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Sunday 12 April 2015

परम् श्रद्धेय चौधरी रामलाल भाटिया जी की 21 वीं पुण्यतिथि पर चरणों में हमारा शत -शत नमन , उनका आशीर्वाद ही हमारे लिए ईश्वर का वरदान है।

यादां विछड़े सजन दियां आइयां
अखियाँ चो मी वसदा। 


 [परम पूजनीय पिता चौधरी रामलाल भाटिया] 

    बीस वर्ष पूर्व आप आज के दिन 12 अप्रैल ,1995 को बेशक भौतिक रूप से हमसे दूर चले गए , परन्तु हमारे मन -मस्तिष्क मे  बसी आपकी अमिट मधुर स्मृतियाँ समय -समय पर मुझे इस बात का अहसास कराती रहती हैं कि  आप  हमसे अलग होकर कहीं भी नहीं गए अपितु आप आज भी हमारे साथ ही हैं। जब कभी -भी किसी ऐसी विपत्ति ने मुझे घेरा जिसमें आपके मार्गदर्शन या सहयोग की आवश्यकता  महसूस हुई तो  आपने अदृश्य रूप में उस उलझन से निकलने का  मार्गदर्शन देकर अपने  पिताधर्म को निभाया।आपके द्वारा अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध  संघर्ष करने के बताए गए मार्ग पर मैं आज भी चल रहा हूँ । आपने हमेशा यही कहा  कि 'विरोधी चाहे कितना भी शक्तिशाली और प्रभावशाली क्यों न हो अगर हमारे पास सच्चाई और अपने बड़े -बजुर्गों का आशीर्वाद है तो जीत हमें ही मिलनी तय है,'आपकी इसी सीख के कारण मैं  भी समाज के पीड़ित वर्ग के  कमजोर और असहाय व्यक्ति के साथ चट्टान की तरह खड़ा होकर उसकी पीड़ा को मुखर वाणी देकर सत्ता के शीर्ष पर बैठे शासकों तक पहुंचाकर उसकी समस्या का निदान करवाकर ही दम लेता हूँ और आपके आशीर्वाद से जीत हमेशा मेरे साथ आ खड़ी होती है। मेरी आपसे और ईश्वर से यही कामना है कि आपके  स्नेह और आशीर्वाद की छत्रछाया सदैव हम पर बनी रहेगी। मैं आज भी आपके द्वारा दी गई जनहित में कार्य करने प्रेरणा के कारण ही  चौ. रामलाल भाटिया चैरिटेबल ट्रस्ट के माध्यम से समाज के पिछड़े और कमजोर वर्ग के लोगों के हित में कार्य करने को अपना परम् सौभाग्य मानता हूँ। आपके चरणों में हम सदैव नतमस्तक रहेंगे,और आपके दिखाए रस्ते पर चलकर जीवन व्यतीत करने को ही अपना क्षत्रिय धर्म-कर्म मानते हैं। 

Saturday 4 April 2015

केंद्र सरकार राष्ट्र और मानवता के हित में सभी धर्मावलम्बियों से परिवार नियोजन का नियम सख्ती से लागू करवाए और इसको न माननेवालों से सभी सरकारी सुविधाएँ छीन ले।



 दिल्ली [अश्विनी भाटिया ] दुनिया में जिस गति से मुस्लिम आबादी बढ़ रही है उसको लेकर कई अन्य धर्म को माननेवाले लोगों में यह चिंता का विषय है बनता जा रहा है, परन्तु धर्मनिरपेक्षता की बीमारी से ग्रस्त हिन्दू इससे सचेत नहीं हुआ। इतिहास साक्षी है कि मुस्लिम आक्रान्ताओं के जुल्मों और अत्याचारों  का  सबसे अधिक शिकार भारत और हिन्दू समाज ही हुआ है। इस चिंता का कारण भी जायज है ,क्योंकि जिस किसी भी क्षेत्र या देश में मुस्लिम बहुलता हुई वहां पर न तो लोकतंत्र ही जिन्दा रहा और न ही धर्मनिरपेक्षता नाम की कोई वस्तु शेष रही। इसका ताज़ा उदाहरण इराक ,ईरान, अफगानिस्तान और 1947 में भारत से काटकर अलग किये गए क्षेत्र जिसको पाकिस्तान का नाम दिया गया और 1971 में उससे अलग करके बने बांग्लादेश नामक इस्लामिक देश हैं। और तो और भारत के कश्मीर की हालत भी हमारे सामने है वहां मुस्लिम आबादी अधिक होने के कारण किस तरह से हिन्दू -सिखों को मारा गया और उनको अपने घरों से बेघर कर दिया गया। इन मुस्लिम देशों में कैसा लोकतंत्र है ?कैसी धर्मनिरपेक्षता है और कैसी सामाजिक शांति है? सभी भली -भांति जानते हैं। इन देशों में गैर मुस्लिमों की दुर्दशा का जीता -जगता प्रमाण आज इराक ,सीरिया ,पाकिस्तान और बांग्लादेश में देखा जा सकता है ?अफ़सोस है कि लगभग 700 वर्षों तक मुस्लिम आक्रांताओं की गुलामी में रहकर हिन्दुओं ने जिन अत्याचारों और आतंक को झेला उससे हिन्दू समाज ने कोई सबक नहीं सीखा है और लगभग 200 वर्षों तक अंग्रेजी शासकों की गुलामी के बाद भी हम सचेत नहीं हैं क्यों ?अगर आज कोई हिन्दू नेता हिन्दुओं को अधिक बच्चे पैदा करने की सलाह देता है तो सबसे पहले मीडिया हो -हल्ला मचाता है और उसके बाद धर्मनिरपेक्षता के कथित झंडाबरदार हंगामा करके अपने को देश के सबसे बड़े हितैषी होने का दावा करते हैं ,क्यों ? क्यों इनमें से कोई भी यह बात नहीं करता कि एक जेहादी एजेंडे के तहत दिन -रात बढ़ाई जा रही मुस्लिम बच्चों की पैदावार पर सरकार रोक लगाए ? आज़ाद भारत में समानता का ढोल पीटने वाले शासक और राजनैतिक -समाजिक -धार्मिक नेता यह बताएं कि सारी पाबंदियां हिन्दुओं पर ही क्यों ? आज ऐसे हिन्दुओं की भी कमी नहीं है जो सिर्फ पैसा कमाने और ऐशो -आराम के संसाधनों को एकत्र करने में ही जुटे हुए हैं। उन्हें इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि आनेवाले दशकों में अगर मुस्लिम इसी गति से बच्चों की पैदावार करते रहे और हिन्दू सिर्फ एक -दो पर ही अटके रहे तो उनकी आनेवाली नस्लों का क्या होगा ?क्या भारत में भी सीरिया -इराक जैसे हालत पैदा होने से कोई रोक पायेगा ? क्या मुस्लिम बहुल होते ही भारत में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता बच पायेगी ? इस बात का चिंतन आज हिन्दुओं को करना होगा और भारत की सरकार पर यह दवाब बनाना होगा कि वह राष्ट्र और मानवता के हित में सभी धर्मावलम्बियों से परिवार नियोजन का नियम सख्ती से लागू करवाए और इसको न माननेवालों से सभी सरकारी सुविधाएँ छीन ले। अगर सरकार ऐसा कानून नहीं लागू करती  है तो हिन्दू भी एक -दो बच्चों को पैदा करने की मानसिकता को छोड़कर अपनी आनेवाली नस्लों ,अपने धर्म और अपने देश के भविष्य को खतरे में पड़ने से बचाने के लिए अधिक बच्चे पैदा करें।इसी में लोकतंत्र  और धर्मनिरपेक्षता की भलाई है और इसी में भारत में शांति कायम रह सकती है और उसका भविष्य भी  उज्जवल है।केंद्र 

Saturday 28 March 2015

अगर हिन्दू चमत्कार और आडंबरों को त्यागकर अपने भगवान श्री राम और श्री कृष्ण के द्वारा स्थापित सिद्धांतों को ही अपना लें तो उसकी हर समस्या का निदान हो सकता है।

भगवान श्री राम के जन्मोत्सव [रामनवमीं  28 मार्च ,2015 ] पर उनके चरणों में हमारा शत -शत नमन । भारतीय संस्कृति और अस्मिता की पहचान और सबसे बड़े अवतार मर्यादाप्रशोत्तम श्री राम के द्वारा स्थापित सिद्धांतों पर चलकर ही हिन्दू जनमानस अपनी सभी समस्याओं और चुनौतिओं का मुकाबला कर सकता हैं। हिन्दुओं की दुविधा ही यही है कि वह अपने भगवान की पूजा करने और उनसे चमत्कार करने  पर ही विश्वास करते हैं , लेकिन वह [हिन्दू ] अपने भगवानों [राम-कृष्ण ] के बताये रास्ते पर चलने से परहेज करते हैं, हिन्दुओं की दुर्दशा होने का कारण ही यही है। अगर हिन्दू चमत्कार और आडंबरों को त्यागकर अपने भगवान श्री राम और श्री कृष्ण के द्वारा स्थापित सिद्धांतों को  ही अपना लें तो उसकी हर समस्या का निदान हो सकता है। अफ़सोस इस बात का है कि आज हिन्दू समाज जिसमें विशेषतौर से महिलाएं अपने अवतारों से ज्यादा विश्वास मजारों - मुल्ला -मौलवियों ,पाखंडी बाबाओं और ज्योतषियों -तांत्रिकों में करके आर्थिक और शारीरिक शोषण का शिकार हो रहे हैं। हमारे अवतारों ने अन्याय और आततायी शक्तियों के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध करके मानव जाति का उद्धार किया। लेकिन हिन्दुओं ने अपने सामने आनेवाली चुनौतियों का मुकाबला करने की बजाय अपने भगवानों से ही चमत्कार करने की गुहार की और गुलामी की बेड़ियों में बंध गए । हम हिन्दुओं ने लगभग एक हज़ार साल तक गुलाम रहने के बावजूद भी कोई सबक नहीं सीखा और आज भी पूर्व में की गई अपनी पीढ़ियों की गलती को दोहरा रहे हैं। आज भी अगर हम सचेत नहीं हुए और भगवानों की  सिर्फ पूजा करने और कथा -कहानियाँ सुनने में ही लगे रहे तो हम भविष्य की गंभीर चुनौतियों का सामना नहीं कर पाएंगे। मगर  हिन्दू समुदाय  आज भी अपने अवतारों से मिले अन्याय और आततायी ताकतों  विरुद्ध  संघर्ष करने के  सन्देश को भूलकर सिर्फ चमत्कारों और पूजा -पाठ में ही  अपनी समस्यायों का निदान ढूंढ रहा है। ऐसा करके वह अपने भगवानों के साथ तो विश्वासघात करही  रहे हैंसाथ  ही   अपनी आनेवाली पीढ़ियों के लिए भी गंभीर चुनौतियों और संकटों को पैदा कर रहे हैं। 

