Thursday, 17 August 2017
गीता भवन राधा -कृष्ण मन्दिर में कृष्ण जनमोत्स्व पर भव्य आयोजन किया गया
Saturday, 18 February 2017
पीड़ित सिपाही ने कोर्ट में दायर किया केस। गोकुलपुरी एस एच ओ व अन्य तीन एस आई को बनाया आरोपी
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[दिल्ली पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक ] |
देश की राजधानी दिल्ली में भी यहां की पुलिस खुद को जनता का सेवक और शांतिपूर्ण वातावरण में न्याय देने की बातें और दावे तो बड़े - बड़े करती है मगर सच्चाई इन दावों से कोसों दूर है। शांति -सेवा और न्याय देनेवाली दिल्ली दिल्ली पुलिस के दावे और स्लोगन को थाना गोकुलपुरी ने तार -तार करके खोखला साबित कर दिया है। पूरा प्रकरण इस प्रकार है -गत 11फरवरी को नन्दनगरी में तैनात सिपाही दिवाकर सिंह को जो कि अपने थाने से एच आर डी [हाई रिस्क डिपार्टमेंट ] की ड्यूटी के तहत अन्य साथियों के साथ थाना गोकुल पूरी गया था और चेहरे पर दाने होने के कारण वह अपनी शेव नहीं करवा पाया था। शेव न करवा पाने की मामूली सी बात पर थाना गोकुल पुरी के एस एच ओ हरीश कुमार और उनके तीन अधीनस्थ उप निरीक्षकों -अमित -राहुल और सुभाष ने उसको बुरी तरह से मारा -पीटा ,जातिसूचक शब्दों से अपमानित किया और भद्दी -भद्दी माँ -बहन की गलियां दी भी और जब पीड़ित सिपाही दिवाकर ने उन अधिकारियों को इस बात का वास्ता दिया कि वो भी उन जैसा पुलिस कर्मी है उसके साथ यह व्यवहार ठीक नहीं है तो पीड़ित को अनुशासनात्मक कार्रवाई के नाम पर निलम्बित भी कर दिया गया। आश्चर्य की बात यह है कि पीड़ित सिपाही द्धारा इस अपमान की शिकायत उच्च अधिकारियों से करने पर उच्च अधिकारियों ने भी दोषी अधिकारियों के विरुद् कार्रवाई करने की बजाय उसी को नौकरी से बर्खास्तगी का भय दिखाकर चुप लगाने की हिदायत दे दी। बुरी तरह से अपमानित और लज्जित बाल्मीकि समुदाय के इस सिपाही से मारपीट ,गाली -गलौज करने और जाति सूचक शब्दों से अपमानित करने के साथ ही उसका फोन भी छीन लिया। जब उच्च पुलिसअधिकारियों ने भी पीड़ित सिपाही का दर्द नहीं सुना तो सिपाही ने अंततः उत्तर पूर्वी जिला के अतिरिक्त मुख्य दण्डाधिकारी के न्यायालय में अपने अधिवक्ता प्रवीण चौधरी के माध्यम से दोषी एस एच ओ और तीनों उप निरीक्षकों के विरुद्ध आपराधिक परिवाद दाखिल कर खुद को न्याय दिलाने की गुहार लगाई है।मामले की अगली सुनवाई 20 फरवरी को होनी निश्चित हुई है।
पीड़ित सिपाही दिवाकर ने भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 200 के अंतर्गत कोर्ट में दी गई याचिका में निवेदन किया है कि उसके साथ की गई मारपीट, जबरन रोकने,उसको अपनी सरकारी ड्यूटी करने में बाधा उतपन्न करने ,उसका फोन छीनने ,गम्भीर परिणाम भुगतने धमकी देने के साथ -साथ जाति सूचक शब्दों से प्रताड़ित करने के आपराधिक कृत्य के विरुद्ध आई पी सी की धारा 323 /332 /341 /342 /356 /379/506/34 के अंतर्गत आरोपियों को दण्डित करके इंसाफ दिलाने की गुहार की है। इसके साथ ही पीड़ित सिपाही ने आपराधिक दंड प्रकिया संहिता की धारा 156 [3] का प्रार्थना पत्र देकर इस मामले की एफ आई आर करने और पुलिस के उच्च अधिकारी से समस्त मामले की निष्पक्ष जाँच करवाकर दोषी आरोपियों के विरुद्ध आई पी सी की उचित धारायों में केस चलाने की मांग भी की है।
दिल्ली के नव नियुक्त आयुक्त श्री अमूल्य पटनायक ने अपना पद भार सम्भालने के बाद सभी थानाध्यक्षों और उपायुक्तों को चेतावनी भरे शब्दों में हिदायत दी थी कि किसी भी अधिकारी को अपने कर्तव्य में कोताही बरतने पर नहीं बख्शा जायेगा । लगता है कि आयुक्त महोदय की इस चेतावनी का थाना गोकुल पुरी के थानाध्यक्ष हरीश कुमार और उनके अधीनस्थों पर कोई असर नहीं हुआ है। सिपाही दिवाकर के साथ घटित इस प्रकरण से इस बात का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि जब पुलिस के अधिकारियों का व्यवहार अपने अधीनस्थ निम्न कर्मचारियों के साथ ही अमानवीय है तो वह आम जनता के साथ थानों में क्या सलूक करते होंगे ?
Sunday, 29 January 2017
काश हिन्दू कट्टर और आतंकी होता तो आज बहुत कुछ अलग होता।
न ही अंग्रेजीकाश हिन्दू क्ट्टर और आतंकवादी होता तो देश और दुनिया का नक्शा कुछ अलग होता। भारत और हिन्दू एक हजार साल तक गुलाम न होता। न कोई मोहम्मद बिना कासिम ,महमुद गजनवी, मोहम्मद गौरी , तैमूर लंग , बाबर, अहमद शाह अब्दाली , नादिर शाह जैसे इस्लामिक लूटेरे भारत में आकर लूटपाट और रक्तपा न ही मुगल साम्राज्य स्थापित होता ओर न ही औरांगजेब जैसा अत्याचारी शासक हिन्दूयों का नरसंहार करता। शासन भारत को अपना गुलाम बनाता। और न ही ऐ ओ ह्यूम जैसा विदेशी कांग्रेस की स्थापना करता। न ही गांधी- नेहरू- ज़िन्ना जैसे कथित नेता अंग्रेजों के इशारे पर भारत माँ का सीना चिरवाकर पाकिस्तानी नासूर पैदा करते और न ही लाखों लोगों का कत्लेआम होता और न करोड़ों हिंदुओं को अपनी मातृभूमि को छोड़कर अपने ही देश में शरणार्थी कहलाते। अगर हिन्दू 1947 में भी कट्टर और आतंकी बन जाता तो इस देश में न ही कोई धर्मनिरेक्षता का राग गानेवाला होता और न ही देश में साम्प्रदायिकता के विरुद्ध एकजुट होने का नारे लगाने वाले नेता अपना सत्ता हथियाने का खेल खेल रहे होते। काश हिन्दू कट्टर होता तो यह सेकुलरवाद का कीड़ा भी कथित बुद्धिजीवीवियों के दिमाग में अपना घर बनाता।काश हिन्दू अब भी कट्टर और आतंकी हो जाये तो शायद भारत की साडी समस्याओं का हल निकल जाये। शायद ऐसा होता तो संजय लीला भंसाली जैसा भांड और सिर्फ पैसे को अपना धर्म -इमान बना चुके और खुद को अभिव्यक्ति का स्वयंभू पूरोधा मान चुके यह हिन्दू विरोधी मानसिकता से ग्रस्त लोग पद्मावती जैसी राजपूत वीरांगना के चरित्र का हनन करने की चेष्टा करना तो दूर ऐसी कल्पना भी नहीं कर पाते। पर अफ़सोस हिन्दू ऐसा नहीं बना है परन्तु अगर हिंदुओं के प्रतिमानों और अस्मिता से कोई खिलवाड़ करेगा तो सदियों से शांति का मन्त्र जाप करनेवाला हिन्दू अब कट्टर और आतंकी बन जाने को मजबूर हो जायेगा।त करते।
Thursday, 5 January 2017
शाहदरा बार एसोसिएशन की चुनाव समिति का गठन।प्रवीण चौधरी सदस्य मनोनीत हुए।

ज्ञातव्य हो कि दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्देश अनुसार जिला न्यायालयों की बार एसोसिएशन्स के चुनाव जिला न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यों की समिति द्धारा करवाये जाने का प्रावधान है जिसमें 2 सदस्य अधिवक्ता के रूप में सम्मिलित होंगे। शाहदरा बार एसोसिएशन ने प्रवीण चौधरी और ऐ के पांडेय के नाम सुझाय गए थे जिनको जिला न्यायधीश की स्वीकृति प्रदान कर दी गई।
प्रवीण चौधरी के मनोयन से कड़कड़डूमा कोर्ट के अधिकांश वकीलों ने प्रसन्नता जाहिर की है और उन्होंने यह उम्मीद भी व्यक्त की है कि आगामी चुनाव पूरी तरह से पारदर्शी, निष्पक्ष और शांति पूर्ण तरीके से समन्न होंगे। चुनाव समिति में मनोनीत होने पर प्रवीण चौधरी ने कहा कि उन पर जो विश्वास शाहदरा बार एसोसिएशन ने जताया है उस पर खरा उतरने की कोशिश करेंगे। साथ ही उन्होंने कड़कड़डूमा के सभी वकील साथियों का आभार व्यक्त करते हुए यह भी कहा कि उनको जो जिम्मेदारी दी गई है उसको पूरी निष्ठा और निष्पक्षता से पूर्ण करने का हर संभव प्रयास करेंगे। चौधरी ने साथ ही कड़कड़डूमा कोर्ट के सभी साथी वकीलों से यह निवेदन है कि वो सभी उनको अपनी जिम्मेदारी निभाने में अपना पूर्ण सहयोग देंगे ताकि एसोसिएशन की नई कार्यकारणी को चुना जा सके।
Wednesday, 4 January 2017
महान संत -सिपाही गुरु गोबिंद सिंह के बलिदान का ऋण हिन्दू धर्म कभी नहीं उतार सकता
सवा लाख से एक लड़ाऊँ ,चिड़ियों से में बाज़ तड़ऊँ तबे गोबिंदसिंह नाम कहाऊँ.
