हिन्दुओं पर किये जाने वाले अत्याचार के विरुद्ध  अपना बलिदान दे दिया। गुरूजी ने पंडितों के अपमान से विचलित होकर अपना सीस दिल्ली में धर्म के रक्षार्थ अपना सीस देकर जो उपकार किया उसका हिन्दू धर्म और उसके अनुयायी हमेशा ऋणी रहेंगे। गुरु जी का जन्म 1 अप्रैल ,1621 को अमृतसर में श्री त्यागमल जी के यहां हुआ था। विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय है।

"धरम हेत साका जिनि कीआ
सीस दीआ पर सिरड न दीआ।"
इस महावाक्य अनुसार गुरुजी का बलिदान न केवल धर्म पालन के लिए नहीं अपितु समस्त मानवीय सांस्कृतिक विरासत की खातिर बलिदान था। धर्म उनके लिए सांस्कृतिक मूल्यों और जीवन विधान का नाम था। इसलिए धर्म के सत्य शाश्वत मूल्यों के लिए उनका बलि चढ़ जाना वस्तुतः सांस्कृतिक विरासत और इच्छित जीवन विधान के पक्ष में एक परम साहसिक अभियान था।

आततायी शासक औरंगज़ेब की धर्म विरोधी और वैचारिक स्वतंत्रता का दमन करने वाली मस्लिम कटटरता और कठमुल्लेपन फिरकापरस्त नीतियों के विरुद्ध गुरु तेग बहादुरजी का बलिदान एक अभूतपूर्व ऐतिहासिक घटना थी। यह गुरुजी के निर्भय आचरण, धार्मिक अडिगता और नैतिक उदारता का उच्चतम उदाहरण था। गुरुजी मानवीय धर्म एवं वैचारिक स्वतंत्रता के लिए अपनी महान शहादत देने वाले एक क्रांतिकारी युग पुरुष थे।  गुरुजी ने धर्म के सत्य ज्ञान के प्रचार-प्रसार एवं लोक कल्याणकारी कार्य के लिए कई स्थानों का भ्रमण किया। आनंदपुर से कीरतपुर, रोपण, सैफाबाद के लोगों को संयम तथा सहज मार्ग का पाठ पढ़ाते हुए वे खिआला (खदल) पहुँचे। यहाँ से गुरुजी धर्म के सत्य मार्ग पर चलने का उपदेश देते हुए दमदमा साहब से होते हुए कुरुक्षेत्र पहुँचे। कुरुक्षेत्र से यमुना किनारे होते हुए कड़ामानकपुर पहुँचे और यहाँ साधु भाई मलूकदास का उद्धार किया।

यहाँ से गुरुजी प्रयाग, बनारस, पटना, असम आदि क्षेत्रों में गए, जहाँ उन्होंने लोगों के आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक, उन्नयन के लिए कई रचनात्मक कार्य किए। आध्यात्मिक स्तर पर धर्म का सच्चा ज्ञान बाँटा। सामाजिक स्तर पर चली आ रही रूढ़ियों, अंधविश्वासों की कटु आलोचना कर नए सहज जनकल्याणकारी आदर्श स्थापित किए। उन्होंने प्राणी सेवा एवं परोपकार के लिए कुएँ खुदवाना, धर्मशालाएँ बनवाना आदि लोक परोपकारी कार्य भी किए। इन्हीं यात्राओं के बीच 1666 में गुरुजी के यहाँ पटना साहब में पुत्र का जन्म हुआ। जो दसवें गुरु- गुरु गोबिन्दसिंहजी बनें।  गोबिंद सिंह जी ने अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए मुग़ल शासकों की धार्मिक कटटरतावादी और हिन्दू धर्म विरोधी नीतिओं के विरुद्ध सशत्र संघर्ष किया। उनके 4 पुत्र धर्मयुद्ध में बलिदान हो गए और उन्होंने भी अपना जीवन धर्म की स्थापना और मानवीय मूल्यों के लिए न्यौछावर कर दिया। इन तीनों पीढ़ियों के बलिदान का समस्त हिन्दू समाज सदा -सदा ऋणी रहेगा। इन महान आत्माओं के चरणों में हम हमेशा नतमस्तक रहने का प्रण लेते हैं।



Thursday 20 November 2014

Kya Rampal jaise Pakhndi aur Dhaungi Baba Snatan Dharam ko khokhla karke Hinduon Ki bhavnaon se khilwad nahi kar rahe ?