Sunday 22 March 2015

आज़ाद भारत की सरकारों ने आज़ादी का सारा श्रेय सिर्फ गांधी -नेहरू तक सीमित करके असंख्य भारत माँ के सपूतों के साथ अन्याय किया। शहीदी -दिवस पर भारत माँ सपूतों के चरणों में हमारा शत -2 नमन।

दिल्ली [अश्विनी भाटिया ] , भारत माँ को गुलामी की जंजीरों से मुक्त करवाने के लिए असंख्य सपूतों ने अपने प्राणो की आज़ादी की लड़ाई मेंआहुति दे दी।भारत माँ के इन सपूतों में भगत सिंह ,राजगुरु और सुखदेव का नाम भी स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। आज इनके बलिदान दिवस पर हम इनके चरणों में अपना शत -२ नमन करते हैं।भारत माँ के इन  सपूतों  की कुर्बानी के कारण ही हम आज आज़ादी से साँस ले रहे हैं। इनका ऋण हम कभी नही उतार सकते। अफ़सोस है की बात यह है कि आज़ाद भारत की सरकारों ने आज़ादी का सारा श्रेय सिर्फ गांधी - नेहरू तक सीमित करके असंख्य भारत माँ के सपूतों के साथ अन्याय किया।  आज के दिन  23 मार्च , 1931 को भारत में अंग्रेजी सरकार ने आज़ादी के दीवाने भगत सिंह ,राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर लटका दिया गया था।यह दिन भारत में शहीदी -दिवस के रूप में याद किया जाता है।  शहीद दिवस के मौके पर भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को श्रद्धांजलि देने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हुसैनीवाला गॉव जा रहे हैं, जहां इन शहीदों की समाधियों पर अपनी श्रद्धांजलि देंगे। इसके बाद पीएम मोदी स्वर्ण मंदिर और जलियांवाला बाग भी जाने वाले हैं। जानकारी के अनुसार, पीएम मोदी दोपहर एक बजे पंजाब के फिरोजपुर में हुसैनीवाला पहुंचेंगे। हुसैनीवाला में तीनों शहीदों की समाधि है। 23 मार्च 1931 को ही अंग्रेजों ने शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी थी। शहीदों को श्रद्धांजलि देने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोपहर दो बजे अमृतसर में स्वर्ण मंदिर मत्था टेकने जाएंगे। प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी पहली बार स्वर्ण मंदिर पहुंचेंगे। वह शहीदों को श्रद्धांजलि देने जालियांवाला बाग भी जाएंगे। 13 अप्रैल 1919 को जनरल डायर ने यहीं पर निहत्थे क्रांतिकारियों पर गोलियां चलवाई थीं।
भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर, 1907 को गॉव बंगा जिला लायलपुर पंजाब [ अब पाकिस्तान ] में हुआ था। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था। यह एक सिख परिवार था जिसने आर्य समाज के विचार को अपना लिया था। उनके परिवार पर आर्य समाज व महर्षि दयानन्द की विचारधारा का गहरा प्रभाव था ! अधिकांश क्रांतिकारियों को देश प्रेम की प्रेरणा महर्षि दयानन्द के साहित्य व आर्य समाज से मिली ! अमृतसर में १३ अप्रैल १९१९ को हुए जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड ने भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था। लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की आज़ादी के लिये नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी।
       भगत सिंह  पहले एक किशोर के रूप में ब्रिटिश राज के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हुए  था और क्रांति करने के लिएआज़ादी की लड़ाई में कूद पड़े। एक धर्म प्रयाण परिवार में जन्मे भगत सिंह बाद एक नास्तिक बन गए और यूरोपीय क्रांतिकारी आंदोलनों का अध्ययन करके वे अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध क्रांतिकारी आंदोलन की ओर आकर्षित हो गए । उन्होंने कई क्रांतिकारी संगठन में शामिल हो कर आज़ादी के संग्राम की अलख जगाने का अदभुत  काम किया । भगत सिंह  ने जब जेल में 64 दिन का उपवास किया।उन्होंने  भारतीय और ब्रिटिश राजनीतिक कैदियों के लिए समान अधिकार की मांग की । उन्होंने कहा कि पुलिस लाठीचार्ज में  वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय के निधन के प्रमुख आरोपी के जवाब में एक पुलिस अधिकारी की शूटिंग के लिए फांसी पर लटका दिया गया था। उनकी विरासत भारत में युवा प्रेरित भारतीय स्वतंत्रता के लिए लड़ाई शुरू करने और भारत में समाजवाद की वृद्धि करने के लिए योगदान दिया।भगत सिंह ने लिखा कि 
हमें यह शौक है देखें, सितम की इन्तहा क्या है?
दहर से क्यों ख़फ़ा रहें, चर्ख का क्या ग़िला करें।
सारा जहाँ अदू सही, आओ! मुक़ाबला करें।।
इन जोशीली पंक्तियों से उनके शौर्य का अनुमान लगाया जा सकता है। चन्द्रशेखर आजाद से पहली मुलाकात के समय जलती हुई मोमबती पर हाथ रखकर उन्होंने कसम खायी थी कि उनकी जिन्दगी देश पर ही कुर्बान होगी और उन्होंने अपनी वह कसम पूरी कर दिखायी। 

Friday 20 March 2015

हिन्दू नववर्ष 2072 एवं नवरात्रि की हार्दिक शुभ कामनाएं।

आप सभी को हिन्दू नववर्ष 2072 एवं नवरात्रि की हार्दिक शुभ कामनाएं। यह वर्ष आपके और आपके परिवार के लिए मंगलकारी और कल्याणकारी साबित हो। हमारी कामना है कि इस वर्ष और नवरात्रि में माँ दुर्गा आपकी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करेगी। 

Thursday 19 March 2015

पानी के दाम बढ़ाकर दिल्ली की जनता से केजरीवाल सरकार ने क्यों किया धोखा ?अब क्यों बढ़ रही है दिल्ली में महंगाई ?

दिल्ली [अश्विनी भाटिया ] क्या ऐसा नहीं लगता कि  केजरीवाल सरकार ने पानी के दाम बढ़ा कर इस बात का दंड  दिल्ली की जनता को दिया है कि उसने झूठ और धोखेबाज़ों के हाथ में प्रचंड बहुमत की सरकार क्यों सौंपी? विधानसभा चुनावों में जनता से बड़े -२ वायदे करनेवाली आप पार्टी अब  सत्ता के नशे में चूर हो चुकी है ,इसीलिए वह अब अपनी मनमानी पर उत्तर आई लगती है। दिल्ली की जनता को मुफ्त पानी देने का वायदा करनेवाली 'आपकी' सरकार ने  अब एक माह में 20 हज़ार लीटर से अधिक खर्च करनेवालों पर पानी के बिल में 10 प्रतिशत का सरचार्ज लगा कर यह सन्देश दे दिया है कि उसके असली इरादे क्या हैं ?आप पार्टी ने चुनाव में नारा दिया था 'बिजली हाफ और पानी माफ़ 'चुनाव जितने के बाद अपने कहे से पलटी मारकर सिर्फ 400 यूनिट तक के बिलों को रियायत का ऐलान किया गया और एक परिवार को  प्रतिमाह 20 हज़ार लीटर पानी फ्री देने और इससे अधिक खर्च करनेवाले उपभोक्ताओं को पूरा बिल देने का निर्णय इस सरकार की धोखेबाज़ी का नमूना था। अभी लोगों को बिजली -पानी की छूटवाले बिल भी नही मिले हैं और सरकार ने पानी के दाम  बढ़ाकर यह बता दिया है कि उनकी कथनी और करनी में अंतर है।कुर्सी पर जमने से पहले महंगाई का रोना रोनेवाले औरइसके लिए  मोदी को दोषी ठहराने वाले केजरीवाल अब मुख्यमंत्री बन गए हैं फिर दिल्ली की जनता को महंगी सब्जियां क्यों खरीदनी पड़  रही हैं ? क्यों 'आप सरकार' इस ओर से आँखे चुराए हुए है ? इस बात का जवाब दिल्ली की जनता को चाहिए।

Friday 6 February 2015

दिल्ली के लोग अपने मत का 100 प्रतिशत प्रयोग करके फ़तवा देनेवालेशाही इमाम जैसे कटटरवादी धर्म के ठेकेदार को उसकी असली औकात दिखा दें।

लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए मतदान करना बहुत ही आवश्यक है।दिल्ली के जामा मस्जिद के शाही इमाम के मुसलमानों को आप पार्टी को वोट देने का फ़तवा देकर धर्मनिरपेक्षता को एक बार फिर चुनौती दी है।दिल्ली की जनता इस फतवे का मुंह तोड़ जवाब अपने मत का 100 प्रतिशत मतदान उस पार्टी जिसके विरुद्ध फ़तवा आया है, के पक्ष में करके शाही इमाम जैसे कटटरवादी धर्म के ठेकेदार को उसकी असली औकात दिखा दें।