दिल्ली [अश्विनी भाटिया ] हिन्दू धर्म के महान संत - सेनानायकऔर खालसा पंथ के संस्थापक गुरु गोबिंद सिंह जी के 350 वीं जयंती [प्रकाश पर्व ] उनके चरणों में हमारा शत -शत नमन। गुरु गोबिंद सिंह ने जो बलिदान हिन्दूधर्म और संस्कृति की रक्षा हेतु दिया उसका ऋण हिन्दू समाज कभी नहीं उतार सकता।हम इस महापुरुष ,महान संत ,कुशलयोद्धा और सर्ववंश बलिदानी गुरगोबिंद सिंह जी की जयंती पर उनके चरणों में अपना शत -२ नमन करते हैं।इनका जन्म पौष सुदी 7 वीं सन 1666 को पटना में माता गुजरी जी और पिता गुरु तेग बहादुर जी के घर हुआ।गुरुजी ने हिन्दू धर्म में व्याप्त कुरीतिओं, अन्धविश्वास ,पाखंड का भी जोरदार तरीके से खंडन किया और बैसाखी के दिन,1699आनंदपुर में खालसा पंथ की सर्जना करके लोगों को मानवता का सन्देश दिया। गुरूजी ने जहां एक ओर अपने पिता नौवें गुरु तेग बहादुर जी को कश्मीरी पंडितों की रक्षार्थ बलिदान देने को प्रेरित किया, वहीं अपने चारों पुत्र को भी धर्म की बलिवेदी पर कुर्बान कर दिया और वह खुद भी अपने जीवनपर्यन्त धर्म की स्थापना के लिए संघर्षरत रहे ।गुरु गोविंद सिंह जहां विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिंतक तथा कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की। वे विद्वानों के संरक्षक थे। उनके दरबार में ५२ कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता था। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय प्रतीक थे
महाभारत काल में धर्म की स्थापना और अन्याय के विरुद्ध कुरुक्षेत्र के मैदान में युद्ध करने के लिए प्रेरित करते हुए भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को यह सन्देश दिया कि जब शांति के सारे द्वार बंद हो जाएँ तो और न्याय न मिले तो युद्ध करो।ठीक यही बात मुग़ल काल के दौरान जब इस्लामिक जनून की मानसिकता को पाले औरंगज़ेब जैसे आततायी शासक ने हिन्दुओं पर अत्याचार किए तो उसी समय गुरु गोबिंद ने धर्म के रक्षार्थ इस सन्देश को आत्मसात किया और इस आतंक व् अन्याय के विरुद्ध लड़ने का संकल्प लिया। औरंगज़ेब के बढ़ते जुल्मों और अत्याचारों से अपना मनोबल खो चुकी हिन्दू कौम में शेरों जैसे जोश का संचार किया और कहा कि सवा लाख से एक लड़ाऊँ चिड़ियों सों मैं बाज तड़ऊँ तबे गोबिंदसिंह नाम कहाऊँ।दसवें गुरु गोबिंदसिंह मूलतः धर्मगुरु थे। अस्त्र-शस्त्र या युद्ध से उनका कोई वास्ता नहीं था, लेकिन औरंगजेब को लिखे गए अपने 'अजफरनामा' में उन्होंने इसे स्पष्ट किया था- 'चूंकार अज हमा हीलते दर गुजशत, हलाले अस्त बुरदन ब समशीर ऐ दस्त।'
अर्थात जब सत्य और न्याय की रक्षा के लिए अन्य सभी साधन विफल हो जाएँ तो तलवार को धारण करना सर्वथा उचित है। धर्म, संस्कृति व राष्ट्र की शान के लिए गुरु गोबिंदसिंह ने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। इस अजफरनामा (विजय की चिट्ठी) में उन्होंने औरंगजेब को चेतावनी दी कि तेरा साम्राज्य नष्ट करने के लिए खालसा पंथ तैयार हो गया है।सिखों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा रचित देवी चण्डिका की एक स्तुति है। गुरु गोबिन्द सिंह एक महान योद्धा एवं भक्त थे। वे देवी के शक्ति रुप के उपासक थे।
यह स्तुति दशम ग्रंथ के "उक्ति बिलास" नामक विभाग का एक हिस्सा है। गुरुबाणी में हिन्दू देवी-देवताओं का अन्य जगह भी वर्णन आता है।'चण्डी' के अतिरिक्त 'शिवा' शब्द की व्याख्या ईश्वर के रुप में भी की जाती है। "महाकोश" नामक किताब में ‘शिवा’ की व्याख्या ‘ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ’ (परब्रह्म की शक्ति) के रुप में की गई है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भी 'शिवा' 'शिव' की अर्धांग्नी भवानी अर्थात (ईश्वर) की शक्ति है।म
Sunday, 25 December 2016
भारत की दो महान विभूतिओं - महामना मालवीय और अटलजी के योगदान को देश हमेशा याद रखेगा।इनके जन्मदिन पर शत -शत नमन।
दिल्ली [अश्विनी भाटिया ] 'भारत रत्न ' स्वर्गीय महामना मदन मोहन मालवीय और पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेई भारत के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान है।देश की सांस्कृतिक विरासत और राजनीती में विशेष योगदान है। इन दो महान विभूतियों का आज जन्मदिन है। हम समस्त देशवासी इनके देश के निर्माण और विकास में दी गई सेवायों के लिए हमेशा आभारी रहेंगें। इनके चरणों में हमारा शत -शत नमन। पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल जी के भारत के लोकतंत्र को मज़बूत करने और अपने नेतृत्व में भारत को विश्व का एक परमाणु संपन्न शक्तिशाली राष्ट्र बनाने में महत्वपूर्ण योगदान है।
श्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म: २५ दिसंबर, १९२४को ग्वालियर में हुआ था। वे पहले १६ मई से १ जून १९९६ तथा फिर १९ मार्च १९९८ से २२ मई २००४ तक भारत के प्रधानमंत्री रहे।वे भारतीय जनसंघ की स्थापना करने वालों में से एक हैं और १९६८ से १९७३ तक उसके अध्यक्ष भी रहे। वे जीवन भर भारतीयराजनीति में सक्रिय रहे। उन्होंने लम्बे समय तक राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। उन्होंने अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर प्रारम्भ किया था और देश के सर्वोच्च पद पर पहुँचने तक उस संकल्प को पूरी निष्ठा से निभाया। वाजपेयी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के पहले प्रधानमन्त्री थे जिन्होंने गैर काँग्रेसी प्रधानमन्त्री पद के 5 साल बिना किसी समस्या के पूरे किए। उन्होंने 24 दलों के गठबंधन से सरकार बनाई थी जिसमें 81 मन्त्री थे। कभी किसी दल ने आनाकानी नहीं की। इससे उनकी नेतृत्व क्षमता का पता चलता है।
