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Sunday 18 January 2015

दिल्ली की जिला अदालतों के सुनवाई के वित्तीय अधिकार बढ़ाने से किस लॉबी के कारण हिचक रही है मोदी सरकार ? दिल्ली की जनता से अन्याय कब तक ?

दिल्ली [अश्विनी भाटिया] देश की  राजधानी दिल्ली ही एक ऐसा राज्य है जहां की जिला न्यायालयों में सिर्फ २० लाख तक के वित्तीय मामलों की सुनवाई -होती है और इससे ऊपर के मामलों की सुनवाई दिल्ली उच्चन्यायालय  के अधिकार क्षेत्र में है। देश के अन्य राज्यों में जिला न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र में मामलों की सुनवाई के असीमित वित्तीयअधिकार हैं और उच्च न्यायालय सिर्फ अपीलीय न्यायालय के रूप में कार्य करते हैं। दिल्ली की जनता से पिछले लम्बे समय से हो रहे भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में कदम  उठाने में श्री नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार कौनसी ताकतवर लॉबी के कारण हिचक रही है ?जबकि उनके बारें में यह प्रसिद्ध है कि मोदी जी जनहित के काम को करने के लिए किसी के दबाव  में नहीं आते ,वो जनहित को सर्वोपरि मानते हैं। फिर दिल्ली के लोगों के हितों पर कुठाराघात क्यों किया जा रहा है ? आज के समय में दिल्ली में 40  से 5 0 वर्गगज का फ्लैट भी 20 लाख में नहीं मिलता इसीलिए दिल्ली में अधिकांश सम्पति से सम्बन्धित दीवानी केस 20 लाख से ऊपर के होते हैं और उनका निपटारा उच्च न्यायालय में ही हो सकता है। इसी कारण हाईकोर्ट में दीवानी केसों का अम्बार लगा हुआ है और मामलों के निपटारे में लम्बा समय लग जाता है। इस प्रक्रिया में जनता को भी बहुत पैसा खर्च करना पड़ता है और इंसाफ मिलने में बहुत समय लग जाता है। हाईकोर्ट में एक तो वकीलों की फ़ीस भी जिला अदालतों में कार्यरत वकीलों से कहीं अधिक है और आने -जाने का किराया -भाड़ा अलग से खर्च होता है। तो ऐसे में क्या कारण है कि दिल्ली के लोगों को सुलभ,सस्ता और शीघ्र न्याय देने के लिए देश की केंद्र सरकार अभी तक तैयार दिखाई नहीं दे रही ? मोदी सरकार के इस रुख से जहां जिला अदालतों के वकीलों में रोष है वहीं दिल्ली की जनता भी इससे आहत है और कहीं ऐसा न हो कि दिल्ली विधानसभा चुनावों में इसका खामियाज़ा भाजपा को भुगतना पड़ जाये ? वैसे वकीलों की एक लॉबी में यह भी चर्चा जोरों से चल रही है कि एक तो सरकार ने जिला अदालतों के सुनवाई के वित्तीय अधिकार को नहीं बढ़ाया ऊपर से किरण बेदी को भाजपा में लाकर उनके  नेतृत्व में चुनाव लड़ने की घोषणा करके वकीलों के जख्मों को हरा कर दिया है। भाजपा का यह कदम तो कोढ़ में खाज बढ़ाने जैसा प्रतीत होता है। ज्ञात हो कि सन 1988 में दिल्ली पुलिस में डीसीपी रहते हुए किरण बेदी के नेतृत्व में  पुलिस जवानों ने तीस हज़ारी कोर्ट परिसर में  घुसकर वकीलों पर भयंकर लाठीचार्ज किया था जिसमें असंख्य वकीलों के सिर फैट गए थे और बहुत की हड्डियां-पसलियां तक टूट गईं थीं और इसके विरोध में वकीलों ने लंबी लड़ाई लड़कर बेदी का तबादला करवा दिया था। कहा जाता है कि वकीलों के विरोध के कारण ही केंद्र सरकार बेदी को दिल्ली का पुलिस आयुक्त बनाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई थी। ऐसे में भाजपा के इस कदम का चुनावों पर क्या असर होगा यह तो समय ही बताएगा ?

    दिल्ली की जिला अदालतों के वित्तीय न्यायिक अधिकार क्षेत्र को बढ़ाने के लिए स्थानीय वकीलों द्वारा काफी लम्बे समय से मांग की जा रही है और इसको लेकर कई बार जिला अदालतों में हड़ताल भी की जा चुकी है ,परन्तु मोदी जी भी इस मामले में अपने पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के पदचिन्हों पर ही चलते दिखाई दे रहे हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी है कि मनमोहन सरकार के रहते भी उसमें सबसे प्रभावशाली मंत्री के रूप में पेशे से वकील और दिल्ली से ताल्लुक रखनेवाले श्री कपिल सिब्बल शामिल थे और अब नरेंद्र मोदी जी के सबसे नज़दीक और उन की सरकार में भी सबसे शक्तिशाली माने जानेवाले मंत्री श्री अरुण जेटली शामिल हैं  और पेशे से वकील होने के साथ ही वह दिल्ली के नागरिक हैं , इसके उपरांत भी अगर दिल्ली की जनता को न्याय नहीं मिलता तो सोचने को मजबूर होना ही पड़ता है। अभी कुछ दिन पहले ही दिल्ली में इस मांग को लेकर सभी जिला अदालतों की बार एसोसिएशंस ने हड़ताल की थी औरदिल्ली  भाजपा के नेताओं ने इस बात का आश्वासन देकर कि संसद के शीतकालीन  अधिवेशन में ही इस संबंध में सरकार विधेयक लाकर कानून बनाने जा रही है , इस आश्वासन के बाद हड़ताल समाप्त हो गई। मजेदार बात यह है कि इस बारें में दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष सतीश उपाध्याय ने प्रेसवार्ता करके यह दावा भी किया कि दिल्ली की जनता को शीघ्र ही अपने 20 लाख से ऊपर के दीवानी  मामलों की सुनवाई के लिए अब उच्च न्यायालय नहीं जाना पड़ेगा अर्थात लोगों को कम समय ,कम खर्च और सुलभ न्याय उनके जिले की अदालत में मिल जायेगा। कुछ भाजपा के अतिउत्साही वकीलों ने तो लोकसभा में पूर्वी दिल्ली के सांसद महेश गिरी द्वारा इस संबंध में उठाई गई मांग को भी खूब प्रचारित और प्रसारित किया,  लेकिन परिणाम वही  ढाक के तीन पात ,चौथा लगे न पांचवे की आस की कहावत वाला ही रहा। बड़े अफ़सोस की बात है कि संसद का अधिवेशन भी सम्पन्न हो गया और केंद्र सरकार ने कई ऐसे विधेयकों को ,जो विपक्ष के हंगामे की भेंट चढ़ गए थे ,राष्ट्रपति से अध्यादेश जारी करवाकर कानून के रूप में लागु कर दिया। अगर सरकार की मंशा दिल्ली की जनता को सुलभ और शीघ्र  न्याय देने की रही होती तो अवश्य ही दिल्ली की जिला अदालतों को असीमित वित्तीय अधिकार देने का कानून भी अध्यादेश के द्वारा लागु कर देती, परन्तु ऐसा न करके जनता के साथ नाइंसाफी की गई। इसका क्या कारण है यह तो सत्ता में बैठे महानुभाव ही भली -भांति जानते हैं, लेकिन यह बात जरूर समझी जा सकती है कि कोई न कोई एक प्रभावशाली ताकत जरूर है जिसके दबाव में न तो यूपीए सरकार और न ही अब नरेंद्र मोदी सरकार दिल्ली की जनता को सुलभ ,सस्ता और शीघ्र न्याय दिलाने में गंभीर दिखती है।दिल्ली हाईकोर्ट में भी वकीलों के दो वर्ग हैं एक तो साधारण और दूसरे वरिष्ठ अधिवक्ता जिनमें समाज के संभ्रांत वर्ग से जाते हैं। ऐसा -कहा जाता है कि वकीलों की यह लॉबी अपना एकाधिकार बनाए रखने के लिए ही सरकार पर अपना दबाव बनाए रखने में सक्षम हैं। सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि वो कौन सी ऐसी लॉबी है जो दिल्ली की जनता के हितों पर कुठाराघात करके उच्च न्यायालय में कार्यरत वरिष्ठ वकीलों के हितों का पोषण कर रही है क्योंकि उच्च न्यायालय के वकील जिला अदालतों के वित्तीय अधिकार क्षेत्र को बढ़ाने का विरोध कर रहे हैं। 