Tuesday 3 February 2015

भाजपा की उम्मीदवार किरणबेदी के कृष्णा नगर कार्यालय पर हुए हमले की दर्ज़ हुई एफ़ आई आर

 दिल्ली। भाजपा की उम्मीदवार किरण बेदी के कृष्णा नगर कार्यालय पर हुए हमले की एफ़ आई आर दर्ज़ की गई है। भाजपा की दिल्ली की सीएम पद की उम्मीदवार श्रीमती किरण बेदी जो कि कृष्णा नगर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रही हैं, के चुनाव कार्यालय पर कल 2 जनवरी को  कुछ लोगों द्वारा किये गए हमले की घटना पर पूर्वी दिल्ली के थाना जगत पुरी में एक आपराधिक मामला दर्ज़ हुआ है। इस हमले में भाजपा के कुछ कार्यकर्त्ता भी घायल हुए थे। पुलिस ने यह रिपोर्ट भारतीय जनता पार्टी के जिला अध्यक्ष डॉ कँवर सेन की शिकायत पर दर्ज़ की है। 


है।  

Monday 26 January 2015

देश के लोकतंत्र ,गणतंत्र और धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के अस्तित्व के लिए जेहादी जनून है खतरनाक। शक्तिशाली भारत ही है इसका सटीक जवाब।

दिल्ली [अश्विनी  भाटिया ] भारत के 66 वें गणतंत्र दिवस पर सभी देशवासिओं को बहुत - बहुत हार्दिक शुभकामनाएं। इस अवसर पर हम सब देशवासिओं को भारत को विश्व पटल पर सबसे शक्तिशाली ,समृद्धशाली और वैभवशाली राष्ट्र के रूप में स्थापित करने के लिए दृढ़ संकल्प लेना चाहिए और आतंकवाद के विरुद्ध एकजुट होकर लड़ने की शपथ भी लेनी चाहिए।यही शपथ ही हमारे देश की अस्मिता और स्वाभिमान पर अपना सब कुछ न्योछावर करनेवाले असंख्य शहीदों को हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी, जिनकी[शहीदों ] वजह से हम भारत को एक गणतंत्र के रूप में देख पा रहे हैं। एक शक्तिशाली भारत ही अपनी आंतरिक और बाहरी चुनौतिओं का सामना करने में सक्षम हो सकता है।
             पूरी दुनिया इस समय आतंकवाद की आग से झुलस रही है और इस्लाम के नाम पर आतंक फ़ैलाने वाले लोग पूरी मानवजाति को निगलने की नित नई बेहूदी हरकतों को करने में लगे हुए हैं। भारत तो इस आग की तपिश को पिछले काफी वर्षों से झेल रहा था और विश्व के कई विकसित देश इस समस्या से अनभिज्ञ थे,अब जब उन देशों में भी इस आग की लपटें उठने लगी हैं तो वो बिलबिला उठे हैं और अब उन्हें भारत की चिंता भी  कुछ वाजिब लगने  लगी है। अमेरिका जैसी सुपर पॉवर जो कई दशकों से आतंकवाद के आका पाकिस्तान को अपनी गोद में बैठाकर अपना उल्लू सीधा करने में मजा ले रहा था,जब स्वयं उस पर इस आतंक की मार पड़ी तो वह बुरी तरह से बौखला गया तब  उसको इस आतंक की समस्या की गंभीरता का अहसास हुआ और उसने आतंकवाद को नष्ट करने की दिशा में कुछ पहल की। अब पूरा विश्व आतंक से चिंतित है और इसको पूरी मानव जाति के अस्तित्व के लिए खतरामान रहा है। अमेरिका के कान तो तब खड़े हुए जब उसको अपने सबसे बड़े दुश्मन ओसामा बिन लादेन के पाक में मिलने की जानकारी मिली ,इसके बाद तो पाकिस्तान की असलियत भी उसके सामने आ गई। अब विश्व भारत की चिंता को समझकर पाकिस्तान को आतंक का आका मान रहा है ,यह भारत की कूटनीतिक जीत मानी जा सकती है। अब अमेरिका को पाक से भारत अधिक विश्वसनीय मित्र लग रहा है और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बन जाने के बाद दुनिया भारत को अधिक गंभीरता से जानना चाह रही है।चिंता की बात यह है कि  भारत के भीतर भी कई ऐसे लोग बैठे हैं जिनकी अपने मजहब को फ़ैलाने के जनून में जिहादी होने में अधिक रूचि है और वो अपने विदेशी खलीफाओं के निर्देश पर भारत में आतंकवाद की फसल बोने  के षड्यंत्र में लगकर जन्नत की सैर के सपने लेते हैं। देश में छुपे आतंक के इन सपोलों को देश के कुछ राजनैतिक और कुछ अन्य संगठन जो खुद को कथित धर्मनिरपेक्षता और मानवाधिकारों के झंडाबरदारकहते हैं वो सब इन आतंकी जनुनियों को खाद -पानी उपलब्ध करवाने में दिन रात जुटे हुए हैं।हमें इन लोगों और संगठनों की पहचान करके सावधान रहना आवश्यक है। अगर हम ऐसे लोगों के विरुद्ध एकजुट होकर खड़े होने की हिम्मत कर लें तो कोई भी हमारे राष्ट्र का बल भी बांका नहीं कर सकता और हमारी यही हिम्मत भारत के गणतंत्र,लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के रहने की गारंटी होगी।

Sunday 25 January 2015

भारत के 66 वें गणतंत्र दिवस पर सभी देशवासिओं को बहुत - बहुत हार्दिक शुभकामनाएं। शक्तिशाली ,वैभवशाली व समृद्धशाली भारत की कामना के साथ -जय हिन्द

ओबामा की यात्रा से अमेरिका - भारत के बीच दोस्ती और विश्वास की डोर और भी अधिक होगी मजबूत। 6 साल से लटकी परमाणु संधि पर लगी मोहर ।

दिल्ली। [अश्विनी भाटिया ] इस बार भारत के गणतंत्र दिवस समारोह [ 26 जनवरी ,2015 ] में मुख्य अतिथि अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा के आज भारत आगमन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं जाकर स्वागत किया।ओबामा के साथ अमरीका का एक उच्च स्तरीय शिष्टमंडल और उनकी पत्नी मिशेल ओबामा भी यात्रा पर आई हैं। ओबामा ऐसे पहले अमरीकी राष्ट्रपति हैं जो भारतीय गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होंगे।प्रधानमंत्री  श्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे के दौरान उनसे विशेष आग्रह किया था जिसको स्वीकार करके ओबामा ने भारत के गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बनने का गौरव प्राप्त किया है। ऐसी सम्भावना है कि दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका और सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के दोनों नेताओं की मुलाकात के दौरान अमेरिका -भारत के बीच कई महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर भी होंगे। ओबामा की इस यात्रा को लेकर पूरे विश्व की निगाहें लगी हुई हैं।भारत के धुर विरोधी पाकिस्तान में भी इस यात्रा को लेकर अजीब सी बैचेनी देखी जा रही है,क्योंकि कभी अमेरिका के सबसे खास चम्पू रहते हुए पाक ने हमेशा भारत को घाव देने का ही अपना अभियान जारी रखा हुआ था।ओबामा और मोदी ने पूर्व में  अमेरिका और भारत के बीच हुए परमाणु सहयोग संधि पर भी मोहर लगाकर एक महत्वपूर्ण कदम को आगे बढ़ाकर पूरे विश्व को यह सन्देश दे दिया है कि अब अमेरिका -भारत  दोस्ती का नया अध्याय शुरू किया जा चूका है। 

            पिछले कुछ वर्षों में विश्व में बढ़ती इस्लामिक आतंकवाद की आग ने जब अमेरिका को भी झुलसाया तो अमेरिका को पाकिस्तान को लेकर अपनी  पुरानी नीति में परिवर्तन करना पड़ा। अमेरिकी -प्रशासन ने आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई को लेकर पाक की कथनी और करनी में जब अंतर देखा तो उसके कान खड़े हो गए। पाकिस्तान ने अमेरिका से मिली मोती सहयोग राशि को आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में खर्च करने की बजाय उसे आतंकवाद  बढ़ावा देने में लगाया।इससे अमेरिका ने  अपनी पहले की नीति को बदलकर पाकिस्तान की बजाय भारत को अपना अधिक विश्वसनीय और पारदर्शी सहयोगी समझा है।अमेरिका ने सहयोग और विश्वास के साथ भारत के साथ मित्रता का हाथ बढ़ाया, भारत ने भी इस पहल का दिल से स्वागत किया। ओबामा की यह यात्रा इसलिए भी अहम बन गई है कि यह पहली बार हो रहा है कि ओबामा पहले ऐसे अमेरिकी राष्ट्रपति हैं,जो सिर्फ भारत की यात्रा कर रहे हैं। इससे पूर्व जो भी  राष्ट्रपति यहां आये वो भारत के साथ -२ अन्य एशियाई देशों की यात्रा संयुक्त रूप से करते थे। इस यात्रा से भारत को कितना लाभ होगा यह तो ओबामा-मोदी के बीच समझोते होने की घोषणा से ही पता चलेगा ,वैसे भारत को इस यात्रा से काफी उम्मीदें लगी हुईं हैं।

Saturday 24 January 2015

विद्या और बुद्धि की देवी माँ सरस्वती पूजा [बसंत पंचमी ] की हार्दिक शुभकामनाएं

[दिल्ली ] अश्वनी भाटिया। बसंत पंचमी यानि विद्या और बुद्धि की देवी माँ सरस्वती पूजा की सभी मित्रों व शुभचिंतकों को हार्दिक शुभकामनाएं। सरस्वती को साहित्य, संगीत, कला की देवी माना जाता है। उसमें विचारणा, भावना एवं संवेदना का त्रिविध समन्वय है। वीणा संगीत की, पुस्तक विचारणा की और मयूर वाहन कला की अभिव्यक्ति है। लोक चर्चा में सरस्वती को शिक्षा की देवी माना गया है।

शिक्षा संस्थाओं में वसंत पंचमी को सरस्वती का जन्म दिन समारोह पूर्वक मनाया जाता है। पशु को मनुष्य बनाने का - अंधे को नेत्र मिलने का श्रेय शिक्षा को दिया जाता है। मनन से मनुष्य बनता है। मनन बुद्धि का विषय है। भौतिक प्रगति का श्रेय बुद्धि-वर्चस् को दिया जाना और उसे सरस्वती का अनुग्रह माना जाना उचित भी है। इस उपलब्धि के बिना मनुष्य को नर-वानरों की तरह वनमानुष जैसा जीवन बिताना पड़ता है। शिक्षा की गरिमा-बौद्धिक विकास की आवश्यकता जन-जन को समझाने के लिए सरस्वती पूजा की परम्परा है। इसे प्रकारान्तर से गायत्री महाशक्ति के अंतगर्त बुद्धि पक्ष की आराधना कहना चाहिए।

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनींवीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥2॥

Thursday 22 January 2015

आज़ाद भारत में किस अज्ञात भय और साजिश के कारण नेताजी के गायब होने की सच्चाई लोगों से छिपाई गई ? क्या जनता को यह जानने का अधिकार नहीं है ?