उल्लेखनीय है कि महामना मालवीय ने वाराणसी में पहलाकाशी हिन्दू विष्वविधालय की स्थापना सन् १९१६ में वसंत पंचमी के पुनीत दिवस पर की गई थी।यह एशिया का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय है। महामना मदन मोहन मालवीय (25 दिसम्बर 1861 - 1946) काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रणेता तो थे ही इस युग के आदर्श पुरुष भी थे। वे भारत के पहले और अन्तिम व्यक्ति थे जिन्हें महामना की सम्मानजनक उपाधि से विभूषित किया गया। पत्रकारिता, वकालत, समाज सुधार, मातृ भाषा तथा भारतमाता की सेवा में अपना जीवन अर्पण करने वाले इस महामानव ने जिस विश्वविद्यालय की स्थापना की उसमें उनकी परिकल्पना ऐसे विद्यार्थियों को शिक्षित करके देश सेवा के लिये तैयार करने की थी जो देश का मस्तक गौरव से ऊँचा कर सकें। मालवीयजी सत्य, ब्रह्मचर्य, व्यायाम, देशभक्ति तथा आत्मत्याग में अद्वितीय थे। इन समस्त आचरणों पर वे केवल उपदेश ही नहीं दिया करते थे अपितु स्वयं उनका पालन भी किया करते थे। वे अपने व्यवहार में सदैव मृदुभाषी रहे।कांग्रेस के निर्माताओं में विख्यात मालवीयजी ने उसके द्वितीय अधिवेशन (कलकत्ता-1886) से लेकर अपनी अन्तिम साँस तक स्वराज्य के लिये कठोर तप किया। उसके प्रथम उत्थान में नरम और गरम दलों के बीच की कड़ी मालवीयजी ही थे जो गान्धी-युग की कांग्रेस में हिन्दू मुसलमानों एवं उसके विभिन्न मतों में सामंजस्य स्थापित करने में प्रयत्नशील रहे। एनी बेसेंट ने ठीक कहा था कि"मैं दावे के साथ कह सकती हूँ कि विभिन्न मतों के बीच, केवल मालवीयजी भारतीय एकता की मूर्ति बने खड़े हुए हैं।श्री मालवीय जी का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष का कार्यकाल 1909–10; 1918–19; 1932-1933 तक रहा।हिन्दी के उत्थान में मालवीय जी की भूमिका ऐतिहासिक है। हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रथम अधिवेशन (काशी-1910) के अध्यक्षीय अभिभाषण में हिन्दी के स्वरूप निरूपण में उन्होंने कहा कि "उसे फारसी अरबी के बड़े बड़े शब्दों से लादना जैसे बुरा है, वैसे ही अकारण संस्कृत शब्दों से गूँथना भी अच्छा नहीं और भविष्यवाणी की कि एक दिन यही भाषा राष्ट्रभाषा होगी। "सनातन धर्म व हिन्दू संस्कृति की रक्षा और संवर्धन में मालवीयजी का योगदान अनन्य है।" जनबल तथा मनोबल में नित्यश: क्षयशील हिन्दू जाति को विनाश से बचाने के लिये उन्होंने हिन्दू संगठन का शक्तिशाली आन्दोलन चलाया और स्वयं अनुदार सहधर्मियों के तीव्र प्रतिवाद झेलते हुए भी कलकत्ता, काशी, प्रयाग और नासिक में भंगियों को धर्मोपदेश और मन्त्रदीक्षा दी। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रनेता मालवीयजी ने, जैसा स्वयं पं0 जवाहरलाल नेहरू ने लिखा है, अपने नेतृत्वकाल में हिन्दू महासभा को राजनीतिक प्रतिक्रियावादिता से मुक्त रखा और अनेक बार धर्मो के सहअस्तित्व में अपनी आस्था को अभिव्यक्त किया।
Thursday, 22 December 2016
त्याग और तपस्या की दुर्गम राह पर ही जीवनपर्यंत चले चौ.साहब। उनकी पुण्यतिथि पर हमारा शत -शत नमन ।
कुछ चलते हैं पदचिन्हों पर ,कुछ औरों को राह दिखाते हैं।
हैं सूरमा वही इस धरती पर, जो पदचिन्ह नए बनाते हैं।।
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सादगी ,गंभीरता और समाज के हित में सोच की प्रवृति से ओत -प्रोत मानवीय मूल्यों के लिए किसी से भी समझौता न करनेवाले तवस्वी स्वर्गीय चौधरी शिवराज सिंह [एडवोकेट ] जी, आज के दिन 23 दिसम्बर ,2005 को इस लोक से अपनी जीवनयात्रा को पूर्ण करके परलोक धाम को चले गए। मेरे पिता तुल्य पूजनीय चौ. साहब के सानिध्य में मुझे कई वर्षों तक रहने और इस दुनिया को समझने ,जीने का अवसर मिला है।
वो आज बेशक भौतिक रूप से हमारे साथ नहीं हैं, लेकिन अदृश्य रूप से अपनी मधुर स्मृतियों के साथ हमारे मन -मष्तिक में हमेशा बने रहेंगे। आज भी जीवन की राह में आनेवाली कठिन परिस्थितिओं की तपिश में उनका आशीर्वाद मुझे हवा के शीतल झोंके का अहसास करवाता रहता है ,जो मेरे को हर विकट और प्रतिकूल परिस्थिति का और भी अधिक हौंसले के साथ सामना करने का साहस प्रदान करता है। मैं आज उनकी ग्यारहवीं
पुण्यतिथि पर उनको अपना शत -२ नमन करता हूँ।मैं ईश्वर से और दिवंगत आत्मा से भी यह प्रार्थना करता हूँ कि वह अपना स्नेह और आशीर्वाद हम पर हमेशा बनाये रहेंगे।
चौ. साहब नाम से पहचाने जानेवाले शिवराज जी ने हमेशा समाज कल्याण की सोच और मानवीय दृष्टिकोण को अपने से अलग नहीं होने दिया। चौ. साहब लम्बे समय तक किसान नेता चौधरी चरण सिंह के निकट सहयोगी रहे और आपात्तकाल [ 1975 -1977 ] के दौरान कारागार में भी रहे,लेकिन उन्होंने अपने सिद्धांतों से कोई समझौता नहीं किया। उन्होंने आपात्तकाल के बाद 1977 के आम चुनाव में जनता पार्टी के टिकट पर लोकसभा सीट पर लड़ने के चौधरी चरणसिंह के प्रस्ताव को स्वीकार न करके अपने निस्वार्थ सेवा भाव का जो अनूठा उदाहरण समाज के सामने रखा वह अतुलनीय है। उनके व्यक्तित्व का यह पक्ष उनके अंतरमन में आसीन एक ऐसे तपस्वी का दर्शन समाज को करवाता है जो सिर्फ इस जीवन में त्याग की भावना को लेकर अपने कर्म मार्ग पर चलने में विश्वास रखता है।उनके सानिध्य में रहकर उन्होंने असंख्य अधिवक्ताओं को क़ानूनी दांवपेंच बेशक सिखाये हों, परन्तु इसके साथ -२ उन्होंने समाज के कमजोर और असहाय लोगों की सहायता करने की सीख भी दी। उनके पुत्र प्रवीण चौधरी वर्तमान में एक सफल अधिवक्ता हैं और शाहदरा बार एसोसिएशन के सचिव के रूप में कार्यरत रहे हैं। स्वर्गीय चौधरी साहब के श्री चरणों में हमारा पुनः शत -२ नमन। [अश्विनी भाटिया ]
Monday, 19 December 2016
चौ.रामलाल भाटिया ट्रस्ट ने किया निर्धन स्कूली बच्चों को गर्म जर्सियों का निःशुल्क वितरण
समारोह की अध्यक्षता मुख्य अध्यापक श्री रिछ पाल सिंह ने की।ट्रस्ट की ओऱ से 155 बच्चों को निशुल्क जर्सी वितरण की गई। इन जर्सियों का वितरण श्री विजय शर्मा जी के सहयोग से किया गया। इस अवसर पर बोलते हुए विधायक ज्ञानदेव ने ट्रस्ट के लोगों का धन्यवाद करते हुए कहा कि उन्हें इस बात की ख़ुशी है कि अश्विनी भाटिया और उनकी टीम उनके विधानसभा क्षेत्र रामगढ़ के ग्रामीणों की सहायता में पिछले कई वर्षों से सेवारत है इनके इस सराहनीय कार्यों के लिए वह चौ.रामलाल भाटिया चैरिटेबल ट्रस्ट की प्रशंसा करते हैं और भविष्य में ट्रस्ट को सामाजिक कार्यों के लिए हर सम्भव सहयोग देने का विश्वास भी दिलाते हैं। ट्रस्ट ने इस अवसर पर पुलिस विभाग द्धारा प्रशंसनीय कार्य हेतु सम्मानित हुए थाना नौगांव के एस एच ओ शिव राम ,कांस्टेबल भरत सिंह और सुल्तान सिंह को भी समान्नित किया। इनका सम्मान श्री आहूजा के कर कमलों द्धारा किया गया। गांव के नागरिकों लालचन्द ,रामलाल सुंदर भगत ,सुनील कुमार [सरपंच के पति ],डॉ किशन चन्द ,उस्मान खान पंच ,पृथ्वीराज भाटिया पंच ,प्रवीण भाटिया ,गौरव भाटिया , भाटिया और सुरेंद्र भटिया ने आये हुए सभी अतिथियों का स्वागत और उनको धन्यवाद भी दिया।
Tuesday, 14 June 2016
यूपी बिहार से पढ़कर आये डॉक्टर्स को गधा मानती है दिल्ली के जीबी पंत अस्पताल की डॉ स्वागता ?