Thursday 15 January 2015

एक वर्ष में ही दोबारा चुनावों का बोझ डालने के लिए अरविन्द केजरीवाल को जिम्मेदार मानती है दिल्ली की जनता

दिल्ली [अश्विनी भाटिया ] क्या लोकतंत्र का अर्थ यही है कि कोई भी व्यक्ति अपने सनकीपन के लिए किसी देश या प्रदेस की जनता को मात्र एक वर्ष में ही दोबारा चुनावों के खर्चीले बोझ से दाब दे और जनता से अपने किये कृत्य की क्षमा मांगकर पुनः सत्ता में आने की मांग करे ? दिल्ली की जनता को इस बात को सोचना चाहिए क्योंकि उसके साथ यही कुछ पिछले एक साल में हुआ है और उसे मात्र 14 माह में ही दोबारा महंगे चुनावों झंझावात में धकेल दिया गया है।ऐसा शायद इसलिए हुआ कि चूँकि या तो वह नेता जनता से किये वायदों को पूरा नहीं कर सकता था या फिर उसके पास  प्रशासनिक अनुभव नहीं था।दिल्ली की जनता को पिछले एक वर्ष में यह सब कुछ आम आदमी की दुहाई देनेवाली पार्टी 'आप' के संयोजक और दिल्ली के पूर्व सीएम अरविन्द केजरीवाल की अति राजनैतिक महत्वाकांक्षा के कारण भुगतना पड़ा है।दिल्ली को बिना सरकार के एक साल तक राष्ट्रपति शासन के तहत नौकरशाहों के रहमोकरम पर रहना पड़ा ,जिस कारण सारी विकास योजनाओं की रफ़्तार मंदी पड़ गई और नई योजनाएं भी नहीं बन पाईं। अब दिल्ली को एक साल में ही दोबारा खर्चीले चुनावी बोझ तले दबने को मजबूर कर दिया गया है। अब यह फैसला जनता को करना है कि वह इन सब कृत्यों के लिए जिम्मेदार अरविन्द केजरीवाल और उनकी पार्टी को क्या आदेश सुनाती है ?

      कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर अन्ना आंदोलन की कमान सम्भालने वाले अरविन्द केजरीवाल ने राजनैतिक पार्टी का गठन आम आदमी के नाम पर किया और जनता को लोकपाल सहित स्वच्छ शासन दिलाने के सैंकड़ों वायदे किये। दिसम्बर,2013 में दिल्ली विधानसभा चुनावों में इस नए राजनेता ने जनता से कई ऐसे वायदे किये जो वह सीएम बनने के बावजूद पूरे नहीं कर पाए और मात्र 49 दिन में ही अपनी जिम्मेदारी को छोड़ भागे। केजरीवाल के बारे में जनता यह जान चुकी है कि वह जो कहंगे, करेंगे बिलकुल उसके विपरीत। उन्होंने कांग्रेस को सबसे भ्रष्ट कहा और 28 सीटें जीतकर उसी कांग्रेस से समर्थन लेकर दिल्ली की सत्ता संभाल ली।केजरीवाल ने जनता से यह वायदा किया कि ना तो वह स्वयं और न ही उनके अन्य साथी चुनाव जीतने पर सरकारी बंगला ,कार और पुलिस सुरक्षा लेंगे। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वह भविष्य में भ्रष्ट कांग्रेस पार्टी को सरकार के लिए न तो समर्थन देंगे और न ही समर्थन लेंगे।समर्थन के मुद्दे पर तो उन्होंने अपने बच्चों तक की कसम खा ली थी,बाद में जिसे कुर्सी पाने के लिए खुद ही तोड़ दिया। भ्रष्ट कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली का सीएम बनकर खुद भी और उनके अन्य साथियों ने भी सभी सरकारी सुविधाओं को जिनमें कार ,बंगला और सुरक्षा प्रमुख थीं ,को लेने में तनिक भी संकोच नहीं किया।सत्ता में आसीन हो कर अपनी प्रशासनिक जिम्मेदारियों को निभाने और जनता को सुख -सुविधाओं को देने की बजाय मुख्य्मंत्री होते हुए भी  धरना -प्रदर्शनों में जुट गए। लोगों को मुफ्त पानी देने और बिजली के बिल आधे करने के वायदे को पूरा नहीं कर पाये और 49 दिन में ही दिल्ली की जनता को भगवान भरोसे छोड़कर निकल भागे। शीला दीक्षित के विरुद्ध भ्रष्टाचार के ढेरों सबूतों का दावा करनेवाले केजरीवाल सीएम का पद पाकर कोई कार्रवाई करना तो दूर सब कुछ भूलकर नरेन्द्र  मोदी को ललकारने वाराणसी तक पहुंच गए और वहां से लोकसभा चुनाव में मोदी के विरुद्ध चुनावी ताल ठोंकने लगे। जब आम चुनावों में देश की जनता ने केजरीवाल को बुरी तरह से नकार दिया तो उनके मन में एक बार फिर  दिल्ली के सीएम की कुर्सी पाने की लालसा पैदा हो गयी और वह उसको पाने के लिए ऐसे तड़पने लगे जैसे कि मछली बिन पानी तड़पती है। अब वह जनता से पूरा बहुमत मांग रहे हैं और पूर्व में सीएम की कुर्सी छोड़ने को अपनी भूल बताकर भविष्य में ऐसी गलती को न दोहराने का वायदा कर रहे हैं। वैसे दिल्ली की जनता अब केजरीवाल से पूरी तरह से परिचित हो चुकी है और देखना यह है कि इस बार चुनाव में उनको[केजरीवाल ] अपनी  जिम्मेदारियों से भाग जाने का क्या दंड देती है ? वैसे इस बार के दिल्ली विधानसभा के चुनावी रण में उनके कई योद्धा भी उनका साथ छोड़कर भाजपा का दामन थामकर उनके झूठों का पर्दाफाश करने की मुहिम में जुट चुके हैं।मानती 

Monday 12 January 2015

अलवर जिला प्रशासन के अधीन उपखण्ड और तहसील रामगढ कार्यालय अछूते हैं स्वच्छ भारत अभियान से।अधिकारियों को नहीं है प्रधानमंत्री मोदी के अभियान से कोई लेना -देना

अलवर [अश्विनी भाटिया  ] राजस्थान में  प्रशासन के अधिकारियों पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान का कोई असर दिखाई नही दे रहा है। मज़ेदार बात यह है कि राजस्थान का अलवर जिला एनसीआर में शामिल है और दिल्ली के बहुत ही नज़दीक है, जब इस जिले में स्वच्छ भारत अभियान टांय - 2 फिस हो रहा है तो दूर -दराज़ के जिलों का क्या हाल होगा ,सहज ही अंदाज़ लगाया जा सकता है ?मजेदार बात यह है कि जिला प्रशासन अपने तहसील और उपखण्ड कार्यालयों की सफाई करवाने में नाकाम सिद्ध हो रहा है। इस  सवांददाता को जिले की रामगढ तहसील और उपखण्ड अधिकारी के  कार्यालय में गंदगी का जो वातावरण मिला उससे यह सहज अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि यहां के प्रशासनिक अधिकारी जब अपने कार्यालयों को ही साफ नहीं करवा सकते तो वह अपने अधीन आनेवाले क्षेत्रों को कैसे स्वच्छ रख सकते हैं ? इस सवांददाता ने जब उपखण्ड अधिकारी रामगढ़ [एस डी एम ]श्री अखिलेश कुमार पीपल से इस संबंध में बात की तो उनका जवाब सुनकर बहुत ही आश्चर्य हुआ और यह समझ में आ गया कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के अधिकारी  किस कारण से और क्यों अपनी निकम्मी और गैरजिम्मेदार कार्यशैली को  अपना अधिकार बनाए हुए हैं क्योंकि  उन्हें राज्य सरकार से किसी भी तरह का कोई भय नहीं है। कार्यालय में फैली गंदगी के बारे में उपखण्ड अधिकारी श्री पीपल का जवाब था कि''यह काम मेरा नहीं है ,मैं यहाँ सफाई करने के लिए नहीं आता ।'जब सवांददाता ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी स्वयं झाड़ू लेकर भारत को स्वच्छ बनाने का अभियान चलाये हुए तो उन जैसे जिम्मेदार अधिकारी इस अभियान को गंभीरता से क्यों नहीं ले रहे तो उन्होंने कहा कि 'तो यह बात मोदी से जाकर पूछ लो कि यहाँ की सफाई क्यों नहीं हो रही। ''