Hinduon ki vidmbna yhi hai ki vah har Pakhndi aur Dhurt ko Baba -Sant mankar uske aage natmastak ho rahe hein aur unki esi andh aastha ka nazayaz fayda Rampal jaise pakhandi dhurt log uthane mein lage huye hein .Bahut sare thhag apne ko Bhagwan ka Avtar btakar logon se apni puja aur aarti utrwane mein lage huye hein .Pakhandi aur Thhag Baba logon ko esiliye gumrah kar lete hein kyonki Hindu apne Devi -Devtaon aur Ram -Krishan avtaron se jyada vishwas en dhaungi babaon aur tantrikon mein karne lage hein aur esi ka labh rampal jaise log uthha lete hein .Hinduon ko apni soch ko badlna chahiy aur apne Devi -Devtaon aur Avtaron mein vishwas rakhna chahiy naki Dhaungi ,Pakhndi Babaon aur Tantrik mein. En thhagon ke aage apni samsyaon ke liye apna matha ragdhne se koi fayda nahi honewala ,es bat ko Hindu Smaz aur Visheshkar Hmari Mata -Bahne avshy jan len .Yh Pakhndi bhole -bhale aur dukhi logon ki bhavnaon se khilwad karke unki dhan -daulatllot rahe hein aur dharambhiru mahilon ki asmattak  ko bhi lootne se baz nahi aa rahe .Yh Pakhndi Khud ko Bhagwan hone ka dawa karke Snatan Dharam ko khokhla aur Hinduon ko unki jadhon se katne ke shadyantr mein din -rat lage hein aur eska sabse jita -jagta udhaharn Rampal hai

Thursday 13 November 2014

भारत का बंटवारा स्वीकार करके दुनिया में आतंकवाद के जनक पाकिस्तान नामक दानव को अस्तित्व में लानेवाले और कश्मीर समस्या को नासूर बनानेवाले नेहरू आधुनिक भारत के निर्माता कैसे हो सकते हैं ?

आजादी के उपरांत प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को आधुनिक भारत का निर्माता बताना कहां तक सही है ?क्या हमें इस बात का जवाब नहीं मिलना चाहिय कि भारत का बंटवारा करने के लिए जिन्ना के साथ -2 नेहरू भी बराबर के दोषी क्यों नहीं थे ? देश को आज़ादी के साथ बंटवारे का गहरा जख्म देने के जिम्मेदार लोग आधुनिक भारत के निर्माता कैसे हो सकते हैं ? पंजाब और बंगाल की बर्बादी के लिए क्या हम नेहरू को दोषी ठहरा सकते हैं ? क्या 1947 को  टूटने से नहीं बचाया जा सकता था अगर यह आवश्यक हो गया था तो पाकिस्तान का एक छोर पश्चिम और दूसरा छोर पूर्व में बनाने के पीछे बंटवारे में लगे नेताओं की किस सोच का परिणाम था ? क्या यह पंजाबियों और बंगालियों को विभाजित करके आज़ाद भारत में कमज़ोर बनाने की सोची -समझी रणनीति का हिस्सा नहीं माना जा सकता ? बंटवारे के उपरांत भी पंजाब को तीन टुकड़ों में बाँटना और उत्तरप्रदेश जैसे विशाल भूभाग और आबादी वाले राज्य को एकजुट बनाये रखने के पीछे नेहरू और कांग्रेस की कौनसी रणनीति थी ? पंजाब को पूरी तरह से बर्बाद करने के बाद भी नेहरू के बाद उनकी सपुत्री इन्द्रा गांधी और कांग्रेस ने पंजाब के एक ही माँ की 2 संतानो -हिन्दू -सिखों को एक दूसरे के खिलाफ शत्रु बनाकर खड़ा करने की कोई कोर -कसर बाकि नहीं छोड़ी। क्या यह नेहरू का पंजाबियों के प्रति कौन सा स्नेहपूर्ण रवैय्या था, जिसे उनकी मौत के बाद भी उनकी सपुत्री और उनकी प्यारी पार्टी कांग्रेस ने भी नहीं छोड़ा ?पार्टिशन के दौरान लगी साम्प्रदायिक आग ने लगभग 10 लाख अभागे हिन्दू -मुस्लिमों की जिंदगी को लील लिया था और करोड़ों लोगों को देश की अपना घर -बाहर छोड़ कर अपने ही देश में शरणार्थी बनकर आजादी की कीमत चुकाने को विवश कर देने वाले आदरणीय जवाहर लाल नेहरू और कांग्रेस कैसे आधुनिक भारत की निर्माता है? इस बात का जवाब क्या सोनिया गांधी और उनके सपुत्र राहुल गांधी या उनकी चारण मण्डली के पास है ?क्या कश्मीर के एक तिहाई भाग पर पाकिस्तान के अधिपत्य में 1948 में चले जाने और बाकी बचे कश्मीर को आज तक नासूर बनाने के लिए पंडित नेहरू की वैज्ञानिक सोच और नीतियों का परिणाम नहीं है ? सन 1962 में चीन के हाथों भारत को बुरी तरह से लहूलुहान करवाने और तिब्बत जैसे एक बड़े भूभाग पर चीन के अधिपत्य को स्वीकार करनेवाले नेहरू किस तरह से आधुनिक भारत के निर्माता हैं ,इसका जवाब कौन देगा ? भारत के एक तिहाई भूभाग पर पाकिस्तान रूपी इस्लामिक देश जो आतंकवाद का जनक है और पूरी दुनिया के लिए खतरा बन चूका है ,ऐसे दानव को अस्तित्व में लानेवाले लोग चाहे वो नेहरू हो ,जिन्ना हो, अँगरेज़ हों या फिर देश को आज़ादी दिलाने का दम्भ भरनेवाली कांग्रेस न तो भारत के न ही दुनिया के और न ही मानवता के हितैषी हो सकते हैं ?  