दिल्ली [अश्विनी भाटिया ] भारत की आज़ादी की लड़ाई में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की 118 वीं [जन्म 23 जनवरी ,1897 ] जयंती  पर हम उनके चरणों में अपना शत -2 नमन करते हैं। नेताजी का भारत को अंग्रेजी साम्राज्य की अधीनता से मुक्त करवाने की लड़ाई में उल्लेखनीय योगदान है जिसका कोई दूसरा उदाहरण विश्व इतिहास में नहीं मिलता। नेताजी ने अंग्रेजों से देश को मुक्त करवाने के लिए किसी याचना या किसी तरह की प्रार्थना करने का मार्ग नहीं अपनाया, बल्कि उस समय के सबसे शक्तिशाली समझे जाने वाले अंगेजी साम्राज्य को सशत्र चुनौती देकर उनकी मजबूत चुलों को हिलाकर रख दिया। नेताजी ने 5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हाल के सामने 'सुप्रीम कमाण्डर' के रूप में सेना को सम्बोधित करते हुए "दिल्ली चलो!" का नारा दिया और जापानी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश व कामनवेल्थ सेना से बर्मा सहित इम्फाल और कोहिमा में एक साथ जमकर मोर्चा लिया।आज़ाद हिन्द फ़ौज़ के सुप्रीम कमांडर नेताजी ने द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध जंग के मैदान में खुलकर लोहा लिया। 21 अक्टूबर 1943 को सुभाष बोस ने आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतन्त्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी जिसे जर्मनी, जापान,फिलीपाइन, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता दी। जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप इस अस्थायी सरकार को दे दिये। सुभाष उन द्वीपों में गये और उनका नया नामकरण किया।उन्होंने देश के लोगों को 'तुम मुझे खून दो में तुम्हे आज़ादी दूंगा ' का उदघोष देकर पूरे देश को अंग्रेज़ों के विरुद्ध नए जोश और जनून के साथ लड़ने को प्रेरित किया जिसका परिणाम यह हुआ कि अंग्रेजों को 1947 में भारत से भागने को विवश होना पड़ा। अफ़सोस की बात यह है कि कांग्रेस के तत्कालीन नेताओं से बोस के विचार नहीं मिले और एक दिन वह गायब हो गए। आज़ाद भारत में एक राजनैतिक एजेंडे के तहत नेताजी की  मौत के बारे में तरह -2 की मान्यताएं गढी गईं और सच को जनता के सामने नहीं आने दिया गया। न जाने किस साजिश या अज्ञात भय से ग्रस्त राजनैतिक ताकतें आज तक भी इस रहस्य पर पड़े पर्दे को हटाने से घबराती हैं ? गत 16 जनवरी, 2014  को कलकत्ता हाई कोर्ट ने नेताजी के लापता होने के रहस्य से जुड़े खुफिया दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की माँग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई के लिये स्पेशल बेंच के गठन का आदेश दिया। यह भारत का दुर्भाग्य है कि नेताजी के आज़ादी की लड़ाई के योगदान का श्रेय बाद में नेहरू -गांधी के सिर बांधकर कांग्रेस ने देश की आनेवाली नस्लों को गुमराह करने का कुकृत्य किया। नेताजी के सपनों और नीतिओं को आज़ाद भारत की सरकारों ने तिलांजलि दे दी। अगर नेताजी के सामने भारत को अंग्रेजों से आज़ादी मिलती और देश  की कमान उनके हाथों में होती तो देश और दुनिया का नक्शा आज जैसा नहीं होता और पाकिस्तान जैसी बीमारी भी पैदा नहीं हो पाती।ऐसा लगता है कि आज़ाद भारत की सरकारों ने जानबूझ कर नेताजी सुभाष चन्द्र बॉस से  नाइंसाफी करके उनके योगदान को कम करने की साज़िश की है। यह देश की जनता का उनके प्रति अगाध प्रेम ही है कि सरकारी स्तर पर नज़रअंदाज़ कर देने के बावजूद भारत के करोड़ों लोग आज भी नेताजी को अपने दिलों में बसाए हुए हैं और उनकी यह उपस्थिति सदा -सदा भारतीयों के दिलों में यूँही उनकी याद को सजीव बनाये रखेगी।

Sunday 18 January 2015

दिल्ली की जिला अदालतों के सुनवाई के वित्तीय अधिकार बढ़ाने से किस लॉबी के कारण हिचक रही है मोदी सरकार ? दिल्ली की जनता से अन्याय कब तक ?

दिल्ली [अश्विनी भाटिया] देश की  राजधानी दिल्ली ही एक ऐसा राज्य है जहां की जिला न्यायालयों में सिर्फ २० लाख तक के वित्तीय मामलों की सुनवाई -होती है और इससे ऊपर के मामलों की सुनवाई दिल्ली उच्चन्यायालय  के अधिकार क्षेत्र में है। देश के अन्य राज्यों में जिला न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र में मामलों की सुनवाई के असीमित वित्तीयअधिकार हैं और उच्च न्यायालय सिर्फ अपीलीय न्यायालय के रूप में कार्य करते हैं। दिल्ली की जनता से पिछले लम्बे समय से हो रहे भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में कदम  उठाने में श्री नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार कौनसी ताकतवर लॉबी के कारण हिचक रही है ?जबकि उनके बारें में यह प्रसिद्ध है कि मोदी जी जनहित के काम को करने के लिए किसी के दबाव  में नहीं आते ,वो जनहित को सर्वोपरि मानते हैं। फिर दिल्ली के लोगों के हितों पर कुठाराघात क्यों किया जा रहा है ? आज के समय में दिल्ली में 40  से 5 0 वर्गगज का फ्लैट भी 20 लाख में नहीं मिलता इसीलिए दिल्ली में अधिकांश सम्पति से सम्बन्धित दीवानी केस 20 लाख से ऊपर के होते हैं और उनका निपटारा उच्च न्यायालय में ही हो सकता है। इसी कारण हाईकोर्ट में दीवानी केसों का अम्बार लगा हुआ है और मामलों के निपटारे में लम्बा समय लग जाता है। इस प्रक्रिया में जनता को भी बहुत पैसा खर्च करना पड़ता है और इंसाफ मिलने में बहुत समय लग जाता है। हाईकोर्ट में एक तो वकीलों की फ़ीस भी जिला अदालतों में कार्यरत वकीलों से कहीं अधिक है और आने -जाने का किराया -भाड़ा अलग से खर्च होता है। तो ऐसे में क्या कारण है कि दिल्ली के लोगों को सुलभ,सस्ता और शीघ्र न्याय देने के लिए देश की केंद्र सरकार अभी तक तैयार दिखाई नहीं दे रही ? मोदी सरकार के इस रुख से जहां जिला अदालतों के वकीलों में रोष है वहीं दिल्ली की जनता भी इससे आहत है और कहीं ऐसा न हो कि दिल्ली विधानसभा चुनावों में इसका खामियाज़ा भाजपा को भुगतना पड़ जाये ? वैसे वकीलों की एक लॉबी में यह भी चर्चा जोरों से चल रही है कि एक तो सरकार ने जिला अदालतों के सुनवाई के वित्तीय अधिकार को नहीं बढ़ाया ऊपर से किरण बेदी को भाजपा में लाकर उनके  नेतृत्व में चुनाव लड़ने की घोषणा करके वकीलों के जख्मों को हरा कर दिया है। भाजपा का यह कदम तो कोढ़ में खाज बढ़ाने जैसा प्रतीत होता है। ज्ञात हो कि सन 1988 में दिल्ली पुलिस में डीसीपी रहते हुए किरण बेदी के नेतृत्व में  पुलिस जवानों ने तीस हज़ारी कोर्ट परिसर में  घुसकर वकीलों पर भयंकर लाठीचार्ज किया था जिसमें असंख्य वकीलों के सिर फैट गए थे और बहुत की हड्डियां-पसलियां तक टूट गईं थीं और इसके विरोध में वकीलों ने लंबी लड़ाई लड़कर बेदी का तबादला करवा दिया था। कहा जाता है कि वकीलों के विरोध के कारण ही केंद्र सरकार बेदी को दिल्ली का पुलिस आयुक्त बनाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई थी। ऐसे में भाजपा के इस कदम का चुनावों पर क्या असर होगा यह तो समय ही बताएगा ?