          रामगढ तहसील का मूत्रालय की भी पिछले लम्बे समय से  नारकीय दशा बनी हुई है जो स्वच्छ भारत अभियान के बाद भी जस की तस है। इसको देखकर यह प्रतीत होता है कि यहाँ की सफाई शायद दशकों से नहीं हुई और इसमें मूत्रदान करना तो दूर इसमें प्रवेश करना भी दूभर है।इस तहसील में प्रतिदिन हजारों ग्रामीण महिला -पुरुष अपने कार्यों के लिए आते हैं और उनको आवश्यक सुविधा के नाम पर कोई प्रबंध तहसील प्रशासन की ओर से नहीं किया गया है। ऐसा लगता है कि तहसीलदार महोदया जो स्वयं महिला हैं उन्हें इस बात का अहसास भी नहीं है कि कार्यालय में आनेवाली महिलाएं लघु शंका निवारण के लिए कहां जाएँगी ? महिला तो महिला पुरुषों के लिए बने मूत्रालय भी   नारकीय बना हुआ है जिसको इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।इस सवांददाता ने तहसीलदार महोदया से मिलने का प्रयास किया लेकिन तब वह अपने कार्यालय में उपस्थित नहीं थी।
      रामगढ़ उपखण्ड और तहसील कार्यालयों की नारकीय हालत मोदीजी के स्वच्छ भारत अभियान को चिढ़ाती -सी  लग रही  हैं। इस बात का अंदाज़ा सहज ही लग जाता है कि राजस्थान में बीजेपी की वसुंधरा राजे सरकार में प्रशासनिक अधिकारी सुधरने को तैयार नहीं हैं और वो  बेलगाम घोड़ों की तरह जनता की भावनाओं को रौंदने में तनिक भी नहीं झिझक रहे।और तो और इनका दुःसाहस इतना बढ़ चूका है कि अब यह लोग देश के प्रधानमंत्री के बारे में भी मर्यादा रहित टिप्पणियाँ करने से भी नहीं घबरा रहे हैं। 



Sunday 11 January 2015

स्वामी विवेकानंद के विचारों की महत्ता आज पहले से भी अधिक बढ़ चुकी है। हम उनका अनुकरण करके भारत को विश्व की महान शक्ति बना सकते है।

भारत माँ के वीर सपूत, महान तपस्वी - दार्शनिक -युगद्रष्टा ,स्वाधीनता संग्राम के प्रेरक और विश्व में वैदिक धर्म का डंका बजानेवाले स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर उनके चरणों में हमारा  शत- शत नमन। 

स्वामी विवेकानंद जी स्वामी विवेकानन्द (जन्म: १२ जनवरी,१८६३ - मृत्यु: ४ जुलाई,१९०२) वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत "मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहनों" के साथ करने के लिये जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।आज स्वामीजी के जन्मदिवस [12 जनवरी ,1863 ] पर हमारा उनके चरणों  में अपना शत -२ नमन करते हैं। 
       स्वामी विवेकानंद जी के विचारों का आज पहले से भी अधिक महत्व बढ़ चूका है। उनके द्वारा स्थापित सिद्धांतों और दर्शन का अनुकरण करके हम अपना और अपने राष्ट्र का परचम पूरी दुनिया पर फहरा सकते हैं। वे केवल सन्त ही नहीं, एक महान देशभक्त, वक्ता, विचारक, लेखक और मानव-प्रेमी भी थे। अमेरिका से लौटकर उन्होंने देशवासियों का आह्वान करते हुए कहा था-"नया भारत निकल पड़े मोची की दुकान से, भड़भूँजे के भाड़ से, कारखाने से, हाट से, बाजार से; निकल पडे झाड़ियों, जंगलों, पहाड़ों, पर्वतों से।" और जनता ने स्वामीजी की पुकार का उत्तर दिया। वह गर्व के साथ निकल पड़ी।  गान्धीजी को आजादी की लड़ाई में जो जन-समर्थन मिला, वह विवेकानन्द के आह्वान का ही फल था। इस प्रकार वे भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के भी एक प्रमुख प्रेरणा-स्रोत बने। उनका विश्वास था कि पवित्र भारतवर्ष धर्म एवं दर्शन की पुण्यभूमि है। यहीं बड़े-बड़े महात्माओं व ऋषियों का जन्म हुआ, यही संन्यास एवं त्याग की भूमि है तथा यहीं-केवल यहीं-आदिकाल से लेकर आज तक मनुष्य के लिये जीवन के सर्वोच्च आदर्श एवं मुक्ति का द्वार खुला हुआ है। उनके कथन-"‘उठो, जागो, स्वयं जागकर औरों को जगाओ। अपने नर-जन्म को सफल करो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये।" 

Monday 5 January 2015

राजस्थान में वसुंधरा सरकार के प्रशासनिक अधिकारी निकाल रहे हैं पी एम मोदी के सुशासन के दावों की हवा। फाष्ट ट्रैक कोर्ट हुई डैड ट्रैक कोर्ट में तब्दील

राजस्थान सरकार का ऑनलाइन शिकायत पोर्टल संपर्क  भी हो रहा है  नाकारा साबित। जनता को मिलेगा कैसे न्याय ?कौन सुनेगा पीड़ित जनता की पुकार ?

अलवर [अश्विनी भाटिया ]। अलवर  राजस्थान में बीजेपी की वसुंधरा सरकार के राज्य  की  जनता को सुलभ,त्वरित  और स्वच्छ शासन देने के सभी दावों को ताक पर रखकर प्रशासन में बैठे अधिकारी अपनी मनमानी कर रहे हैं  ऐसा लगता है कि कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार के बिगड़ैल अधिकारीयों को , जिनके कारण उस सरकार का पतन हो गया था, सरकार बदलने के बावजूद  अभी तक  अपनी पूर्व की भ्रष्ट और मनमानी करनेवाली कार्यशैली को बदलने की कोई जरुरत महसूस नहीं हुई है।राज्य के प्रशासनिक अधिकारियों की अकर्मण्यता ही वसुंधरा सरकार का ग्राफ जनता की नज़रों में गिराने में कारगर साबित हो रही है।अलवर जिले की अधिकांश तहसीलों और उपखण्डों में बड़े पैमाने पर रेवेन्यू मामले जिनमें राजस्थान भूमि  काश्तकारी अधिनियम के वर्षों से लंबित पड़े मामलों का निस्तारण करने के उद्देश्य से fasht track court  का गठन किया गया था जिनमें अधिकांश  न्यायालयों में न तो पीठासीन अधिकारी हैं और ना ही दूसरा स्टाफ ही लगाया गया है। इस तरह से यह फाष्ट ट्रैक कोर्ट एक तरह से डैड ट्रैक कोर्ट में तब्दील हो चुकी हैं।इसी तरह से रामगढ उपखण्ड में फाष्ट ट्रैक कोर्ट का गठन गत फ़रवरी, 2013 में किया गया था जो मात्र 3 माह काम करने के बाद अपना दम तोड़ गयी, अर्थात मई 2013 से यह कोर्ट मृत प्राय पड़ी है। ना तो इस कोर्ट में कोई पीठासीन अधिकारी है ना ही कोई अन्य स्टाफ ही मौजूद है।

   रामगढ तहसील में आज भी कर्मचारियों और अधिकारीयों की कार्यशैली को लेकर जनता क्षुब्द है और गरीब व् अनपढ़ जनता की पुकार कोई सुनने को तैयार नहीं है। कई ग्रामीणों की शिकायत मिलने के  बाद इस सवांददाता ने इस सम्बद्ध में कई बार रामगढ उपखण्ड अधिकारी श्री अखिलेश कुमार पीपल से मिलने का प्रयास किया , लेकिन उनके कार्यालय से बताया गया कि  साहब नहीं हैं फिल्ड में गए हुए हैं। इसी उपखण्ड में रेवन्यू के मामलों में सभी नियमों -कानूनों को ताक पर रखकर गरीब और असहाय लोगों को दर्द के अलावा यहां से  कोई न्याय नहीं मिल रहा। केसों में लोगों को सिर्फ तारीखें ही दी जाती हैं और लोग हर तारीख पर अपना सा मुंह लेकर सरकार को कोसते हुए अपने घरों को लौट जाते हैं। इस संबंध में सुचना के अधिकार अधिनियम,2005  के तहत एक प्रतिवेदन  गत 28 नवम्बर,2014  को उपखण्ड ऑफिस में स्पीड -पोस्ट द्वारा भेजा गया था जोकि  1 दिसम्बर को  पत्र कार्यालय में डिलीवर होने के बावजूद यह रिपोर्ट लिखे जाने तक कोई सुचना आवेदक को नहीं दी गई है।  