दिल्ली [अश्विनी भाटिया ]।सरकार के लाख दावों के बावजूद सरकारी अस्प्ततालों में कार्यरत डॉक्टर गरीब लोगों का इलाज करने की बजाय उनको दुत्कारना अपना अधिकार समझते हैं। इन अस्पतालों में चाहे वो दिल्ली सरकार के अधीनस्थ हो या फिर केंद्र सरकार के अधीन , सभी में कार्यरत डॉक्टर और दूसरे कर्मचारी अपनी घटिया सोच बदलने को तैयार नहीं हैं और न ही इनको सुधारने में केजरीवाल और मोदी सरकार सफल होती दिखाई देती है। दिल्ली में स्थित जीबी पंत अस्प्ताल मेंताल मरीजों का इलाज करने में वहां का स्टाफ अपनी हेठी समझता है. यहां के पूछताछ केंद्र पर लोगों को संतोषजनक जानकारी नहीं दी जाती है।रोगियों की सहायता लिए बनाए गए रोगी सहायता केंद्र के कर्मचारी भी लोगों की मदद करने की बजाय अपना दरवाज़ा बंद करके बैठे रहते हैं और अगर कोई अंदर जाने की हिमाकत करें तो उसको डांट -डपट कर बाहर निकाल देते हैं। गत 10 जून को इसी तरह का प्रकरण यहां देखने में आया है। इस दौरान यह सवांददाता भी वहीं उपस्थित था और जब इस संबंध में पंत अस्पताल के निदेशक से बात करनी चाही तो उनके कमरे के बाहर बैठे कर्मचारी ने बताया कि साहब छुट्टी पर हैं उनसे नहीं मिला जा सकता। विस्तृत प्रकरण इस प्रकार है कि बड़ौत के एक गांव में रहनेवाले रामपाल को 2 दिंन पहले तेज़ बुखार हो गया और वह अचेत होकर अपने खेत में ही गिर गया था। उसके परिवार वाले उसको वहां प्राथमिक इलाज करवाने के बाद नवीन शाहदरा में रहनेवाले उनके दामाद प्रवीण के यहां ले आए ताकि उनका इलाज सही तरह से हो सके।प्रवीण ने उनको 10 जून को छोटा बाजार शाहदरा स्थित नगर निगम के सिविल अस्पताल में दिखाया।सिविल अस्पताल के डॉकटर ने उनका परीक्षण करने के बाद बताया कि मरीज़ को न्यूरो के डॉक्टर को दिखाना पड़ेगा और जीबी पंत अस्पताल में बिना देर किये ले जाने को कहा और उनको वहीं के लिए रैफर स्लिप बना दी। यह लोग जब करीब 1 बजे दोपहर पंत अस्पताल के आपत्कालीन केंद्र पहुंचे तो उनको पूछताछ केंद्र पर जाने को कहा गया जब वह वहां गए तो वहां बैठे कर्मचारी ने पर्चा देखकर कहा कि अब कार्ड बनने का टाइम खत्म हो गया है। कल सुबह 4 बजे आकर लाइन में लग जाना और अपना कार्ड बनवा लेना। प्रवीण ने अपने किसी परिचित से इस संबंध में बात करके सहायता मांगी। उनके मिलनेवाले ने दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य समिति के प्रमुख अनिल बाजपेई विधायक के कार्यालय में बात करके उनको कहा कि कहा कि वे वह लोग कमरा न. 38 में बने रोगी सहायता केंद्र में जाकर डॉ स्वागता से मिल लें उनकी समस्या का निदान हो जायेगा।जब वह रोगी सहायता केंद्र में गए तो वहां बैठी 3 महिलाकर्मियों ने उनकी बात नहीं सुनी और डांट दिया और बाहर जाने को कहा। इस पर प्रवीण ने फिर अपने परिचित से यह बात बताई तो उसने उनसे डॉ स्वागता से फोन पर बात करने को कहा। बड़ी मुश्किल से डॉ स्वागता का न. लेकर उनसे बात की गई। काफी देर बाद डॉ स्वागता आई और उनकी बात सुनकर बोली कि यह वी आई पी अस्पताल है यहां हर किसी का इलाज नहीं हो सकता। शिकायत करता ने जब उनको कहा कि उनको सिविल अस्पताल से यहां रैफर किया गया है तो वह पर्चा देखकर आपसे बाहर हो गईं। वह बड़ी तमतमाती हुई बोलीं कि दिल्ली नगर निगम न तो कोई सरकारी संस्थान है और न ही उनमें बैठे डॉक्टर कुछ जानते हैं।वो कहती हैं कि नगर निगम के डॉक्टर गधे हैं जो यूं पी बिहार से फ़र्ज़ी डिग्री लेकर आए हुए हैं।इनको न तो कोई जानकारी है और न ही कोई अनुभव है। जब उनसे मरीज़ के परिवार वालों ने कहा कि उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि दिल्ली नगर निगम के डॉक्टर क्या हैं? तो उन्होंने कहा कि वह तो सिर्फ किसी प्राइवेट अस्पताल या डॉक्टर के लिखी गयी सिफारिश को ही मानती हैं , तुम भी किसी प्राइवेट अस्पताल में चले जायो और वहां से रैफर करवा लायो।जब मरीज के सबंधी ने कहा कि वो गरीब हैं और प्राइवेट में नहीं जा सकते तो डॉक्टर महोदया तमतमा कर बोली कि ''मैं दिल्ली की हूँ और हमने यूपी -बिहार के लोगों का ठेका नहीं लिया हुआ जो मुंह उठाकर यहां इलाज करवाने चले आते हैं।'' अब सवाल यह उठता है कि जीबी पंत की इस डॉक्टर को रोगियों की सहायता के लिए तैनात किया गया है या नगर निगम के डॉक्टर्स की डिग्रियां जाँच करने का जिम्मा दिया गया है।इस तरह के व्यवहार से क्षुब्ध प्रवीण का कहना है कि इस डॉक्टर साहिबा को यू पी बिहार से क्या नफरत है ,जो वह अपने मन में इन राज्यों के प्रति इतनी दुर्भावना पाले हुए हैं ? इसकी उच्च स्तरीय जाँच पड़ताल होनी बहुत आवश्यक है। प्रवीण ने इस संबंध में एक शिकायत केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और दिल्ली के एल जी ,सी एम सहित उच्च प्रशासनिक अधिकारीयों से करने का मन बनाया है और वह कहते हैं कि ऐसे डॉक्टर्स के विरुद्ध सख्त एक्शन होना चाहिए जो भारी - भरकम सरकारी वेतन लेकर भी गरीब जनता को सेवाएं देना तो दूर बल्कि दुर्व्यवहार करना अपना अधिकार समझते हैं। जबकि इनको इसी काम के लिए वेतन मिलता है कि वह जनता को अपनी सेवाएं दें।अब सवाल यह उठता है कि जीबी पंत की इस डॉक्टर को रोगियों की सहायता के लिए तैनात किया गया है या नगर निगम के डॉक्टर्स की डिग्रियां जाँच करने का जिम्मा दिया गया है। इस तरह के व्यवहार से क्षुब्ध प्रवीण जो कि स्वयं भी पेशे से वकील हैं का कहना है कि इस डॉक्टर साहिबा को यूपी- बिहार से क्या नफरत है,जो वह अपने मन में इन राज्योंऔर उनमें रहनेवाले लोगों के प्रति इतनी दुर्भावना पाले हुए हैं ? इसकी उच्च स्तरीय जाँच पड़ताल होनी बहुत आवश्यक है।दुःख की बात यह है कि जनता को स्वास्थ्य सेवाएं देने की अपनी मूलभूत जिम्मेदारी हमारे देश और राज्य की सरकारें अपना पल्ला झड़ चुकी लगती हैं। जनता को निजी अस्पतालों की ओर धकेलने में लगी सरकारी मशीनरी का इसमें पता नहीं क्या छुपा स्वार्थ है कि वह आम जनता को यह सन्देश देने में सफल होती दिखी दे रही है कि सरकारी अस्पतालों में धक्के खाने के बावजूद समय पर उपचार नहीं हो सकता।अतः विवश होकर लोगों को या तो निजी अस्पतालों के चंगुल में फँसना पडता है या बिना इलाज के ही अकाल मौत की आगोश में समाना पड़ रहा है।
Tuesday, 12 April 2016
पत्रकारिता कोई व्यवसाय नहीं धर्म है जिसे हमने अपने रक्त से सींचा है
पच्चीस साल पहले की होली आज भी किसी दुःस्वप्न की तरह झकझोर जाती है। जब सारी दिल्ली रंगो में डूब-उतरा रही थी तब हम गुरु तेग़ बहादुर अस्पताल के आपरेशन कक्ष के बाहर अनुजवत उदीयमान पत्रकार अश्विनी भाटिया की जान की ख़ैर मना रहे थे जिन्हें विगत रात्रि को हमारे कार्यालय में घुसकर बदमाशों ने चाकुओं से घायल कर दिया था।