Friday 31 October 2014

क्या खालिस्तान आंदोलन के दौर में आतंकवादियों द्वारा मारे गए हिन्दुओं के परिवारों को मुआवज़ा और इंसाफ देगी मोदी सरकार ?

 कथित खालिस्तान आंदोलन के दौरान [१९७९-१९८४ ]में पंजाब और पंजाब से बाहर  आतंकवादियों द्वारा असंख्य बेकसूर हिन्दुओं को मौत के घाट उतार दिए गए लोगों के परिवारों को मुवावजा और इंसाफ अभी तक नहीं मिला है। क्या देश की  नरेंदर मोदी सरकार इन अभागे परिवारों के दर्द को समझेगी और इनके गहरे जख्मों पर मुआवज़े का मरहम लगाएगी ? क्या देश में आतंकवाद या दंगों के शिकार पीड़ितों को मजहब के आधार पर सरकार द्वारा राहत और इंसाफ देना किसी भी तरह से न्यायसंगत है ? क्या प्रधानमंत्री मोदी को इस ओर ध्यान नहीं देना चाहिये ?आप अपनी राय दें -https://www.facebook.com/ashwani.bhatia.737

Monday 18 August 2014

कृष्ण नीति से ही होगी राष्ट्र और मानवता की रक्षा। इसको अपनाने से मिलेगी आतंक से मुक्ति।

 विश्व के महान दार्शनिक , कुशल रणनीतिकार ,कुटनीतिज्ञ ,अन्याय के विरुद्ध महाभारत के शंखनाद करनेवाले और मानवजाति को अपने कल्याण की राह  बताने वाले पवित्र ग्रंथ गीता के रचियता भगवान  श्री कृष्ण के जन्मदिवस 'श्री कृष्ण जन्माष्टमी ' पर हमारी ओर से सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।आज इस अवसर पर हमें भगवन श्री कृष्ण की इस नीति को कि ''अन्याय और अधर्म पर चलनेवालों को समाप्त करने के लिए चाहे हमें साम  -दाम -दंड -भेद किसी भी नीति को अपनाना पड़े अपनाना ही धर्म है।'' इस अवसर पर इस बात पर विचार करना भी आवशयक समझता हूँ कि  क्या हमने विशेषतौर से हिन्दुओं ने कभी अपने अवतारों राम -कृषण की पूजा करने के अलावा उनकी दिखाई गई राह पर चलने और उनके द्वारा दिए गए सन्देश को अपने जीवन में उतारने की कौशिश की है ? विश्व की सबसे पुरातन सभ्यता और अपनी धर्म -संस्कृति की पूंजी की विरासत के स्वामी होने के बावजूद आज दुनिया में हमारी पहचान सबसे कायर और डरपोक धर्म के अनुयायिओं की क्यों बनी हुयी है ? इसका कारण यह है कि जबसे हमने अन्याय और अधर्म को सहने की आदत बना ली है और संकट के समय लड़ने की बजाय भगवान से चमत्कार की आस लगाने की प्रवृति को अपने मन -मस्तिष्क में बैठा लिया है तबसे हमारी हालत दयनीय और कमजोर धर्म अनुयायिओं की बन गई है। एक बात और,शायद हमारे भगवानों ने भी यह समझ लिया है कि उनके भक्त अब विपरीत परिस्थितियों से लड़ने की बजाय चमत्कारों की आस करने लगे हैं ,इसीलिए उन्होंने हमारी मदद करनी भी बंद कर दी है।यह बात हमें समझ में क्यों नहीं आ रही कि  'दुनिया में सिर्फ ताकतवर के कुत्तों की भी पूजा होती है और कायरों का देवता भी अपमानित होता है।' हमने अपने अवतारों की पूजा तो की परन्तु उन पर विश्वास नहीं किया। इसका प्रमाण हिन्दुओं का बड़ी संख्या में  कब्रों -मज़ारों पर माथा रगड़ना की होड़ और मुल्ला -मौलविओं ,पाखंडी बाबाओं और ज्योतिषों के चक्कर में पड़कर अपनी दुविधाओं से मुक्ति का मार्ग ढूंढ़ना। यही है हिन्दुओं की बिगड़ती और कमजोर होती स्थिति का असली कारण। हमने अपने अवतारों को पूजने में ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली और उनके बताये रास्तों पर चलने से तौबा कर ली क्यों ?