इसी तरह से इस उपखण्ड में चल रही पेंशन धांधली का मामला प्रकाश में आया है जिसमें कई  लोग वृद्धा पेंशन को गलत तरीके से प्राप्त कर रहे हैं। इस पेंशन घोटाले की शिकायत राजस्थान सरकार द्वारा जनशिकायत पोर्टल राजस्थान 'संपर्क' पर गत 14 नवम्बर, 2014 को की गई थी, जिसपर आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। आश्चर्यजनक बात यह है कि शिकायत की वस्तुस्थिति देखने पर ज्ञात होता है कि  शिकायत पर कार्रवाई को विचाराधीन दिखाया जा रहा है और यह एसडीएम रामगढ के कार्यालय में पिछले 18 नवम्बर से पड़ी हुई है। राजस्थान में राज्य की बागडोर बीजेपी की वसुंधरा राजे के हाथों में आये 1 वर्ष बीत जाने के बाद भी जनता को कोई  राहत मिलती दिखाई नहीं दे रही , जो कि प्रधानमंत्री नरेंदर मोदी के जनता को सुशासन देने  की कवायद को ठेंगा दिखाने  जैसा प्रतीत हो रहा है ।

'संपर्क' पर दर्ज करवाई गई पेंशन घोटाले की शिकायत में बताया गया था कि  इस तहसील के नौगाँव कसबे और गढ़ी सहित कई अन्य गॉवों  में कुछ ऐसे लोग भी पेंशन ले रहे हैं जो सरकारी नौकरी में थे और अब सेवानिवृत हो चुके हैं। मजेदार बात यही है कि यह पेंशनधारी सेवानिवृति की  पेंशन व अन्य सरकारी लाभ भी प्राप्त कर रहे हैं।जानकारी में आया है कि इन रिटायर हो चुके लोगों में शिक्षक भी हैं और इनकी पत्नियां गरीबों की पंक्ति में शामिल होकर पेंशन प्राप्त करके अन्य गरीबों का हक़ मारने में लगे हुई  हैं। इसी तरह से वो लोग जिनके पास कृषि भूमि भी है , लेकिन खुद को भूमिहीन दर्शाकर पेंशन प्राप्त कर रहे हैं इनकीजाँच की जाए तो रेवन्यू रिकार्ड ममें ही इनके झूठ की पोल खुल सकती है। झूठे और फर्जी दस्तावेजों के आधार पर पेंशन प्राप्त करने में सफल हो चुके इन लोगों में कई लोग ऐसे भी हैं जिनकी आयु अभी 60 वर्ष से बहुत कम है, लेकिन वोटर पहचान पत्रों में कूट रचना करके अपनी आयु 60 वर्ष और इससे अधिक दिखा कर वृद्धा पेंशन ले रहे है। सूत्रों से ज्ञात यह भी हुआ है कि इस तरह से फर्जीवाड़ा करके पेंशन लेने वालों में गढ़ी-धनेटा ग्राम पंचायत की एक पूर्व महिला सरपंच भी शामिल है जिसका पति हरियाणा में शिक्षक था और अब सेवानिवृति के बाद सरकारी पेंशनभोगी है।

          शिकायत में   रामगढ़ तहसील के अंतर्गत आने वाले समस्त पेंशनभोगी जो फ़र्ज़ी दस्तावेज़ों और गलत तथ्यों के द्वारा गरीबों के हक़ पर डाका डालकर सरकारी पेंशन को डकारने में लगे हुए हैं,ऐसे लोगों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की मांग  गई है ,परन्तु अफसोसजनक पहलु यह कि वसुंधरा सरकार के अधिकारी सुशासन देने के दावों को हवाहवाई बनाकर जनता को स्वच्छ वातावरण उपलब्ध करवाने को तैयार नहीं हैं । साथ ही पेंशन वितरण  के काम में लगे संबंधित डाकिए भी अनपढ़ और गरीब पेंशनधारियों की आनेवाली पेंशन को डकारने में लगे हुए हैं। इन डाकियों  के विरुद्ध भी उच्च स्तरीय जाँच होनी चाहिए और इनके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई भी अवश्यम्भावी हो चुकी है।


Saturday 3 January 2015

शाहदरा विधानसभा क्षेत्र से शंटी को बहन प्रीति के चुनावी चुनौती देने से बिगड़ सकता है भाजपा का समीकरण और बाज़ी लग सकती है कांग्रेस के हाथ।

शाहदरा [अश्विनी भाटिया  ] दिल्ली विधानसभा के चुनावों का ऐलान बेशक अभी नहीं हुआ  है,लेकिन भाजपा सहित आप और कांग्रेस आदि दलों ने अपना अपना चुनावी बिगुल बजा दिया है। शाहदरा विधानसभा क्षेत्र से निवर्तमान विधायक जितेन्दर सिंह शंटी जो कि अभी एक वर्ष पहले विधानसभा चुनाव में अकाली -भाजपा गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीते थे।इस बार चुनावी भंवर में फंसते नज़र आ रहे हैं ,उनके फंसने का कारण उनकी बहन प्रीती है जिसने इस क्षेत्र से चुनावी अभियान शरू कर दिया है और अपने भाई के सामने कड़ी चुनौती के रूप में आ खड़ी हुई है । बहन प्रीती विवेक विहार वार्ड 239 से निगम पार्षद है और वह भी विधानसभा चुनाव के रण में   आ डटी है।सूत्रों का कहना है कि वह  निर्दलीय प्रत्याशी के रूप से चुनाव लड़ेंगी।प्रीति अपने क्षेत्र में अपना मज़बूत आधार रखती हैं और निर्दलीय चुनाव जीतकर अपनी ताकत का अहसास सबको करवा चुकी हैं। बताया जाता है कि इसीलिए अपनी  बहन की गंभीर चुनौती से शंटी घबराए हुए हैं। सूत्रों का कहना है कि भाजपा हाईकमान भी इस बात से चिंतित है और उसको लगता है कि बहन -भाई के इस आपसी विवाद के कारण कहीं उनकी यह सीट उनके हाथ से निकालकर कांग्रेस की झोली में न चली जाए। इसीलिए सम्भावना यह भी है कि भाजपा शाहदरा सीट पर शंटी की जगह किसी दूसरे चेहरे  अपना उम्मीदवार बनाकर अपनी जीत को सुनिश्चित कर सकती है। प्रीति ने इलाके में जनसभाओं और जनसम्पर्क के माध्यम से चुनावी रणभेरी बजाकर अपने भाई शंटी की घंटी बजा दी है। वैसे  भाजपा ने अभी तक अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है ,लेकिन शंटी अपने को अकाली -भाजपा का संयुक्त उम्मीदवार मानकर जोर -शोर से अपने आर्थिक संसाधनों के बल पर चुनावी महासमर में अपनी नाव को खेने में जुटे हुए हैं।  इस सीट पर पिछले लम्बे समय से विधायक होने का गौरव पानेवाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री डा. नरेंद्र नाथ को एक वर्ष पहले हुए विधानसभा चुनाव में पराजय का सामना करना पड़ा था। कांग्रेस ने उन्हें इस बार फिर अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है और वह दिन -रात इलाके में पसीना बहाकर अपनी खोई हुई सीट को पाने के लिए जूझ रहे हैं। लोगों का कहना है कि अगर शंटी भाजपा- अकाली उम्मीदवार हुए और प्रीती मैदान में डटी रही तो यह सीट इस बार कांग्रेस के खाते में जा सकती है। इस सीट पर आप पार्टी ने अपना  उम्मीदवार रामनिवास गोयल को बनाया है। ज्ञात हो कि गोयल पहले भाजपा में थे और 1993 में इसी क्षेत्र से विधायक चुने गए थे। विधायक रहते हुए गोयल का व्यवहार जनता तो जनता अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के प्रति भी अच्छा नहीं रहा। उन पर केस भी दर्ज़ हुए और अपने भाई के अनैतिक आचरण के कारण भी उनका दामन दागदार हो गया था। इसी कारण भाजपा ने उन्हें फिर कभी दोबारा   अपना  टिकट देना उचित नहीं समझा। लोगों में चर्चा है कि गोयल भले ही इस बार 'आप' उम्मीदवार हैं और अपनी  आर्थिक सम्पन्नता  के बल पर चुनाव में पैसा लगाएंगे, लेकिन उनका अतीत ही इस चुनाव में  उनकी हालत पतली करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा। आज की स्थिति में अगर इस क्षेत्र से भाजपा से शंटी ,कांग्रेस से नरेंद्र नाथ ,आप पार्टी से रामनिवास गोयल और निर्दलीय प्रीति के बीच मुकाबला होता है तो भाजपा के मुकाबले बाज़ी कांग्रेस के हाथ लग सकती है। 

Tuesday 30 December 2014

नव वर्ष 2015 आप सभी के लिए मंगलमय हो।यह वर्ष आपके और आपके परिवार के लिए विकासकारी और कल्याणकारी साबित हो।

आपके  व् आपके परिवार के लिए नव  वर्ष 2015 की हार्दिक शुभकामनाएं।          आप सभी  के लिए यह  वर्ष मंगलमय हो और  बहुत सारी खुशियां लेकर आए .आपकी दीर्घायु और उन्नति की कामना के साथ आपका शुभचिंतक  -अश्विनी भाटिया   

                                 


                                                                                                            
                                                                                                             

क्या हिन्दू धर्म की नरम सोच और सहनशीलता की प्रवृति ही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी मानी जा रही है ?