उन दिनों हमारा साप्ताहिक "प्रतीक टाइम्स" प्रकाशित होता था। हम दो व्यक्तियों की टीम के अथक परिश्रम से अपनी लगभग चार वर्ष की अल्पवय में ही साप्ताहिक, साधारणजन की आहत भावनाओं को मुखरित करने का एक सक्षम साधन बन चुका था। भ्रष्टाचार के विरुद्ध सशक्त रूप से अभियान छेड़ने के कारण जहाँ आम नागरिक हमारा हितैषी बन रहा था वहीं हम नौकरशाही, राजनीति और व्यापारिक क्षेत्र में व्याप्त माफ़िया की आँख में शूल की तरह गड़ रहे थे। कालाबाज़ारिए, जमाखोर, मिलावटखोर, घूसखोर आदि हर हरामखोर हमें पटरी से उतारने के मन्सूबे पाल रहा था। पहलेपहल हमें बहुत बड़े बड़े प्रलोभन दिए गए किन्तु हमारी अडिगता देख हमें धमकियाँ भी दी गईं जो कारगर न हो सकीं। तब हमारी टीम को समाप्त करने के लिए सबने दुरभिसन्धि कर हमारे नाम की सुपारी निकाली जो सूत्रों के अनुसार ₹ 6 लाख की थी।
अब इसे सुयोग कहें या दुर्योग कि पीरी को छोड़ बाक़ी बावर्ची, भिश्ती व ख़र का दायित्व अश्विनी निभाते थे। वही फ़ील्ड में रिपोर्टिंग तथा अन्य व्यवस्थाएँ देखते, सम्भालते थे अतः पत्र के प्रतिनिधि के रूप में जाने जाते थे। उनकी यही पहचान उनके लिए घातक सिद्ध हुई, अन्यथा मैं भी वहीं कार्यालय में बैठा था। अश्विनी कुछ देर पहले मुझे चौराहे पर रिक्शे तक छोड़कर लौटे ही थे कि घात लगाए बदमाशों ने हमला कर दिया। अन्य चोटों के अलावा उनके पेट में गहरा घाव लगा था। उन दिनों सैलफोन नहीं चले थे अत: लगभग आधे घण्टे बाद घर पहुँचने पर मुझे घटना की जानकारी मिली और यह कि उन्हें अस्पताल पहुँचाया गया है। मैं उल्टे पैरों अस्पताल को दौड़ा; फिर अश्विनी के परिवारवाले और हम कुछ मित्रगण ही जानते हैं कि हमारे अगले 48 घण्टे कैसे बीते।हितैषियों की प्रार्थनाओं एवं आशीर्वाद से कुछ सप्ताह बाद उसी दृढ़ता, प्रतिबद्धता व नए उत्साह से अश्विनी भाटिया ने फिर से अपना मोर्चा सम्भाल लिया। - प्रमोद वाजपेयी
Monday, 11 April 2016
आपके चरणों में हम में सदैव नतमस्तक रहेंगे और आपके बताए मार्ग पर जीवनपर्यंत चलेंगें
जांदा होया दस न गया चिट्ठी केडे वतना वल पावां
राहियां कोलों पुछदी फिरां मैं सजणा दा सर नावां।
बिछड़ गयां दियां तांघां रखियां, चार-चुफेरे ढूंढन अखियाँ
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आज से इक्कीस वर्ष पूर्व आप आज के दिन 12 अप्रैल ,1995 को बेशक भौतिक रूप से हमसे दूर चले गए , परन्तु हमारे मन -मस्तिष्क मे बसी आपकी अमिट मधुर स्मृतियाँ समय -समय पर मुझे इस बात का अहसास कराती रहती हैं कि आप हमसे अलग होकर कहीं भी नहीं गए, अपितु आप आज भी हमारे साथ ही हैं। जब कभी -भी किसी ऐसी विपत्ति ने मुझे घेरा जिसमें आपके मार्गदर्शन या सहयोग की आवश्यकता महसूस हुई तो तब -तब आपने अदृश्य रूप उस उलझन से निकलने का मुझे मार्गदर्शन देकर अपने पिताधर्म को निभाया।आपके द्वारा अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करने के बताए गए मार्ग पर मैं आज भी चल रहा हूँ । आपने हमेशा यही कहा कि 'विरोधी चाहे कितना भी शक्तिशाली और प्रभावशाली क्यों न हो अगर हमारे पास सच्चाई और अपने बड़े -बजुर्गों का आशीर्वाद है तो जीत हमें ही मिलनी तय है,'आपकी इसी सीख के कारण मैं भी समाज के पीड़ित वर्ग के कमजोर और असहाय व्यक्ति के साथ चट्टान की तरह खड़ा होकर उसकी पीड़ा को मुखर वाणी देकर सत्ता के शीर्ष पर बैठे शासकों तक पहुंचाकर उसकी समस्या का निदान करवाकर ही दम लेता हूँ और आपके आशीर्वाद से जीत हमेशा मेरे साथ आ खड़ी होती है। मेरी आपसे और ईश्वर से यही कामना है कि आपके स्नेह और आशीर्वाद की छत्रछाया सदैव हम पर बनी रहेगी। मैं आज भी आपके द्वारा दी गई जनहित में कार्य करने प्रेरणा के कारण ही चौ. रामलाल भाटिया चैरिटेबल ट्रस्ट के माध्यम से समाज के पिछड़े और कमजोर वर्ग के लोगों के हित में कार्य करने को अपना परम् सौभाग्य मानता हूँ। आपके चरणों में हम सदैव नतमस्तक रहेंगे,और आपके दिखाए रस्ते पर चलकर जीवन व्यतीत करने को ही अपना क्षत्रिय धर्म-कर्म मानते हैं।
Friday, 26 February 2016
राहुल गांधी जी देशभक्ति के खून का दावा करके देशद्रोहियों का समर्थन क्यों ?

Wednesday, 24 February 2016
अब संघर्ष राष्ट्रवादियों और राष्ट्रविरोधी तत्वों के बीच कोई नहीं रह सकता निरपेक्ष
दिल्ली।अब देश में राष्ट्रवादियों और राष्ट्रविरोधियों के बीच संघर्ष छिड़ चुका है और इससे कोई भी नागरिक अछूता नहीं रह सकता। देश के हर नागरिक का यह कर्तव्य भी होता है कि वह अपने देश के विरुद्ध उठनेवाली किसी भी आवाज़ को हमेशा -हमेशा के लिए शांत कर दे। एक ओर जहां देश के प्रबुद्ध नागरिकों ने देश विरोधियों के विरुद्ध अपनी आवाज़ बुलंद कर दी है वहीं विरोधी दलों के कई नेताओं ने अपना समर्थन जेएनयू में राष्ट्रविरोधी औरआतंकवादियों के समर्थक छात्रों को देकर अपना राष्ट्र विरोधी चेहरा जनता के सामने उजागर कर दिया हैं। अब तो पूरी तरह से यह साबित हो रहा है कि जेएनयू देशविरोधियों को पैदा करनेवाला एक शिक्षण संस्थान है जहां उच्च शिक्षा के नाम पर देश के युवाओं के दिलों में अलगाववाद और देशविरोध की भावना को भरने का षड्यंत्र बरसों से किया जा रहा है। अभिव्यक्ति के नाम पर नक्सलवाद आतंकवाद अलगाववाद और देशद्रोह को जायज़ ठहरनेवालों की भीड़ जेएनयू में भरी हुयी है और उसकी भयानक तस्वीर गत 9 फ़रवरी की उसके परिसर में घटी घटना है। भारत के टुकड़े - टुकड़े करने और इसकी बर्बादी तक जंग करने वाले देशद्रोह के आरोपी छात्रों को बचाने के लिए राहुल गांधी अरविन्द केजरीवाल और वामपंथी नेताओं की जमात भी निकल आई है। कांग्रेस वामपंथी जेडीयू बीएसपी आप जैसी पार्टियां प्रधानमंत्री मोदी का विरोध करते - करते अब देशविरोध पर उतर आईं हैं। देश में अलगाववाद और आतंकवाद को समर्थन देने पर कई मीडिया संस्थान भी बराबर के भागीदार बने हुए हैं।अपनी इसी रणनीति के तहत यह मिडिया चैनल जानबूझकर जेएनयू में देशविरोधी घटना की बजाय पटियाला हाउस कोर्ट में देश के विरुद्ध नारेबाजी करनेवालों की पिटाई को अपनी बहस का मुख्य मुद्दा बनाए हुए हैं। कुछ पत्रकार अपने को देश से ऊपर की वस्तु मानकर राष्ट्रविरोध को अपनी अभिव्यक्ति की आज़ादी की संज्ञा दे रहे हैं और इनकी इस हरकत को देश की जनता भी बड़ी गहनता से पहचान चुकी है।
Tuesday, 23 February 2016
राहुल गांधी और केजरीवाल देशद्रोह के आरोपी छात्रों के हिमायती क्यों ?