    दिल्ली की जिला अदालतों के वित्तीय न्यायिक अधिकार क्षेत्र को बढ़ाने के लिए स्थानीय वकीलों द्वारा काफी लम्बे समय से मांग की जा रही है और इसको लेकर कई बार जिला अदालतों में हड़ताल भी की जा चुकी है ,परन्तु मोदी जी भी इस मामले में अपने पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के पदचिन्हों पर ही चलते दिखाई दे रहे हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी है कि मनमोहन सरकार के रहते भी उसमें सबसे प्रभावशाली मंत्री के रूप में पेशे से वकील और दिल्ली से ताल्लुक रखनेवाले श्री कपिल सिब्बल शामिल थे और अब नरेंद्र मोदी जी के सबसे नज़दीक और उन की सरकार में भी सबसे शक्तिशाली माने जानेवाले मंत्री श्री अरुण जेटली शामिल हैं  और पेशे से वकील होने के साथ ही वह दिल्ली के नागरिक हैं , इसके उपरांत भी अगर दिल्ली की जनता को न्याय नहीं मिलता तो सोचने को मजबूर होना ही पड़ता है। अभी कुछ दिन पहले ही दिल्ली में इस मांग को लेकर सभी जिला अदालतों की बार एसोसिएशंस ने हड़ताल की थी औरदिल्ली  भाजपा के नेताओं ने इस बात का आश्वासन देकर कि संसद के शीतकालीन  अधिवेशन में ही इस संबंध में सरकार विधेयक लाकर कानून बनाने जा रही है , इस आश्वासन के बाद हड़ताल समाप्त हो गई। मजेदार बात यह है कि इस बारें में दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष सतीश उपाध्याय ने प्रेसवार्ता करके यह दावा भी किया कि दिल्ली की जनता को शीघ्र ही अपने 20 लाख से ऊपर के दीवानी  मामलों की सुनवाई के लिए अब उच्च न्यायालय नहीं जाना पड़ेगा अर्थात लोगों को कम समय ,कम खर्च और सुलभ न्याय उनके जिले की अदालत में मिल जायेगा। कुछ भाजपा के अतिउत्साही वकीलों ने तो लोकसभा में पूर्वी दिल्ली के सांसद महेश गिरी द्वारा इस संबंध में उठाई गई मांग को भी खूब प्रचारित और प्रसारित किया,  लेकिन परिणाम वही  ढाक के तीन पात ,चौथा लगे न पांचवे की आस की कहावत वाला ही रहा। बड़े अफ़सोस की बात है कि संसद का अधिवेशन भी सम्पन्न हो गया और केंद्र सरकार ने कई ऐसे विधेयकों को ,जो विपक्ष के हंगामे की भेंट चढ़ गए थे ,राष्ट्रपति से अध्यादेश जारी करवाकर कानून के रूप में लागु कर दिया। अगर सरकार की मंशा दिल्ली की जनता को सुलभ और शीघ्र  न्याय देने की रही होती तो अवश्य ही दिल्ली की जिला अदालतों को असीमित वित्तीय अधिकार देने का कानून भी अध्यादेश के द्वारा लागु कर देती, परन्तु ऐसा न करके जनता के साथ नाइंसाफी की गई। इसका क्या कारण है यह तो सत्ता में बैठे महानुभाव ही भली -भांति जानते हैं, लेकिन यह बात जरूर समझी जा सकती है कि कोई न कोई एक प्रभावशाली ताकत जरूर है जिसके दबाव में न तो यूपीए सरकार और न ही अब नरेंद्र मोदी सरकार दिल्ली की जनता को सुलभ ,सस्ता और शीघ्र न्याय दिलाने में गंभीर दिखती है।दिल्ली हाईकोर्ट में भी वकीलों के दो वर्ग हैं एक तो साधारण और दूसरे वरिष्ठ अधिवक्ता जिनमें समाज के संभ्रांत वर्ग से जाते हैं। ऐसा -कहा जाता है कि वकीलों की यह लॉबी अपना एकाधिकार बनाए रखने के लिए ही सरकार पर अपना दबाव बनाए रखने में सक्षम हैं। सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि वो कौन सी ऐसी लॉबी है जो दिल्ली की जनता के हितों पर कुठाराघात करके उच्च न्यायालय में कार्यरत वरिष्ठ वकीलों के हितों का पोषण कर रही है क्योंकि उच्च न्यायालय के वकील जिला अदालतों के वित्तीय अधिकार क्षेत्र को बढ़ाने का विरोध कर रहे हैं। 

Thursday 15 January 2015

एक वर्ष में ही दोबारा चुनावों का बोझ डालने के लिए अरविन्द केजरीवाल को जिम्मेदार मानती है दिल्ली की जनता

दिल्ली [अश्विनी भाटिया ] क्या लोकतंत्र का अर्थ यही है कि कोई भी व्यक्ति अपने सनकीपन के लिए किसी देश या प्रदेस की जनता को मात्र एक वर्ष में ही दोबारा चुनावों के खर्चीले बोझ से दाब दे और जनता से अपने किये कृत्य की क्षमा मांगकर पुनः सत्ता में आने की मांग करे ? दिल्ली की जनता को इस बात को सोचना चाहिए क्योंकि उसके साथ यही कुछ पिछले एक साल में हुआ है और उसे मात्र 14 माह में ही दोबारा महंगे चुनावों झंझावात में धकेल दिया गया है।ऐसा शायद इसलिए हुआ कि चूँकि या तो वह नेता जनता से किये वायदों को पूरा नहीं कर सकता था या फिर उसके पास  प्रशासनिक अनुभव नहीं था।दिल्ली की जनता को पिछले एक वर्ष में यह सब कुछ आम आदमी की दुहाई देनेवाली पार्टी 'आप' के संयोजक और दिल्ली के पूर्व सीएम अरविन्द केजरीवाल की अति राजनैतिक महत्वाकांक्षा के कारण भुगतना पड़ा है।दिल्ली को बिना सरकार के एक साल तक राष्ट्रपति शासन के तहत नौकरशाहों के रहमोकरम पर रहना पड़ा ,जिस कारण सारी विकास योजनाओं की रफ़्तार मंदी पड़ गई और नई योजनाएं भी नहीं बन पाईं। अब दिल्ली को एक साल में ही दोबारा खर्चीले चुनावी बोझ तले दबने को मजबूर कर दिया गया है। अब यह फैसला जनता को करना है कि वह इन सब कृत्यों के लिए जिम्मेदार अरविन्द केजरीवाल और उनकी पार्टी को क्या आदेश सुनाती है ?

      कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर अन्ना आंदोलन की कमान सम्भालने वाले अरविन्द केजरीवाल ने राजनैतिक पार्टी का गठन आम आदमी के नाम पर किया और जनता को लोकपाल सहित स्वच्छ शासन दिलाने के सैंकड़ों वायदे किये। दिसम्बर,2013 में दिल्ली विधानसभा चुनावों में इस नए राजनेता ने जनता से कई ऐसे वायदे किये जो वह सीएम बनने के बावजूद पूरे नहीं कर पाए और मात्र 49 दिन में ही अपनी जिम्मेदारी को छोड़ भागे। केजरीवाल के बारे में जनता यह जान चुकी है कि वह जो कहंगे, करेंगे बिलकुल उसके विपरीत। उन्होंने कांग्रेस को सबसे भ्रष्ट कहा और 28 सीटें जीतकर उसी कांग्रेस से समर्थन लेकर दिल्ली की सत्ता संभाल ली।केजरीवाल ने जनता से यह वायदा किया कि ना तो वह स्वयं और न ही उनके अन्य साथी चुनाव जीतने पर सरकारी बंगला ,कार और पुलिस सुरक्षा लेंगे। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वह भविष्य में भ्रष्ट कांग्रेस पार्टी को सरकार के लिए न तो समर्थन देंगे और न ही समर्थन लेंगे।समर्थन के मुद्दे पर तो उन्होंने अपने बच्चों तक की कसम खा ली थी,बाद में जिसे कुर्सी पाने के लिए खुद ही तोड़ दिया। भ्रष्ट कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली का सीएम बनकर खुद भी और उनके अन्य साथियों ने भी सभी सरकारी सुविधाओं को जिनमें कार ,बंगला और सुरक्षा प्रमुख थीं ,को लेने में तनिक भी संकोच नहीं किया।सत्ता में आसीन हो कर अपनी प्रशासनिक जिम्मेदारियों को निभाने और जनता को सुख -सुविधाओं को देने की बजाय मुख्य्मंत्री होते हुए भी  धरना -प्रदर्शनों में जुट गए। लोगों को मुफ्त पानी देने और बिजली के बिल आधे करने के वायदे को पूरा नहीं कर पाये और 49 दिन में ही दिल्ली की जनता को भगवान भरोसे छोड़कर निकल भागे। शीला दीक्षित के विरुद्ध भ्रष्टाचार के ढेरों सबूतों का दावा करनेवाले केजरीवाल सीएम का पद पाकर कोई कार्रवाई करना तो दूर सब कुछ भूलकर नरेन्द्र  मोदी को ललकारने वाराणसी तक पहुंच गए और वहां से लोकसभा चुनाव में मोदी के विरुद्ध चुनावी ताल ठोंकने लगे। जब आम चुनावों में देश की जनता ने केजरीवाल को बुरी तरह से नकार दिया तो उनके मन में एक बार फिर  दिल्ली के सीएम की कुर्सी पाने की लालसा पैदा हो गयी और वह उसको पाने के लिए ऐसे तड़पने लगे जैसे कि मछली बिन पानी तड़पती है। अब वह जनता से पूरा बहुमत मांग रहे हैं और पूर्व में सीएम की कुर्सी छोड़ने को अपनी भूल बताकर भविष्य में ऐसी गलती को न दोहराने का वायदा कर रहे हैं। वैसे दिल्ली की जनता अब केजरीवाल से पूरी तरह से परिचित हो चुकी है और देखना यह है कि इस बार चुनाव में उनको[केजरीवाल ] अपनी  जिम्मेदारियों से भाग जाने का क्या दंड देती है ? वैसे इस बार के दिल्ली विधानसभा के चुनावी रण में उनके कई योद्धा भी उनका साथ छोड़कर भाजपा का दामन थामकर उनके झूठों का पर्दाफाश करने की मुहिम में जुट चुके हैं।मानती 