क्या हमारे अवतारों ने अपने काल में  अधर्मियों और अत्याचारियों के विरुद्ध शस्त्र नहीं उठाये और उनका समूल नामोनिशान धरती से नहीं मिटा दिया। हमने अपने इन अवतारों को इसी कारण भगवान माना और उनकी मूर्तियां बनाकर मन्दिरों में स्थापित करके पूजना तो शुरू कर दिया और अपने सभी संकटों से बचने का भार उनपर डाल कर अपने को सुरक्षित मान लिया।जिस कारण हमने इन अवतारों को भगवान माना भूलवश उसी कारण को अनदेखा कर दिया और यहीं से हम अपनी  राह से ऐसे भटके  कि 1000 साल गुलाम रहने के उपरांत भी  आज भी सही राह नहीं ढूंढ सके। हमने विपरीत परिस्थितियों में अपने दुश्मनों से लड़ने की बजाय अपने देवताओं की मूर्तियों के आगे गिड़गिड़ाना सीख लिया और हमेशा ही हारते रहे।हमने भगवान से अपनी रक्षा की गुहार की और चमत्कार करने का आह्वान किया और खुद उठकर लड़ने की हिम्मत न करके अपने अवतारों के कर्म करने के सन्देश को भूल कर अपने को पराजय के हवाले कर दिया। हमें धार्मिक शिक्षा देनेवाले धर्माचार्यों ने भी हमें सिर्फ रासलीला और बंसी की तान सुनने तक सिमित कर दिया।हमारे धर्माचार्यों और कथावाचकों ने हमें कुरुक्षेत्र में महाभारत के दौरान निराश हताश हो चुके  अर्जुन को अधर्म -अन्याय के विरुद्ध हथियार उठाकर लड़ने का आह्वान करनेवाले श्री कृष्ण से मिलने ही नहीं दिया , इसी धार्मिक - शिक्षा की वजह से यह गौरवशाली और शक्तिशाली खुद को राम- कृष्ण की संतान माननेवाली हिन्दू जाति एक हज़ार साल तक मुट्ठी भर विदेशी और लुटेरे आक्रान्ताओं की  गुलाम बन कर अपमानित होकर,जीने को विवश हो गयी। हमने भी अपने अवतारों  के जीवन चरित्र से अन्याय और राक्षसी शक्तियों से लड़ने की प्रवृति को छोड़कर सिर्फ रासलीला और रामलीला देखने तक सिमित करके अपने भगवानों को भी शर्मशार ही किया है। हमने अहिंसा और उदारता का जो आवरण ओढ़ रखा है क्या वो हमारी कायरता और लड़ने से बचने की प्रवति को छुपाने की कौशिश मात्र नहीं है ? सिर्फ भगवान श्री कृष्ण की पूजा करके और उसके जन्मदिवस पर मंदिरों को सजाकर क्या हम उनके [श्री कृष्ण ]द्वारा अपने पवित्र गीता ग्रंथ के रूप में दिए गए कर्म के सन्देश को न मानकर अपने भगवान का अपमान नहीं कर रहे ? अपने अवतारों को पूजने की बजाय हमें उनके दिखाए रास्ते पर चलने से संकोच क्यों है ? आज हमारेराष्ट्र और संस्कृति के सामने जो भी समस्याएं मुंह बाये खड़ी हैं उन सब का एक ही उपाय है और वह यह है कि हम श्री कृष्ण की बताई राह को अपना लें। इसको अपनाने से ही मानवता और राष्ट्र -धर्म की रक्षा तो होगी ही साथ ही साथ आतंकवादी ताकतों का भी समूल नाश इस धरती से हो जायेगा। जन्माष्टमी के इस पावन पर्व पर हम अगर इस उपरोक्त उपाय को मैंने का प्रण कर लें तो इससे बढ़कर कोई कृष्ण -भक्ति नहीं हो सकती। जय श्री कृष्ण। 