सेकुलरता के झंडाबरदार क्या इस बात का जवाब देंगे ? या सिर्फ हिन्दुओं को ही आसान शिकार बनाने की मानसिकता वालों को वोटों की राजनीती के तहत एकतरफा राग अलापने की ही बीमारी हो चुकी है ?कथित सेकुलर कीड़ों को अभिवक्ति की असली आज़ादी तो सिर्फ हिन्दुओं पर ही छींटाकशी करने की मिली हुयी है। आमिर खान हो या राजकुमार हिरानी और चाहे न्यूज़ चैनल पर अपना धंधा करनेवाले एंकर, सबके सब सिर्फ हिन्दुओं को ही सुधारने का ऐड़ी -चोटी का जोर  क्यों लगाये हुए हैं? ऐसा लगता है कि सारा अन्धविश्वास और पाखंड हिन्दू धर्म में ही समाया  हुआ है और मध्यकालीन बर्बरता का घिनौनी  हिंसक प्रवृति अपनाये हुए किताबी मजहब वाले बड़े पाक -साफ ईमानदार लोग हैं।हिन्दुओं की सहनशीलता और रहमदिली को आज उनकी कमजोरी माना जाने लगा है और दूसरे मजहब की निर्दयता व् हिंसक प्रवृति ही उनकी सबसे बड़ी  सुरक्षा की गारंटी बन चुकी है। इस बात पर हिन्दू समाज के झंडाबरदारों को भी सोचना पड़ेगा कि उनकी कमी कहां पर है और इसको कैसे सुधारा जाना चाहिए ?सिर्फ हिन्दुओं को धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ानेवाले सेकुलरवादी मुसलमानों को भी यह राग सुनाकर समझाएं तो पूरी मानवता का इससे बढ़कर और कोई भला नहीं हो सकता। क्या हिन्दू ही अंधविश्वासी हैं या हिन्दुओं पर कीचड़ उड़ेलना आसान है ?सेकुलरवादी इसका जवाब देंगे ?क्या हिन्दू धर्म की नरम सोच और सहनशीलता की प्रवृति ही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी मानी जा रही है ?

Saturday 27 December 2014

' निश्चय कर अपनी जीत करौं' गुरु गोबिंद सिंह ने जो बलिदान हिन्दूधर्म और संस्कृति की रक्षा हेतु दिया उसका ऋण हिन्दू समाज कभी नहीं उतार सकता।

 सवा लाख से एक लड़ाऊँ ,चिड़ियों से में बाज़ तड़ऊँ तबे गोबिंदसिंह नाम कहाऊँ. 

गुरु गोबिंद सिंह ने जो बलिदान हिन्दूधर्म और संस्कृति की रक्षा हेतु दिया उसका ऋण हिन्दू समाज कभी नहीं उतार सकता।हम इस महापुरुष ,महान संत ,कुशलयोद्धा और सर्ववंश बलिदानी गुरगोबिंद सिंह जी की जयंती पर उनके चरणों में अपना शत -२ नमन करते हैं।इनका जन्म पौष सुदी 7 वीं सन 1666 को पटना में माता गुजरी जी और पिता गुरु तेग बहादुर जी के घर हुआ।गुरुजी ने हिन्दू धर्म में व्याप्त कुरीतिओं, अन्धविश्वास ,पाखंड का भी जोरदार तरीके से खंडन किया और बैसाखी के दिन,1699आनंदपुर में खालसा पंथ की सर्जना करके लोगों को मानवता का सन्देश दिया। गुरूजी ने जहां एक ओर अपने पिता नौवें गुरु तेग बहादुर जी को कश्मीरी पंडितों की रक्षार्थ बलिदान देने को प्रेरित किया, वहीं अपने चारों पुत्र को भी धर्म की बलिवेदी पर कुर्बान कर दिया और वह खुद भी अपने जीवनपर्यन्त धर्म की स्थापना के लिए संघर्षरत रहे ।गुरु गोविंद सिंह जहां विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिंतक तथा कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की। वे विद्वानों के संरक्षक थे। उनके दरबार में ५२ कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता था। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय प्रतीक थे


      महाभारत काल में धर्म की स्थापना और अन्याय के विरुद्ध कुरुक्षेत्र के मैदान में युद्ध करने के लिए प्रेरित करते हुए भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को यह सन्देश दिया कि जब शांति के सारे द्वार बंद हो जाएँ तो और न्याय न मिले तो युद्ध करो।ठीक यही बात मुग़ल काल के दौरान जब इस्लामिक जनून की मानसिकता को पाले औरंगज़ेब जैसे आततायी शासक ने हिन्दुओं पर अत्याचार किए तो उसी समय गुरु गोबिंद ने धर्म के रक्षार्थ इस सन्देश को आत्मसात किया और इस आतंक व् अन्याय के विरुद्ध लड़ने का संकल्प लिया। औरंगज़ेब के बढ़ते जुल्मों और अत्याचारों से अपना मनोबल खो चुकी हिन्दू कौम में शेरों जैसे जोश का संचार किया और कहा कि सवा लाख से एक लड़ाऊँ चिड़ियों सों मैं बाज तड़ऊँ तबे गोबिंदसिंह नाम कहाऊँ।दसवें गुरु गोबिंदसिंह मूलतः धर्मगुरु थे। अस्त्र-शस्त्र या युद्ध से उनका कोई वास्ता नहीं था, लेकिन औरंगजेब को लिखे गए अपने 'अजफरनामा' में उन्होंने इसे स्पष्ट किया था- 'चूंकार अज हमा हीलते दर गुजशत, हलाले अस्त बुरदन ब समशीर ऐ दस्त।'


अर्थात जब सत्य और न्याय की रक्षा के लिए अन्य सभी साधन विफल हो जाएँ तो तलवार को धारण करना सर्वथा उचित है। धर्म, संस्कृति व राष्ट्र की शान के लिए गुरु गोबिंदसिंह ने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। इस अजफरनामा (विजय की चिट्ठी) में उन्होंने औरंगजेब को चेतावनी दी कि तेरा साम्राज्य नष्ट करने के लिए खालसा पंथ तैयार हो गया है।सिखों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा रचित देवी चण्डिका की एक स्तुति है। गुरु गोबिन्द सिंह एक महान योद्धा एवं भक्त थे। वे देवी के शक्ति रुप के उपासक थे।

यह स्तुति दशम ग्रंथ के "उक्ति बिलास" नामक विभाग का एक हिस्सा है। गुरुबाणी में हिन्दू देवी-देवताओं का अन्य जगह भी वर्णन आता है।'चण्डी' के अतिरिक्त 'शिवा' शब्द की व्याख्या ईश्वर के रुप में भी की जाती है। "महाकोश" नामक किताब में ‘शिवा’ की व्याख्या ‘ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ’ (परब्रह्म की शक्ति) के रुप में की गई है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भी 'शिवा' 'शिव' की अर्धांग्नी भवानी अर्थात  (ईश्वर) की शक्ति है।

देवी के रूप का व्याख्यान गुरु गोबिंद सिंह जी यूं करते हैं :
पवित्री पुनीता पुराणी परेयं ॥
प्रभी पूरणी पारब्रहमी अजेयं ॥॥
अरूपं अनूपं अनामं अठामं ॥॥
अभीतं अजीतं महां धरम धामं ॥३२॥२५१॥

  गुरूजी ने अकालपुरुष शिव जी की पत्नी शिवा अर्थात भवानी[शक्ति] से यह वर  माँगा कि 

देह शिवा बर मोहे ईहे, शुभ कर्मन ते कभुं न टरूं न डरौं अरि सौं जब जाय लड़ौं, निश्चय कर अपनी जीत करौं,अरु सिख हों आपने ही मन कौ इह लालच हउ गुन तउ उचरों,जब आव की अउध निदान बनै अति ही रन मै तब जूझ मरों ॥२३१॥ ਦੇਹ ਸਿਵਾ ਬਰੁ ਮੋਹਿ ਇਹੈ ਸੁਭ ਕਰਮਨ ਤੇ ਕਬਹੂੰ ਨ ਟਰੋਂ ॥