Monday 12 January 2015

अलवर जिला प्रशासन के अधीन उपखण्ड और तहसील रामगढ कार्यालय अछूते हैं स्वच्छ भारत अभियान से।अधिकारियों को नहीं है प्रधानमंत्री मोदी के अभियान से कोई लेना -देना

अलवर [अश्विनी भाटिया  ] राजस्थान में  प्रशासन के अधिकारियों पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान का कोई असर दिखाई नही दे रहा है। मज़ेदार बात यह है कि राजस्थान का अलवर जिला एनसीआर में शामिल है और दिल्ली के बहुत ही नज़दीक है, जब इस जिले में स्वच्छ भारत अभियान टांय - 2 फिस हो रहा है तो दूर -दराज़ के जिलों का क्या हाल होगा ,सहज ही अंदाज़ लगाया जा सकता है ?मजेदार बात यह है कि जिला प्रशासन अपने तहसील और उपखण्ड कार्यालयों की सफाई करवाने में नाकाम सिद्ध हो रहा है। इस  सवांददाता को जिले की रामगढ तहसील और उपखण्ड अधिकारी के  कार्यालय में गंदगी का जो वातावरण मिला उससे यह सहज अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि यहां के प्रशासनिक अधिकारी जब अपने कार्यालयों को ही साफ नहीं करवा सकते तो वह अपने अधीन आनेवाले क्षेत्रों को कैसे स्वच्छ रख सकते हैं ? इस सवांददाता ने जब उपखण्ड अधिकारी रामगढ़ [एस डी एम ]श्री अखिलेश कुमार पीपल से इस संबंध में बात की तो उनका जवाब सुनकर बहुत ही आश्चर्य हुआ और यह समझ में आ गया कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के अधिकारी  किस कारण से और क्यों अपनी निकम्मी और गैरजिम्मेदार कार्यशैली को  अपना अधिकार बनाए हुए हैं क्योंकि  उन्हें राज्य सरकार से किसी भी तरह का कोई भय नहीं है। कार्यालय में फैली गंदगी के बारे में उपखण्ड अधिकारी श्री पीपल का जवाब था कि''यह काम मेरा नहीं है ,मैं यहाँ सफाई करने के लिए नहीं आता ।'जब सवांददाता ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी स्वयं झाड़ू लेकर भारत को स्वच्छ बनाने का अभियान चलाये हुए तो उन जैसे जिम्मेदार अधिकारी इस अभियान को गंभीरता से क्यों नहीं ले रहे तो उन्होंने कहा कि 'तो यह बात मोदी से जाकर पूछ लो कि यहाँ की सफाई क्यों नहीं हो रही। ''

          रामगढ तहसील का मूत्रालय की भी पिछले लम्बे समय से  नारकीय दशा बनी हुई है जो स्वच्छ भारत अभियान के बाद भी जस की तस है। इसको देखकर यह प्रतीत होता है कि यहाँ की सफाई शायद दशकों से नहीं हुई और इसमें मूत्रदान करना तो दूर इसमें प्रवेश करना भी दूभर है।इस तहसील में प्रतिदिन हजारों ग्रामीण महिला -पुरुष अपने कार्यों के लिए आते हैं और उनको आवश्यक सुविधा के नाम पर कोई प्रबंध तहसील प्रशासन की ओर से नहीं किया गया है। ऐसा लगता है कि तहसीलदार महोदया जो स्वयं महिला हैं उन्हें इस बात का अहसास भी नहीं है कि कार्यालय में आनेवाली महिलाएं लघु शंका निवारण के लिए कहां जाएँगी ? महिला तो महिला पुरुषों के लिए बने मूत्रालय भी   नारकीय बना हुआ है जिसको इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।इस सवांददाता ने तहसीलदार महोदया से मिलने का प्रयास किया लेकिन तब वह अपने कार्यालय में उपस्थित नहीं थी।
      रामगढ़ उपखण्ड और तहसील कार्यालयों की नारकीय हालत मोदीजी के स्वच्छ भारत अभियान को चिढ़ाती -सी  लग रही  हैं। इस बात का अंदाज़ा सहज ही लग जाता है कि राजस्थान में बीजेपी की वसुंधरा राजे सरकार में प्रशासनिक अधिकारी सुधरने को तैयार नहीं हैं और वो  बेलगाम घोड़ों की तरह जनता की भावनाओं को रौंदने में तनिक भी नहीं झिझक रहे।और तो और इनका दुःसाहस इतना बढ़ चूका है कि अब यह लोग देश के प्रधानमंत्री के बारे में भी मर्यादा रहित टिप्पणियाँ करने से भी नहीं घबरा रहे हैं। 



Sunday 11 January 2015

स्वामी विवेकानंद के विचारों की महत्ता आज पहले से भी अधिक बढ़ चुकी है। हम उनका अनुकरण करके भारत को विश्व की महान शक्ति बना सकते है।

भारत माँ के वीर सपूत, महान तपस्वी - दार्शनिक -युगद्रष्टा ,स्वाधीनता संग्राम के प्रेरक और विश्व में वैदिक धर्म का डंका बजानेवाले स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर उनके चरणों में हमारा  शत- शत नमन। 

स्वामी विवेकानंद जी स्वामी विवेकानन्द (जन्म: १२ जनवरी,१८६३ - मृत्यु: ४ जुलाई,१९०२) वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत "मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहनों" के साथ करने के लिये जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।आज स्वामीजी के जन्मदिवस [12 जनवरी ,1863 ] पर हमारा उनके चरणों  में अपना शत -२ नमन करते हैं। 
       स्वामी विवेकानंद जी के विचारों का आज पहले से भी अधिक महत्व बढ़ चूका है। उनके द्वारा स्थापित सिद्धांतों और दर्शन का अनुकरण करके हम अपना और अपने राष्ट्र का परचम पूरी दुनिया पर फहरा सकते हैं। वे केवल सन्त ही नहीं, एक महान देशभक्त, वक्ता, विचारक, लेखक और मानव-प्रेमी भी थे। अमेरिका से लौटकर उन्होंने देशवासियों का आह्वान करते हुए कहा था-"नया भारत निकल पड़े मोची की दुकान से, भड़भूँजे के भाड़ से, कारखाने से, हाट से, बाजार से; निकल पडे झाड़ियों, जंगलों, पहाड़ों, पर्वतों से।" और जनता ने स्वामीजी की पुकार का उत्तर दिया। वह गर्व के साथ निकल पड़ी।  गान्धीजी को आजादी की लड़ाई में जो जन-समर्थन मिला, वह विवेकानन्द के आह्वान का ही फल था। इस प्रकार वे भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के भी एक प्रमुख प्रेरणा-स्रोत बने। उनका विश्वास था कि पवित्र भारतवर्ष धर्म एवं दर्शन की पुण्यभूमि है। यहीं बड़े-बड़े महात्माओं व ऋषियों का जन्म हुआ, यही संन्यास एवं त्याग की भूमि है तथा यहीं-केवल यहीं-आदिकाल से लेकर आज तक मनुष्य के लिये जीवन के सर्वोच्च आदर्श एवं मुक्ति का द्वार खुला हुआ है। उनके कथन-"‘उठो, जागो, स्वयं जागकर औरों को जगाओ। अपने नर-जन्म को सफल करो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये।" 

Monday 5 January 2015

राजस्थान में वसुंधरा सरकार के प्रशासनिक अधिकारी निकाल रहे हैं पी एम मोदी के सुशासन के दावों की हवा। फाष्ट ट्रैक कोर्ट हुई डैड ट्रैक कोर्ट में तब्दील

राजस्थान सरकार का ऑनलाइन शिकायत पोर्टल संपर्क  भी हो रहा है  नाकारा साबित। जनता को मिलेगा कैसे न्याय ?कौन सुनेगा पीड़ित जनता की पुकार ?

अलवर [अश्विनी भाटिया ]। अलवर  राजस्थान में बीजेपी की वसुंधरा सरकार के राज्य  की  जनता को सुलभ,त्वरित  और स्वच्छ शासन देने के सभी दावों को ताक पर रखकर प्रशासन में बैठे अधिकारी अपनी मनमानी कर रहे हैं  ऐसा लगता है कि कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार के बिगड़ैल अधिकारीयों को , जिनके कारण उस सरकार का पतन हो गया था, सरकार बदलने के बावजूद  अभी तक  अपनी पूर्व की भ्रष्ट और मनमानी करनेवाली कार्यशैली को बदलने की कोई जरुरत महसूस नहीं हुई है।राज्य के प्रशासनिक अधिकारियों की अकर्मण्यता ही वसुंधरा सरकार का ग्राफ जनता की नज़रों में गिराने में कारगर साबित हो रही है।अलवर जिले की अधिकांश तहसीलों और उपखण्डों में बड़े पैमाने पर रेवेन्यू मामले जिनमें राजस्थान भूमि  काश्तकारी अधिनियम के वर्षों से लंबित पड़े मामलों का निस्तारण करने के उद्देश्य से fasht track court  का गठन किया गया था जिनमें अधिकांश  न्यायालयों में न तो पीठासीन अधिकारी हैं और ना ही दूसरा स्टाफ ही लगाया गया है। इस तरह से यह फाष्ट ट्रैक कोर्ट एक तरह से डैड ट्रैक कोर्ट में तब्दील हो चुकी हैं।इसी तरह से रामगढ उपखण्ड में फाष्ट ट्रैक कोर्ट का गठन गत फ़रवरी, 2013 में किया गया था जो मात्र 3 माह काम करने के बाद अपना दम तोड़ गयी, अर्थात मई 2013 से यह कोर्ट मृत प्राय पड़ी है। ना तो इस कोर्ट में कोई पीठासीन अधिकारी है ना ही कोई अन्य स्टाफ ही मौजूद है।