Saturday 16 August 2014

Bharat ke Bantware Aur Lakhon Bekasur Logon ki Maut ke Jimmedar Log Hi Aazad Bharat -Pakistan Ke Masiha Ban Gaye




Hakumat panewalon ki lalsa ka shikar krodo log jinhe aazadi
 ki kimat ke liye apne ghr -bahr chhoaudkar anjan rahon prnikalne
ko mazboor kar diya gya

Vo Badnaseeb jo aazadi ki saudebazi  ke karan mare gaye

 Bharat ke 68 th Swadhinta Diwas ki bhut -2 bdhai .kya humne kabhi es bat ko socha ki es din ko pane ke liye kitne logon ne apni jan ko desh pr kurban kar diya ?Shayad yh hmari kalpna se bhi dur ki bat hai ki azadi ke liye aise lakhon gunam log jinhe etihas ke kisi page par bhi koi jgah nahi mili hai.eske sath -2 ek bat aur hai ki jhan Bharat aur Pakistan ki hakumat ko panewale  leader khushi mnane mein vyast ho gaye vhin Desh ke krodon logon ko apne gharon se bahar hona pdha tha ,en logon  ko azadi ki ek  bhaynk aafat ne gher liya aur enke aage maut nachne lgi .Ek hi jamin pr sadiyon se rahnewale log majhbi aadhar par ek -dusre ko marne pr jut gaye .Insaniyat ne Shaitaniyat ka chola phan liya aur dono aur bachhon-budhon ladkiyon - aurton kakhun bhanelga .asankhy mahilayon ki ezzat ko lootkar maut ke ghat utar diya gya .Bharat ka bantwara duniya ki aisi pahli trasdi thi jismen lagbhag 10 lakh begunah logon ka katal kar diya gya .Es katle -aam ka koi doshi tha to vah us vaqat ke leader the chahe vo Muslim Leeg ke hon chahe Congress ke vo leader  hon jo hakumat ko  jaldi pane ki lalsa mein insaniyat ko shaitano ke hwale karke jshan-e-aazadi mein doob gaye. Es aazadi ko dekhne keliye Bharat Ma ka seena chir diya gya aur uske aanchal mein palnewale uske beton ne aaps mein ek -dusare ka khoon bhakar apne ko aazad hone ka jshan mnaya . Bharat Ma ke asankhy bete - betiyon ne apne prano ki ahuti di hai ,un sabhi shahidon ke charno mein Hmara - Hmara shat - shat naman  hai .Jin lakhon  bekasur logon ko 1947 mein Bharat Ke bantware ke dauran maut ke ghat utar diya gya ,un logon ke prano ki aahuti dene par hi  humen yh  Azadi  mil payi hai lekin Aazad Bharat ki sarkaron ne un logon ko bhula diya hai yh ek afsos janak pahlu hai . Hum bantware ki trasdi ka shikar huye lakhon logon-Bachho- ladkiyon -mahilayon -jwano aur budhon ko bhi apni shradhanjli arpit karte hein .Hindustan ko do hisso mein bantne ke aur lakhon logon ke katal ke liye jitni jimmedar muslim League hai utne hi jimmedar congress ke vo leader bhi hein jinhe kursi pane ki lalsa ne andha bna diya tha ki unhen lakhon bekasur logon ki jan aur krodon logon ko gharon se beghar karne ki kimat par bhi sasti lagi aur vo  hi log Aazd Hindustan  or Pakistan ke Masiha ban gaye .Kya es bhayanak sachhai se humne Bhart -pakistan ke logon ne koi sabak liya ? Eska jwab nahi mein hi milta hai . -Jai Hind 

Saturday 9 August 2014

रक्षाबंधन की सार्थकता तभी है जब हम अपनी बहन -बेटियों की आबरू और सम्मान की रक्षा करने के वचन को पूरा कर पाएं।

रक्षा बंधन हर वर्ष आता है और हम अपनी बहनों से रक्षा सूत्र अपने हाथ में बंधवाकर उसकी रक्षा करने का वचन उसको देते हैं। हमारे इस वचन से हमारी बहन को भी यह विश्वास हो जाता है कि समाज में कोई ऐसा है जो उसको मुसीबत के समय में उसकी पुकार को सुनकर अवश्य उसकी मदद को दौड़ा - २ आ जायेगा। इसी विश्वास को कायम रखने का संकट आज उठ खड़ा हुआ है। आज हमारी बहन -बेटियों की आबरू खतरे में है और हम सिर्फ रक्षाबंधन की औपचारिकता को पूरा करने में लगे हुए हैं। क्या हमें इस पवित्र त्यौहार की मूल भावना को समझते हुए अपनी बहन -बेटियों को दिए वचन को पूरा करने के लिए नहीं सोचना चाहिय ? अगर  ऐसा कर पते हैं तो इस त्यौहार और हाथ में बहन से बँधवानेवाले रक्षा - सूत्र की महत्ता है अन्यथा यह एक औपचारिकता मात्र है। 

Thursday 7 August 2014

लोगों में सपा सरकार के एकपक्षीय रवैये को लेकर तो गुस्सा है ही साथ ही केंद्र की मोदी सरकार की ख़ामोशी से भी लोगों को निराशा उत्पन्न हो रही है।