ਨ ਡਰੋਂ ਅਰਿ ਸੋ ਜਬ ਜਾਇ ਲਰੋਂ ਨਿਸਚੈ ਕਰਿ ਅਪੁਨੀ ਜੀਤ ਕਰੋਂ ॥ਅਰੁ ਸਿਖ ਹੋਂ ਆਪਨੇ ਹੀ ਮਨ ਕੌ ਇਹ ਲਾਲਚ ਹਉ ਗੁਨ ਤਉ ਉਚਰੋਂ ॥ਜਬ ਆਵ ਕੀ ਅਉਧ ਨਿਦਾਨ ਬਨੈ ਅਤਿ ਹੀ ਰਨ ਮੈ ਤਬ ਜੂਝ ਮਰੋਂ ॥੨੩੧॥ [

Thursday 25 December 2014

भारत की दो महान विभूतिओं - महामना मालवीय और अटलजी के योगदान को देश हमेशा याद रखेगा।इनके जन्मदिन पर शत -शत नमन।

दिल्ली [अश्विनी भाटिया ]  'भारत रत्न ' स्वर्गीय महामना मदन मोहन मालवीय  और पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेई  भारत के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान है।देश की सांस्कृतिक विरासत और राजनीती में विशेष योगदान है। इन दो महान विभूतियों का आज जन्मदिन है। हम समस्त देशवासी इनके देश के निर्माण और विकास में दी गई सेवायों के लिए हमेशा आभारी रहेंगें। इनके चरणों में हमारा शत -शत नमन। पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल जी के भारत के लोकतंत्र को मज़बूत करने और अपने नेतृत्व में भारत को विश्व का  एक परमाणु संपन्न शक्तिशाली राष्ट्र बनाने में महत्वपूर्ण योगदान है। 

 श्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म२५ दिसंबर१९२४को ग्वालियर में हुआ था।  वे पहले १६ मई से १ जून १९९६ तथा फिर १९ मार्च १९९८ से २२ मई २००४ तक भारत के प्रधानमंत्री रहे।वे भारतीय जनसंघ की स्थापना करने वालों में से एक हैं और १९६८ से १९७३ तक उसके अध्यक्ष भी रहे। वे जीवन भर भारतीयराजनीति में सक्रिय रहे। उन्होंने लम्बे समय तक राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। उन्होंने अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर प्रारम्भ किया था और देश के सर्वोच्च पद पर पहुँचने तक उस संकल्प को पूरी निष्ठा से निभाया। वाजपेयी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के पहले प्रधानमन्त्री थे जिन्होंने गैर काँग्रेसी प्रधानमन्त्री पद के 5 साल बिना किसी समस्या के पूरे किए। उन्होंने 24 दलों के गठबंधन से सरकार बनाई थी जिसमें 81 मन्त्री थे। कभी किसी दल ने आनाकानी नहीं की। इससे उनकी नेतृत्व क्षमता का पता चलता है।

           उल्लेखनीय है कि महामना मालवीय ने वाराणसी में पहलाकाशी  हिन्दू विष्वविधालय की स्थापना  सन् १९१६ में वसंत पंचमी के पुनीत दिवस पर की गई थी।यह एशिया का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय है। महामना मदन मोहन मालवीय (25 दिसम्बर 1861 - 1946) काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रणेता तो थे ही इस युग के आदर्श पुरुष भी थे। वे भारत के पहले और अन्तिम व्यक्ति थे जिन्हें महामना की सम्मानजनक उपाधि से विभूषित किया गया। पत्रकारिता, वकालत, समाज सुधार, मातृ भाषा तथा भारतमाता की सेवा में अपना जीवन अर्पण करने वाले इस महामानव ने जिस विश्वविद्यालय की स्थापना की उसमें उनकी परिकल्पना ऐसे विद्यार्थियों को शिक्षित करके देश सेवा के लिये तैयार करने की थी जो देश का मस्तक गौरव से ऊँचा कर सकें। मालवीयजी सत्य, ब्रह्मचर्य, व्यायाम, देशभक्ति तथा आत्मत्याग में अद्वितीय थे। इन समस्त आचरणों पर वे केवल उपदेश ही नहीं दिया करते थे अपितु स्वयं उनका पालन भी किया करते थे। वे अपने व्यवहार में सदैव मृदुभाषी रहे।कांग्रेस के निर्माताओं में विख्यात मालवीयजी ने उसके द्वितीय अधिवेशन (कलकत्ता-1886) से लेकर अपनी अन्तिम साँस तक स्वराज्य के लिये कठोर तप किया। उसके प्रथम उत्थान में नरम और गरम दलों के बीच की कड़ी मालवीयजी ही थे जो गान्धी-युग की कांग्रेस में हिन्दू मुसलमानों एवं उसके विभिन्न मतों में सामंजस्य स्थापित करने में प्रयत्नशील रहे। एनी बेसेंट ने ठीक कहा था कि"मैं दावे के साथ कह सकती हूँ कि विभिन्न मतों के बीच, केवल मालवीयजी भारतीय एकता की मूर्ति बने खड़े हुए हैं।श्री मालवीय जी का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष का कार्यकाल 1909–10; 1918–19; 1932-1933 तक रहा।हिन्दी के उत्थान में मालवीय जी की भूमिका ऐतिहासिक है। हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रथम अधिवेशन (काशी-1910) के अध्यक्षीय अभिभाषण में हिन्दी के स्वरूप निरूपण में उन्होंने कहा कि "उसे फारसी अरबी के बड़े बड़े शब्दों से लादना जैसे बुरा है, वैसे ही अकारण संस्कृत शब्दों से गूँथना भी अच्छा नहीं और भविष्यवाणी की कि एक दिन यही भाषा राष्ट्रभाषा होगी। "सनातन धर्म व हिन्दू संस्कृति की रक्षा और संवर्धन में मालवीयजी का योगदान अनन्य है।" जनबल तथा मनोबल में नित्यश: क्षयशील हिन्दू जाति को विनाश से बचाने के लिये उन्होंने हिन्दू संगठन का शक्तिशाली आन्दोलन चलाया और स्वयं अनुदार सहधर्मियों के तीव्र प्रतिवाद झेलते हुए भी कलकत्ता, काशी, प्रयाग और नासिक में भंगियों को धर्मोपदेश और मन्त्रदीक्षा दी। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रनेता मालवीयजी ने, जैसा स्वयं पं0 जवाहरलाल नेहरू ने लिखा है, अपने नेतृत्वकाल में हिन्दू महासभा को राजनीतिक प्रतिक्रियावादिता से मुक्त रखा और अनेक बार धर्मो के सहअस्तित्व में अपनी आस्था को अभिव्यक्त किया।

Monday 22 December 2014

त्याग और तपस्या की प्रतिमूर्ति एडवोकेट चौधरी शिवराज सिंह ''चौधरी साहब '' की 9 वीं पुण्यतिथि पर उनके चरणों में हमारा शत - शत नमन

कुछ चलते हैं पदचिन्हों पर ,कुछ औरों को राह दिखाते हैं।
हैं सूरमा वही इस धरती पर, जो पदचिन्ह नए बनाते  हैं।।

सादगी ,गंभीरता और समाज के हित में सोच की प्रवृति से ओत -प्रोत मानवीय मूल्यों के लिए किसी से भी समझौता न करनेवाले तवस्वी स्वर्गीय चौधरी शिवराज सिंह [एडवोकेट ] जी, आज के दिन 23 दिसम्बर ,2005 को इस लोक से अपनी जीवनयात्रा को पूर्ण करके परलोक धाम को चले गए। मेरे पिता तुल्य पूजनीय चौ. साहब के सानिध्य में मुझे कई वर्षों तक रहने और इस दुनिया को समझने ,जीने का अवसर मिला है। वो आज बेशक भौतिक रूप से हमारे साथ नहीं हैं, लेकिन अदृश्य रूप से अपनी मधुर स्मृतियों के साथ  हमारे मन -मष्तिक में हमेशा बने रहेंगे। आज भी जीवन की राह में आनेवाली कठिन परिस्थितिओं की  तपिश में उनका आशीर्वाद मुझे हवा के शीतल झोंके का अहसास करवाता रहता है ,जो मेरे को हर विकट और प्रतिकूल  परिस्थिति का और भी अधिक हौंसले के साथ सामना करने का साहस प्रदान करता है। मैं  आज उनकी 9 वीं पुण्यतिथि पर उनको अपना शत -२ नमन करता हूँ।मैं  ईश्वर से और दिवंगत आत्मा से भी यह प्रार्थना करता हूँ कि वह अपना स्नेह और आशीर्वाद हम पर हमेशा बनाये रहेंगे। 