   रामगढ तहसील में आज भी कर्मचारियों और अधिकारीयों की कार्यशैली को लेकर जनता क्षुब्द है और गरीब व् अनपढ़ जनता की पुकार कोई सुनने को तैयार नहीं है। कई ग्रामीणों की शिकायत मिलने के  बाद इस सवांददाता ने इस सम्बद्ध में कई बार रामगढ उपखण्ड अधिकारी श्री अखिलेश कुमार पीपल से मिलने का प्रयास किया , लेकिन उनके कार्यालय से बताया गया कि  साहब नहीं हैं फिल्ड में गए हुए हैं। इसी उपखण्ड में रेवन्यू के मामलों में सभी नियमों -कानूनों को ताक पर रखकर गरीब और असहाय लोगों को दर्द के अलावा यहां से  कोई न्याय नहीं मिल रहा। केसों में लोगों को सिर्फ तारीखें ही दी जाती हैं और लोग हर तारीख पर अपना सा मुंह लेकर सरकार को कोसते हुए अपने घरों को लौट जाते हैं। इस संबंध में सुचना के अधिकार अधिनियम,2005  के तहत एक प्रतिवेदन  गत 28 नवम्बर,2014  को उपखण्ड ऑफिस में स्पीड -पोस्ट द्वारा भेजा गया था जोकि  1 दिसम्बर को  पत्र कार्यालय में डिलीवर होने के बावजूद यह रिपोर्ट लिखे जाने तक कोई सुचना आवेदक को नहीं दी गई है।  

इसी तरह से इस उपखण्ड में चल रही पेंशन धांधली का मामला प्रकाश में आया है जिसमें कई  लोग वृद्धा पेंशन को गलत तरीके से प्राप्त कर रहे हैं। इस पेंशन घोटाले की शिकायत राजस्थान सरकार द्वारा जनशिकायत पोर्टल राजस्थान 'संपर्क' पर गत 14 नवम्बर, 2014 को की गई थी, जिसपर आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। आश्चर्यजनक बात यह है कि शिकायत की वस्तुस्थिति देखने पर ज्ञात होता है कि  शिकायत पर कार्रवाई को विचाराधीन दिखाया जा रहा है और यह एसडीएम रामगढ के कार्यालय में पिछले 18 नवम्बर से पड़ी हुई है। राजस्थान में राज्य की बागडोर बीजेपी की वसुंधरा राजे के हाथों में आये 1 वर्ष बीत जाने के बाद भी जनता को कोई  राहत मिलती दिखाई नहीं दे रही , जो कि प्रधानमंत्री नरेंदर मोदी के जनता को सुशासन देने  की कवायद को ठेंगा दिखाने  जैसा प्रतीत हो रहा है ।

'संपर्क' पर दर्ज करवाई गई पेंशन घोटाले की शिकायत में बताया गया था कि  इस तहसील के नौगाँव कसबे और गढ़ी सहित कई अन्य गॉवों  में कुछ ऐसे लोग भी पेंशन ले रहे हैं जो सरकारी नौकरी में थे और अब सेवानिवृत हो चुके हैं। मजेदार बात यही है कि यह पेंशनधारी सेवानिवृति की  पेंशन व अन्य सरकारी लाभ भी प्राप्त कर रहे हैं।जानकारी में आया है कि इन रिटायर हो चुके लोगों में शिक्षक भी हैं और इनकी पत्नियां गरीबों की पंक्ति में शामिल होकर पेंशन प्राप्त करके अन्य गरीबों का हक़ मारने में लगे हुई  हैं। इसी तरह से वो लोग जिनके पास कृषि भूमि भी है , लेकिन खुद को भूमिहीन दर्शाकर पेंशन प्राप्त कर रहे हैं इनकीजाँच की जाए तो रेवन्यू रिकार्ड ममें ही इनके झूठ की पोल खुल सकती है। झूठे और फर्जी दस्तावेजों के आधार पर पेंशन प्राप्त करने में सफल हो चुके इन लोगों में कई लोग ऐसे भी हैं जिनकी आयु अभी 60 वर्ष से बहुत कम है, लेकिन वोटर पहचान पत्रों में कूट रचना करके अपनी आयु 60 वर्ष और इससे अधिक दिखा कर वृद्धा पेंशन ले रहे है। सूत्रों से ज्ञात यह भी हुआ है कि इस तरह से फर्जीवाड़ा करके पेंशन लेने वालों में गढ़ी-धनेटा ग्राम पंचायत की एक पूर्व महिला सरपंच भी शामिल है जिसका पति हरियाणा में शिक्षक था और अब सेवानिवृति के बाद सरकारी पेंशनभोगी है।

          शिकायत में   रामगढ़ तहसील के अंतर्गत आने वाले समस्त पेंशनभोगी जो फ़र्ज़ी दस्तावेज़ों और गलत तथ्यों के द्वारा गरीबों के हक़ पर डाका डालकर सरकारी पेंशन को डकारने में लगे हुए हैं,ऐसे लोगों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की मांग  गई है ,परन्तु अफसोसजनक पहलु यह कि वसुंधरा सरकार के अधिकारी सुशासन देने के दावों को हवाहवाई बनाकर जनता को स्वच्छ वातावरण उपलब्ध करवाने को तैयार नहीं हैं । साथ ही पेंशन वितरण  के काम में लगे संबंधित डाकिए भी अनपढ़ और गरीब पेंशनधारियों की आनेवाली पेंशन को डकारने में लगे हुए हैं। इन डाकियों  के विरुद्ध भी उच्च स्तरीय जाँच होनी चाहिए और इनके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई भी अवश्यम्भावी हो चुकी है।


Saturday 3 January 2015

शाहदरा विधानसभा क्षेत्र से शंटी को बहन प्रीति के चुनावी चुनौती देने से बिगड़ सकता है भाजपा का समीकरण और बाज़ी लग सकती है कांग्रेस के हाथ।

शाहदरा [अश्विनी भाटिया  ] दिल्ली विधानसभा के चुनावों का ऐलान बेशक अभी नहीं हुआ  है,लेकिन भाजपा सहित आप और कांग्रेस आदि दलों ने अपना अपना चुनावी बिगुल बजा दिया है। शाहदरा विधानसभा क्षेत्र से निवर्तमान विधायक जितेन्दर सिंह शंटी जो कि अभी एक वर्ष पहले विधानसभा चुनाव में अकाली -भाजपा गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीते थे।इस बार चुनावी भंवर में फंसते नज़र आ रहे हैं ,उनके फंसने का कारण उनकी बहन प्रीती है जिसने इस क्षेत्र से चुनावी अभियान शरू कर दिया है और अपने भाई के सामने कड़ी चुनौती के रूप में आ खड़ी हुई है । बहन प्रीती विवेक विहार वार्ड 239 से निगम पार्षद है और वह भी विधानसभा चुनाव के रण में   आ डटी है।सूत्रों का कहना है कि वह  निर्दलीय प्रत्याशी के रूप से चुनाव लड़ेंगी।प्रीति अपने क्षेत्र में अपना मज़बूत आधार रखती हैं और निर्दलीय चुनाव जीतकर अपनी ताकत का अहसास सबको करवा चुकी हैं। बताया जाता है कि इसीलिए अपनी  बहन की गंभीर चुनौती से शंटी घबराए हुए हैं। सूत्रों का कहना है कि भाजपा हाईकमान भी इस बात से चिंतित है और उसको लगता है कि बहन -भाई के इस आपसी विवाद के कारण कहीं उनकी यह सीट उनके हाथ से निकालकर कांग्रेस की झोली में न चली जाए। इसीलिए सम्भावना यह भी है कि भाजपा शाहदरा सीट पर शंटी की जगह किसी दूसरे चेहरे  अपना उम्मीदवार बनाकर अपनी जीत को सुनिश्चित कर सकती है। प्रीति ने इलाके में जनसभाओं और जनसम्पर्क के माध्यम से चुनावी रणभेरी बजाकर अपने भाई शंटी की घंटी बजा दी है। वैसे  भाजपा ने अभी तक अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है ,लेकिन शंटी अपने को अकाली -भाजपा का संयुक्त उम्मीदवार मानकर जोर -शोर से अपने आर्थिक संसाधनों के बल पर चुनावी महासमर में अपनी नाव को खेने में जुटे हुए हैं।  इस सीट पर पिछले लम्बे समय से विधायक होने का गौरव पानेवाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री डा. नरेंद्र नाथ को एक वर्ष पहले हुए विधानसभा चुनाव में पराजय का सामना करना पड़ा था। कांग्रेस ने उन्हें इस बार फिर अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है और वह दिन -रात इलाके में पसीना बहाकर अपनी खोई हुई सीट को पाने के लिए जूझ रहे हैं। लोगों का कहना है कि अगर शंटी भाजपा- अकाली उम्मीदवार हुए और प्रीती मैदान में डटी रही तो यह सीट इस बार कांग्रेस के खाते में जा सकती है। इस सीट पर आप पार्टी ने अपना  उम्मीदवार रामनिवास गोयल को बनाया है। ज्ञात हो कि गोयल पहले भाजपा में थे और 1993 में इसी क्षेत्र से विधायक चुने गए थे। विधायक रहते हुए गोयल का व्यवहार जनता तो जनता अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के प्रति भी अच्छा नहीं रहा। उन पर केस भी दर्ज़ हुए और अपने भाई के अनैतिक आचरण के कारण भी उनका दामन दागदार हो गया था। इसी कारण भाजपा ने उन्हें फिर कभी दोबारा   अपना  टिकट देना उचित नहीं समझा। लोगों में चर्चा है कि गोयल भले ही इस बार 'आप' उम्मीदवार हैं और अपनी  आर्थिक सम्पन्नता  के बल पर चुनाव में पैसा लगाएंगे, लेकिन उनका अतीत ही इस चुनाव में  उनकी हालत पतली करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा। आज की स्थिति में अगर इस क्षेत्र से भाजपा से शंटी ,कांग्रेस से नरेंद्र नाथ ,आप पार्टी से रामनिवास गोयल और निर्दलीय प्रीति के बीच मुकाबला होता है तो भाजपा के मुकाबले बाज़ी कांग्रेस के हाथ लग सकती है। 

Tuesday 30 December 2014

नव वर्ष 2015 आप सभी के लिए मंगलमय हो।यह वर्ष आपके और आपके परिवार के लिए विकासकारी और कल्याणकारी साबित हो।

आपके  व् आपके परिवार के लिए नव  वर्ष 2015 की हार्दिक शुभकामनाएं।          आप सभी  के लिए यह  वर्ष मंगलमय हो और  बहुत सारी खुशियां लेकर आए .आपकी दीर्घायु और उन्नति की कामना के साथ आपका शुभचिंतक  -अश्विनी भाटिया   

                                 


                                                                                                            
                                                                                                             

क्या हिन्दू धर्म की नरम सोच और सहनशीलता की प्रवृति ही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी मानी जा रही है ?