 नरेंदर मोदी को देश की जनता ने अपना अपार समर्थन देकर उनको देश की बागडौर इसलिए सौंपी थी कि उनकी सरकार के रहते लोगों की बहन  -बेटियों और उनकी जान -माल को खतरा नहीं रहेगा।उत्तरप्रदेश के हालात ऐसे हो गए हैं कि देश में साम्प्रदायिक असंतोष फ़ैल रहा है जो किसी बड़ी अशांति और दंगे का कारण बन सकता ,लेकिन केंद्र में स्थापित मोदी सरकार की चुप्पी से लोगों में  घोर निराशा का भाव भी पैदा होता जा रहा है जोकि न तो बीजेपी और न ही समाज और देश के हित में होगा।सिर्फ  कानून -व्यवस्था को राज्य सरकार की जिम्मेदारी बताकर मोदी सरकार देश की जनता को चुनाव के समय 'अच्छे दिन लाने ' के वायदे को पूरा करने और लोगों को सुरक्षा देने की अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकती।आदरणीय मोदी जी देश की जनता को सबसे पहले अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा की दरकार आपकी सरकार से है और विकास के सपने बाद की बात है।बहुत ही अफ़सोस है कि उत्तरप्रदेश की सपा सरकार की एकपक्षीय नीति और मुस्लिमतुष्टीकरण की दूषित मानसिकता के कारण प्रदेश में कानून का राज समाप्त हो गया लगता है और जनता देश के प्रधानमंत्री मोदी की तरफ टकटकी लगाये देख रही है कि वे उनके लिए कुछ करेंगे, परन्तु मोदी जी हैं कि कुछ बोलने को ही तैयार नहीं हैं क्यों ?पहले कश्मीर में अमरनाथ यात्रा के लंगरों को वहां के मुस्लिम कट्टरपंथियों और अलगाववादियों ने सरेआम लूट लिया और तम्बुओं को आग के हवाले करके हिन्दुओं की पवित्र यात्रा को बाधित कर दिया, लेकिन केंद्र सरकार सिर्फ वहां की सरकार से रिपोर्ट मांगकर ही अपने कर्तव्यश्री की पूर्ति मानकर बैठ गयी, क्यों ?उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में रमजान के दिनों में मंदिर से जबरन लाउडस्पीकर हटवाने की घटना के कारण वहां हिन्दू समुदाय में जब रोष पैदा हुआ तो भी सपा सरकार ने तो उनका दर्द नहीं सुना और केंद्र ने भी हिन्दुओं की कोई पुकार नहीं सुनी, क्यों ?इसके बाद सहारनपुर में गुरद्वारे के निर्माण को रुकवाकर मुस्लिमकट्टरपंथीओं ने जो लूटपाट ,आगजनी और मारकाट की उस घटना परभी सपा सरकार का रवैया तो एकतरफा रहा ही ,लेकिन मोदी सरकार भी लोगों को सुरक्षा का अहसास करवाने में कोई ठोस कदम नहीं उठा पाई ,क्यों ?अब मेरठ के खरखौदा के एक गॉव की एक  युवती का अपहरण करके मदरसे में गैंगरेप करके और उसका जबरन धर्म परिवर्तन करवाने की गंभीर घटना घटित होने से वहां भी साम्प्रदायिक तनाव फ़ैल गया है। स्थानीय पुलिस - प्रशासन ने फिर पीड़ित लोगों की पीड़ा को न समझते हुए अपने आकाओं की चिर -परिचित नीति' एक समुदाय की तुष्टि' के अनुरूप अपना रवैया ही अपनाया। लोगों को धर्म के आधार पर बांटकर समाजवादी लबादा ओढ़े मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सरकार किसी भी तरह से जनता के साथ एक जैसा व्यवहार नहीं कर रही।लोग इस नाकारा ,लकवाग्रस्त सरकार से मुक्ति चाहते हैं और लोगों की भावनाओं को केंद्र की मोदी सरकार को समझना ही होगा। इसी सरकार के मुख्यमंत्री के चाचा और सपा के बड़े  नेता रामगोपाल यादव की बेशर्मी तो हद से भी आगे निकल गयी है ,वह कहते हैं कि कुछ नहीं हुआ। महिलाओं और लड़कियों की इज्जत को सुरक्षित रखने में सपा सरकार बिलकुल नाकाम साबित हुयी है। सपा सरकार ने मुज्जफर नगर के दंगों के बावजूद अभी तक यह नहीं समझा कि अगर किसी समुदाय की बहन -बेटियों की लाज को दूसरा समुदाय तार -२ करेगा और पुलिस प्रशासन हाथ पर हाथ धर कर बैठा रहेगा तो परिणाम कभी अच्छे नहीं होंगे। समाज में दंगे और हिंसा ही फैलेगी और लोगों में सरकार के प्रति अविश्वास और गुस्सा भी रौद्र रूप धारण कर लेगा। लोगों में सपा सरकार के एकपक्षीय रवैये को लेकर तो गुस्सा है ही साथ ही केंद्र की मोदी सरकार की ख़ामोशी से भी लोगों को निराशा उत्पन्न हो रही है। जनता के दर्द को अगर मोदी सरकार नहीं समझेगी तो उसके प्रति लोगों का मोहभंग होना स्वाभाविक है जो कि निकट भविष्य में  कुछ राज्यों की विधानसभा चुनावों में भी बीजेपी को भुगतना पड़ सकता है क्योंकि विकास से भी अधिक आवश्यकता लोगों को अपने परिवार की सुरक्षा ,बहन -बेटियों की इज्जत और अपने धर्म- संस्कृति की रक्षा की है ,इस बात को प्रधानमंत्री नरेंदर मोदी बेहतर जानते होंगे। मोदी जी देश की जनता को विकास से पहले अपनी बहन -बेटियों की इज्जत की सुरक्षा चाहिए 

Thursday 31 July 2014

देश में खुलेआम I S I S के झंडे लहरनेवालों के विरुद्ध मीडिया और सेकुलवादी मौन क्यों हैं ? क्या उन्हें इन ताकतों से डर लगता है या उन्हें राष्ट्र की चिंता नहीं है ?