            चौ. साहब नाम से पहचाने जानेवाले शिवराज जी ने हमेशा समाज कल्याण की सोच और मानवीय दृष्टिकोण को अपने से अलग नहीं होने दिया।  चौ. साहब लम्बे समय तक किसान नेता चौधरी चरण सिंह के निकट सहयोगी रहे और आपात्तकाल [ 1975 -1977 ] के दौरान  कारागार में भी रहे,लेकिन उन्होंने अपने सिद्धांतों से कोई समझौता नहीं किया।  उन्होंने आपात्तकाल के बाद 1977 के आम चुनाव में  जनता पार्टी के टिकट पर  लोकसभा सीट पर लड़ने के चौधरी चरणसिंह के  प्रस्ताव को स्वीकार न करके अपने निस्वार्थ सेवा भाव का जो अनूठा उदाहरण समाज के सामने रखा वह अतुलनीय है। उनके व्यक्तित्व का यह पक्ष  उनके अंतरमन में आसीन एक ऐसे तपस्वी का दर्शन समाज को करवाता है जो सिर्फ इस जीवन में त्याग की भावना को लेकर अपने कर्म मार्ग पर चलने में विश्वास रखता है।उनके सानिध्य में रहकर उन्होंने असंख्य अधिवक्ताओं को  क़ानूनी दांवपेंच बेशक सिखाये हों, परन्तु इसके साथ -२ उन्होंने समाज के  कमजोर और असहाय लोगों की सहायता करने की सीख भी दी। उनके पुत्र प्रवीण चौधरी वर्तमान में एक सफल अधिवक्ता हैं और शाहदरा बार एसोसिएशन के सचिव के रूप में कार्यरत हैं। स्वर्गीय चौधरी साहब के श्री चरणों में हमारा पुनः  शत -२ नमन।

Saturday 20 December 2014

क्या भारत में सिर्फ मुस्लिम और ईसाई संगठनों को ही धर्मांतरण का अभियान चलाने का अधिकार है ? सेकुलरता के झंडाबरदार इस सवाल का जवाब देंगे ?

 देश से काटकर अलग कर दिए गए इलाके हमारे हैं और भारत इनको लेकर रहेंगे ,यह हर भारतीय का संकल्प ही नहीं धर्म भी है। यह बात बिलकुल सही है  जो भूमि भारत की है और जो हमारे नपुंसक लीडरों के कारण  अतीत में देश से काटकर  हमारे से अलग कर दी गयी उस पर हमारा हक़ है और हम इसको हर हाल में लेकर ही रहेंगे। यह हमारा संकल्प है और हर भारतीय का यह धर्म भी है .जो लोग आज देश में धर्मांतरण को लेकर हो हल्ला मचा रहे हैं उन्हें न तो भारत से प्रेम है और ना ही इस देश के लोगों की सुरक्षा का कोई लेना -देना  है। यह लोग और दल सिर्फ और सिर्फ सत्तालोलुप हैं और वोटों की खातिर अपने देश की अस्मिता ,लोकतंत्र ,एकता और सुरक्षा को भी नज़रअंदाज़ कर रहे हैं .हम आरएसएस के प्रमुख श्री मोहन भागवत जी की बात का पूर्ण समर्थन करते हैं। इस बात का सभी को भली -भांति समझ लेना चाहिए  कि भारत में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता तभी तक कायम है जब तक यहां हिन्दू बहुसंख्यक हैं जिस दिन भी मुसलिम बहुमत में आ गए वो दिन इस देश से लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के लिए अंतिम दिन होगा ,इस बात का प्रमाण अफगानिस्तान ,पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे दुनिया के अनेक देश हैं। जहां भी  इस्लाम बहुमत में आया और वहां से लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता का जनाज़ा उठ गया .सेकुलरता का राग अलापने वाले नेताओं को यह भलीभांति जानकारी है कि उनकी आवाज़ भी तभी तक निकल रही है जब तक भारत में हिन्दुबाहुलता है अन्यथा सीरिया ,इराक़ ,पाकिस्तान और साऊथ अफ्रीका के कई मुस्लिम ताकतों के आतंकी जेहादियों की चपेट में आने के बाद वहां किस तरह से मानवता का लहू बहाया जा रहा है।.आश्चर्य कि बात यह है कि यह सारा खून -खराबा अल्लाह के सन्देश को फ़ैलाने के नाम पर किया जा रहा है। अभी पेशावर में स्कुली बच्चों के नरसंहार की घटना इसका सबसे ताज़ा उदहारण है।यह भी सत्य है कि आदिकाल से भारत और हिन्दुओं पर ही हमला हुआ है और जबरन हिन्दुओं को ही मुस्लिम और ईसाई बनाया गया। अगर आज यह भूले -भटके हिन्दू अपने मूल धर्म में लोटना चाह रहे हैं तो हो -हल्ला क्यों ?क्या अपने धर्म और मजहब का विस्तार और फैलाव करने का एकआधिकार सिर्फ मुसलमानो और ईसाई मिशनरी को ही है ?वो भी लालच ,लोभ ,गुमराह और बलात करके जबकि हिन्दू संगठन ऐसी कोई मानसिकता नहीं रखते। इस पर भी अगर कथित सेक्युलर लोग शोर -शराबा करते हैं तो वह सिर्फ अपने वोटों को खोने के अज्ञात भय के कारण ऐसा कर रहे हैं। अगर वास्तव में ही यह सेक्युलर लोगों को भारत के  धर्मनिरपेक्ष स्वरूप  की चिंता होती तो यह कश्मीर में जबरन पंडितों को मुसलमान बनाने और केरल , उड़ीसा व् उत्तर पूर्वी भारत के आदिवासी इलाकों में ईसाई मिशनरी द्वारा बड़ी मात्र में गरीब लोगों को गुमराह और लोभ देकर हिन्दू धर्म से पलायन करने की करतूतों पर भी इसी तरह हो -हल्ला करते ,लेकिन उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया ?इसका जवाब इन कथित सेक्युलर लोगों और लीडरों से हिन्दू समाज को पूछने का पूरा अधिकार है।


Tuesday 25 November 2014

' हिन्द दी चादर ' नौवें गुरु तेगबहादुर जी दे बलिदान दिवस [24 नवम्बर ] ते उनके चरणों में शत -2 नमन । समस्त हिन्दू समाज सदा -सदा इस महान और पुण्य आत्मा का ऋणी रहेगा।

दाता गुरु तेगबहादर , कहंदे जिसनु  हिन्द दी चादर  दिल्ली जा सीस वारिया ,पंडितां दा वेख निरादर। ' हिन्द दी चादर ' नौवें गुरु तेगबहादुर जी दे  बलिदान दिवस [24 नवम्बर ,1675]पर उनके चरणों में हमारा शत -2 नमन। गुरूजी ने मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब की मुस्लिम कटटरता और हिन्दुओं पर किये जाने वाले अत्याचार के विरुद्ध  अपना बलिदान दे दिया। गुरूजी ने पंडितों के अपमान से विचलित होकर अपना सीस दिल्ली में धर्म के रक्षार्थ अपना सीस देकर जो उपकार किया उसका हिन्दू धर्म और उसके अनुयायी हमेशा ऋणी रहेंगे। गुरु जी का जन्म 1 अप्रैल ,1621 को अमृतसर में श्री त्यागमल जी के यहां हुआ था। विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय है।

"धरम हेत साका जिनि कीआ
सीस दीआ पर सिरड न दीआ।"
इस महावाक्य अनुसार गुरुजी का बलिदान न केवल धर्म पालन के लिए नहीं अपितु समस्त मानवीय सांस्कृतिक विरासत की खातिर बलिदान था। धर्म उनके लिए सांस्कृतिक मूल्यों और जीवन विधान का नाम था। इसलिए धर्म के सत्य शाश्वत मूल्यों के लिए उनका बलि चढ़ जाना वस्तुतः सांस्कृतिक विरासत और इच्छित जीवन विधान के पक्ष में एक परम साहसिक अभियान था।