दिल्ली।देशद्रोह के आरोपी छात्रों के समर्थन में अब कुछ छात्रों का 'चलो दिल्ली ' मार्च को क्या देश की एकता -अखंडता को चुनौती नहीं समझा जाये ?अफ़सोस की बात यह है कि इस प्रदर्शन को केजरीवाल ,राहुल गांधी और वामपंथी नेताओं का भी समर्थन मिला। इस मार्च में रोहित वेमुला को न्याय दिलाने की आढ़ में जेएनयू के देशद्रोह के आरोपियों को बचाने की कवायद की गई । जेएनयू में छिपे बैठे अलगाववादी और आतंकवादियों के समर्थक देशद्रोह के
Monday, 22 February 2016
हरियाणा में जाटों ने आरक्षण को पाने की लालसा में विश्वास की पूंजी खो दी
हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन के नाम पर हिंसा लूटपाट और आगजनी का जो नंगा नाच हुआ उसकी आग बेशक अभी तो शांत हो जाए लेकिन इसकी चिंगारी समाज के दूसरे समुदायों के दिलों में काफी लम्बे समय तक नहीं बुझ पायेगी। आंदोलन की आढ़ में जाटों ने दूसरे समुदाय के लोगों के व्यावसायिक प्रतिष्ठानो को जमकर लूटा और बाद में आग के हवाले करके अपनी वहशीपन को शांत किया । इस हिंसा लूटपाट और आगजनी को पुलिसवाले ने भी यह सोचकर रोकना उचित नहीं समझा क्योंकि एक तो वह लुटरे उनके जातिभाई हैं और इसकी सफलता में उनकी वर्तमान और भावी संतानों की सम्पन्नता और उद्धार का मार्ग भी प्रशस्त होना है। अब आंदोलनकारी जाटों का यह कहना कि यह लूटपाट और आगजनी उन्होंने नहीं की बल्कि यह सब बाहर से आये लोगों ने किया है।जबकि उन लोगों ने सारे रास्ते अपने कब्ज़े में कर रखे थे और आर्मी तक को जाने के लिए हवाई मार्ग चुनना पड़ा तो यह हिंसा करनेवाले लुटेरे कहां से और कैसे वहां पहुँच गए ? दुकानों को लुटकर जलानेवाले और हिंसा करनेवाले जाट नहीं थे तो क्या उन्हें इस बात की जानकारी थी कि कौनसी दुकानें गैरजाटों की हैं और सिर्फ उन्हें ही आग के हवाले करना है ? तो क्या यह लुटरे और वहशी दरिन्दे तालिबानी थे ? क्या वो तालिबान या पाकिस्तान या इराक या सीरिया से आकर यह तबाही का मंजर बना गए ? केंद्र सरकार लाख दावे करती रहे कि आर्मी को हरियाणा में तैनात करने में कोई देरी नहीं की गई लेकिन इसका लाभ क्या हुआ क्योंकि आर्मी के हाथ बांधकर हां भेजा गया था।उसका भी एक सीधा सा राजनैतिक कारण यह दिखता है कि अगले साल उत्तरप्रदेश के होनेवाले विधानसभा चुनावों में पश्चिमी पट्टी के जाटों के वोट प्राप्त करने की लालसा। इस सारे घटनाक्रम के पीछे एक कारण यह है कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का पंजाबी समुदाय से होना।हरियाणा के गठन 1966 से ही जाटों के दिमाग में यह बात बैठा दी गई है कि हरियाणा सिर्फ उनका है और यहां पर राज करने का एकमात्र अधिकारभी उन्हीं को प्राप्त है।और इसी सोच को कांग्रेस ने जाट नेता को सीएम की कुर्सी पर बार -बार बैठाकर हमेशा -हमेशा के लिए पुख्ता कर दिया। इसीलिए जाटों की इस सबसे बड़ी दिमागी फितरत और टीस ने विशेषतौर से पंजाबी समुदाय को ही अपना मुख्य निशाना बनाया। इस काम में हरियाणा की सभी राजनैतिक दलों की जाट लॉबी ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से एकजुट होकर सहयोग दिया और स्थानीय प्रशासन ने भी अपना कर्तव्य भूलकर संकुचित सोच के साथ आंदोलनकारियों का साथ दिया । इस हिंसात्मक आंदोलन के कारण भारी मात्रा में जानमाल का नुकसान झेलनेवालों की क्षतिपूर्ति अब कौन करेगा ?मेहनत --मजदूरी से कमाई जीवनभर की पूंजी को अपनी आँखों से लुटता देखनेवाली आँखों में क्या आरक्षण का लाभ लेनेवाले समुदाय ने अपनी विश्वास की पूंजी को नहीं लुटा दिया ?
Sunday, 21 February 2016
हरियाणा के सीएम खट्टर राजनैतिक साज़िश का शिकार अपने भी हैं शामिल

Saturday, 20 February 2016
खट्टर सरकार हिंसक जाट आरक्षण आंदोलन का अब कड़ाई से करेगी दमन ?
हरियाणा में जिस बात की आशंका थी वही हो गई आख़िरकार जाटों के आरक्षण आंदोलन ने हिंसात्मक रूप धारण कर ही लिया है और पूरा हरियाणा धूं -धूं करके जलने लगा है। इस बात की आशंका हमने पहले ही व्यक्त की थी और 18 फ़रवरी को ही अपनी एक रिपोर्ट में आंदोलनकारियों से अपील भी की थी कि यह टाइम आंदोलन के लिए उचित नहीं है क्योंकि इस समय देश में बैठे बहुत से देशद्रोही विदेशी आकाओं के निर्देश पर देश के अधिकांश हिस्सों में
उपद्रव फ़ैलाने की फ़िराक में हैं। इसकी संभावना जेएनयू की घटना के बाद और बढ़ चुकी है। और हमने यह आशंका भी व्यक्त की थी कि यह अराजक तत्व आंदोलन में घुसकर हिंसा फैला सकते हैं जिसके कारण यह आंदोलन दागदार हो सकता है परन्तु आंदोलनकारियों को यह अपील रास नहीं आई और आख़िरकार उनके आंदोलन को अराजक तत्वों ने हाईजैक कर ही लिया है। अब पुरे राज्य में हिंसा फ़ैल चुकी है और मजबूरन सरकार को सेना को भी बुलाना पड़ा है। आगजनी और गोली चलने की घटना भी रोहतक में घट चुकी हैजिसमें बीएसफ के एक जवान के जख्मी होने और कुछ अन्य लोगों की मौत होने की भी खबर है। अब यह पूरी तरह से निश्चित हो गया है कि प्रशासन को न चाहते हुए भी इस आंदोलन का दमन ताकत से करना ही पड़ेगा क्योंकि कानून व्यवस्था को किसी भी तरह से बनाये रखना सरकार की पहली जिम्मेदारी होती है। किसी भी व्यक्ति या समुदाय को अपनी मांग के लिए आंदोलन करने का अधिकार लोकतंत्र में है लेकिन किसी को भी हिंसा करने ,आगजनी करने और लूटपाट करने की छूट नहीं दी जानी चाहिए। अफ़सोस की बात है कि हरियाणा में इस समय जाट आरक्षण आंदोलन हिंसात्मक हो चुका है और पुरे प्रदेश में आगजनी ,हिंसा और लूटपाट का नंगा नाच असमाजिक तत्वों द्वारा किया जा रहा है। इस आंदोलन की हिंसा की भेंट करोड़ों रूपये की सरकारी और गैरसरकारी सम्पति आग में जलाकर स्वाहा कर दी गई है जिसकी जिम्मेदारी पूरी तरह से आंदोलनकारियों की ही मानी जाएगी ।यह सर्वोच्च न्यायलय का स्पष्ट निर्देश सरकारों को है कि किसी भी आंदोलन के दौरान हुई सरकारी और गैरसरकारी सम्पति के नुकसान की भरपाई आंदोलनकारियों से करवाई जाए। हरियाणा सरकार को अब इस हिंसा को पूरी ताकत से काबू में करना चाहिए क्योंकि किसी भी आंदोलन को जब हिंसक तत्व अपने कब्ज़े में कर लें तो उसका दमन जरूरी होता है यह दमन सिर्फ और सिर्फ कड़ाई बरत कर ही किया जा सकता है और अब यह समय आ गया है। अगर हरियाणा सरकार अब भी नरमी बरतती है तो वो आम नागरिक के जनोमाल की सुरक्षा करने में असफल मानी जाएगी । आंदोलन का मतलब यह नहीं होना चाहिए कि सड़कों को अवरुद्ध कर दिया जाये, रेल की पटरियों पर कब्ज़ा करके सरकारी और निजी सम्पति को तहस -नहस कर दिया जाए। इस बात को जाटों को भी समझना चाहिए कि वो अपनी मांग के लिए दूसरे लोगों को परेशान करेंगे तो उन्हें कुछ हांसिल नहीं होनेवाला। यह आंदोलन अब उपद्रव में तब्दील हो चूका है और इसको नहीं काबू किया गया तो इसमें सभी का ही नुकसान होना निश्चित है। हमें तो यह प्रतीत होता है कि इस आंदोलन के हिंसात्मक होने के पीछे एक और फैक्टर भी काम कर रहा है और वो यह है कि हरियाणा के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर किसी गैरजाट समुदाय के व्यक्ति का बैठना और यह बात कई जातिवादी लोगों के गले से नीचे नहीं उतरना। इन जातिवादी लोगों के दिलों में इस बात की टीस है कि पंजाबी मनोहरलाल खट्टर मुख्यमंत्री के पद पर क्यों बैठ गए हैं ? जब से हरियाणा राज्य [1966 ]बना है तब से अधिकांश समय जाट समुदाय का व्यक्ति ही इस प्रदेश का मुख्यमंत्री बना है। और आश्चर्य का विषय यह है कि इस सब के बावजूद जाट अपने पिछड़ेपन से छुटकारा पाने को तैयार नहीं हैं क्यों?