कश्मीर के श्रीनगर में 29 जुलाई को ईद के मुबारक मौके पर नमाज अता करने के बाद  नमाजियों ने इजराइल द्वारा गाज़ा में हमास के खिलाफ की जा रही सैनिक करवाई के विरुद्ध हिंसक प्रदर्शन किया और भारतीय सुरक्षा बलों पर पथराव करके शांति का अनूठा  पैगाम दिया। यही नहीं इन प्रदर्शनकारियों ने पुलिस - अर्धसैनिक बलों और मीडिया के सामने इराक के आतंकवादी संघठन आई एस आई एस और अलकायदा के झंडे भी लहराए। अब जरा देखो सेकुलरता का राग अलापने वाले राजनैतिक दल और संगठनों को  जिन्हें मानो सांप सूंघ गया हो ,इनमें किसी ने भी इस घटना पर कोई बयान न देकर क्या  साबित किया है ?क्या भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के एक हिस्से कश्मीर में दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकी संगठन आई एस आई एस का खुलेआम  समर्थन करनेवाले लोग शांति प्रिय कैसे हो सकते हैं ? क्या भारत का मीडिया देश की शांति के लिए इस घटना को खतरा नहीं मानता या फिर उसे सिर्फ ' भगवा आंतकवाद ' का राग आलापना ही आता है ?क्या  देश में इन खतरनाक इरादेवाले लोगों को' शांति दूत 'और ' प्रेम का पैगाम देनेवाला  ' माना जाए ? भविष्य में आनेवाली संभावित आफत को भांपते हुए भी मीडिया और सेकुलरता का राग अलापनेवाले खामोश होकर इन देश और मानवता विरोधी ताकतों को क्या अपना मूक समर्थन नहीं दे रहे हैं ?इस खतरे की घंटी को भारत सरकार भी सुन रही है लेकिन उसकी चुप्पी भी
राष्ट्रवादियों के लिए चिंता का विषय बनी  हुयी है। देश की संसद में गाज़ा में मरनेवालों पर हल्ला मचानेवाले इराक में आई एस आई एस के जल्लादों द्वारा की जा रही मासूमों की हत्याओं पर मौन रखें ,अमरनाथ यात्रा पर हमला और लंगर शिविरों को  आग लगाने वालों के विरुद्ध मौन ,मीडिया एक रोज़ेदार के मुंह में रोटी देने की घटना पर शोर मचाये और बाकि घटनाओं पर उसे सांप सूंघ जाये तो इसे क्या समझा जाये कि या तो मीडिया हिन्दू विरोधी है या आंतक के आगे झुकता है ?यह सब देश और शांतिप्रिय लोगों के लिए खतरे की घंटी है जिसको सुनकर भी अनसुना करनेवाले देश और मानवता के हितैषी नहीं सकते। 

Saturday 26 July 2014

कारगिल - विजय दिवस पर भारत माँ की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति देनेवाले सैनिकों को हमारा शत - २ नमन।क्या हमने इस युद्ध से कोई सबक लिया है ?

द्रास स्थित  कारगिल युद्ध स्मृति 

कारगिल युद्ध के विजय -दिवस [26 जुलाई ,1999 ]  पर भारत माँ के वीर सपूतों के चरणों में हमारा शत -2 नमन। यह युद्ध पाकिस्तान की नापाक घुंसपैठ के परिणामस्वरूप मई -जुलाई ,1999 के बीच लड़ा गया जिसमें भारतीय सेना के 527  से अधिक जवान जिनमें से अधिकांश 30 वर्ष से भी कम आयु के थे लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए और लगभग  1300 से अधिक जवान घायल हो गए।लगभग 30 हज़ार सैनिकों ने इसमें हिस्सा लिया था। यह युद्ध पाकिस्तान के  5 हज़ार घुसपैंठिओं के भारत  जम्मू - कश्मीर के कारगिल जिले की सीमा में घुसकर कारगिल -द्रास की पहाड़ियों पर कब्ज़ा कर लेने के कारण भारत - पाकिस्तान के बीच हुआ था।इन घुसपैंठिओं को खदेड़ने के लिए भारतीय सेना ने अपने पराक्रम और साहस का अदम्य उदाहरण विश्व के सामने प्रस्तुत किया।26 जुलाई को भारत की सेना ने अपनी भूमि को दुश्मनों से मुक्त करवाकर विजय प्राप्त कर ली। इस लड़ाई को  'आपरेशन -विजय " का नाम दिया गया। बेशक भारत - पाकिस्तान इस युद्ध के समय भी परमाणु अस्त्रों से सम्पन राष्ट्रों के श्रेणी में शामिल हो चुके थे , परन्तु कोई भी युद्ध सिर्फ हथियारों के दम पर ही नहीं जीता जा सकता जीत के लिए सैनिकों के साहस और पराक्रम के साथ -2 कुशल रणनीति और नेतृत्व की सूझ- भुझ की भी परम आवश्यकता होती है। इस बात को हमारे सत्ता के लोलुप स्वार्थी नेताओं को भली - भांति समझ लेना चाहिय। क्या हमने कारगिल युद्ध से कोई सबक सीखा है ,शायद नहीं। भारत की सीमाओं पर अभी भी पाकिस्तान की तरफ से रह -रहकर घुसपैंठ होती रहती है और उसकी तरफ से फायरिंग होना तो आम बात हो गयी है।जहाँ हमारे सैनिक विपरीत प्राकृतिक परिस्थितिओं में भी अपने जीवन की परवाह न करते हुए देश की सीमाओं की निगरानी दिन -रात बड़ी सतर्कता के साथ कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर हमारे वोटों के लोभी नेता अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए उनकी कुर्बानी को भी नजरअंदाज करके अपनी कुत्सित मानसिकता का परिचय देते हैं, क्यों?शायद इसलिए तो नहीं कि सीमा पर शहीद होनेवालों में उनके अपने परिवार का कोई नहीं होता। 



Saturday 19 July 2014

हिन्दू रोजा इफ्तार की दावतें दें और बदले में ईमानवाले हिन्दुओं की सबसे पवित्र अमरनाथ यात्रा पर हमले करें तो यह कौनसी उदारता है ?