सेकुलरता के झंडाबरदार क्या इस बात का जवाब देंगे ? या सिर्फ हिन्दुओं को ही आसान शिकार बनाने की मानसिकता वालों को वोटों की राजनीती के तहत एकतरफा राग अलापने की ही बीमारी हो चुकी है ?कथित सेकुलर कीड़ों को अभिवक्ति की असली आज़ादी तो सिर्फ हिन्दुओं पर ही छींटाकशी करने की मिली हुयी है। आमिर खान हो या राजकुमार हिरानी और चाहे न्यूज़ चैनल पर अपना धंधा करनेवाले एंकर, सबके सब सिर्फ हिन्दुओं को ही सुधारने का ऐड़ी -चोटी का जोर  क्यों लगाये हुए हैं? ऐसा लगता है कि सारा अन्धविश्वास और पाखंड हिन्दू धर्म में ही समाया  हुआ है और मध्यकालीन बर्बरता का घिनौनी  हिंसक प्रवृति अपनाये हुए किताबी मजहब वाले बड़े पाक -साफ ईमानदार लोग हैं।हिन्दुओं की सहनशीलता और रहमदिली को आज उनकी कमजोरी माना जाने लगा है और दूसरे मजहब की निर्दयता व् हिंसक प्रवृति ही उनकी सबसे बड़ी  सुरक्षा की गारंटी बन चुकी है। इस बात पर हिन्दू समाज के झंडाबरदारों को भी सोचना पड़ेगा कि उनकी कमी कहां पर है और इसको कैसे सुधारा जाना चाहिए ?सिर्फ हिन्दुओं को धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ानेवाले सेकुलरवादी मुसलमानों को भी यह राग सुनाकर समझाएं तो पूरी मानवता का इससे बढ़कर और कोई भला नहीं हो सकता। क्या हिन्दू ही अंधविश्वासी हैं या हिन्दुओं पर कीचड़ उड़ेलना आसान है ?सेकुलरवादी इसका जवाब देंगे ?क्या हिन्दू धर्म की नरम सोच और सहनशीलता की प्रवृति ही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी मानी जा रही है ?

Saturday 27 December 2014

' निश्चय कर अपनी जीत करौं' गुरु गोबिंद सिंह ने जो बलिदान हिन्दूधर्म और संस्कृति की रक्षा हेतु दिया उसका ऋण हिन्दू समाज कभी नहीं उतार सकता।

 सवा लाख से एक लड़ाऊँ ,चिड़ियों से में बाज़ तड़ऊँ तबे गोबिंदसिंह नाम कहाऊँ. 

गुरु गोबिंद सिंह ने जो बलिदान हिन्दूधर्म और संस्कृति की रक्षा हेतु दिया उसका ऋण हिन्दू समाज कभी नहीं उतार सकता।हम इस महापुरुष ,महान संत ,कुशलयोद्धा और सर्ववंश बलिदानी गुरगोबिंद सिंह जी की जयंती पर उनके चरणों में अपना शत -२ नमन करते हैं।इनका जन्म पौष सुदी 7 वीं सन 1666 को पटना में माता गुजरी जी और पिता गुरु तेग बहादुर जी के घर हुआ।गुरुजी ने हिन्दू धर्म में व्याप्त कुरीतिओं, अन्धविश्वास ,पाखंड का भी जोरदार तरीके से खंडन किया और बैसाखी के दिन,1699आनंदपुर में खालसा पंथ की सर्जना करके लोगों को मानवता का सन्देश दिया। गुरूजी ने जहां एक ओर अपने पिता नौवें गुरु तेग बहादुर जी को कश्मीरी पंडितों की रक्षार्थ बलिदान देने को प्रेरित किया, वहीं अपने चारों पुत्र को भी धर्म की बलिवेदी पर कुर्बान कर दिया और वह खुद भी अपने जीवनपर्यन्त धर्म की स्थापना के लिए संघर्षरत रहे ।गुरु गोविंद सिंह जहां विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिंतक तथा कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की। वे विद्वानों के संरक्षक थे। उनके दरबार में ५२ कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता था। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय प्रतीक थे


      महाभारत काल में धर्म की स्थापना और अन्याय के विरुद्ध कुरुक्षेत्र के मैदान में युद्ध करने के लिए प्रेरित करते हुए भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को यह सन्देश दिया कि जब शांति के सारे द्वार बंद हो जाएँ तो और न्याय न मिले तो युद्ध करो।ठीक यही बात मुग़ल काल के दौरान जब इस्लामिक जनून की मानसिकता को पाले औरंगज़ेब जैसे आततायी शासक ने हिन्दुओं पर अत्याचार किए तो उसी समय गुरु गोबिंद ने धर्म के रक्षार्थ इस सन्देश को आत्मसात किया और इस आतंक व् अन्याय के विरुद्ध लड़ने का संकल्प लिया। औरंगज़ेब के बढ़ते जुल्मों और अत्याचारों से अपना मनोबल खो चुकी हिन्दू कौम में शेरों जैसे जोश का संचार किया और कहा कि सवा लाख से एक लड़ाऊँ चिड़ियों सों मैं बाज तड़ऊँ तबे गोबिंदसिंह नाम कहाऊँ।दसवें गुरु गोबिंदसिंह मूलतः धर्मगुरु थे। अस्त्र-शस्त्र या युद्ध से उनका कोई वास्ता नहीं था, लेकिन औरंगजेब को लिखे गए अपने 'अजफरनामा' में उन्होंने इसे स्पष्ट किया था- 'चूंकार अज हमा हीलते दर गुजशत, हलाले अस्त बुरदन ब समशीर ऐ दस्त।'


अर्थात जब सत्य और न्याय की रक्षा के लिए अन्य सभी साधन विफल हो जाएँ तो तलवार को धारण करना सर्वथा उचित है। धर्म, संस्कृति व राष्ट्र की शान के लिए गुरु गोबिंदसिंह ने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। इस अजफरनामा (विजय की चिट्ठी) में उन्होंने औरंगजेब को चेतावनी दी कि तेरा साम्राज्य नष्ट करने के लिए खालसा पंथ तैयार हो गया है।सिखों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा रचित देवी चण्डिका की एक स्तुति है। गुरु गोबिन्द सिंह एक महान योद्धा एवं भक्त थे। वे देवी के शक्ति रुप के उपासक थे।

यह स्तुति दशम ग्रंथ के "उक्ति बिलास" नामक विभाग का एक हिस्सा है। गुरुबाणी में हिन्दू देवी-देवताओं का अन्य जगह भी वर्णन आता है।'चण्डी' के अतिरिक्त 'शिवा' शब्द की व्याख्या ईश्वर के रुप में भी की जाती है। "महाकोश" नामक किताब में ‘शिवा’ की व्याख्या ‘ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ’ (परब्रह्म की शक्ति) के रुप में की गई है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भी 'शिवा' 'शिव' की अर्धांग्नी भवानी अर्थात  (ईश्वर) की शक्ति है।

देवी के रूप का व्याख्यान गुरु गोबिंद सिंह जी यूं करते हैं :
पवित्री पुनीता पुराणी परेयं ॥
प्रभी पूरणी पारब्रहमी अजेयं ॥॥
अरूपं अनूपं अनामं अठामं ॥॥
अभीतं अजीतं महां धरम धामं ॥३२॥२५१॥

  गुरूजी ने अकालपुरुष शिव जी की पत्नी शिवा अर्थात भवानी[शक्ति] से यह वर  माँगा कि 

देह शिवा बर मोहे ईहे, शुभ कर्मन ते कभुं न टरूं न डरौं अरि सौं जब जाय लड़ौं, निश्चय कर अपनी जीत करौं,अरु सिख हों आपने ही मन कौ इह लालच हउ गुन तउ उचरों,जब आव की अउध निदान बनै अति ही रन मै तब जूझ मरों ॥२३१॥ ਦੇਹ ਸਿਵਾ ਬਰੁ ਮੋਹਿ ਇਹੈ ਸੁਭ ਕਰਮਨ ਤੇ ਕਬਹੂੰ ਨ ਟਰੋਂ ॥

ਨ ਡਰੋਂ ਅਰਿ ਸੋ ਜਬ ਜਾਇ ਲਰੋਂ ਨਿਸਚੈ ਕਰਿ ਅਪੁਨੀ ਜੀਤ ਕਰੋਂ ॥ਅਰੁ ਸਿਖ ਹੋਂ ਆਪਨੇ ਹੀ ਮਨ ਕੌ ਇਹ ਲਾਲਚ ਹਉ ਗੁਨ ਤਉ ਉਚਰੋਂ ॥ਜਬ ਆਵ ਕੀ ਅਉਧ ਨਿਦਾਨ ਬਨੈ ਅਤਿ ਹੀ ਰਨ ਮੈ ਤਬ ਜੂਝ ਮਰੋਂ ॥੨੩੧॥ [