इस परम्परा को कांग्रेस ने ही शुरू किया था जिससे प्रदेश की दूसरी जातियों में रोष भी बना रहता था । राज्य में पहली बार भाजपा की पूर्ण बहुमत से सरकार आई और मोदी जी ने सीएम के पद पर पंजाबी समुदाय के मनोहर लाल खट्टर को आसीन करवाकर प्रदेश के दूसरे समुदायों को भी यह संदेश दिया कि राज्य में उनकी भी बराबर की भागीदारी है। लेकिन जाट समुदाय को यह बात अभी तक हज़म नहीं होती दिखाई देती और वो हरियाणा पर सिर्फ और सिर्फ अपना एकाधिकार समझते हैं ,जिसका रोष उनके दिलों में पनपता रहा और इस आंदोलन की आढ़ में इस रोष को भी बहुत से लोग हिंसा फैलाकर व्यक्त करने का सुनहरा अवसर मान बैठे हैं। सूत्रों से यह भी ज्ञात हुआ है कि इस आंदोलन को हिंसक बनाने में कई विपक्षी और सत्तापक्ष के जाट नेताओं का भी परदे के पीछे से समर्थन मिला हुआ है। इन लोगों का एक ही लक्ष्य है कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को किसी भी तरह से फेल किया जाये। अब देखना यह है कि खट्टर किस तरह से इस राजनैतिक चक्रव्यहू से कामयाब होकर निकल पाते हैं। [अश्विनी भाटिया ]
उपद्रव फ़ैलाने की फ़िराक में हैं। इसकी संभावना जेएनयू की घटना के बाद और बढ़ चुकी है। और हमने यह आशंका भी व्यक्त की थी कि यह अराजक तत्व आंदोलन में घुसकर हिंसा फैला सकते हैं जिसके कारण यह आंदोलन दागदार हो सकता है परन्तु आंदोलनकारियों को यह अपील रास नहीं आई और आख़िरकार उनके आंदोलन को अराजक तत्वों ने हाईजैक कर ही लिया है। अब पुरे राज्य में हिंसा फ़ैल चुकी है और मजबूरन सरकार को सेना को भी बुलाना पड़ा है। आगजनी और गोली चलने की घटना भी रोहतक में घट चुकी हैजिसमें बीएसफ के एक जवान के जख्मी होने और कुछ अन्य लोगों की मौत होने की भी खबर है। अब यह पूरी तरह से निश्चित हो गया है कि प्रशासन को न चाहते हुए भी इस आंदोलन का दमन ताकत से करना ही पड़ेगा क्योंकि कानून व्यवस्था को किसी भी तरह से बनाये रखना सरकार की पहली जिम्मेदारी होती है। किसी भी व्यक्ति या समुदाय को अपनी मांग के लिए आंदोलन करने का अधिकार लोकतंत्र में है लेकिन किसी को भी हिंसा करने ,आगजनी करने और लूटपाट करने की छूट नहीं दी जानी चाहिए। अफ़सोस की बात है कि हरियाणा में इस समय जाट आरक्षण आंदोलन हिंसात्मक हो चुका है और पुरे प्रदेश में आगजनी ,हिंसा और लूटपाट का नंगा नाच असमाजिक तत्वों द्वारा किया जा रहा है। इस आंदोलन की हिंसा की भेंट करोड़ों रूपये की सरकारी और गैरसरकारी सम्पति आग में जलाकर स्वाहा कर दी गई है जिसकी जिम्मेदारी पूरी तरह से आंदोलनकारियों की ही मानी जाएगी ।यह सर्वोच्च न्यायलय का स्पष्ट निर्देश सरकारों को है कि किसी भी आंदोलन के दौरान हुई सरकारी और गैरसरकारी सम्पति के नुकसान की भरपाई आंदोलनकारियों से करवाई जाए। हरियाणा सरकार को अब इस हिंसा को पूरी ताकत से काबू में करना चाहिए क्योंकि किसी भी आंदोलन को जब हिंसक तत्व अपने कब्ज़े में कर लें तो उसका दमन जरूरी होता है यह दमन सिर्फ और सिर्फ कड़ाई बरत कर ही किया जा सकता है और अब यह समय आ गया है। अगर हरियाणा सरकार अब भी नरमी बरतती है तो वो आम नागरिक के जनोमाल की सुरक्षा करने में असफल मानी जाएगी । आंदोलन का मतलब यह नहीं होना चाहिए कि सड़कों को अवरुद्ध कर दिया जाये, रेल की पटरियों पर कब्ज़ा करके सरकारी और निजी सम्पति को तहस -नहस कर दिया जाए। इस बात को जाटों को भी समझना चाहिए कि वो अपनी मांग के लिए दूसरे लोगों को परेशान करेंगे तो उन्हें कुछ हांसिल नहीं होनेवाला। यह आंदोलन अब उपद्रव में तब्दील हो चूका है और इसको नहीं काबू किया गया तो इसमें सभी का ही नुकसान होना निश्चित है। हमें तो यह प्रतीत होता है कि इस आंदोलन के हिंसात्मक होने के पीछे एक और फैक्टर भी काम कर रहा है और वो यह है कि हरियाणा के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर किसी गैरजाट समुदाय के व्यक्ति का बैठना और यह बात कई जातिवादी लोगों के गले से नीचे नहीं उतरना। इन जातिवादी लोगों के दिलों में इस बात की टीस है कि पंजाबी मनोहरलाल खट्टर मुख्यमंत्री के पद पर क्यों बैठ गए हैं ? जब से हरियाणा राज्य [1966 ]बना है तब से अधिकांश समय जाट समुदाय का व्यक्ति ही इस प्रदेश का मुख्यमंत्री बना है। और आश्चर्य का विषय यह है कि इस सब के बावजूद जाट अपने पिछड़ेपन से छुटकारा पाने को तैयार नहीं हैं क्यों?इस परम्परा को कांग्रेस ने ही शुरू किया था जिससे प्रदेश की दूसरी जातियों में रोष भी बना रहता था । राज्य में पहली बार भाजपा की पूर्ण बहुमत से सरकार आई और मोदी जी ने सीएम के पद पर पंजाबी समुदाय के मनोहर लाल खट्टर को आसीन करवाकर प्रदेश के दूसरे समुदायों को भी यह संदेश दिया कि राज्य में उनकी भी बराबर की भागीदारी है। लेकिन जाट समुदाय को यह बात अभी तक हज़म नहीं होती दिखाई देती और वो हरियाणा पर सिर्फ और सिर्फ अपना एकाधिकार समझते हैं ,जिसका रोष उनके दिलों में पनपता रहा और इस आंदोलन की आढ़ में इस रोष को भी बहुत से लोग हिंसा फैलाकर व्यक्त करने का सुनहरा अवसर मान बैठे हैं। सूत्रों से यह भी ज्ञात हुआ है कि इस आंदोलन को हिंसक बनाने में कई विपक्षी और सत्तापक्ष के जाट नेताओं का भी परदे के पीछे से समर्थन मिला हुआ है। इन लोगों का एक ही लक्ष्य है कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को किसी भी तरह से फेल किया जाये। अब देखना यह है कि खट्टर किस तरह से इस राजनैतिक चक्रव्यहू से कामयाब होकर निकल पाते हैं। [अश्विनी भाटिया ]
Wednesday, 17 February 2016
संकट के आंदोलन समय आंदोलन उचित नहीं जाटों से आंदोलन स्थगित करने की अपील
इस समय देश पर देशविरोधी ताकतों की टेढ़ी नजर है और देश की एकता -अखंडता और शांति -सदभाव पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। अतः यह समय आंदोलन के लिए उचित नहीं है हरियाणा के आंदोलनकारी जाटों से देशहित में आंदोलन स्थगित करने की अपील। देश के वर्तमान हालात इस समय अच्छे नहीं हैं। कुछ विदेशी ताकतों के इशारे पर देश के अंदर ही कुछ अलगाववादी लोग देश को बर्बाद करने की साजिशों में लगे हुए हैं और इनको कुछ राजनैतिक लोग भी अपना खुला समर्थन देकर भारत की एकता -अखंडता के लिए गंभीर चुनौती खड़ी कर रहे हैं। इस दौर में भारत के सभी राष्ट्रभक्त नागरिकों का यह