कश्मीर में अमरनाथ यात्रा के यात्रिओं के लिए बालटाल पर लगाये गए लंगर शिविरों पर ईमानवालों ने हमला करके एक बार फिर साबित कर दिया है कि वह किसी दूसरे धर्म के लोगों को कतई सहन नहीं कर सकते, क्योंकि उनका मजहब उन्हें ऐसी ही शिक्षा देता है। लंगर लगाने वाले सभी लोग हिन्दू हैं और देश के कोने -२ से अमरनाथ यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्रीओं के रहने और खाने का प्रबंध करते हैं। एक तो हिन्दुओं को अपने तीर्थ पर जाने के लिए जम्मू -कश्मीर की सरकार कोई सुविधा नहीं देती दूसरे  जब लोग अपना प्रबंध खुद करते हैं तो उनकी सुरक्षा में  कौताही बरत कर उनकी यात्रा को बाधित करने की छूट अलगाववादी मुस्लिम संगठनों को देती है। इसका सीधा - २ यही सन्देश है कि किसी भी तरह से हिन्दुओं की अमरनाथ यात्रा को न होने दिया जाये। 18 जुलाई को जो उत्पात ,हिंसा और आगजनी हिन्दुओं के लंगर शिविरों में की गई ,उससे यह बात तो पूरी तरह से साबित हो रही है कि मुस्लिम कटटरपंथी अब कानून को कुछ भी नहीं समझते हैं। अफ़सोस की बात है की भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में जहां हिन्दू बहुसंख्यक होने के बावजूद अलपसंख्यक मुसलमानों की दादागिरी का शिकार है और अधिकांश राजनैतिक दल भी इस आतंक को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं। गाज़ा में इजराइल के साथ फलस्तीन के युद्ध में मारे जानेवाले लोगों की कांग्रेस और अन्य कई राजनैतिक दलों के लोगों  द्वारा  को अधिक चिंता है परन्तु अपने ही देश में हिन्दुओं की तीर्थयात्रिओं पर होनेवाले हमलों से उनका दूर - २ तक वास्ता नहीं है ,क्यों ?

         कांग्रेस की तरह केंद्र में नरेंदर मोदी की सरकार भी हिन्दुओं को अगर सुरक्षा देने में नाकारा साबित हुयी तो देश के आंतरिक हालत काफी विस्फोटक स्थिति में पहुंच सकते हैं।  उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद में रमजान के दौरान मंदिरों से लाउडस्पीकरों को उतरवाने के लिए तो मुस्लमान मरने -मारने पर आमादा हो जाते है और बिकाऊ मीडिया भी इस दादागिरी को मामूली बात बताकर हिन्दुओं के सर ही सारा दोष मढ़ देता है ,उसी समुदाय के लोग हिन्दुओं की सबसे पवित्र अमरनाथ यात्रा को रोकने के लिए जब हिंसा और आगजनी करते हैं तो  यही मीडिया चुप्पी साध लेता है क्यों ?यह  धर्मनिरपेक्षता का कौनसा रूप है ,इसका जवाब कौन देगा ? क्या मीडिया के लोगों को अमरनाथ यात्रा के दौरान की जानेवाली दादागिरी भी उसी तरह जायज लग रही है जैसे मंदिरों से जबरन लाउडस्पीकरों को उतारा  जाना ?क्या भारत में हिन्दू अपने धार्मिक आयोजनों को नहीं कर सकता ?जिस देश की सरकार मुसलमानों को हज यात्रा के लिए आर्थिक मदद करती हो और हिन्दूओं से तीर्थयात्राओं के लिए टैक्स वसूलती हो यह कैसी धर्मनिरपेक्षता है ?हिन्दू रमजान के महीने में राजदारों को रोजा इफ्तार की दावतें दें और बदले में ईमानवाले हिन्दुओं की सबसे पवित्र अमरनाथ यात्रा पर हमले करें तो यह कौनसी उदारता है ? क्या इसका जवाब हिन्दुओं के मठाधीशों के पास है ?क्या देश में शांति और सदभाव को बनाने की सारी जिम्मेदारी सिर्फ हिन्दुओं की ही है और उसको बिगाड़ने का काम ईमान वालों का है ?इस बात का जवाब कथित धर्मनिरपेक्षता के झंडाबरदारों ,राजनैतिक पार्टिओं ,भाईचारे और प्रेम का सन्देश देनेवाले दीनदारों और भारत की सरकार से हिन्दुओं को चाहिय। मोदी सरकार भी अगर स्थानीय सरकार से सिर्फ रिपोर्ट ही मांगती रहेगी और सुरक्षा का भरोसा ही देती रहेगी और कोई ठोस कदम नहीं उठायेगी तो यह सरकार की सेहत के लिए अच्छा नहीं होगा और हताश  हिन्दू यूँही आतंकित होकर गुहार लगाता  रहेगा तो इसका परिणाम अच्छा नहीं निकलेगा। blogpost,tusharapat .com