आततायी शासक औरंगज़ेब की धर्म विरोधी और वैचारिक स्वतंत्रता का दमन करने वाली मस्लिम कटटरता और कठमुल्लेपन फिरकापरस्त नीतियों के विरुद्ध गुरु तेग बहादुरजी का बलिदान एक अभूतपूर्व ऐतिहासिक घटना थी। यह गुरुजी के निर्भय आचरण, धार्मिक अडिगता और नैतिक उदारता का उच्चतम उदाहरण था। गुरुजी मानवीय धर्म एवं वैचारिक स्वतंत्रता के लिए अपनी महान शहादत देने वाले एक क्रांतिकारी युग पुरुष थे।  गुरुजी ने धर्म के सत्य ज्ञान के प्रचार-प्रसार एवं लोक कल्याणकारी कार्य के लिए कई स्थानों का भ्रमण किया। आनंदपुर से कीरतपुर, रोपण, सैफाबाद के लोगों को संयम तथा सहज मार्ग का पाठ पढ़ाते हुए वे खिआला (खदल) पहुँचे। यहाँ से गुरुजी धर्म के सत्य मार्ग पर चलने का उपदेश देते हुए दमदमा साहब से होते हुए कुरुक्षेत्र पहुँचे। कुरुक्षेत्र से यमुना किनारे होते हुए कड़ामानकपुर पहुँचे और यहाँ साधु भाई मलूकदास का उद्धार किया।

यहाँ से गुरुजी प्रयाग, बनारस, पटना, असम आदि क्षेत्रों में गए, जहाँ उन्होंने लोगों के आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक, उन्नयन के लिए कई रचनात्मक कार्य किए। आध्यात्मिक स्तर पर धर्म का सच्चा ज्ञान बाँटा। सामाजिक स्तर पर चली आ रही रूढ़ियों, अंधविश्वासों की कटु आलोचना कर नए सहज जनकल्याणकारी आदर्श स्थापित किए। उन्होंने प्राणी सेवा एवं परोपकार के लिए कुएँ खुदवाना, धर्मशालाएँ बनवाना आदि लोक परोपकारी कार्य भी किए। इन्हीं यात्राओं के बीच 1666 में गुरुजी के यहाँ पटना साहब में पुत्र का जन्म हुआ। जो दसवें गुरु- गुरु गोबिन्दसिंहजी बनें।  गोबिंद सिंह जी ने अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए मुग़ल शासकों की धार्मिक कटटरतावादी और हिन्दू धर्म विरोधी नीतिओं के विरुद्ध सशत्र संघर्ष किया। उनके 4 पुत्र धर्मयुद्ध में बलिदान हो गए और उन्होंने भी अपना जीवन धर्म की स्थापना और मानवीय मूल्यों के लिए न्यौछावर कर दिया। इन तीनों पीढ़ियों के बलिदान का समस्त हिन्दू समाज सदा -सदा ऋणी रहेगा। इन महान आत्माओं के चरणों में हम हमेशा नतमस्तक रहने का प्रण लेते हैं।



Thursday 20 November 2014

Kya Rampal jaise Pakhndi aur Dhaungi Baba Snatan Dharam ko khokhla karke Hinduon Ki bhavnaon se khilwad nahi kar rahe ?


Hinduon ki vidmbna yhi hai ki vah har Pakhndi aur Dhurt ko Baba -Sant mankar uske aage natmastak ho rahe hein aur unki esi andh aastha ka nazayaz fayda Rampal jaise pakhandi dhurt log uthane mein lage huye hein .Bahut sare thhag apne ko Bhagwan ka Avtar btakar logon se apni puja aur aarti utrwane mein lage huye hein .Pakhandi aur Thhag Baba logon ko esiliye gumrah kar lete hein kyonki Hindu apne Devi -Devtaon aur Ram -Krishan avtaron se jyada vishwas en dhaungi babaon aur tantrikon mein karne lage hein aur esi ka labh rampal jaise log uthha lete hein .Hinduon ko apni soch ko badlna chahiy aur apne Devi -Devtaon aur Avtaron mein vishwas rakhna chahiy naki Dhaungi ,Pakhndi Babaon aur Tantrik mein. En thhagon ke aage apni samsyaon ke liye apna matha ragdhne se koi fayda nahi honewala ,es bat ko Hindu Smaz aur Visheshkar Hmari Mata -Bahne avshy jan len .Yh Pakhndi bhole -bhale aur dukhi logon ki bhavnaon se khilwad karke unki dhan -daulatllot rahe hein aur dharambhiru mahilon ki asmattak  ko bhi lootne se baz nahi aa rahe .Yh Pakhndi Khud ko Bhagwan hone ka dawa karke Snatan Dharam ko khokhla aur Hinduon ko unki jadhon se katne ke shadyantr mein din -rat lage hein aur eska sabse jita -jagta udhaharn Rampal hai

Thursday 13 November 2014

भारत का बंटवारा स्वीकार करके दुनिया में आतंकवाद के जनक पाकिस्तान नामक दानव को अस्तित्व में लानेवाले और कश्मीर समस्या को नासूर बनानेवाले नेहरू आधुनिक भारत के निर्माता कैसे हो सकते हैं ?

आजादी के उपरांत प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को आधुनिक भारत का निर्माता बताना कहां तक सही है ?क्या हमें इस बात का जवाब नहीं मिलना चाहिय कि भारत का बंटवारा करने के लिए जिन्ना के साथ -2 नेहरू भी बराबर के दोषी क्यों नहीं थे ? देश को आज़ादी के साथ बंटवारे का गहरा जख्म देने के जिम्मेदार लोग आधुनिक भारत के निर्माता कैसे हो सकते हैं ? पंजाब और बंगाल की बर्बादी के लिए क्या हम नेहरू को दोषी ठहरा सकते हैं ? क्या 1947 को  टूटने से नहीं बचाया जा सकता था अगर यह आवश्यक हो गया था तो पाकिस्तान का एक छोर पश्चिम और दूसरा छोर पूर्व में बनाने के पीछे बंटवारे में लगे नेताओं की किस सोच का परिणाम था ? क्या यह पंजाबियों और बंगालियों को विभाजित करके आज़ाद भारत में कमज़ोर बनाने की सोची -समझी रणनीति का हिस्सा नहीं माना जा सकता ? बंटवारे के उपरांत भी पंजाब को तीन टुकड़ों में बाँटना और उत्तरप्रदेश जैसे विशाल भूभाग और आबादी वाले राज्य को एकजुट बनाये रखने के पीछे नेहरू और कांग्रेस की कौनसी रणनीति थी ? पंजाब को पूरी तरह से बर्बाद करने के बाद भी नेहरू के बाद उनकी सपुत्री इन्द्रा गांधी और कांग्रेस ने पंजाब के एक ही माँ की 2 संतानो -हिन्दू -सिखों को एक दूसरे के खिलाफ शत्रु बनाकर खड़ा करने की कोई कोर -कसर बाकि नहीं छोड़ी। क्या यह नेहरू का पंजाबियों के प्रति कौन सा स्नेहपूर्ण रवैय्या था, जिसे उनकी मौत के बाद भी उनकी सपुत्री और उनकी प्यारी पार्टी कांग्रेस ने भी नहीं छोड़ा ?पार्टिशन के दौरान लगी साम्प्रदायिक आग ने लगभग 10 लाख अभागे हिन्दू -मुस्लिमों की जिंदगी को लील लिया था और करोड़ों लोगों को देश की अपना घर -बाहर छोड़ कर अपने ही देश में शरणार्थी बनकर आजादी की कीमत चुकाने को विवश कर देने वाले आदरणीय जवाहर लाल नेहरू और कांग्रेस कैसे आधुनिक भारत की निर्माता है? इस बात का जवाब क्या सोनिया गांधी और उनके सपुत्र राहुल गांधी या उनकी चारण मण्डली के पास है ?क्या कश्मीर के एक तिहाई भाग पर पाकिस्तान के अधिपत्य में 1948 में चले जाने और बाकी बचे कश्मीर को आज तक नासूर बनाने के लिए पंडित नेहरू की वैज्ञानिक सोच और नीतियों का परिणाम नहीं है ? सन 1962 में चीन के हाथों भारत को बुरी तरह से लहूलुहान करवाने और तिब्बत जैसे एक बड़े भूभाग पर चीन के अधिपत्य को स्वीकार करनेवाले नेहरू किस तरह से आधुनिक भारत के निर्माता हैं ,इसका जवाब कौन देगा ? भारत के एक तिहाई भूभाग पर पाकिस्तान रूपी इस्लामिक देश जो आतंकवाद का जनक है और पूरी दुनिया के लिए खतरा बन चूका है ,ऐसे दानव को अस्तित्व में लानेवाले लोग चाहे वो नेहरू हो ,जिन्ना हो, अँगरेज़ हों या फिर देश को आज़ादी दिलाने का दम्भ भरनेवाली कांग्रेस न तो भारत के न ही दुनिया के और न ही मानवता के हितैषी हो सकते हैं ?