Tuesday, 16 February 2016
देशद्रोहियों और उनके समर्थकों की धुलाई करके वकीलों ने निभाया अपना राष्ट्रधर्म
- एक बार देश के वकीलों ने यह साबित कर दिया है कि वो लोग किसी भी देशद्रोही को सबक सिखाने से पीछे नहीं हैं।जेएनयू में भारत विरोधी और आतंकवादियों के पक्ष में नारेबाजी करनेवाले देशद्रोहियों और उनके समर्थकों की दिल्ली की पटियाला हाऊस कोर्ट में वकीलों ने जमकर धुलाई करके अपने राष्ट्रधर्म को ही निभाया है।देश की आज़ादी की लड़ाई के दौरान भी वकीलों ने आगे बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था और अपनी कुर्बानियां भी दी थी।अंग्रेजी हकूमत से कड़ी टककर लेकर वकीलों ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की मशाल को जलाए रखा। वकीलों के देशप्रेम को हम शत -२ नमन करते हैं।देश के स्वाभिमान पर जब भी कोई आंच आई वकील समुदाय ने आगे बढ़कर उसका मुकाबला किया। जहां देश के कई बुद्धिजीवी सेकुलरता का लबादा ओढ़ कर देशद्रोहियों का समर्थन कर रहे हैं वहीं वकीलों ने देशद्रोह के आरोपियों और उनके समर्थकों द्वारा भारत विरोधी नारेबाजी करने पर उन गद्दारों का मुंह तोड़ जवाब दिया। देश की स्वाभिमानी जनता अपने राष्ट्रभक्त वकीलों पर गर्व करती है और उन लोगों को जो देशद्रोहियों के पक्ष में कहीं भी खड़े होते हैं उनको भी देशद्रोही ही मानती है। देशद्रोहियों की धुलाई करके वकीलों ने निभाया है अपना राष्ट्रधर्म। जहां पत्रकारिता की आढ़ में कुछ पत्रकार विदेशी एजेंडे के तहत देशद्रोहियों का साथ दे रहे हैं और राष्ट्र धर्म निभाने की बजाय देश के साथ धोखा कर रहे हैं वहीं वकील समुदाय देश के स्वाभिमान के लिए पूरी मजबूती के साथ अपनी आवाज़ बुलंद किये हुए हैं। हालाँकि वकीलों में भी कुछ ऐसे लोग मौजूद है जिनकी सहानुभूति आतंकवादियों और देशद्रोहियों की पैरवी करने में रही है परन्तु इनको अपने समुदाय में कोई सम्मान की दृष्टि से नहीं देखता है।भारत माँ को अपने ऐसे पुत्रों पर गर्व है जो अपनी माँ की लाज बचाने हमेशा तत्पर रहते हैं।
Monday, 15 February 2016
जो सज़ा देश से गद्दारी करनेवालों की होती है वही सज़ा उनका समर्थन करने वालों की भी होनी चाहिए।
जो लोग देशद्रोहियों के समर्थन में हैं और अफजलगुरू जैसे आतंकवादियों के जिंदाबाद करनेवालों के पक्ष में हैं वो सब भारत के गद्दार हैं ,मैं ऐसे सभी लोगों से कहता हूँ कि वो सब मेरे देश के दुश्मन हैं और ऐसे देशद्रोहियों को भारत की पवित्र भूमि पर भी कोई रहने की जगह नहीं मिलनी चाहिए। जे एन यू में जिस तरह से देशविरोधी नारेबाजी हुयी है और उन देशद्रोही छात्रों की गिरफ्तारी का विरोध करनेवाले नेता चाहे वो वामपंथी नेता हों , आपके नेता हों ,जे डी यू के नेता हो या कांग्रेस के राहुल गांधी ,यह सभी देश की एकता को चुनौती दे रहे हैं। जो भी देश के विरुद्ध बोलने वाले गद्दारों और अफज़ल गुरु जैसे आतंकवादियों के जिंदाबाद के नारे लगानेवालों की गिरफ्तारी के विरुद्ध भौंक रहे हैं , इन सब के विरुद्ध देशद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए। गद्दारों को बिलकुल सहन नहीं किया जा सकता चाहे वो कोई भी क्यों न हो। देशद्रोही छात्रों की गिरफ्तारी का विरोध करनेवालों की गिरफ्तारी की मांग हम करते हैं और अगर के दुश्मनो को सबक सिखाने के लिए देशहित में सरकार को कड़ी करवाई करनी होगी और अगर इमरजेंसी भी लगानी पड़े तो भी पीछे नहीं हटना चाहिए क्योंकि देश सबसे पहले है और इसका विरोध करनेवालों को किसी भी तरह की कोई सवैंधानिक छूट नहीं मिलनी चाहिए। आज इस बात की आवश्यकता भी है कि हम अपनी आँखें खोलकर चिर निंद्रा से जाग जाएँ चाहिए ताकि देश को फिर न कोई दुश्मन किसी गहरी साजिश का शिकार बना ले।हमें यह भी समझ आ जाना चाहिए कि देश की हालत वोट के भूखे सेक्युलर नेताओं ने क्या कर दी है जिसमें देश के गद्दार खुलकर भौकने लगे हैं।यह वोट के भूखे भेड़िये अब देश को भी दांव पर लगाने पर उत्तर आये हैं।आज आवश्यकता इस बात की भी है कि जो लोग खुलेआम देश की एकता -अखंडता को चुनौती देकर अफज़ल गुरु जैसे आतंकवादियों की जिंदाबाद करनेवालों की गिरफ्तारी पर सरकार की आलोचना कर रहे हैं ,वो कौन हैं और किस राजनैतिक दल से जुड़े हुए हैं ,इनको अच्छी तरह से पहचान कर अच्छा सबक सिखाया जाये।
Friday, 12 February 2016
सेकुलरता के नाम पर और पत्रकारिता की आढ़ में देश से गद्दारी करनेवालों को गिरफ्तार किया जाए
देश के अंदर रहकर जो लोग देश के साथ गद्दारी कर रहे हैं वह तो विदेशी दुश्मन से भी ज्यादा खतरनाक हैं और इनको कुचलने की कारगर नीति सरकार को बनानी चाहिए। देश के कथित सेकुलरता के झंडाबरदार नेता अपने कृत्यों से देश विरोधी ताकतों को अपना समर्थन देकर उनके हौंसले बुलंद किए हुए हैं ,ऐसे नेताओं को भी वही सज़ा मिलनी चाहिए जो देश के साथ द्रोह करनेवालों की होती है।यह वही लोग हैं जो आतंकियों का समर्थन करते हैं और उनके मारे जाने पर अपनी छाती पीट -पीट कर बुरा हाल कर लेते हैं और कोई आतंकी महिला को अपनी बेटी बताता है और कोई उसे अपनी बहन। सबसे खतरनाक बात तो यह है कि मीडिया के भी कई लोग भी विदेशी ताकतों के पेरोल पर देश में अलगाववाद को हवा देने का गुनाह कर रहे हैं।यह किसी भी आतंकी के सुरक्षाबलों के हाथों मारे जाने या कोर्ट से सज़ा मिलने पर भी विधवा विलाप करके देश का नाम बदनाम करते हैं। यह गद्दार कथित पत्रकार देश में पत्रकारिता के नाम पर आतंकवाद और अलगाववाद को बढ़ाने में जुटे हुए हैं। अब समय आ चूका है कि देश के अंदर बैठे ऐसे गद्दारों को ,जो सेकुलरता की आढ़ लेकर और पत्रकारिता का लबादा पहनकर देश के अंदर देशविरोधी कामों में जुटे हुए हैं , को अविलम्ब गिरफ्तार किया जाए और कड़ी से कड़ी सज़ा दिलवाई जाए।अगर मोदी सरकार ने भी अब इस आग पर काबू नहीं पाया गया तो बहुत देर हो जाएगी और फिर इस पर काबू पाना भी आसान नहीं होगा और यह सरका भी देश की पूर्वर्ती सरकार की तरह नपुंसकता के रोग से ग्रस्त ही समझी जाएगी
Saturday, 30 January 2016
चौ. रामलाल भाटिया चैरिटेबल ट्रस्ट की ओर से ग्रामीण अंचल के निर्धन बच्चों को गर्म जर्सी का वितरण
समारोह में स्वर्गीय मास्टर आज्ञा राम भाटिया के परिवार की ओर से7 मेधावी छात्र -छात्राओं को भी पुरस्कृत किया गया। गॉव के कई अन्य लोगों ने भी बच्चों को प्रोत्साहन के लिए नकद राशि दी। गॉव के समस्त गण -मान्य लोगों में गढ़ी -धनेटा ग्राम पंचायत की सरपंच अफ़साना ,पूर्व सरपंच अयूब खान ,सरदार प्यार सिंह भाटिया ,पंच पृथ्वीराज भाटिया ,कुलवंत सिंह भाटिया ,रणजीत भाटिया ,राकेश भाटिया ,प्रेम भाटिया ,सतपाल भाटिया ,धर्मपाल भाटिया ,सुशील भाटिया ,सूरज भाटिया ,चानन सहित बड़ी संख्या में महिला -पुरुष भी सम्मिलित हुए।
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